Sunday, November 29, 2020

Principles Required today for development

1. स्वयं जागरूक बने और दूसरों को जागरूक करें
2. जागरूकता है तो जीवंतता है
3. सीखो और पैसा पैदा करो लर्निंग एंड earning 
4. स्वार्थ से परमार्थ, स्वार्थ से मैं, मैं से हम, हमसे   व्वे वै से सब ,सब से सर्वोदय  का सिद्धांत मानते हुए आगे बढ़ो
5

Grow Safe Food Programme

With a view to reduce the  use of the chemical pesticides in Agriculture Government of India has been implementing  the National Integrated Pest Management (IPM) programme  in India since 1991-92 to avoid /Prevent the presence of residue of the chemical pesticides in Agricultural food commodities, however  a special programme 'Grow Safe Food'Campaign was launched during 2014 which is  still beiing implemented 
.....




Tuesday, November 24, 2020

IPM and plant protection आईपीएम और वनस्पति संरक्षण

 समाज को स्वस्थ रखते हुए ,पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए , प्रकृति के संसाधनों को संरक्षित करते हुए  , कृषि एवं जीवन को स्थायित्व प्रदान करते हुए , फसल उत्पादन लागत को कम करते हुए जीवन ,समाज  एवं प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करते हुए, सामाजिक विकास एवं सार्वभौमिक भाईचारे तथा विश्वकल्याण की कामना करते हुए ,,क्षतिग्रस्त  पारिस्थितिक तंत्रों का पुनर स्थापन स्थापन करते हुए, कम से कम लागत में अधिक से अधिक कृषि उत्पादन , समाज एवं प्रकृति को कम से कम हानि पहुंचाते हुए तथा समाज के लिए सुरक्षित भोजन के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करते हुए, कृषकों के जीवन स्तर को तथा उनके आर्थिक स्थिति को बढ़ावा देते हुए अथवा सुधारते हुए, कृषकों की आर्थिक संपन्नता को सुनिश्चित करते हुए ,राष्ट्रीय  एवं अंतर्राष्ट्रीय कृषि व्यापार को  धारा प्रवाहित रूप में संचालन करते हुए  ,,वनस्पति संरक्ष संरक्षण करना ही  आई पीएम का प्रमुख  का प्रमुख उद्देश्य है l इन उद्देश्यों को पूरा करते हुए जो वनस्पति संरक्षण किया जाता है उसे  आईपीएम कहते हैं l अगर इन उद्देश्यों की पूर्ति की इच्छा को ना रखते हुए जो वनस्पति संरक्षण किया जाता है उसे सिर्फ वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन ही कहते हैं l laउत्पाद, उत्पादक एवं उपभोक्ता को स्वस्थ एवं पर्यावरण को उत्तम  रखते हुए  तथा तथा प्रकृति का सुचारू रूप से संचालन कराते हुए वनस्पति संरक्षण करना ही आईपीएम कहलाता है l परंतु अक्सर यह देखा गया है की वनस्पति संरक्षण करते समय उपरोक्त उद्देश्यों का ध्यान नहीं रखा जाता है और  आई पीएम को सिर्फ वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन  तक ही सीमित रखा जाता है और इस प्रकार से हम किसानों तथा समाज को वनस्पति संरक्षण की सेवा ही प्रदान करते हैं  ना कि आई पीएम की l
      यद्यपि  आईपीएम भी प्लांट प्रोटक्शन और खेती करने का ही एक तरीका है जिसमें प्लांट प्रोटक्शन या वनस्पति संरक्षण को उपरोक्त विचारधारा के अनुसार क्रियान्वयन किया जाता है l अतः हमें IPM  को क्रियान्वयन करने हेतु वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन को उपरोक्त विचारधारा के अनुसार बदलना पड़ेगा और उसके अनुसार ही आईपीएम हेतु एक नवीन कार्यक्षेत्र बढ़ाना पड़ेगा तथा उस कार्य क्षेत्र  मैं समाहित किए जाने वाले गतिविधियों को प्रायोगिक रूप से क्रियान्वयन करने हेतु आवश्यक  इनपुट की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए  jio प्राथमिकता के तौर पर आवश्यक कदम उठाने पड़ेंगे l
     अक्सर यह भी देखा गया है कि जब हम  आईपीएम के क्रियान्वयन की बात करते हैं तो हम कृषक ,कृषक मजदूरों  समाज एवं पर्यावरण तथा प्रकृति की जरूरतों एवं समस्याओं पर ध्यान नहीं देते हैं और सिर्फ वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन से संबंधित गतिविधियों को ही क्रियान्वयन करते हैं जबकि किसान तथा प्रकृति और समाज की समस्याएं कुछ और ही होती हैं l जब तक इन समस्याओं का समाधान खेती करने के दौरान नहीं किया जाएगा तब तक आईपीएम का पूर्ण रूप  से क्रियान्वयन नहीं हो सकेगा तथा प्लांट प्रोटक्शन को आईपीएम में परिवर्तित नहीं किया जा सकता l
     IPM  के क्रियान्वयन हेतु वनस्पति संरक्षण के उपायों के साथ साथ समाज, प्रकृति , पर्यावरण  ,पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु, ग्लोबल वार्मिंग जैसे समस्याओं तथा खाद्य सुरक्षा एवं सुरक्षित भोजन की  सुनिश्चितl जैसी समस्याओं का हल भी डिलीवर होना चाहिए l  अक्सर यह देखा गया है आईपीएम के  क्रियान्वयन करते समय वनस्पति संरक्षण से जुड़ी हुई समस्याओं के समाधान की तो डिलीवरी होती है परंतु उपरोक्त मुद्दों से जुड़ी हुई समस्याओं के हल की डिलीवरी नहीं होती है जो कि आई पीएम का मुख्य उद्देश्य होता हैl जिससे आई पीएम की अधूरी सेवाएं समाज व पर्यावरण को मिल पाते हैं जिससे आईपीएम से से होने वाला  लाभ भी आधा ही प्राप्त होता है l

