प्रकृति
का संचालन दो प्रकार के प्राकृतिक कारकों (factors) के द्वारा होता है। जो प्रकृति स्वयं करती है । ये कारक हैं –
जैविक (Biotic) एवं अजैविक (Abiotic) । सभी जीव जंतु एवं पौधे जैविक कारकों के
अंतर्गत आते हैं एवं हवा, प्रकाश, तापमान, नमी, पानी, मिटृटी
आदि अजैविक कारक हैं । जैविक कारक परस्पर में भी एक दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा
ये अजैविक कारकों पर भी निर्भर करते हैं । इन जैविक व अजैविक कारकों के संबंध को
पारिस्थतिक तंत्र (Eco-system) कहते हैं। मनुष्य
को प्रकृति का सिरमौर (Top of the creature) कहा जाता है । मनुष्य
की असीम इच्छाओं (desires) की वजह से वह प्रकृति के संचालन में
हस्तक्षेप करता है जिससे प्रकृति एवं इको सिस्टम का संचालन बुरी तरह से प्रभावित
होता है, जिससे प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जीवों की गतिविधियां
प्रभावित होती हैं जिसका मनुष्य के जीवन पर अच्छा या बुरा प्रभाव प्रत्यक्ष
अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। मनुष्य अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए
एवं अपने विकास के लिए प्रकृति को लगातार नुकसान पहुंचाता चला जा रहा है जिसके
विपरीत प्रभाव भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सामने आ रहे हैं ।
रोटी (Food), कपड़ा (Protection)
और
मकान (Shelter) मनुष्य जीवन की प्रमुख आवश्यकताएं हैं, जिनके लिए
वह तरह-तरह से प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। भोजन हमारे जीवन की प्रमुख आवश्यकता
है जिसके लिए मनुष्य सदियों से खेती चला आ रहा है। खेती करने के प्रमुखउदृदेश्य
निम्नलिखित हैं –
1. 1.
सभी मनुष्यों के लिए पर्याप्त भोजन प्रदान
करना
2. 2 आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त
भोजन संग्रह करना ।
3. 3 जनसंख्या की वृद्धि के तुलना के हिसाब से
अनाज या भोजन के उत्पादन में वृद्धि करना।
4. 4 कृषि उत्पादों का निर्यात करना ।
मनुष्य
द्वारा ऐसी गतिविधियां करना जिनके फलस्वरूप सभी जीवों को प्रकृति
में पनपने, बढ़ने एवं
संरक्षित होने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल सके जैव सुरक्षा के अंतर्गत आते हैं । जैव
सुरक्षा के अंतर्गत स्वास्थ्य सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, खाद्य
सुरक्षा एवं व्यापार सुरक्षा भी आते हैं ।
प्रकृति में दो प्रकार के जीव पाये जाते हैं
– एक हानिकारक जो मनुष्य को आर्थिक रूप से हानि पहुंचाते हैं नाशीजीव कहलाते हैं, दूसरे वे
जीव जो मनुष्य को लाभ पहुंचाते हैं उनको
लाभदायक जीव या मित्र जीव भी कहते हैं । जैव सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि
नाशीजीवों का नियंत्रण इस प्रकार से किया जाए कि प्राकृतिक संतुलन कायम रहे और इस
पर विपरीत प्रभाव न पड़े । इसके अलावा मनुष्यों व पशुओं के स्वास्थ्य एवं
पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े । अजैविक कारकों पर मनुष्य का नियंत्रण न
होने की वजह से उनके द्वारा जैव-सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव भी मनुष्य के वश
में कम होते हैं परंतु अब इन अजैविक कारकों के द्वारा होने वाले आपदाओं से बचने के
लिए कई प्रकार के शोध कार्य किए जा रहे हैं जिनसे इन आपदाओं की पूर्व जानकारी
प्राप्त हो सके, परंतु अभी भी इस दिशा में बहुत ही प्रयत्न
करने की जरूरत है । उपरोक्त अजैविक कारकों के द्वारा भी जीव-जंतुओं की संख्या
नियंत्रति (regulate) की जाती है ।
नाशीजीवों (Pests) को जैव
सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जाता था, परंतु अब नाशीजीवों के नियंत्रण हेतु प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का
अंधाधुंध प्रयोग जैव सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं । इनके अंधाधुंध प्रयोग से
निम्नलिखित समस्यायें पैदा हो गई हैं –
1. 1. रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष भोजन श्रृंखला
के द्वारा मनुष्यों एवं पशुओं के शरीर में पहुंचने लगे हैं और एकत्रित होने से
मनुष्य एवं पशुओं में तरह तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो गयी है ।
2. रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष फलों व सब्जियों
में निहित सीमा से ऊपर पाये जाने लगे हैं, जिसके फलस्वरूप
निर्यात किए जाने वाले फसल उत्पाद आयात करने वाले देशों के द्वारा स्वीकार नहीं
किए जाते हैं ।
3. कीटनाशकों का हमारा पर्यावरण पर विपरीत
प्रभाव पड़ता है जिससे पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न होता है जो कि जैव सुरक्षा पर
विपरीत प्रभाव डालता है । मछलियां, मेंढक तथा अन्य
पानी में पाये जाने वाले जीवों की संख्या पर कीटनाशकों का भी प्रभाव पड़ता है तथा
इनकी संख्या कम होने लगी है।
4. मिट्टी में पाये जाने वाले जीव जैसे केंचुआ, गिजाई तथा
सूक्ष्म जीव भी नष्ट होने लगे हैं।
5. बरसात के दिनों में निकलने वाले जीव जैसे –
जुगनू, वेलवेट माइट आदि भी विलुप्त होने के कगार पर हैं ।
6. मरे हुए जानवरों का मांस खाने वाले गिद्ध भी
विलुप्त होने लगे हैं ।
7. खेतों में पाए जाने मित्र कीट जो फसलों पर
लगने वाले नाशीजीवों की संख्या पर नियंत्रण करते हैं नष्ट होने लगे हैं जिनकी
वजह से फसलों के नाशीजीवों का प्रकोप बढ़ने लगा है।
8. कीटनाशकों के लगातार उपयोग से फसलों के
नाशीजीवों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगी है, जिनका नियंत्रण
करना मुश्किल हो जाता है ।
9. कीटनाशकों के प्रयोग से लाभदायक जीव जैसे
मधुमक्खियों की संख्या पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
10. कृषि व्यापार के द्वारा बहुत सारे विदेशी
कीट या नाशीजीव जो हमारे देश में नहीं हैं, हमारे देश में
प्रविष्ट होने लगे हैं जो हमारी फसलों के लिए बहुत बड़ी समस्या पैदा करने लगे
हैं ।
वनस्पति संरक्षण, संगरोध
एवं संग्रह निदेशालय द्वारा इसके अंतर्गत कार्य करने वाले एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
केंद्रों, वनस्पति संगरोध केंद्रों एवं टिड्डी चेतावनी संगठन के
सर्किल कार्यालयों द्वारा अपने अपने कार्यक्षेत्रों के अनुसार गतिविधियां करके
जैव-सुरक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं ।