Wednesday, December 2, 2015

आई.पी.एम संदेश


एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन : इंटीग्रेटेड पेस्‍ट मेनेजमेंट (आई.पी.एम) वनस्‍पति स्‍वास्‍थय प्रबंधन की एक प्रमुख विधि है जिसमें नाशीजीव नियंत्रण की विभिन्‍न विधियों को एक साथ सम्मिलित रूप से आवश्‍यकतानुसार प्रयोग करके नाशीजीवों की संख्‍या को आर्थिक हानि स्‍तर के नीचे सीमित रखा जाता है जिससे नाशीजीवों से होने वाला नुकसान नगण्‍य हो । इस विधि में रासायनिक कीटनाशकों, को अंतिम उपाय के रूप में सिफारिश की गई संस्‍तुति के अनुसार प्रयोग किया जाता है तथा जैव कीटनाशकों को व अन्‍य रसायनरहित विधियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाता है जिससे पर्यावरण व जैवसुरक्षा को सुरक्षित रखा जा सके । खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक नाशीजीवों की संख्‍या को आर्थिक हानि स्‍तर के नीचे सीमित रखने के लिए उनसे होने वाले आर्थिक नुकसान के प्रति कृषकों को सहनशील होने की आवश्‍यकता है जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन कायम रखा जा सके ।      
उपरोक्‍त उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए तथा आई.पी.एम को बढ़ावा देने, इसका प्रचार एवं प्रसार करने, व आई.पी.एम को क्रियान्‍वयन करने वाले सभी भागीदारों में प्रबल इच्‍छाशक्ति, सशक्‍त आई.पी.एम नीति, गुणवत्‍तायुक्‍त आई.पी.एम इनपुट्स की आपूर्ति को सुनुश्चित करना, आई.पी.एम के सभी भागीदारों का सशक्‍तीकरण एवं जागरुक करना आई.पी.एम के क्रियान्‍वयन व बढ़ावा देने के लिए प्रमुख आवश्‍यकताएं हैं । आओ हम सभी आई.पी.एम को क्रियान्‍वयन करने वाले भागीदार एक साथ मिलकर इस ओर प्रभावी कदम उठाएं ।
खेतों में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवों के प्रति सहानुभूति रखना तथा उनका खेतों में संरक्षण करना आई.पी.एम क्रियान्‍वयन का मूलमंत्र है । प्राय: यह देखा गया है कि रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवों जो कि हानिकारक नाशीजीवों की संख्‍या की वृद्धि पर नियंत्रण रखते हैं नष्‍ट होते चले जा रहे हैं । खेतों में लाभदायक जीवों के संरक्षण हेतु एक सशक्‍त कानून बनाने की जरूरत है । इसके लिए आई.पी.एम का प्रयोग करने वाले सभी भागीदारों विशेष तौर पर नीतिकारों को जागरूक होने की आवश्‍यकता है ।      

 धरती पर पाए जाने वाले जीवमात्र को तथा पर्यावरण को बचाने के लिए हमें उपरोक्‍त आई.पी.एम के सिद्धांतों का अनुपालन करना चाहिए । आई.पी.एम के कार्यान्‍वयन हेतु हमें आई.पी.एम के सभी भागीदारों की मानसिकताओं को एकीकृत करना चाहिए जिससे वे आई.पी.एम के मूल सिद्धांतों के प्रति बाध्‍य एवं सजग रहें । प्राय: यह देखा गया है कि सभी आई.पी.एम के भागीदार फसल पैदावार पर ही ध्‍यान देते हैं तथा फसल को पैदा करने में प्रयोग किए‍ जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के द्वारा होने वाले दुष्‍परिणामों को नजरअंदाज कर देते हैं जिससे जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । लगातार सात दशकों से रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करने से कृषकों में कीटनाशकों के प्रति अटूट विश्‍वास की मानसिकता को दूर करना होगा तथा विभिन्‍न आई.पी.एम के भागीदारों में आई.पी.एम सिद्धांतों को ध्‍यान में रखकर तथा मनुष्‍य व जानवरों के स्‍वास्‍थ्‍य तथा पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए फसल उत्‍पादन की रसायनरहित विधियों को बढ़ावा देना पड़ेगा । इसके लिए हमें फसल उत्‍पादन हेतु इलेक्‍ट्रानिक प्रौद्योगिकी आधारित विधियां, परम्‍परागत विधियों एवं जैव आधारित विधियों को बढ़ावा देना चाहिए तथा खाद्य सुरक्षा, जैव सुरक्षा एवं पर्यावरण सुरक्षा को साथ-साथ सुनिश्चित करना चाहिए । यह आई.पी.एम के सभी भागीदारों की जिम्‍मेदारी ही नहीं बल्कि कर्त्‍तव्‍य भी है कि फसलों के नाशीजीवों का प्रबंधन करते समय सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य (कम्‍युनिटी हेल्‍थ) एवं पर्यावरण की सुरक्षा का अवश्‍य ही ध्‍यान रखें तथा सुरक्षित एवं खाने के योग्‍य फसल उत्‍पादों का उत्‍पादन करने हेतु उचित सहमति बनाएं एवं कृषकों को आई.पी.एम के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रेरित करें । 

