Tuesday, January 19, 2016
आई.पी.एम के प्रचार एवं प्रसार हेतु कुछ समीक्षात्मक विचार
भारत
एक कृषि प्रधान देश है । कृषि से संबंधित सभी गतिविधियां राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र
में आती हैं जिनका संचालन राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों एवं
विभागों द्वारा किया जाता है परंतु वनस्पति संरक्षण (प्लांट प्रोटेक्शन) भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में
आता है जिसमें भारत सरकार एक सलाहकारी, व समन्वयकारी
भूमिका अदा करता है इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र में
टिड्डी नियंत्रण, वनस्पति संगरोध गतिविधियों का संचालन तथा
केंद्रीय कीटनाशक अधिनियम 1968 के कार्यान्वयन हेतु सीधे तौर पर जिम्मेदार है
वनस्पति संरक्षण से संबंधित सभी गतिविधियों का संचालन वनस्पति संरक्षण, संगरोध
एवं संग्रह निदेशालय, फरीदाबाद के द्वारा किया जाता है । इसके
अतिरिक्त यह निदेशालय वनस्पति संरक्षण से संबंधित नवीन और उन्नत प्रौद्योगिकी को
लागू करने के लिए भी जिम्मेदार है । एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन प्रौद्योगिकी का
प्रचार-प्रसार एवं कार्यान्वयन इस निदेशालय के अधीनस्थ विभिन्न प्रदेशों व
केंद्र शासित प्रदेशों में स्थापित किए गये केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों के द्वारा
किया जाता है । इसके प्रमोशन हेतु देश के कृषकों, राज्य सरकारों के
कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को, इस प्रौद्योगिकी
की पद्धति का प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन द्वारा मानव संसाधन विकास का कार्य इस
निदेशालय के द्वारा किया जाता है । केंद्र सरकार द्वारा देश में वर्तमान में 35
केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र स्थापित किए गए हैं जो आई.पी.एम पद्धति
का कृषकों एवं राज्य सरकार के प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के मध्य प्रमोशन
करते हैं जिसके लिए ये केंद्र एक सलाहकारी भूमिका अदा करते हैं तथा इस पद्धति का
कृषकों के बीच में प्रदर्शन करते हैं । मानव संसाधन की विकास की गतिविधियों में
आई.पी.एम कृषक खेत पाठशालाओं का आयोजन, लघु एवं दीर्घ
अवधि के आई.पी.एम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना इन एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
केंद्रों की प्रमुख गतिविधियां हैं । इसके अतिरिक्त नाशीजीव निगरानी तथा जैविक
नियंत्रण कारकों का प्रयोगशालाओं में उत्पादन
करना तथा आई.पी.एम प्रदर्शनों में उनका उपयोग करना इन केंद्रों की प्रमुख
गतिविधियां भी हैं ।
फसल उत्पादन को इष्टतम स्तर पर सीमित रखते हुये कम खर्चे पर
पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान से बचाकर रखते हुए कीटनाशकों के अवशेषों
से रहित पशुओं व मनुष्यों के खाने के योग्य तथा बाजार की आवश्यकता के अनुसार
गुणवत्तायुक्त सुरक्षित फसल पैदा करना आई.पी.एम का मुख्य उद्देश्य है ।
केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र इसलिए गठित किये गये थे कि वे आई.पी.एम
से संबंधित एक तरह से नाभिकीय गतिविधियां (nucleus activities related with IPM) प्रदेशों में करें । केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र के पास सीमित संसाधन हैं इसलिए ये केंद्र आई.पी.एम गतिविधियों का
प्रमोशन सीमित संख्या एवं क्षेत्र में कर सके । इन केंद्रीय एकीकृत
नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों के द्वारा की जाने वाली नाभिकीय गतिविधियों (nucleus activities) के चारों ओर से प्रदेश के कृषि विभागों, ICAR के
संस्थानों, SAUs के
विभागों एवं K.V.K तथा कृषकों के द्वारा अपनी ओर से ये activities की जाये जिससे आई.पी.एम की गतिविधियों का
