Monday, February 23, 2015

जरा सोचें कि क्या ये उचित है ?

1.      रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से खेतों में अधिक संख्‍या में पाये जाने वाले लाभदायक जीवों को जो खेतों में कम संख्‍या में पाये जाने वाले हानिकारक जीवों के साथ मारा जाए जबकि वे हानिकारक जीवों की संख्‍या की वृद्धि पर नियंत्रण रखते हैं।

2.      धरती मॉं जो हमारे लिए भोजन का उत्‍पादन करती है को रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से जहरीला बनाया जाए।

3.      पानी हमारे जीवन के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, बिना पानी के हमारा जीवन असंभव है। क्‍या पानी को कीटनाशकों के उपयोग से जहरीला बनाया जाये।

4.      क्‍या कीटनाशकों के उपयोग से फलों व सब्‍जियों को जहरीला बनाना उचित है। क्‍या हम इन जहरीले फलों व सब्‍जियों को खाना पसंद करेंगे।  


5.      बिना सोचे समझे कीटनाशकों का उपयोग क्‍या उचित है, या ये नादानी है। 

Five IPM Sutras

·  Research, Extension, Legal, Executive, Wings of state and central Government and Non Governmental Organizations (NGOs) associated with IPM work should work together as per the need of Farmers, Traders, Environment and Bio-security.
·        Ensure the availability of IPM inputs at Farmer’s door steps.
·       Aware the Farmers about the risks associated with chemical Pesticides for Human and Cattle Health, Ecology and Environment. Motivate the Farmers to consider the risks associated with Environment and Health while doing agricultural work.
·        Let’s learn about the philosophy and concept of IPM which is a total crop health management package and teach the farmers about these aspects.

·    Involve the Farmers in IPM programme, demonstration and Farmer’s Field Schools (FFSs) to make the IPM by the Farmers, For the Farmers and of the Farmers as a Framer’s movement.

Wednesday, February 18, 2015

आई.पी.एम - वनस्पति रक्षा के लिए एक मध्यम मार्ग

वनस्‍पति रक्षा (प्‍लान्‍ट प्रोटेक्‍शन) में रासायनिक कीटनाशकों का भरपूर प्रयोग किया जाता है जिसके बहुत सारे दुष्‍प्रभाव होते हैं । आर्गेनिक खेती में किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है परंतु उसमें फसल उत्‍पादन एवं उत्‍पादकता को सुनिश्‍चित नहीं किया जा सकता। अत: इसमें फसल उत्‍पादन (उपज) कम होता है। आई.पी.एम एक मध्‍यम मार्ग का काम करता है जिसमें रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग अति आवश्‍यकतानुसार अंतिम उपाय के रूप में किया जा सकता है, जब नाशीजीवों की संख्‍या आर्थिक हानि स्‍तर के पार हो जाये। इसमें फसल पैदावार एवं फसल की उपज को भी सुनिश्‍चित किया जा सकता है एवं कीटनाशकों के अलावा अन्‍य विधियों का उपयोग समेकित रूप से किया जाता है जिससे स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है।    


रासायनिक कीटनाशक – जैव सुरक्षा के लिए एक खतरा

प्रकृति का संचालन दो प्रकार के प्राकृतिक कारकों (factors) के द्वारा होता है। जो प्रकृति स्‍वयं करती है । ये कारक हैं – जैविक (Biotic) एवं अजैविक (Abiotic) । सभी जीव जंतु एवं पौधे जैविक कारकों के अंतर्गत आते हैं एवं हवा, प्रकाश, तापमान, नमी, पानी, मिटृटी आदि अजैविक कारक हैं । जैविक कारक परस्‍पर में भी एक दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा ये अजैविक कारकों पर भी निर्भर करते हैं । इन जैविक व अजैविक कारकों के संबंध को पारिस्‍थतिक तंत्र (Eco-system) कहते हैं। मनुष्‍य को प्रकृति का सिरमौर (Top of the creature) कहा जाता है । मनुष्‍य की असीम इच्‍छाओं (desires) की वजह से वह प्रकृति के संचालन में हस्‍तक्षेप करता है जिससे प्रकृति एवं इको सिस्‍टम का संचालन बुरी तरह से प्रभावित होता है, जिससे प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जीवों की गतिविधियां प्रभावित होती हैं जिसका मनुष्‍य के जीवन पर अच्‍छा या बुरा प्रभाव प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप से पड़ता है। मनुष्‍य अपने अस्‍तित्‍व को बनाए रखने के लिए एवं अपने विकास के लिए प्रकृति को लगातार नुकसान पहुंचाता चला जा रहा है जिसके विपरीत प्रभाव भी प्रत्‍यक्ष व अप्रत्‍यक्ष रूप से सामने आ रहे हैं । 