Sunday, November 29, 2015

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन स्की म को बढ़ावा देना

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की अवधारणा: 

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन वनस्‍पति स्‍वास्‍थय प्रबंधन की एक प्रमुख विधि है जिसमें नाशीजीव नियंत्रण की विभिन्‍न विधियों को एक साथ सम्मिलित रूप से आवश्‍यकतानुसार प्रयोग करके नाशीजीवों की संख्‍या को आर्थिक हानि स्‍तर के नीचे सीमित रखा जाता है । इस विधि में रासायनिक कीटनाशकोंcv ,bn को अंतिम उपाय के रूप में सिफारिश की गई संस्‍तुति के अनुसार प्रयोग किया जाता है ।


एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (ए.न.प्र.) में कृषि वैज्ञानिकों, कृषि विस्‍तार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं, कृषकों एवं नीतिकारों की निपुणता को समेकित तरीके से प्रयोग किया जाता है जिसमें कृषकों की प्रमुख भागीदारी आवश्‍यक है ।

आई.पी.एम के सिद्धांत

1. पर्यावरण को कम से कम हानि पहुंचाकर कम से कम लागत में नाशीजीवों का नियंत्रण या प्रबंधन करना आई.पी.एम कहलाता है ।
2. आई.पी.एम नाशीजीव प्रबंधन की विभिन्‍न विधियों का एक सैट है जिनसे नाशीजीवों की
  संख्‍या को आर्थिक क्षति स्‍तर तक सीमित रखा जाता है ।
3. मौजूदा हालात में आई.पी.एम में रसायनिक कीटनाशकों का प्रभुत्‍व है जिसको जैविक
  कीटनाशकों से प्रतिस्‍थापित किया जाना आवश्‍यक है ।
4. रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग जो कि अभी शुरुआत से प्राथमिकता के तौर पर किया जाता है    उसे अंतिम उपाय के रूप में किया जाना आवश्‍यक है । 
केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों का स्‍थापन :

 भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता वि‍भाग ने वर्ष 1991-92 में  एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण नामक एक स्‍कीम लागू की जिसके अंतर्गत 28 राज्‍यों एवं 01 केंद्रशासित प्रदेश में 31 केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र स्‍थापित किए गए थे । बारहवीं पंचवर्षीय योजना में राष्‍ट्रीय कृषि विस्‍तार  एवं प्रौद्योगिकी मिशन की स्‍थापना की गई जिसके अंतर्गत वनस्‍पति संरक्षण एवं वनस्‍पति संगरोध नामक एक उप मिशन बनाया गया । एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण नामक स्‍कीम को इस उप मिशन का एक घटक बनाया गया जिसका मुख्‍य कार्यक्षेत्र एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पद्धति को कृषकों के बीच में लोकप्रिय बनाना है । इस उप मिशन के अंतर्गत वर्ष 2015-16 में 04 नये केन्‍द्रीय  एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्‍द्र यथा नासिक(महाराष्‍ट्र),  विजयवाड़ा (आंधप्रदेश), जयपुर (राजस्‍थान) तथा आगरा (उत्‍तर प्रदेश) में एक-एक केन्‍द्र स्‍थापित किये गए इस प्रकार अब देश में कुल 35 केन्‍द्रीय  एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्‍द्र 29 प्रदेशों एवं 01 केन्‍द्रीय शासित राज्‍य में कार्यरत है ।  जिनका कार्यक्षेत्र (मेन्‍डेट) एवं उनके उद़देश्‍य तथा गतिविधियां निम्‍नलिखित हैं –

केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों का कार्यक्षेत्र :

1. फसलों में लगने वाले नाशीजीवों, बीमारियों एवं खर-पतवारों तथा इनके प्राकृतिक
      शत्रुओं की संख्‍या का आंकलन एवं उनकी निगरानी करना ।
2. जैव नियंत्रण कारकों (बायो कंट्रोल एजेंटों का ) प्रयोगशाला में उत्‍पादन करना एवं
      उनको नाशीजीवों के नियंत्रण हेतु फसलों के खेतों में छोड़ना एवं उनकी प्रभावशीलता
      का अध्‍ययन करना।
3. खेतों में पाये जाने वाले नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं (बायो कंट्रोल एजेंटों का) खेतों
      में संरक्षण एवं बढ़ावा करना ।
4. प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा मानव संसाधन विकास करना । किसानों व कृषि विस्‍तार एवं
      प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए आई.पी.एम खेत पाठशालाओं का संचालन करना तथा दीर्घ
      एवं लघु अवधि के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना । 

केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों के उद़देश्‍य :

1. कम लागत से अधिक से अधिक फसल की पैदावार लेना ।
2. मिटटी, जल एवं वायु में पर्यावरणीय प्रदूषण को कम से कम करना ।
3. रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग करते समय होने वाले स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी दुष्‍परिणामों  
      को कम से कम करना ।
4. फसल पारिस्‍थितिक तंत्र का संरक्षण करके पारिस्‍थितिक संतुलन को बनाए रखना
5. फसल उत्‍पादों में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेषों को कम करने के लिए रसायनिक  
   कीटनाशकों का न्‍यायोचित (judicious) प्रयोग करना ।

केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों की गतिविधियां :

1. बोने से लेकर कटाई (बीज से बीज तक) तक फसलों पर लगने वाले रोगों एवं कीटों पर सतत निगरानी रखना ।
2. फसलों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं का खेतों में संरक्षण एवं बढ़ावा देना ।
3. फसलों के शत्रु एवं मित्र कीटों की पहचान करके मित्र कीटों के माध्‍यम से फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का प्रबंधन करना ।
4. केंद्र की जैविक प्रयोगशाला में मित्र कीटों का संवर्धन करना और उन्‍हें खेतों में छोड़ना।
5. जैविक कीटनाशकों के प्रयोग को प्रोत्‍साहित करना ।
6. प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा मानव संसाधन विकास करना । किसानों, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के लिए आई.पी.एम खेत पाठशालाओं का संचालन करना तथा दीर्घ एवं लघु अवधि के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना ।
7. किसानों को फसल बोने के पूर्व बीज उपचार के बारे में जानकारी देना ।
8. राज्‍य सरकारों, राज्‍यों के  कृषि विश्‍वविद्यालयों तथा अन्‍य कृषि अनुसंधान संस्‍थानों से वनस्‍पति संरक्षण के हेतु समन्‍वय स्‍थापित करना ।

वर्ष 2014 तक केन्‍द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केन्‍द्रों द्वारा किये गए कार्यों का संक्षिप्‍त विवरण :