गुणात्मक प्रभाव मालूम पड़े । इसके लिए केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों को उक्त संस्थाओं से एक मजबूत लिकेंज स्थापित
करने की आवश्यकता है । यह कार्य नहीं हो पाया और केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
केंद्रों की गतिविधियां एक सीमित दायरे में होकर रह गईं एवं आई.पी.एम का विकास
अवरूद्ध हो गया । आज हम अलग-अलग
कोने में अलग-अलग कार्य कर रहे हैं । अत: केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
केंद्रों को इन संस्थानों से एक मजबूत लिकेंज बनाने की जरूरत है । केंद्रीय
एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्रों का यह कतई mandate नहीं है कि हम ज्यादा से ज्यादा एरिया कवर करें।
Pesticide
residue एक
दूसरा aspects है,
हमें यह सिद्ध करना होगा कि IPM द्वारा
उत्पादित कृषि उत्पादों एवं किसानों के द्वारा अपनाई जाने वाली पारंपरिक कृषि
क्रियाओं के द्वारा उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों में रासायनिक कीटनाशकों के
अवशेषों की मात्रा में क्या कोई अंतर स्थापित हो पाया । हमारा उद्देश्य
कीटनाशकों के अवशेषों को कृषि उत्पादों में कम से कम करना है ।
हम
यह भी जानते हैं कि हम अभी इस स्तर पर नहीं पहुंच पाये हैं कि कीटनाशकों का उपयोग
बिल्कुल कम कर दें, एवं इस युग में ऐसा संभव नहीं है जिसके
कई कारण हैं । जैविक कीटनाशकों एवं जैव नियंत्रण कारकों की self life बहुत कम है इसको बनाकर हम काफी समय तक store भंडारण नहीं कर सकते हैं ।
अत:
हमें इस समय रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए जैविक कीटनाशकों को
बढ़ावा देना चाहिए । जैविक कीटनाशकों एवं जैविक नियंत्रण एजेंटों की self life कम होने की वजह से ही Pvt. entrepreneurship अभी जैविक कीटनाशकों के उत्पादन हेतु आगे
नहीं आ पाये हैं ।
कीटनाशकों
को सुरक्षित तरीके से इस्तेमाल कैसे करें इस प्रकार की जानकारी कृषकों एवं
कीटनाशकों के विक्रेताओं को तथा आम जनता को दी जाती है, इसके लिए जगह-जगह पर होर्डिग्ंस लगाने
की आवश्यकता है ।
कीटनाशकों
के प्रयोग किए गए खाली डिब्बों को सुरक्षित तरीके से नष्ट करना भी एक बहुत बड़ी
समस्या है । इसके लिए कीटनाशकों के खाली डिब्बों को सुरक्षापूर्वक नष्ट (disposal) करने हेतु उचित कदम उठाने की आवश्यकता है
।
नाशीजीवों
की outbreak एवं उनके प्रकोप की सूचना जल्द से जल्द
फील्ड से प्राप्त करके किसानों को शीघ्र से शीघ्र निदान बताने की आवश्यकता है ।
इसके लिए हमें I.T. based technologies को develop करना होगा जिससे सही समय पर सलाहकारी दी जा सके ।
हमें
pest के outbreak होने के लिए पूर्वानुमान (forecasting) एवं पूर्व चेतावनी देने वाली तकनीक भी विकसित करने की आवश्यकता है
। इसके लिए हमें विभिन्न stakeholders
के एक साथ मिलकर काम
करके forecast model
develop करना
पड़ेगा जो कि एक बहुत बड़ा task है
। इसके लिए हमें विभिन्न
parameters को
आधार बनाना पड़ेगातन्नmodel es
develop एवं उन तथ्यों का मौसमी तथ्यों से संबंध निकाल
कर एक तकनीक विकसित करनी पड़ेगी ।
“एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन / इन्टीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेन्ट
(आई.पी.एम.) किसान खेत
पाठशाला” एक अनौपचारिक शिक्षा पद्वति
है जिसके माध्यम से किसानों को उनके अनुभवों को समाहित करते हुए खेतों में ही
वैज्ञानिक कृषि पद्वति से स्वयं करके सीखने की प्रक्रिया द्वारा एकीकृत नाशीजीव
प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे अपने खेतों की कृषि क्रियाओं
के बारे में स्वयं निर्णय ले सकें ।
आई.पी.एम खेत पाठशाला
कार्यक्रम विभिन्न फसलों में फसल अवधि के दौरान 14 सप्ताहों के लिये आयोजित किया