रोटी (Food), कपड़ा (Protection) और मकान (Shelter) मनुष्‍य जीवन की प्रमुख आवश्‍यकताएं हैं, जिनके लिए वह तरह-तरह से प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। भोजन हमारे जीवन की प्रमुख आवश्‍यकता है जिसके लिए मनुष्‍य सदियों से खेती चला आ रहा है। खेती करने के प्रमुखउदृदेश्‍य निम्‍नलिखित हैं –

1.      1.      सभी मनुष्‍यों के लिए पर्याप्‍त भोजन प्रदान करना  
2.       2           आपातकालीन स्‍थिति से निपटने के लिए पर्याप्‍त भोजन संग्रह करना ।
3.        3         जनसंख्‍या की वृद्धि के तुलना के हिसाब से अनाज या भोजन के उत्‍पादन में वृद्धि करना।
4.        4      कृषि उत्‍पादों का निर्यात करना । 

          मनुष्‍य द्वारा ऐसी गतिविधियां करना जिनके फलस्‍वरूप सभी जीवों को प्रकृति
में पनपने, बढ़ने एवं संरक्षित होने के लिए उपयुक्‍त वातावरण मिल सके जैव सुरक्षा के अंतर्गत आते हैं । जैव सुरक्षा के अंतर्गत स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा एवं व्‍यापार सुरक्षा भी आते हैं ।

        प्रकृति में दो प्रकार के जीव पाये जाते हैं – एक हानिकारक जो मनुष्‍य को आर्थिक रूप से हानि पहुंचाते हैं नाशीजीव कहलाते हैं, दूसरे वे जीव जो मनुष्‍य को  लाभ पहुंचाते हैं उनको लाभदायक जीव या मित्र जीव भी कहते हैं । जैव सुरक्षा के लिए आवश्‍यक है कि नाशीजीवों का नियंत्रण इस प्रकार से किया जाए कि प्राकृतिक संतुलन कायम रहे और इस पर विपरीत प्रभाव न पड़े । इसके अलावा मनुष्‍यों व पशुओं के स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव न पड़े । अजैविक कारकों पर मनुष्‍य का नियंत्रण न होने की वजह से उनके द्वारा जैव-सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव भी मनुष्‍य के वश में कम होते हैं परंतु अब इन अजैविक कारकों के द्वारा होने वाले आपदाओं से बचने के लिए कई प्रकार के शोध कार्य किए जा रहे हैं जिनसे इन आपदाओं की पूर्व जानकारी प्राप्‍त हो सके, परंतु अभी भी इस दिशा में बहुत ही प्रयत्‍न करने की जरूरत है । उपरोक्‍त अजैविक कारकों के द्वारा भी जीव-जंतुओं की संख्‍या नियंत्रति (regulate) की जाती है ।

नाशीजीवों (Pests) को जैव सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जाता था, परंतु अब नाशीजीवों के नियंत्रण हेतु प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग जैव सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं । इनके अंधाधुंध प्रयोग से निम्‍नलिखित समस्‍यायें पैदा हो गई हैं – 

1.    1.   रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष भोजन श्रृंखला के द्वारा मनुष्‍यों एवं पशुओं के शरीर में पहुंचने लगे हैं और एकत्रित होने से मनुष्‍य एवं पशुओं में तरह तरह की स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍याएं पैदा हो गयी है ।

2.      रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष फलों व सब्‍जियों में निहित सीमा से ऊपर पाये जाने लगे हैं, जिसके फलस्‍वरूप निर्यात किए जाने वाले फसल उत्‍पाद आयात करने वाले देशों के द्वारा स्‍वीकार नहीं किए जाते हैं ।