स्‍कीम  के प्रारंभ से 2014-15 तक कुल 15,874 आईपीएम कृषक खेत पाठशालाओं का आयोजन करके 58,620 कृषि एवं बागवानी प्रसारएवं प्रचार कार्यकर्ताओं  तथा 4,77,218 कृषकों को विभिन्‍न फसलों में  आईपीएम पद्धति के बारे में प्रशिक्षित किया गया । नाशजीवों के निगरानी एवं स‍र्वेक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत कुल 256.86 लाख हेक्‍टेयर एरिया कवर किया गया ।  कुल 47,489 मिलियन जैव नियंत्रण कारकों (वायोकंट्रोल एजेंट्स) को विभिन्‍न फसलों के नाशीजीवों के नियंत्रण हेतु फसलों के खेतों में छोड़ा गया । विभिन्‍न फसलों एवं राज्‍यों में कुल 63 दीर्घकालीन आईपीएम  प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करके कुल 2,311 मास्‍टर प्रशिक्षक बनाए गए जो अपने क्षेत्रों में इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करके अपने सहयोगियों को प्रशिक्षत करते हैं । ये कार्यक्रम मुख्‍य रूप से धान, कपास सब्जियों, फलों, मुंगफली, सरसों, सोयाबीन, दालों, नारियल, आलू, केला, किन्‍नू,  गन्‍ना आदि फसलों में आयोजित किये गए । लघु अवधीय कार्यक्रमों में कुल 8,16 दो दिवसीय तथा 84 पांच दिवसीय कार्यक्रम 2005-06 से अब तक आयोजित किये गए  जिनके द्वारा 30,640 कृषक (दो दिवसीय कार्यक्रमों द्वारा)   तथा 3,360 कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता कीटनाशक विक्रेता तथा गैर सरकारी संगठन एवं उन्‍नतशील किसान (पांच दिवसीय कार्यक्रमों द्वाराप्रशिक्षित किये गए)  । कुल 68 फसलों के लिए संशोधित आईपीएम पैकेज बनाए गए जिसको मंत्रालय एवं निदेशालय की बेवसाइट पर अपलोड किया गया है जिससे  प्रदेशों के कृषक एवं  प्रचार एवं प्रसारकार्यकर्ता लाभान्वित हो सके । 

केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कार्यक्रमों के प्रमुख परिणाम :

1.      नाशीजीव सर्वेक्षण एंव निगरानी कार्यक्रम :
     
फसलों में लगने वाले नाशीजीवों, बीमारियों एवं खर-पतवारों की संख्‍या की बढ़वार एवं प्रकोप का शीघ्र पता लगाकार उनके नियंत्रण हेतु समय से उचित नियंत्रण रणनीति बनाने तथा कृषकों एवं राज्‍य सरकार के प्रचार एवं प्रसार अधिकारियों के लिए सलाहकारी जारी करने में मददगार साबित हुए हैं ।

      इन कार्यक्रमों से विभिन्‍न प्रकार के उभरते हुए नाशीजीवों (Emerging Pest Problems) के प्रकोप के बारे में पता चला । इन उभरते हुए नाशीजीवों की समस्‍याओं में प्रमुख रूप से गन्‍ने में  महाराष्‍ट्र क्षेत्र में बुलीएफिड मध्‍य एवं दक्षिण भारतीय प्रदेशों में सूरजमुखी की फसल पर स्‍पोडापट्रा लिटूरा, दक्षिण भारतीय राज्‍यों में बी.टी. काटन में मिलीबग, उत्‍तर भारत के कपास उत्‍पादक क्षेत्रों में कपास की सफेद मख्‍खी,  झारखंड, बिहार, छत्‍तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्‍य में धान की फसल में स्‍पोडापट्रा मॉरिशिया, राजस्‍थान व महाराष्‍ट्र के विदर्भ क्षेत्र में सोयाबीन की फसल में  स्‍पोडापट्रा लिटूरा, विभिन्‍न क्षेत्रों में कॉटन मिलीबग एवं दक्षिण भारतीय प्रदेशों में पपीता की मिलीबग, उत्‍तर भारतीय प्रदेशों में गेहूं की फसल में पीला रतुआ, कर्नाटक प्रदेश में विदेशी खर-पतवार एम्‍ब्रोसिया, साइलोस्‍टाकिया आदि समस्‍याएं प्रमुख हैं । हाल में कुछ पश्चिमी तथा दक्षणी राज्‍यों में टमाटर तथा अन्‍य सोलानेसी कुल की फसलों में आक्रामक नाशीजीव टूटा ऑब्‍सोलूटा का प्रकोप पाया गया है जिसकी निगरानी एवं सर्वेक्षण करके तथा राज्‍य सरकारों को समय-समय पर सलाहकारी जारी करके नियंत्रण किया गया । इसी प्रकार राजस्‍थान में धनिया की फसल पर लोंगियां नामक बीमारी का प्रकोप पहली बार देखा गया जिसको निगरानी एवं सर्वेक्षण करके राज्‍य सरकार को सलाहकारी जारी करके नियंत्रण किया गया ।

      निगरानी एवं सर्वेक्षण कार्यक्रम के आधार पर रसयानिक कीटनाशकों के  छिड़काव की संख्‍या में कपास में करीब 50 प्रतिशत तथा धान में 80 से 100 प्रतिशत की कमी आई है ।
     