जाता है जिसमें 30 कृषकों को तथा 5 कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को प्रति
सप्ताह एक बार एक ही खेत में जाकर केंद्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र की कोर
ट्रेनिंग टीम के द्वारा खेत में ही प्रशिक्षित किया जाता है । इस कार्यक्रम का
उद्देश्य यह है कि प्रशिक्षित किसान एवं कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता आगे
जाकर आने वाली फसल के दौरान इसी प्रकार की खेत पाठशालाओं का स्वतंत्र रूप से
आयोजन कर सके । अर्थात् प्रशिक्षित किसान अपने सहयोगी किसानों को प्रशिक्षित कर
सके तथा प्रशिक्षित कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता भी स्वतंत्र रूप से
आई.पी.एम खेत पाठशालाओं का आयोजन कर सके । प्राय: यह देखा गया है कि सीआईपीएमसी की
कोर ट्रेनिंग टीम पुन: आई.पी.एम खेत पाठशाला आयोजित किए गए गांवों का पुन:
निरीक्षण नहीं करती जिससे यह पता नहीं लग पाता कि प्रशिक्षित किसान अपने सहयोगी
किसानों के लिए पाठशालाओं का आयोजन कर रहे हैं या नहीं या अपने ही खेतों में
आई.पी.एम पद्धति का उपयोग कर रहे हैं या नहीं । इसी प्रकार से 30 दिवसीय दीर्घ
कालीन आई.पी.एम ट्रेनिंग के द्वारा प्रशिक्षित किए गए कृषि प्रचार एवं प्रसार
कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में अपने सहयोगियों के लिए इसी प्रकार के दीर्घकालीन
आई.पी.एम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं या नहीं । प्राय: यह देखा गया
है कि ये प्रशिक्षित किए गए प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता अपने सहयोगियों के लिए
प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन नहीं कर पाते हैं । क्योंकि अधिकांशत: प्रशिक्षित
किए गए मास्टर ट्रेनर का स्थानांतरण किसी अन्य स्कीम में कर दिया जाता है । इस
वजह से इन कार्यक्रमों की महत्ता गिर जाती है ।
एकीकृत
नाशीजीव प्रबंधन स्कीम के बनने के बाद आई.पी.एम पद्धति को बढ़ावा देने के लिये
मानव संसाधन कार्यक्रमों को प्राथमिकता के तौर पर लिया गया परंतु अभी भी कोई भी
प्रदेश अपने आप दीर्घकालीन आई.पी.एम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन नहीं कर पा
रहे ।
इस
प्रकार की स्थिति अब भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के पास
भी होने लगी है, क्योंकि दीर्घकालीन
प्रशिक्षण के द्वारा प्रशिक्षित किए गए अधिकारी या कर्मचारी या तो सेवानिवृत्त हो
गये हैं या दूसरे स्कीमों में स्थानांतरित हो गये हैं । अत: इस निदेशालय के कर्मचारियों
व अधिकारियों के लिए दीर्घकालीन आई.पी.एम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया
जाना आवश्यक है ।
आई.पी.एम
को बढ़ावा देने के लिए कृषकों को आई.पी.एम इनपुटस की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी
चाहिए । इसके लिए कुछ गांवों को कल्स्टर मानकर कृषकों के स्वयं सहायता समूहों
के सदस्यों को प्रशिक्षित करना चाहिए जिससे वे विभिन्न आई.पी.एम इनपुटस को अपने
आप बना सकें तथा अपने खेतों में प्रयोग कर सके । इसके लिए आई.पी.एम सेवा केंद्रों
की स्थापना सीआईपीएमसी के सौजन्य से की जानी चाहिए ।
नाशीजीव निगरानी कार्यक्रम
नाशीजीव निगरानी कार्यक्रम “एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन” कार्यक्रम नामक छाते का एक केन्द्रीय स्तम्भ
(Central rod or central
Pole) के रूप में
काम करता है । बिना नाशीजीव निगरानी कार्यक्रम के एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
कार्यक्रम की विभिन्न विधियों को एकीकृत रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है ।
नाशीजीवनिगरानी कार्यक्रम से नाशीजीवों के प्रकोपों के लक्षणों के प्रारम्भिक
चिह्नों (early signs or
symptoms) की