3. कीटनाशकों का हमारा पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिससे पर्यावरण प्रदूषण उत्‍पन्‍न होता है जो कि जैव सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव डालता है । मछलियां, मेंढक तथा अन्‍य पानी में पाये जाने वाले जीवों की संख्‍या पर कीटनाशकों का भी प्रभाव पड़ता है तथा इनकी संख्‍या कम होने लगी है।

4. मिट्टी में पाये जाने वाले जीव जैसे केंचुआ, गिजाई तथा सूक्ष्‍म जीव भी नष्‍ट होने लगे हैं।

5. बरसात के दिनों में निकलने वाले जीव जैसे – जुगनू, वेलवेट माइट आदि भी विलुप्‍त होने के कगार पर हैं ।  

6. मरे हुए जानवरों का मांस खाने वाले गिद्ध भी विलुप्‍त होने लगे हैं ।

7.    खेतों में पाए जाने मित्र कीट जो फसलों पर लगने वाले नाशीजीवों की संख्‍या पर नियंत्रण करते हैं नष्‍ट होने लगे हैं जिनकी वजह से फसलों के नाशीजीवों का प्रकोप बढ़ने लगा है।  

8. कीटनाशकों के लगातार उपयोग से फसलों के नाशीजीवों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगी है, जिनका नियंत्रण करना मुश्‍किल हो जाता है ।

9.   कीटनाशकों के प्रयोग से लाभदायक जीव जैसे मधुमक्‍खियों की संख्‍या पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

10. कृषि व्‍यापार के द्वारा बहुत सारे विदेशी कीट या नाशीजीव जो हमारे देश में नहीं हैं, हमारे देश में प्रविष्‍ट होने लगे हैं जो हमारी फसलों के लिए बहुत बड़ी समस्‍या पैदा करने लगे हैं ।  

          वनस्‍पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय द्वारा इसके अंतर्गत कार्य करने वाले एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों, वनस्‍पति संगरोध केंद्रों एवं टिड्डी चेतावनी संगठन के सर्किल कार्यालयों द्वारा अपने अपने कार्यक्षेत्रों के अनुसार गतिविधियां करके जैव-सुरक्षा हेतु आवश्‍यक कदम उठाये जा रहे हैं ।     



Wednesday, February 4, 2015

खाद्य-पदार्थों में पाए जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों के अवशेषों के प्रति सजग रहें

भारत एक कृषि प्रधान देश है । आजादी के बाद कृषि के क्षेत्र में भारत ने कई कीर्तिमान स्‍थापित किए हैं जिनमें से अनाज उत्‍पादन में हरित क्रांति, दुग्‍ध उत्‍पादन में धवल क्रांति, मछली उत्‍पादन में नीली क्रांति एवं तेल उत्‍पादन में पीली क्रांति प्रमुख है । इन सभी कीर्तिमानों का श्रेय देश के नीतिकार, वैज्ञानिकों, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं एवं हमारे देश के महान किसानों को जाता है । इन कीर्तिमानों के स्‍थापित होने के साथ-साथ देश में जनसंख्‍या वृद्धि भी तेजी से हुई है। अनाज उत्‍पादन में आत्‍मनिर्भर होने की वजह से इस देश की बढ़ती हुई आबादी को भरपूर भोजन देने में एवं अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में भागीदारी रखने में हमारे कृषकों का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा है ।
            आवश्‍यकता आविष्‍कार की जननी है । आविष्‍कार से विकास होता है । कृषि क्षेत्र में बताए गए उपरोक्‍त विकास के कीर्तिमान आवश्‍यकता के अनुसार प्रयत्‍न करके स्‍थापित किए गए हैं जैसे स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति के बाद हमारे देश में अनाज की कमी थी इसके लिए भारत सरकार की तरफ से अधिक अन्‍न उपजाओ कार्यक्रम (Grow more food programme) सन 1947 से 1953 तक चलाया गया । भारत सरकार ने सिंचाई के साधन, अधिक उपज देने वाली फसलों की प्रजातियां, रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जिसके फलस्‍वरूप हरित क्रांति आई और देश खाद्यान्‍न में आत्‍मनिर्भर बन गया ।
      फसलों में नाशीजीव नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्‍न प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण संबंधी समस्‍याएं उत्‍पन्‍न होने लगीं जिसकी वजह से जैव-सुरक्षा  को भी खतरा प्रतीत होने लगा ।

