भारत एक कृषि
प्रधान देश है । आजादी के बाद कृषि के क्षेत्र में भारत ने कई कीर्तिमान स्थापित
किए हैं जिनमें से अनाज उत्पादन में हरित क्रांति,
दुग्ध उत्पादन में धवल क्रांति, मछली उत्पादन में नीली क्रांति एवं तेल
उत्पादन में पीली क्रांति प्रमुख है । इन सभी कीर्तिमानों का श्रेय देश के
नीतिकार, वैज्ञानिकों, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं एवं हमारे
देश के महान किसानों को जाता है । इन कीर्तिमानों के स्थापित होने के साथ-साथ
देश में जनसंख्या वृद्धि भी तेजी से हुई है। अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर होने
की वजह से इस देश की बढ़ती हुई आबादी को भरपूर भोजन देने में एवं अंतर्राष्ट्रीय
व्यापार में भागीदारी रखने में हमारे कृषकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
आवश्यकता आविष्कार की जननी है । आविष्कार से
विकास होता है । कृषि क्षेत्र में बताए गए उपरोक्त विकास के कीर्तिमान आवश्यकता
के अनुसार प्रयत्न करके स्थापित किए गए हैं जैसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद
हमारे देश में अनाज की कमी थी इसके लिए भारत सरकार की तरफ से अधिक अन्न उपजाओ
कार्यक्रम (Grow more food programme) सन 1947 से 1953 तक चलाया गया । भारत सरकार ने
सिंचाई के साधन, अधिक उपज देने वाली फसलों की प्रजातियां,
रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जिसके फलस्वरूप हरित
क्रांति आई और देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बन गया ।
फसलों
में नाशीजीव नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न
प्रकार की स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगीं जिसकी
वजह से जैव-सुरक्षा को भी खतरा प्रतीत
होने लगा ।
उपरोक्त
खतरों को ध्यान में रखते हुए कृषि उत्पादन करते समय हमें निम्नलिखित उद्देशयों
की पूर्ति का ध्यान रखना चाहिए –
1. हमें अपने 125 करोड़ देशवासियों के लिए
खाने के लिए भोजन सुनिश्चित(Food
security)
करना चाहिए ।
2.
हमें अपने स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के प्रति सजग रहना चाहिए ।
3. आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए
हमेशा पर्याप्त भोजन का भंडारण रहना चाहिए ।
4. कम से कम
लागत से अधिक से अधिक कृषि उत्पादन करना चाहिए ।
5. विश्व व्यापार की स्पर्धा में
भी हमें अपना अस्तित्व रखना चाहिए इसके लिए हमें विश्व-
व्यापार के मानकों के बराबर गुणवत्ता युक्त भोजन एवं अन्य कृषि उत्पाद पैदा करना
चाहिए।
6. देश की
जनसंख्या की वृद्धि के तुलना के हिसाब से अनाज उत्पादन की वृद्धि करना चाहिए ।
7. हमें
गुणवत्ता युक्त भोजन का उत्पादन करना चाहिए ।
जैसा कि हम जानते हैं कि खेती से पैदा होने वाले
खाद्य-पदार्थों जैसे-अनाज, फल, सब्जियों आदि में रासायनिक कीटनाशकों का
अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है जिसके फलस्वरूप इन खाद्य-पदार्थों में रासायनिक
कीटनाशकों के अवशेष प्रचुर मात्रा में पाए जाने लगे हैं और ये खाद्य-पदार्थ इन
कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्थिति की वजह से विषाक्त एवं जहरीले हो गए हैं जिनका
हमारे स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अत: क्या हमें इन
कीटनाशकों के फसलों में अंधाधुंध प्रयोग को कम करने के प्रति सजग एवं जागरूक नहीं
होना चाहिए जिससे हम अपने आप को एवं अपने पर्यावरण को सुरक्षित एवं स्वस्थ रख
सकें ।
क्या हम साग सब्जी,
फल,
सलाद एवं दूध आदि खाद्य-पदार्थों को खरीदने से पहले यह सोचते हैं कि यह पदार्थ हमारे
खाने योग्य हैं या नहीं तथा हमारे स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं या नहीं। इनके
अंदर जहरीले कीटनाशक के अवशेष तो नहीं हैं ।
अब आप कहेंगे कि अगर सोच भी लें तो क्या होगा । क्या
हमें इस वक्त कीटनाशको के अवशेषों से मुक्त खाद्य-पदार्थ मिल जायेंगे । क्या हम
सब्जी खरीदते समय इस बात का पता लगा
सकते हैं कि इन फल व सब्जियों में कीटनाशकों
के अवशेषों का स्तर क्या है । उत्तर आएगा नहीं
अगर हमें अभी कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्त फल
व सब्जी नहीं मिल पायेगी तो एक जागरूकता तो आएगी ही जिससे जनधारणा बनेगी । अगर
जनधारणा बन गई तो जनमुद्दा बनेगा परंतु इसमें उतना ही समय लगेगा जितना आई.पी.एम के
बारे में जानकारी मिलने में जनसाधारण को लगा है । जनसाधारण के कुछ ऐेसे मुद्दे
होते हैं जो वाकई सही होते हैं और जरूरी होते हैं परंतु उन मुद्दों को कार्यान्वित
करने में सरकारें चली जाती हैं, जैसे कि परिवार नियोजन के लिए इंदिरा गांधी की
सरकार चली गई थी, तथा शराब के मुद्दे पर श्री बंसीलाल जी की सरकार
चली गई थी । जरा सोचें कि क्या परिवार नियोजन तथा शराब बंदी मानव समाज के लिए
आवश्यक नहीं हैं ? इसी
प्रकार से कीटनाशकों को कम करने के लिए जन विचारधारा बनानी होगी तथा तभी जनता सजग
हो सकेगी और जब जनता सजग होगी तब हमारे कृषक या तो कीटनाशकों का सुरक्षित इस्तेमाल
करने के लिए कदम उठायेंगे या उनका उपयोग कम करने के लिए कदम उठायेंगे । जब तक
हमारे मन में जन-कल्याण की भावना नहीं आती कि हम स्वस्थ रहें,
दुनिया को भी स्वस्थ रखें, पर्यावरण एवं धरती मां को सुरक्षित रखें तब तक
कीटनाशकों का उपयोग कम करना संभव नहीं है । स्वयं स्वस्थ एवं सुरक्षित रहें तथा
दूसरों को भी स्वस्थ एवं सुरक्षित रखें की भावना से हमें खेती करनी चाहिए तभी
कीटनाशकों का उपयोग कम हो सकेगा ।
यद्यपि अब कुछ लोग जागरूक होने लगे हैं तथा इस
तरफ सोचने भी लगे हैं, एक दिन कुछ व्यक्तियों की सोच समाज की सोच
बनेगी एवं समाज का मुद्दा बनेगा । अभी यह सोच धीरे-धीरे हो रही है क्योंकि
कीटनाशकों के दुष्परिणाम हमें परोक्ष रूप से नहीं दिखाई दे रहे हैं । हम किसी
पेस्टीसाइड इंडस्ट्री को पेस्टीसाइड बनाने से मना नहीं कर सकते क्योंकि हमने
अभी तक रासायनिक पेस्टीसाइड को कृषि उत्पादन
हेतु एक मुख्य इनपुट के रूप में मान रखा है । अब हमें चूंकि रासायनिक कीटनाशकों
के विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं इसलिए हमें इनके स्थान
पर नाशीजीव नियंत्रण की अन्य विधियों एवं जैव कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देना पड़ेगा । हम इस बारे में आम
जनता को जागरूक तो कर ही सकते हैं । जागरूक जनता दुनिया बदल देती है । एक दिन
परिवार नियोजन का कार्यक्रम जनता के द्वारा घृणा से देखा जाता था अब वही परिवार
नियोजन कार्यक्रम जनता की सोच व समझदारी से चल रहा है। जनता में एक जागृति आई है । इस कार्य में करीब
40 वर्ष का समय लग गया है । इसी प्रकार से हमें कीटनाशकों के दुष्परिणामों के
बारे में जन जागृति पैदा करना अभी फिलहाल का एक मुख्य मुद्दा बनाना होगा ।
रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनशकों के प्रयोग को बढ़ाना होगा । इसके
साथ-साथ जैविक कीटनाशकों के गुणवत्ता को भी सुनिश्चित करना पड़ेगा । इसके लिए
हमें जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है । इससे जनसाधारण में जागरूकता बढ़ेगी
तथा रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों की मांग बढ़ेगी । इसके बाद
जैविक कीटनाशकों के गुणवत्ता का सवाल आयेगा । अभी जैविक कीटनाशकों की मांग को तो
बढ़ाएं, तब गुणवत्ता के बढ़ाने का प्रश्न आयेगा । क्या
रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग एवं उत्पादन एक साथ बढ़ गया,
