Wednesday, November 12, 2025

आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती

आईपीएम सिर्फ नाशिजीव प्रबंधन तक सीमित नहीं है यह संपूर्ण कृषि तंत्र के प्रबंधन की एक समेकित विचारधारा है जिसमें नाशिजीव प्रबंधन सहित जमीन की उर्वरा शक्ति, सी:न अनुपात ,जमीन में ह्यूमस की मात्रा तथा सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या, फसल पारिस्थितिकतत्र मे जैववविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण तथा रासायनिक इनपुट्स केisthan वनस्पतियों पर आधारित इनपुट्स को बढ़ावा देकरखेती कीजती है।

Thursday, October 2, 2025

Different tyes of Integrated Pest Management Systems.

Different tyes of concept of Integrated Pest Management (IPM ) Systems.:-
1.Biological Control dominent  IPM.
2,Pest Surveillance,monitoring and Agroecosystem Analysis(A ESA) based IPM.
3 ,A bioecological approach.
4,Natural Farming based I PM..
5 ,Information Technology  based IPM.
6.Artificial Intelligent based I PM .
7,An integrated concept from PM to    Management of complete Agricultural system.
8.A  pregmatic  approach from traddional to new innovative technologies.
9.Ecological Engineering based IPM.
10.A complete crop management system including  pest  management through systematic approach.
11,Cultural co.ntrol..
12,Machan ical control
13Legal control..
14.Conservatipn of biodiversity,natural resources .Per drop  more crop.
15,Restoration of damaged Agroecosystem.
15.

Wednesday, September 24, 2025

खेती का दर्शन अर्थात फिलासफी का फार्मिंग

1, ब्रह्मांडमे पाई जाने वली वह सभी जीवित अजीवित छोटी बड़ी और सूक्ष्म cheejain जो मनुष्य के द्वारा ना बनाई गई हो सम्मिलित रूपसे प्रकृति कहलाती है । प्रकृति  में पाई जानेवली अजीवितचईजों से ही जिओ की उत्पत्ति होती है क्षिति, जल पावक गगन समीरा पंचतत्व मिल बना शरीर
2। प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार या उसे व्यवस्था में सुधार करके जब  खेती की जाती है तब उसे प्राकृतिक खेती कहतेहैं।
3, जीवामृत ही सिर्फ प्राकृतिक खेती नहीं है यह प्राकृतिक खेती का एक घटक है । जीव जंतु ऑन तथा पौधों की उत्पत्ति कार्बनिक पदार्थ से हुई है। मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु भी कार्बनिक पदार्थ पर निर्भर रहते हैं। जब यह माइक्रोऑर्गेनाइज्म कार्बनिक पदार्थ कोखाते  हैं तो एक प्रकार का भाई प्रोडक्ट बनताहै जिसमेंबहत सारे लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुह होते हैं ।
4, प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करने में निम्नलिखित चार चीज़ आते हैं। 
*भूमि की उर्वरता 
*पानी।  सिटही जल और भगर्भ जल
*जलवायु जिसमें कम से कम 25 परसेंट वनस्पतियां होनी चाहिए। 
*जैव  विविधता का माहौल बनाकर संरक्षण।
  वनस्पतियों का  भोजन होता है मरे हए जीव । रसायनों के उपयोग से लाभदायk जीवाणु मर जाते हैं । जब जमीन में ह्यूमस काम होता है तो जमीन में पानी रोकने कीक्षमता घट जाती है। जीवामृत तथा कार्बनिक पदार्थ से ह्यूमसबनत है। लूमोस से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है । प्रकट के वैभव को सजा कर कर की प्राकृतिक खेती की जा सकती है। प्रकट के वैभव को सजाने का अर्थ होता है उपरोक्त बताई हुई चारो चीजे को सही मात्रा में मिट्टी में उपस्थित होना। 
जीवामृत के बनाने की वधि
*ऑर्गेनिक कार्बन युक्त जंगल में पेड़ पधों
 की पत्तियां आदि के सड़ने से तैयार मिट्टी 2.5 केजी।,गुड 2.5 kg, आते.5 kg पानी 100 लीटर इस पदार्थ को प्रतिदिन डंडे से चलना चाहिए तथा इसमें 15 दोनोंबद और 1 किलो गुड़ तथा इसकेबद फिर 10 दिन बाद एक किलोआत एवं 1 किलोगल्ड मिलान इस प्रकार से जीवामृत 70 दोनों तैयार हो जाएगा। 
घन जीव अमृतबनाने कk यह एक कुंटल गोबर की खाद में उपरोक्त बनाहुआ जीव अमृत 20% सड़े हुए गोबरम तीन-चार dinaun मैं घन जीव अमृत बन जाता है । जीवामृत तथा गंगाजीवमृतन का उपयोग उपयोग बोलने से पहले पलावाक टाइम पर कर देनाचहिए।