      उपरोक्‍त खतरों को ध्‍यान में रखते हुए कृषि उत्‍पादन करते समय हमें निम्‍नलिखित उद्देशयों की पूर्ति का ध्‍यान रखना चाहिए
1. हमें अपने 125 करोड़ देशवासियों के लिए खाने के लिए भोजन सुनिश्‍चित(Food security)
   करना चाहिए ।  
2. हमें अपने स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण के प्रति सजग रहना चाहिए ।
3. आपातकालीन स्‍थिति से निपटने के लिए हमेशा पर्याप्‍त ोजन का भंडारण रहना चाहिए ।
4. कम से कम लागत से अधिक से अधिक कृषि उत्‍पादन करना चाहिए । 
5. विश्‍व व्‍यापार की स्‍पर्धा में भी हमें अपना अस्‍तित्‍व रखना चाहिए इसके लिए हमें विश्‍व-
   व्‍यापार के मानकों के बराबर गुणवत्‍ता युक्‍त भोजन एवं अन्‍य कृषि उत्‍पाद पैदा करना   
   चाहिए।
6. देश की जनसंख्‍या की वृद्धि के तुलना के हिसाब से अनाज उत्‍पादन की वृद्धि करना चाहिए ।
7. हमें गुणवत्‍ता युक्‍त भोजन का उत्‍पादन करना चाहिए ।      
       जैसा कि हम जानते हैं कि खेती से पैदा होने वाले खाद्य-पदार्थों जैसे-अनाज, फल, सब्‍जियों आदि में रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है जिसके फलस्‍वरूप इन खाद्य-पदार्थों में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष प्रचुर मात्रा में पाए जाने लगे हैं और ये खाद्य-पदार्थ इन कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्‍थिति की वजह से विषाक्‍त एवं जहरीले हो गए हैं जिनका हमारे स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अत: क्‍या हमें इन कीटनाशकों के फसलों में अंधाधुंध प्रयोग को कम करने के प्रति सजग एवं जागरूक नहीं होना चाहिए जिससे हम अपने आप को एवं अपने पर्यावरण को सुरक्षित एवं स्‍वस्‍थ रख सकें । 
      क्‍या हम साग सब्‍जी, फल, सलाद एवं दूध आदि खाद्य-पदार्थों को खरीदने से पहले यह सोचते हैं कि यह पदार्थ हमारे खाने योग्‍य हैं या नहीं तथा हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। इनके अंदर जहरीले कीटनाशक के अवशेष तो नहीं हैं ।
      अब आप कहेंगे कि अगर सोच भी लें तो क्‍या होगा । क्‍या हमें इस वक्‍त कीटनाशको के अवशेषों से मुक्‍त खाद्य-पदार्थ मिल जायेंगे । क्‍या हम सब्‍जी खरीदते समय इस बात का पता लगा
सकते हैं कि इन फल व सब्‍जियों में कीटनाशकों के अवशेषों का स्‍तर क्‍या है । उत्‍तर आएगा नहीं  
      अगर हमें अभी कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्‍त फल व सब्‍जी नहीं मिल पायेगी तो एक जागरूकता तो आएगी ही जिससे जनधारणा बनेगी । अगर जनधारणा बन गई तो जनमुद्दा बनेगा परंतु इसमें उतना ही समय लगेगा जितना आई.पी.एम के बारे में जानकारी मिलने में जनसाधारण को लगा है । जनसाधारण के कुछ ऐेसे मुद्दे होते हैं जो वाकई सही होते हैं और जरूरी होते हैं परंतु उन मुद्दों को कार्यान्‍वित करने में सरकारें चली जाती हैं, जैसे कि परिवार नियोजन के लिए इंदिरा गांधी की सरकार चली गई थी, तथा शराब के मुद्दे पर श्री बंसीलाल जी की सरकार चली गई थी । जरा सोचें कि क्‍या परिवार नियोजन तथा शराब बंदी मानव समाज के लिए आवश्‍यक नहीं हैं ?  