नहीं । यह उनकी मांग पर बढ़ा । जब जैविक कीटनाशकों की मांग बढ़ेगी तो अवश्य ही
जैविक कीटनशकों के उत्पादन हेतु उद्यमी आगे आयेंगे एवं इनका उत्पादन बढ़ायेंगे ।
जैविक कीटनाशकों की मांग को बढ़ाने के लिए हमें कृषकों के बीच जाकर इनका उपयोग
करके गांव-गांव में प्रदर्शन प्लॉट लगाने होंगे जिनमें जैविक कीटनाशकों की
उपयोगिता को कृषकों के बीच में साबित करना होगा, और यह भी साबित
करना होगा कि रासायनिक कीटनाशकों के कम उपयोग से या इनके उपयोग के बिना जैविक
कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा देकर फसल उगाई जा सकती है । इससे कृषकों के बीच में
जैविक कीटनाशकों के प्रति आत्मविश्वास पैदा हो सकेगा और इनकी मांग बढ़ सकेगी ।
इसके लिए हमें मन एवं लगन से कार्य करना होगा तथा हमें अपने एवं राज्य सरकार के कृषि प्रचार एवं प्रसार तंत्र को मिलकर काम करना होगा
। इसके लिए गांव में कृषकों के बीच जाकर किसानों के द्वारा ही आई.पी.एम सेवा केंद्र स्थापित करवाने पड़ेंगे
जिसके लिए जैविक कीटनाशकों के एवं अन्य आई.पी.एम इनपुट को बनाने की विधियों को
सरल बनाना होगा तथा इन सरल विधियों से जैविक कीटनाशकों एवं अन्य आई.पी.एम इनपुटस
बनाने के लिए कृषकों द्वारा बनाए गए स्वयं सहायता समूह के सभी कृषक सदस्यों को
इनके बनाने का प्रशिक्षण देना पड़ेगा जिससे ये जैविक कीटनाशक या अन्य आई.पी.एम
इनपुट ये कृषक अपने गांव में बना सकें और अपने सहयोगी किसानों को इनकी पूर्ति कर
सकें तभी हम हमारे खाद्य-पदार्थों में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष को कम कर सकेंगे
।
आई.पी.एम विधि अपनाकर हम रासायनिक कीटनाशकों के
उपयोग को कृषि उत्पादों के उत्पादन करने में कम कर सकते हैं जिससे कृषि उत्पादों
में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष या तो बिल्कुल नहीं रहेंगे या कम होंगे जिससे हम
अपना, अपने बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रख सकते हैं
तथा अपने पर्यावरण को भी नुकसान से बचा सकते हैं इसके लिए हमें जनसाधारण को,
कृषकों को, नीतिकारों को प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को
एवं शोधकर्ताओं को मिल-जुलकर प्रयास करना होगा जिससे आम जनता में कृषि पदार्थों में
पाए जाने वाले रासायनिक कीटनाशकों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके,
इसके लिए जनसंचार माध्यमों (mass
communication media) एवं गांव में
होर्डिंग लगाकर जागरूकता पैदा की जानी चाहिए ।
भारत सरकार के द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय
स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी स्कीम (Monitoring of Pesticides’ Residue at National Level, MPRNL) जिसका
मुख्य उदृदेश्य कृषि उत्पादों में कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्थिति एवं उनके
स्तर का पता लगाना है के नतीजों को आम जनता को बताया जाए कि इन फलों व सब्जियों
में इन-इन रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष इन-इन इलाकों में हानिकारक स्तर के मानकों
से अधिक मात्रा में पाए गए हैं जिससे जनता
में जागरूकता पैदा हो सके और उन क्षेत्रों में जहां ये इन कीटनशकों के अवशेष
हानिकारक स्तर के मानकों के स्तर से ऊपर पाए गए हों वहां-वहां पर आई.पी.एम
प्रदर्शन एवं आई.पी.एम खेत पाठशालाओं का आयोजन करके कृषकों में रासायनिक कीटनाशकों
के उपयोग को कम करने के लिए जागरूकता पैदा की जा सके और मानव समाज को एवं
पशु-पक्षियों को रासायनिक कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके। यह मानवता
के प्रति एक उपकार और सच्ची सेवा होगी ।
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