एवं नाशीजीवों तथा अन्य लाभदायक जीवों की आरंभिक उपस्थिति एवं उनकी संख्या का
आकलन करने में सहायक होता है । इसके साथ-साथ वह खेत के लिए अन्य जरूरतों का भी
आंकलन एवं विश्लेषण करता है । निगरानी कार्यक्रम कई प्रकार के सर्वेक्षणों के
द्वारा किया जाता है । इससे उचित समय पर सही सलाहकारी जारी करते हैं एवं
पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है । नाशीजीव निगरानी कार्यक्रम को सुचारू रूप
से चलाने के लिए प्रदेशों को कृषि एवं कृषि से संबंधित विभागों के साथ co–ordination की बहुत आवश्यकता होती है । जब तक State Govt. Dept. , State Agri
Universities अपने
State में बोई जाने वाली सभी प्रमुख फसलों वाले
क्षेत्रों में नाशीजीव निगरानी कार्यक्रम लागू करके नाशीजीवों के प्रकोपों से संबंधित सूचना CIPMCs व
केन्द्र सरकार को नहीं देंगे तब तक राष्ट्रीय स्तर पर नाशीजीवों के प्रकोप व
उनकी संख्या की स्थिति की समीक्षा नहीं की जा सकती है ।
इसके
लिए IT based Pest
Surveillance Technology की अत्यंत आवश्यकता है जिससे एक National data base बनाया जाए । कुछ प्रदेशों जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा आदि ने इस ओर पहल की है परंतु अन्य प्रदेशों के द्वारा नाशीजीव निगरानी
कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू करने की जरूरत है । CIPMC के पास सीमित staff होने की वजह से एक state में बोई जाने वाली सभी फसलों के सभी
क्षेत्रों व जिलों की नाशीजीवों की स्थिति की जानकारी नहीं प्राप्त की जा सकती है
। इसके लिए सभी प्रदेशों की राज्य सरकारों के कृषि, बागवानी, गन्ना तथा कृषि से संबंधित विभागों को अपने-अपने क्षेत्रों से सूचना प्राप्त करके
राष्ट्रीय स्तर पर भेजना चाहिए ।
संदेश
वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह
निदेशालय की सभी योजनाओं (schemes) की सभी गतिविधियां एक दूसरे की पूरक (complementary / supplementary)
हैं जो एक दूसरे पर
आधारित हैं जिनका एक ही उद्देश्य है कि कम खर्चे में अधिक से अधिक व सुरक्षित खाने
योग्य व अन्तर्राष्ट्रीय व अर्न्तराज्यीय व्यापार के लिए उपयुक्त
खाद्य-पदार्थ इस प्रकार की विधियों का प्रयोग करके पैदा करे जिससे मनुष्य व पशुओं
के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण तथा खेत परिस्थिातिक तंत्र पर विपरीत प्रभाव न पड़े
। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मानकों के बराबर उत्पादित खाद्य-पदार्थ में
नाशीजीवों एवं नाशीजीवनाशकों (पेस्टीसाइड) से मुक्त हों या जिनमें पेस्टीसाइड
की अवशेषों की मात्रा अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के बराबर या कम हो । इसके लिए इस
निदेशालय के सभी स्कीमों के कार्याकर्ताओं के बीच में आपसी तालमेल एवं समन्वय (co-ordination) स्थापित करके काम करना पड़ेगा तथा एक
दूसरे के ज्ञान एवं काम का साझा करना पड़ेगा एवं आइसोलेशन में काम करने की आदत को
बदलना पड़ेगा । इसके अलावा इस सभी स्कीमों के कार्यकर्ताओं को अपना विभिन्न
मानसिक सोचों को एकीकृत करके ऊपर बताये गये उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु एक
ही दिशा की ओर प्रयासरत एवं कार्य करना पड़ेगा । आओ हम सब इस परमार्थ एवं
पुरुषार्थ के कार्य के भागीदार बने तथा मनुष्य, पशुओं तथा धरती मां को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें तथा इनको
पीने के लिए सुरक्षित भोजन, जल व वायु प्रदान करें । इसके अतिरिक्त
जलाशयों, नदियों, तथा अन्य जल स्रोतों को कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से होने वाले
प्रदूषण से बचायें तथा खाद्य सुरक्षा,
जैव सुरक्षा, जैव विविधता, फसल पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा को
सुनिश्चित करे ।
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