सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता ,प्रकृति एवं उसके संसाधनों तथा समाज के सभी घटकों का उचित ध्यान रखते हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को इस प्रकार से उस स्तर तक नियंत्रित करना अथवा दवा ना या कम करना या सीमित रखना जिससे उससे होने वाला प्रभाव का नुकसान नगण्य हो नासि जीव प्रबंधन कहलाता है l इस विधि में जब एक से अधिक विधियों का उपयोग किया जाता है तब उसे एकीकृत नासि जीव प्रबंधन कहते हैं l एकीकृत नासिजीव पबंधन की विचारधारा सिर्फ फसल रक्षा अथवा प्लांट प्रोटक्शन से ही संबंधित नहीं है बल्कि वह फसल उत्पादन एवं फसल प्रबंधन तथा समाज व जीवन की सभी मुद्दों से संबंधित है l एकीकृत नासिजीव प्रबंधन का प्रमुख उद्देश्य फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो की संख्या को फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षित करना, सुरक्षित रखना, संवर्धन करना या बढ़ाना है तथा हानिकारक जीवो की संख्या को उस लेवल या स्तर तक कम करना है जिस लेवल पर लाभदायक जीवो का फसल पर्यावरण सही तरीके से संरक्षण हो सके तथा उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो सके l इस प्रकार से एकीकृत नासि जीव प्रबंधन फसल पर्यावरण या फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार के जीवो की संख्या का समुचित प्रबंधन करता है और फसल रक्षा हेतु उठाई जाने वाली या प्रयोग किए जाने वाली सिर्फ उन विधियों को सम्मिलित रूप से प्रयोग करने की इजाजत देता है जिससे फसल पर्यावरण में लाभदायक एवं हानिकारक दोनों के जीवो की संख्या एक निश्चित अनुपात में संरक्षित रहे एवं सुरक्षित रहे तथा लाभदायक जीवो की संख्या की उचित अनुपात में वृद्धि होती रहे l इसके लिए रसायनिक विधियों के उपयोग को टा लना या avoid करना या उनका उपयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति से निपटने हेतु प्रयोग करना अथवा न्यायोचित ढंग से प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है l इसके लिए विभिन्न प्रकार की रसायन रहित विधियां पहले से विकसित की जा चुके हैं तथा उन में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के इनपुट के बनाने की भी विधियां विकसित की जा चुकी है जिनका फसल सुरक्षा हेतु प्रयोग करना ही आईपीएम को बढ़ावा देना है l अतः संक्षिप्त रूप से यह कह सकते हैं की फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं संपूर्ण फसल प्रबंधन हेतु प्रयोग की जाने वाली सभी प्रकार की विचारधाराओं मैं से फसल रक्षा , फसल सुरक्षा एवं फसल प्रबंधन मैं प्रयोग की जाने वाली रसायन रहित विधियों सम्मिलित रूप से फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु प्रयोग करना ही आईपीएम कहलाता है l
कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज को कम से कम बाधित करते हुए फसल सुरक्षा करना ही एकीकृत नासिजीव प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट या आई पीएम कहलाता है l
IPM is a way of plant protection with minimum expenditure and least disturbance to the community health, Environment,ecosystem biodiversity nature its resources and society.
IPM is not only related with plant protection but it is also related with all other aspects of life.
खेती करने की और वनस्पति संरक्षण करने की सभी प्रकार की विधियों को समेकित रूप से इस प्रकार से प्रयोग करना जिससे , , सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पा रिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधनों एवं समाज को महफूज रखते हुए कम से कम खर्चे में फसल पारिस्थितिक तंत्र मैं पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए खाने के योग्य सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन हो सके आईपीएम कहलाता है l
जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती का मतलब होता है कि इसमें भरपूर फसल हो और जेब से एक कौड़ी भी न खर्च हो तथा साथ ही जमीन की सेहत बनी रहे पानी कम लगे और जैव विविधता कायम रहे l
अतीत के अनुभव को समाहित करते हुए परंपरागत विधियों को बढ़ावा देते हुए खेती में रसायनों का न्यूनतम या बिल्कुल प्रयोग ना करते हुए फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा करना आईपीएम कहलाता है l
खेती में रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग करने से विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम प्राप्त हुए हैं l इन दुष्परिणामों में मिट्टी की उर्वरा शक्ति का कम होना , धरती माता के गर्भ में पानी की कमी होना, जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक तापक्रम में बढ़ोतरी ,मिट्टी में प्राकृतिक कार्बन एवं सूक्ष्म जीवों तथा सूक्ष्म पदार्थों की कमी होना, जीवन का निर्माण एवं स्थायित्व प्रदान करने वाले पंच महा तत्व जैसे मिट्टी ,पानी अग्नि ,आकाश, वायु आदि का प्रदूषित होना ,खेती में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के प्रभुत्व से मानव समाज, प्राकृति,पर्यावरण ,जैवविविधता ,पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से जुड़ी हुई विभिन्न समस्याएं ,कृषि उत्पादों के उत्पादन मूल्य में वृद्धि, नवयुवकों का कृषि के प्रति रुझान की कम होना आदि प्रमुख है l उपरोक्त समस्याओं का ध्यान रखते हुए एवं समाधान करते हुए फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा करना आज की फसल उत्पादन ,फसल रक्षा, आईपीएम एवं फसल प्रबंधन की प्रमुख आवश्यकता है l