वर्ष 2010-11 से उत्‍तर भारतीय राज्‍यों में प्रकट होने वाली पीले रतुआ नामक बीमारी निगरानी एवं सर्वेक्षण कार्यक्रम के द्वारा समय से उचित रणनीति अपनाकर हर वर्ष प्रबंधित की जा रही है । जिससे देश का आर्थिक नुकसान बचाया जा रहा है ।
     
उड़ीसा, पश्‍चिम बंगाल, छत्‍तीसगढ़ एवं झारखंड प्रदेशों में क्रॉप्‍स सैप नामक Crop surveillance and advisory programme (CROPSAP) प्रोग्राम अपनाकर विभिन्‍न नाशीजीवों की समस्‍याओं का प्रबंधन उचित समय से सलाहकारी जारी करके किया जा रहा है ।

      निगरानी एवं सर्वेक्षण कार्यक्रम विभिन्‍न स्‍थानीय नाशीजीवों की समस्‍याओं का पता लगाने में सहायक हुए हैं । नाशीजीव सलाहकारी किसान पोर्टल के द्वारा sms के रूप में किसान तक पहुंचाये जाने लगी है ।

2. आई.पी.एम किसान खेत पाठशाला कार्यक्रम  :

         आई.पी.एम किसान खेत पाठशाला एक अनौपचारिक शिक्षा पद्वति है जिसके माध्‍यम से किसानों को उनके अनुभवों के समाहित करते हुए खेतों में ही वैज्ञानिक कृषि पद्वति से स्‍वयं करके सीखने की प्रक्रिया द्वारा एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे अपने खेतों की कृषि क्रियाओं के बारे में स्‍वयं निर्णय ले सकें । 

     किसान खेत पाठशाला कार्यक्रम आई.पी.एम कार्यक्रम को किसानों तक पहुंचाने में सहायक हुआ है । इस प्रोग्राम के द्वारा किसानों को आई.पी.एम के ज्ञान एवं निपुणता के बारे में समर्थ बनाया गया जिससे वो कीटनाशकों का उपयोग कम करके कम कीमत पर स्‍वस्‍थ फसल उगा सकें और वातावरण को सुरक्षित कर सकें । किसानों को उनके खेतों के बारे में स्‍वयं निर्णय लेने हेतु सक्षम बनाया गया । इस प्रोग्राम के जरिए किसानों को अच्‍छी कृषि क्रियाओं के प्रयोग के बारे में जानकारी मिली जिससे वे कम लागत पर अधिक फसल उत्‍पादन कर सकें एवं रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कृषि कार्यों में कम करके वातावरण को प्रदूषित होने से बचा सकें तथा एक स्‍वस्‍थ फसल उत्‍पाद पैदा कर सकें जो कि फसल उत्‍पादों को निर्यात करने के लिए  एक प्रमुख आवश्‍यकता है । किसान खेत पाठशाला कार्यक्रम भारत सरकार के अन्‍य विभागों द्वारा स्‍वीकार किया गया एवं अन्‍य विभागों द्वारा भी किसानों के बीच  चलाया जा रहा है ।

3. जैविक नियंत्रण कार्यक्रम:
निम्‍नलिखित जैव नियंत्रण कारक (बॉयो कंट्रोल एजेंटस) विभिन्‍न नाशीजीवों के नियंत्रण हेतु उपयोगी सिद्ध हुए हैं –
  1. Arenaceous bombaywala द्वारा कॉटन मिलीबग का नियंत्रण
  2. Trichoderma  द्वारा विभिन्‍न बीज जनित एवं मृदा जनित पैथोजन जैसे कि Fusarium, Rhizoctonia, Phytophthora, Sclerotinia, Alternaria  का नियंत्रण
  3. Nuclear polyhedrosis Viruses (Ha-NPV & S-NPV)  द्वारा  Helicoverpa armigera & Spodoptera litura  का नियंत्रण
  4. Trichogramma द्वारा विभिन्‍न Lepidopteran Pests  का नियंत्रण         
  5. Epiricania melanoleuca एवं Tetrastichus pyrillae द्वारा गन्‍ने के pyrilla की रोकथाम
  6. Zygogramma bicolarata द्वारा Parthenium खर-पतवार का नियंत्रण
  7. Neochetina bruchi एवं N. eichhornae द्वारा water hyacinth  का नियंत्रण
जन-जागरूकता कार्यक्रम (Public Awareness) :

