Thursday, February 25, 2016

आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से आई.पी.एम की समीक्षा –

आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से आई.पी.एम की समीक्षा –
फसलों के उत्‍पादों को पैदा करने व उन से संबंधित अन्‍य गतिविधियों को करने को कृषि विज्ञान कहते हैं । इसके लिए विभिन्‍न प्रकार की गतिविधियों के अलग-अलग पैकेज बनाये जाते हैं जो कि किसी विशेष प्रकार के उद्येश्‍यों की पूर्ति हेतु प्रयोग किये जाते हैं । इन पैकेजों में प्रयोग की जाने वाली सभी गतिविधियों को समेकित या एकीकृत रूप में एक पैकेज के रूप में प्रयोग करते हैं । इस तरह से विभिन्‍न प्रकार के सभी पैकेजों के समूहों के प्रयोग को समेकित रूप से प्रयोग करना कृषि विज्ञान कहलाता है । कृषि विज्ञान एक एकीकृत प्रौद्योगिकी है जो अनुभवों के आधार पर विकसित होती है ।
     कृषि विज्ञान का मुख्‍य उद्येश्‍य कम खर्चे से अधिक से अधिक फसल उत्‍पादों का उत्‍पादन तथा उनसे संबंधित गतिविधियों के उद्येश्‍यों को पूरा करना होता है ।  
कृषि विज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जिसमें कृषि उत्‍पादों को पैदा करने के लिए बहुत सारी गतिविधियों को एक साथ सम्मिलित रूप से एक बड़े पैकेज के रूप में प्रयोग किया जाता है । इस पैकेज में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन हेतु प्रयोग की जाने वाली सभी गतिविधियां भी शामिल हैं जिनको सम्मिलित या एकीकृत रूप से प्रयोग करके फसलों के नाशीजीवों की संख्‍या को आर्थिक हानि स्‍तर के नीचे निहित रखा जाता है ।
     फसलों के नाशीजीवों की संख्‍या को नाशीजीव प्रबंधन की सभी विधियों को एक पैकेज के रूप में एक साथ आवश्‍यकतानुसार प्रयोग करके कम से कम खर्चे में एवं पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र को कम से कम हानि पहुँचाते हुये नाशीजीवों की संख्‍या आर्थिक हानि स्‍तर पर निहित या सीमित रखने को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कहते हैं ।
      कम से कम खर्चे में अधिक से अधिक एवं सुरक्षित भोजन पैदा करना एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन का मुख्‍य उद्येश्‍य है । 
आज के परिवेश में कृषि या खेती की प्रमुख समस्‍याओं में से कुछ निम्‍न है –
1.  बढ़ती हुयी महंगाई में खेती से पैदा होने वाले कृषि उत्‍पदों की लागत कई गुना बढ़ गयी है । 
2.  खेती की पैदावार के लिए खरीदार एवं खरीदी सुनि‍श्चित नहीं है ।
3.  खेती के पैदावार का मूल्‍य कृषकों के सहमति से नहीं निश्चित किया जाता है ।
4.  खेती की पैदावार स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से सुरक्षित नहीं रही है ।
5.  खेती करते समय प्रयोग की जाने वाली कुछ विधियों का दुष्‍प्रभाव हमारे स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरण पर पड़ता है ।
6.  खेती में किसानों की कोई सुनिश्चित आमदनी नहीं है ।
अत: ये आवश्‍यक हो गया है कि –
1.  खेती के व्‍यवसाय को लाभदायक बनाया जाए ।
2.  खेती की पैदावार के लिए खरीदी व खरीदार सुनिश्चित की जाये ।
3.  खेती के पैदावार का मूल्‍य कृषकों के सहमति से सुनिश्चित किया जाये ।
4.  खेती की पैदावार स्‍वास्‍थय के दृष्टि से सुरक्षित हो ।
5.  खेती करते समय उन विधियों का प्रयोग किया जाय जिससे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव न पड़े ।
6.  खेती के द्वारा उत्‍पादित कृषि पदार्थ global market या International trade के standard मानकों के बराबर हों ।
7.  खेती के द्वारा किसानों की आमदनी सुनिश्चित की जाये । 