इसी प्रकार से कीटनाशकों को कम करने के लिए जन विचारधारा बनानी होगी तथा तभी जनता सजग हो सकेगी और जब जनता सजग होगी तब हमारे कृषक या तो कीटनाशकों का सुरक्षित इस्‍तेमाल करने के लिए कदम उठायेंगे या उनका उपयोग कम करने के लिए कदम उठायेंगे । जब तक हमारे मन में जन-कल्‍याण की भावना नहीं आती कि हम स्‍वस्‍थ रहें, दुनिया को भी स्‍वस्‍थ रखें, पर्यावरण एवं धरती मां को सुरक्षित रखें तब तक कीटनाशकों का उपयोग कम करना संभव नहीं है । स्‍वयं स्‍वस्‍थ एवं सुरक्षित रहें तथा दूसरों को भी स्‍वस्‍थ एवं सुरक्षित रखें की भावना से हमें खेती करनी चाहिए तभी कीटनाशकों का उपयोग कम हो सकेगा ।
     यद्यपि अब कुछ लोग जागरूक होने लगे हैं तथा इस तरफ सोचने भी लगे हैं, एक दिन कुछ व्‍यक्‍तियों की सोच समाज की सोच बनेगी एवं समाज का मुद्दा बनेगा । अभी यह सोच धीरे-धीरे हो रही है क्‍योंकि कीटनाशकों के दुष्‍परिणाम हमें परोक्ष रूप से नहीं दिखाई दे रहे हैं । हम किसी पेस्‍टीसाइड इंडस्‍ट्री को पेस्‍टीसाइड बनाने से मना नहीं कर सकते क्‍योंकि हमने अभी  तक रासायनिक पेस्‍टीसाइड को कृषि उत्‍पादन हेतु एक मुख्‍य इनपुट के रूप में मान रखा है । अब हमें चूंकि रासायनिक कीटनाशकों के विभिन्‍न प्रकार के दुष्‍परिणाम देखने को मिल रहे हैं इसलिए हमें इनके स्‍थान पर नाशीजीव नियंत्रण की अन्‍य विधियों एवं जैव कीटनाशकों के प्रयोग  को बढ़ावा देना पड़ेगा । हम इस बारे में आम जनता को जागरूक तो कर ही सकते हैं । जागरूक जनता दुनिया बदल देती है । एक दिन परिवार नियोजन का कार्यक्रम जनता के द्वारा घृणा से देखा जाता था अब वही परिवार नियोजन कार्यक्रम जनता की सोच व समझदारी से चल रहा है। जनता में एक जागृति आई है । इस कार्य में करीब 40 वर्ष का समय लग गया है । इसी प्रकार से हमें कीटनाशकों के दुष्‍परिणामों के बारे में जन जागृति पैदा करना अभी फिलहाल का एक मुख्‍य मुद्दा बनाना होगा । रासायनिक कीटनाशकों के स्‍थान पर जैविक कीटनशकों के प्रयोग को बढ़ाना होगा । इसके साथ-साथ जैविक कीटनाशकों के गुणवत्‍ता को भी सुनिश्‍चित करना पड़ेगा । इसके लिए हमें जागरूकता अभियान चलाने की आवश्‍यकता है । इससे जनसाधारण में जागरूकता बढ़ेगी तथा रासायनिक कीटनाशकों के स्‍थान पर जैविक कीटनाशकों की मांग बढ़ेगी । इसके बाद जैविक कीटनाशकों के गुणवत्‍ता का सवाल आयेगा । अभी जैविक कीटनाशकों की मांग को तो बढ़ाएं, तब गुणवत्‍ता के बढ़ाने का प्रश्‍न आयेगा । क्‍या रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग एवं उत्‍पादन एक साथ बढ़ गया, नहीं । यह उनकी मांग पर बढ़ा । जब जैविक कीटनाशकों की मांग बढ़ेगी तो अवश्‍य ही जैविक कीटनशकों के उत्‍पादन हेतु उद्यमी आगे आयेंगे एवं इनका उत्‍पादन बढ़ायेंगे । जैविक कीटनाशकों की मांग को बढ़ाने के लिए हमें कृषकों के बीच जाकर इनका उपयोग करके गांव-गांव में प्रदर्शन प्‍लॉट लगाने होंगे जिनमें जैविक कीटनाशकों की उपयोगिता को कृषकों के बीच में साबित करना होगा, और यह भी साबित करना होगा कि रासायनिक कीटनाशकों के कम उपयोग से या इनके