आई.पी.एम कार्यक्रमों के द्वारा कृष्‍कों एवं जन साधारण में निम्‍नलिखित के बारे में भी जागरूकता पैदा की जा सकी है –

        I.            खेत पर्यावरण में पाये जाने वाले विभिन्‍न लाभदायक जंतुओं के बारे में जो नाशीजीवों की संख्‍या पर नियंत्रित करने में सहायक होते हैं ।
      II.            कैलेण्‍डर पर आधारित कीटनाशकों का छिड़काव फसल उत्‍पादन हेतु न तो आवश्‍यक है और न ही लाभदायक ।
    III.            फसल पर छिड़काव आर्थिक क्षति स्‍तर, फसल में पाये जाने वाले हानिकारक एवं लाभदायक जीवों की संख्‍या का ािनका‍न्‍  ंkkkkbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbbjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjjj
                        III.अनुपात (P:D ratio), फसल पारिस्‍थितिक तंत्र विश्‍लेषण (Agro Eco System Analysis) के निष्‍कर्ष को ध्‍यान में रखकर ही करना चाहिए जिससे कीटनाशकों के प्रयोग को कम किया जा सके ।
    IV.            रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के स्‍थान पर जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करके रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम किया जा सकता है ।
      V.            नाशीजीवों की संख्‍या एवं उपस्‍थिति का पता लगाने हेतु फीरोमोन ट्रैप, ऐलो ट्रैप, चिपचिपे ट्रैप, फ्रूटफलाई ट्रैप, लाइट ट्रैप का प्रयोग किया जा सकता है ।
    VI.            रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में ही करना चाहिए ऐसा करके फसल में पाये जाने वाले लाभदायक जीवों का संरक्षण किया जा सकता है ।
  VII.            आम जनता को यह जानकारी प्राप्‍त हुई कि रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष खाने के पदार्थों में खाद्य श्रृंखला के द्वारा पहुंच सकते हैं । अत: हमें कीटनाश्‍कों के प्रयोग को कम करना चाहिए ।
VIII.            पारिस्‍थितिक इंजीनियरी से फसल वातावरण में लाभदायक जीवों की संख्‍या का संरक्षण किया जा सकता है।                                     
    IX.            विभिन्‍न प्रकार के जैव-नियंत्रण कारकों (बॉयो कंट्रोल एजेंटस) एवं जैव कीटनाशकों के उत्‍पादन हेतु सरकारी एवं निजी एजेंसियों के द्वारा 352 जैव-नियंत्रण प्रयोगशालाओं को देश के विभिन्‍न प्रदेशों में स्‍थापित किया गया ।


  


Thursday, November 5, 2015

आई.पी.एम संदेश


      भारत एक कृषि‍ प्रधान देश है । 125 करोड़ देशवासियों के लिए पर्याप्‍त भोजन, किसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए पर्याप्‍त भोजन या अनाज का भंडारण तथा अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापार में भाग लेने हेतु अन्‍तरराष्‍ट्रीय व्‍यापार के मानकों के बराबर गुणवत्‍तायुक्‍त अनाज, फल व सब्जियां पैदा करना हमारा  उत्‍तरदायित्‍व ही नहीं बल्कि आवश्‍यकता भी है । उपरोक्‍त आवश्‍यकता की पूर्ति हेतु भोजन का उत्‍पादन करते समय हमें इस बात का ध्‍यान रखना भी परम आवश्‍यक है कि इसके लिए हम ऐसी तकनीकों का प्रयोग करें जिसका हमारे व हमारे बीच पाये जाने वाले जानवरों, पक्षियों के स्‍वास्‍थ्‍य तथा पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव न पड़े एवं फसल पर्यावरण में पाये जाने वाले लाभदायक जीवों का संरक्षण भी हो सके । इसके लिए हमें रसायन रहित आई.पी.एम आधारित विधियों को अधिक से अधिक प्रोत्‍साहित करना चाहिए ।
आओ हम सब मिलकर इस विषय पर चिंतन करें एवं कृषकों के बीच में इन विधियों का प्रचार एवं प्रसार करें तथा उनको इन विधियों के प्रयोग करके फसल उत्‍पादन करने के लिए प्रेरित करें । याद रखिये रासायनिक कीटनाशक हमारे स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं । इनका उपयोग सावधानी एवं अंतिम उपाय के रूप में ही करें । 