Few activities related with natural farming

1,प्रकृति में चल रही एक स्वचालित अर्थात सेल्फ ऑर्नाइज्ड, स्वयं सक्रिय अर्थात सेल्फ एक्टिव, स्वयंपोशी अर्थात सेल्फnourished, स्वयं vikashii अर्थात सेल्फ डेवलपिंग, स्वयं नियोजित अर्थात सेल्फ प्लैंड, सहजीव अर्थात सिंबायोटिक, एवं आत्मनिर्भर अर्थात सेल्फ डिपेंडेंट और सेल्फ सस्टेंड फसल उत्पादन तथा फसल रक्षा प्रणाली चल रही है जिसके आधार पर जंगलों के पेपौधे हरे भरे रहते हैं तथा भरपूर फसल की उपज देते हैं।
2, प्राकृतिक खेती करते समय निम्नलिखित गतिविधियों को सुचारू रूपसे क्रियान्वित करना चाहिए। 
*जमीनकी उर्वरा शक्ति अर्थात फर्टिलिटीक बढ़ाना। इसके लिए जमीन में प्रचुर मात्रा में ऑर्गेनिक कार्बन, सूक्ष्मजीव, सूक्ष्म जीवों की मृत कोशिकाएं होचाहि जिससे जमीन में ह्यूमस बढ़ता है जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।ह्यूमस में ऊपर बताई गई तीन। Cheejain अर्थात ऑर्गेनिक कार्बन, सूक्ष्मजीव एवं सक्ष्मजीवों की मृत्यु कोशिकाएं होती हैं। जो हमस को बनाने में सहायक होहैं। जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन अर्थात जमीन की उर्वरशक्ति को बढ़ाने के लिए खेतों की जमीन में जीव अमृत समय-समय पर डालते हैं। 
3, जैव वविधता
 अथवा बायोडायवर्सिटी का संरक्षण 
इसके लिए जीवामृत, घन जीव अमृत, खेतों की मलो पर
 थोड़ी-थोड़ी दूर पर फलदार, छायादार, एवं चिड़ियों के लिए पसंद वृक्षलगते हैं। इसके साथ-साथ मुख्य फसल के सथ-साथ सह फैसल , अथवा अंतर फसलों को भी लगते हैं। पशु पक्षियों एवं वनस्पतियों के अवशेषों को खेत में ही मल्चिंग कर देते हैं। 
4, भूमि जल स्तर को ऊपर लाना। इसके लिए खेतों में मजबूत मेडीबनाते hs जिससे वर्षा जल संग्रह हो सके। 
5, जंगल एरिया को बढ़ाना 
6, फसलों की बुवाई से पहले उनकी आवश्यकता के अनुसार प्लानिंग करना ।
7, फसलों की देसी पजातियां  के बीज एवं देसी गयों
 तथा भैंसों आदिजनवरों, देसी कचुआके की  नसलोन कासरक्षण करना।
8, आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती के इनूट्स को कृषकों के द्वारा उनके घर पर ही बनाना। 
9, खेतोंमें फसलोंएवजीवों के अवशेषों को खेतोंम हीमल्चिंग करना ।
10, एक फसली फसल चक्र के स्थान पर बहु फसली फसल चक्र अपनाना। 
11, इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग की पद्धतियों को अपनाना। 
12, मिट्टीमे सूक्ष्मजीव एवं सूक्ष्मतत्वों कासरक्षण करना। 
13, पानी तथा अन्य प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण करना 
14,, लाभ एक डायक फसल चक्र को बढ़ावा देना।
15, मिट्टी में ह्यूमस को बढ़ाएं ।
16, खरपतवारों को खेतों में हीदबे ।