उपयोग के बिना जैविक कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा देकर फसल उगाई जा सकती है । इससे कृषकों के बीच में जैविक कीटनाशकों के प्रति आत्‍मविश्‍वास पैदा हो सकेगा और इनकी मांग बढ़ सकेगी । इसके लिए हमें मन एवं लगन से कार्य करना होगा तथा हमें अपने एवं राज्‍य सरकार के कृषि प्रचार एवं प्रसार तंत्र को मिलकर काम करना होगा । इसके लिए गांव में कृषकों के बीच जाकर किसानों के द्वारा ही  आई.पी.एम सेवा केंद्र स्‍थापित करवाने पड़ेंगे जिसके लिए जैविक कीटनाशकों के एवं अन्‍य आई.पी.एम इनपुट को बनाने की विधियों को सरल बनाना होगा तथा इन सरल विधियों से जैविक कीटनाशकों एवं अन्‍य आई.पी.एम इनपुटस बनाने के लिए कृषकों द्वारा बनाए गए स्‍वयं सहायता समूह के सभी कृषक सदस्‍यों को इनके बनाने का प्रशिक्षण देना पड़ेगा जिससे ये जैविक कीटनाशक या अन्‍य आई.पी.एम इनपुट ये कृषक अपने गांव में बना सकें और अपने सहयोगी किसानों को इनकी पूर्ति कर सकें तभी हम हमारे खाद्य-पदार्थों में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष को कम कर सकेंगे ।
     आई.पी.एम विधि अपनाकर हम रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कृषि उत्‍पादों के उत्‍पादन करने में कम कर सकते हैं जिससे कृषि उत्‍पादों में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष या तो बिल्‍कुल नहीं रहेंगे या कम होंगे जिससे हम अपना, अपने बच्‍चों का स्‍वास्‍थ्‍य ठीक रख सकते हैं तथा अपने पर्यावरण को भी नुकसान से बचा सकते हैं इसके लिए हमें जनसाधारण को, कृषकों को, नीतिकारों को प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को एवं शोधकर्ताओं को मिल-जुलकर प्रयास करना होगा जिससे आम जनता में कृषि पदार्थों में पाए जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके, इसके लिए जनसंचार माध्‍यमों (mass communication media) एवं गांव में होर्डिंग लगाकर जागरूकता पैदा की जानी चाहिए ।
      भारत सरकार के द्वारा चलाई जा रही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी स्‍कीम (Monitoring of Pesticides’ Residue at National Level, MPRNL)  जिसका मुख्‍य उदृदेश्‍य कृषि उत्‍पादों में कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्‍थिति एवं उनके स्‍तर का पता लगाना है के नतीजों को आम जनता को बताया जाए कि इन फलों व सब्‍जियों में इन-इन रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष इन-इन इलाकों में हानिकारक स्‍तर के मानकों से अधिक मात्रा  में पाए गए हैं जिससे जनता में जागरूकता पैदा हो सके और उन क्षेत्रों में जहां ये इन कीटनशकों के अवशेष हानिकारक स्‍तर के मानकों के स्‍तर से ऊपर पाए गए हों वहां-वहां पर आई.पी.एम प्रदर्शन एवं आई.पी.एम खेत पाठशालाओं का आयोजन करके कृषकों में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए जागरूकता पैदा की जा सके और मानव समाज को एवं पशु-पक्षियों को रासायनिक कीटनाशकों के दुष्‍प्रभावों से बचाया जा सके। यह मानवता के प्रति एक उपकार और सच्‍ची सेवा होगी ।