Wednesday, November 4, 2015

Few IPM themes



Adopt IPM
For better environment
To Grow Safe Food
To conserve bio-security & bio-diversity
To protect eco-system
To protect beneficial fauna & flora in Agro Eco-system
IPM
A way forward from grow more food to grow safe food
Bio Pesticides
An alternative of Chemical Pesticides 
IPM Training
A participatory approach of learning through non-formal education system.
IPM
Is based on Pest monitoring, analyzing the Agro-Eco-system and expert adoption of pest management techniques in Integrated manner
IPM Farmers Field School
Is a way to empower the farmers to take self decision about their crop fields
IPM
Is a way to manage pests with minimum expenditure and least disturbance to environment and eco-system
IPM implementation
Motivate, educate and facilitate the farmer to implement IPM

Monday, October 19, 2015

Few wrong concepts among farmers about IPM
            Agriculture is the Science which is invented by the scientists but practiced by the farmers. While practicing certain right or wrong concepts are emerged which became faith among the farmers.
            Pesticides have become one of the main tools for crop protection programme and also helped us to bring Green Revolution for growing more food. Certain wrong concepts are as under. –
1.      The farmers have become accustom with the use of pesticides.
2.      They are in opinion that the pesticides are only panacea for pest management.
3.      They apply pesticides indiscriminately without assessing their needs and their bad impacts on bio-security/biodiversity and environment.
4.      The farmers are also in opinion that all the organisms found in the agro-eco-system are harmful i.e. pests whereas most of the organisms found in agro-eco-system are useful. They must be conserved while doing pest management.
5.      They are also in opinion that the pesticides are helpful to enhance the yield the crop, so they adopt pesticides application indiscriminately.
6.      They are also using chemical pesticides as preventive measures wherever they are not needed.
7.      They are also in opinion that pests are only factors response to reduce the crop yield but there are certain abiotic factors also contributing to reduce the crop yield.  
8.      Most of the farmers do not assess the need of application of chemical pesticides. They do not wait for attaining the pest production upto ETL. They do not have patience to wait. They think that if they will not apply pesticides on their crops then the crops will be damaged with pests. The agriculture is quite risky occupation and the livelihood of the farmers and also other people depend upon agriculture or food production.   
9.      We have to findout the wrong concepts created among farmers and empowered the farmers to adopt correct Good Agricultural Practices to Grow More Food with minimum expenditure and least disturbance to the environment because the farmers to not consider the impact of pesticides on our health and environment.
10.  We must empower the farmers to Grow More Food to Grow Safe Food. If we really want to enhance our agriculture export for which we have to grow the crops at-par with international standard.
11.  The pesticides must be applied not only to kill the pests but also to save the biodiversity, human and animal health and environment. The pesticides should be used but not to be misused.
12.  Right pesticides must be applied on right crop against right pests at right time, with right dose and right method as recommended in the label claims of CIB&RC.
13.  Earlier the pests were considered as potential threat to bio-security but now the pesticides have become main threat for bio-security which include food, trade, health and environmental security.
14.  Several cultural practices which are ignored in Plant health Management programme must be promoted and made accountable and responsible for it.
15.  The chemical based agriculture must be shifted to non chemical/biological based agriculture for which the bio pesticides must be made available to the farmers at their doorsteps, which is one of the main constraints for Implementations of IPM.  
16.  Farmers safety must be ensured while doing pesticide application in the fields.
17.  Excess of everything is bad hence excess of chemical is also bad for our agriculture. Use chemical lastly and safely to produce safe food.
18.  Let us integrate the mindsets of policy makers, Beauracrates, Scientists, Extension workers farmers, Farm laborers and common men and evolve a common consensus that pesticides are harmful. They are poisoning the health of our children, animals and having several health problems and their use must be reduced as extent as possible. Chemical pesticides must be replaced with bio pesticides.

19.  Let us make IPM for the farmers, of the farmers and by the farmers. Make the farmers competent to produce safe food by way of using eco-friendly approaches of pest management.