आर्थिक व सामाजिक दृष्टिकोण से आई.पी.एम की समीक्षा –
बढ़ती हुयी महंगाई के कारण कृषि‍ में काम आने वाले सभी इनपुटस या निवेशों का मूल्‍य बढ़ जाने से कृषि उत्‍पादन की लागत कीमत बढ़ जाती है । जिससे लाभ घट जाता है । कृषि एक जोखिम भरा हुआ व्‍यवसाय है जिस पर विभिन्‍न प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम या खतरा बना रहता है । इन सब कारणों से कृषि के व्‍यवसाय में कोई सुनिश्चित आय या आमदनी नहीं है ।
उदाहरण के तौर पर कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम या नियंत्रण हेतु कीटनाशकों के छिड़काव का औसतन खर्च करीब 1.5 से 2.0 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से आता है क्‍योंकि किसान कीटनाशक, कीटनाशक विक्रेताओं से ही उधार लेता है जिसका भुगतान वह फसल उत्‍पादन के बाद देता है । इसके लिए कीटनाशक विक्रेता कृषकों को अपनी लाभ के हिसाब से वे कीटनाशक दवाइयां बेचता है जिसमें उसे ज्‍यादा फायदा होता है । चाहे उन कीटनाशकों की आवश्‍यकता हो अथवा नहीं ।
     एक किसान करीब 45000 – 50000 रुपये प्रति एकड़ कमा पता है अगर वह किसान दस एकड़ जमीन वाला है । छोटे किसान फिर भी इतना नहीं कमा पाते । ये ही चीज उर्वरकों के लिए भी लागू होती है । उर्वरकों की कीमत भी लगातार बढ़ रही है जिससे कृषि उत्‍पदों की उत्‍पादन लागत बढ़ रही है । इसके अतिरि‍क्‍त कृषि की पैदावार का कोई निश्चित खरीदार भी नहीं है । अगर अधिक पैदावार हो जाती है तो कई बार किसान आलू जैसी फसलों के दाम गिर जाने से वह खेतों में ही छोड़ देता है इसी प्रकार से टमाटरों के दाम न मिलने से वह सड़कों व खेतों में फेंक कर आ जाता है । कई बार इस तरह के दृश्‍य देखने को मिलते हैं । कृषि के उत्‍पादों को काफी दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए या अन्‍य उत्‍पाद बना कर उनको बेचने के लिए उचित संसाधन नहीं है । 

     तीसरी महत्‍वपूर्ण बात यह है कि कृषि की पैदावार जो कि किसान बड़ी मेहनत से करता है का समर्थन मूल्‍य तय करने का अधिकार किसान को नहीं है ।  उसका अधिकार सरकार को है । जैसे चीनी बनाने के लिए कच्‍चा माल किसान पैदा करता है परन्‍तु गन्‍ने व चीनी का समर्थन मूल्‍य सरकार व मिल मालिक करते हैं । इन सभी तथ्‍यों को ध्‍यान में रखकर अगर calculations  की जाये तो कृषि एक non-profitable occupation बन गया है । किसान कभी cost calculate नहीं करता है । अगर वह इस economics को calculate कर सके तो उसी दिन वह खेती छोड़ देगा परन्‍तु खेती करना उसकी मजबूरी है इस पर उसकी जीविका निर्भर करती है । अत: हमें यह गम्‍भीरता से देखना पड़ेगा कि खेती के धन्‍धे को profitable कैसे बनाया जाये और किसानों की आय कैसे बढ़ाई जाये । अगर हम एक स्‍प्रे भी कम करवा देते हैं तो करीब 1500 से 2000 रुपये प्रति एकड़ किसान के बचा सकते हैं । इस कार्य को हमें एक मिशन के रूप में लेना पड़ेगा । छोटे किसान तो अपनी खेती करने के लिए अपने समस्‍त परिवार जनों को लगा देते हैं जिसकी कीमत की गणना नहीं की जाती । अत: आई.पी.एम करने हेतु किफायती, सम्‍भव, समाज के द्वारा स्‍वीकृत या स्‍वीकार की जाने वाली विधियों का ही बढ़ाया (promotion) करना चाहिए जिनका पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव न पड़ता हो ।     

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