आज के सामाजिक, आर्थिक ,प्राकृतिक, जलवायु एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन, फसल सुरक्षा अथवा आईपीएम तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार व आय को बढ़ाने वाली, समाज , प्रकृति तथा जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली, कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण, प्रकृति ,समाज, पारिस्थितिक तंत्र के विकास को करने वाली और सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ भोजन, सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली होनी चाहिए इसके अलावा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा ,खेती में उत्पादन लागत को कम करने वाली, जलवायु परिवर्तन के समाज व पर्यावरण ,प्रकृति पारिस्थितिक तंत्र आदि पर पड़ने वाले प्रभाव को निष्क्रिय करने वाली एवं सहन करने वाली, बायोफोर्टीफाइड का विकास करने वाली होनी चाहिए l इसके लिए फसल पर्यावरण या फसल पारिस्थितिक तंत्र पर्यावरण सामुदायिक स्वास्थ्य प्रकृति व उसके संसाधनों के लिए हितेषी विधियों का उपयोग करके फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा तथा फसल प्रबंधन करना चाहिए l
क्षति ग्रस्त फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन करना, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना, खाने के लिए एवं निर्यात हेतु रसायन रहित एवं गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना, जमीन के ऊपर तथा नीचे के फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखना या क्रियाशील रखना, फसलों में लाभदायक जीवो का संरक्षण करना, भरपूर फसल ,वाजिब दाम ,खुशहाल किसान बाजार की सुगमता से उपलब्धता आदि आईपी एम की प्रमुख अपेक्षाएं है l
आईपीएम बीज से लेकर बाजार तक के समस्त कृषि उत्पादन, कृषि रक्षा, कृषि विपणन एवं संपूर्ण फसल प्रबंधन प्रणाली का समुचित प्रबंधन है l
आज का समय अतीत के अनुभव से सीख ले कर आगे का मार्ग बनाते हुए विकास को अग्रसारित करने या आगे बढ़ाने का हैl मिट्टी की जांच से लेकर बीज का चयन ,खेत की तैयारी, बुवाई तथा फसल उत्पादन हेतु की जाने वाली विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से लेकर फसल उत्पादन एवं फसल विपणन उनका रखरखाव ट्रांसपोर्ट सही भाव आदि सभी प्रकार की सुविधाएं विकसित करके आईपीएम को बढ़ावा दिया जा सकता है इसके लिए भारत सरकार का सहयोग परम आवश्यक है l फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा लिए यह भी आवश्यक है की फसल अवधि के दौरान फसल को सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं जैसे कीड़े एवं बीमारियों की महा मारियो, ओले, बे मौसम बरसात, बाढ़ सूखा आदि से बचाया जाए और फसल नष्ट होने पर किसानों को उचित मुआवजा बीमा के रूप में दिया जाएl इस प्रकार की नीतियां सरकार के द्वारा बनाई जाएं और सही तरीके से अमल में लाई जाए इससे आईपीएम के प्रमुख उद्देश्य भी प्राप्त हो सकेंगे l
किसानों की आय को बढ़ाना आईपीएम का एक प्रमुख उद्देश्य है इसके लिए खेती के साथ-साथ खेती पर आधारित विभिन्न उद्योग जैसे पशुपलन मधुमक्खी पालन मुर्गी पालन
लाख की खेती फॉरेस्ट्री एवं सौर ऊर्जा आदि को बढ़ावा दिया जा सकता है जिस प्रकार की खेती को इंटीग्रेटेड फार्मिंग एकीकृत खेती कहते हैं l खेती को नए विकल्पों से जोड़कर कृषकों की आय बढ़ाई जा सकती है इन विकल्पों को भी आई पीएम के समग्र समग्र पैकेज आफ प्रैक्टिसेज में शामिल किया जा सकता है l
आई पी एम के विकास से हमें खेती के अतिरिक्त अन्य विकल्पों की ओर ध्यान देना चाहिए l जब मिट्टी जवाब दे जाएगी तो क्या होगा l भूगर्भ में पानी की कमी हो जाएगी तो क्या होगा इस प्रकार की जरूर तो पर समय सोचना चाहिए तथा उनके विकल्पों को आईपीएम के पैकेज में शामिल करना चाहिए l
IPM is not only a way of plant protection but it is a way of complete crop production,crop protection and management system from seed to Marketing .
किसी भी तकनीक या प्रौद्योगिकी को धरातल पर सुचारू रूप से क्रियान्वयन कराने के लिए यह आवश्यक है की वह टेक्नोलॉजी भारत सरकार के कार्यक्रमों में वरीयता के एजेंडा के रूप में माना गया हो और उससे संबंधित हितेषी बनाई जाए l
रसायनों का विकल्प सोचना आज की प्रमुख आवश्यकता है यही आई पीएम का प्रमुख उद्देश्य हैl
चुनौतियों के अनुसार खेती को बदलना होगा l चुनौतियों के अनुसार ही खेती की पद्धतियों में किए गए बदलाव से खेती के विकास मैं हम यहां तक पहुंच पाए हैं और आगे के विकास के लिए आगे आने वाली चुनौतियां के विकल्पों को तलाशना होगा तभी हम सुरक्षित एवं स्वस्थ खेती की तरफ भर सकता है और स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं l हमें आगे इस प्रकार की टेक्नोलॉजी को विकसित करना पड़ेगा जो खेती की वर्तमान चुनौतियों का सामना कर सकेl जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम इसमें मददगार सिद्ध हो सकेंगे l
संतुलित खेती से ही समावेशी विकास की कल्पना की जा सकती है l आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण, प्राकृतिक और सामाजिक विकास करना आई पीएम का मुख्य उद्देश्य है l ध्यान रहे विकास को कभी विनाशकारी ना होने दिया जाए l