Friday, November 13, 2020

Lord Buddha's IPM Principles


1.Nonviolance   अहिंसा
2.Sympathy  सहानुभूति
3.Tolerence सहनशीलता
4.Sensitiveness संवेदनशीलता
5.Harmony सामंजस्य
6.kindness दयालुता
7. Humanity इंसानियत या मानवता
8.Universal brotherhood  सार्वभौमिक भाईचारा
9.Global welfare विश्व का कल्याण
10.Friendly for everyone and happiness for everyone सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय
11. Live and let live जियो और जीने दो
12.Nature is God    प्रकृति ही ईश्वर है
13.Science is truth विज्ञान ही सत्य है
14.Humanity is religion  मानवता ही धर्म है
15.Work is worship . कर्म ही पूजा है
16.Welfare of all. सर्व मंगलम
17.Safety to everyone  सब की सुरक्षा

Thursday, November 12, 2020

Programmes required to implement IPM

1.Social awareness 
2.Empowerment
3.Education
4.Training
5.Involvement/ Participation
6.Motivation
7.Demonstration 
8.Ensuring availability of IPM inputs 
9.Social movement to reduce the use of chemicals in Agriculture. 
10.Conservation of natural resources 


Friday, November 6, 2020

आज के सामाजिक ,आर्थिक ,प्राकृतिक ,जलवायु एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष मेंआईपीएम की विचारधारा

आज के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, जलवायु एवं पर्यावरण  के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन ,फसल सुरक्षा अथवा आईपीएम तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार व आय को बढ़ावा देने वाली, नवयुवकों का खेती की तरफ रुझान पैदा करने वाली, समाज ,प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली ,कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली व जीडीपी पर आधारित विकास के साथ-साथ पर्यावरण , प्रकृति ,समाज ,पारिस्थितिक तंत्र के विकास को भी करने वाली व सुनिश्चित करने वाली होनी तथा खाद्य सुरक्षा के साथ  सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली होनी चाहिए l इसके अलावा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा ,खेती में उत्पादन लागत को कम करने वाली ,समाज, पर्यावरण ,प्रकृति ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,आदि पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव को निष्क्रिय करने वाली अथवा सहन करने  वाली ,Biofortified and drought resistant प्रजातियों को बढ़ावा देने वाली ,कृषि का विभिन्न लाभकारी क्षेत्रो मैं विविधीकरण एवं फसल चक्र में परिवर्तन करने वाली ,जैविक खेती, IPM पद्धति पर आधारित खेती को बढ़ावा देने वाली ,फसलों की उत्पादन लागत को कम करने वाली ,आयात करने वाली फसलों जैसे दलहनी ,तिलहनी फसलों ,फलों व सब्जियों वाली फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने वाली, जीवन व  जीविका ,प्रकृति, समाज व पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाली ,पारिस्थितिक तंत्र ओं ,को क्रियाशील रखने वाली ,खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ रख सुरक्षित भोजन को सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए l खेती को लाभकारी बनाने के लिए तथा कृषकों की आय को बढ़ाने के लिए एकीकृत खेती जिसमें मुख्य खेती के साथ-साथ व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है का समावेश होना आज के परिवेश में अति आवश्यक है l उपरोक्त विचारधाराओं के अलावा खेती में आधुनिकता तथा नवीन तकनीकों जैसे कंप्यूटर पर आधारित टेक्नोलॉजी पर आधारित होनी चाहिए l इसके अलावा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हुए कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करना घटाना या ना करना की सोच को रखते हुए खेती करना परम आवश्यक है  एवं प्रकृति के सिद्धांतों के आधार पर जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना अति आवश्यक है l
   जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव  लाना अति आवश्यक है l इसके लिए बेहतर विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है l आहरण के तौर पर हरियाणा पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र में जहां बरसात LLP औसत से कम होती है लेकिन यहां पर अत्यधिक पानी वाली फसल धान और गन्ने की खेती की जाती है इसी तरह कर्नाटक तमिल नाडु महाराष्ट्र  से विदर्भ क्षेत्र में पानी की भारी कमी के बावजूद गन्ने की खेती की जाती  है  l क्योंकि यह आदित्य फायदे वाली फसलें हैं l हालांकि जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव के लिए किसानों को राजी करना आसान नहीं है इसकी वजह है कि किसान वही boyega  जिसमें  उसे फायदा होगा l cropping pattern बदलाव करवाने के लिए सरकार को नीतिगत फैसले लेने होंगे l
         मांग पर आधारित खेती करने के लिए  सबसे पहले मांगों का वर्गीकरण करना आवश्यक है तथा प्राथमिकता के अनुसार मांगों को छांटना भी आवश्यक है l मांगों का वर्गीकरण करते समय मोटे तौर पर producer  अर्थात उत्पादक तथा यूजर अर्थात उपभोक्ता दोनों की मांगों के साथ-साथ प्रकृति ,पर्यावरण तथा समाज की मांगों को भी शामिल करना चाहिए l
         ऑर्गेनिक और हेल्थ फोर्टीफाइड उत्पादों की मांग  वैश्विक स्तर पर एवं देश में भी बढ़ रही है इसके लिए हमें इस मांग को पूरा करने के लिए इस प्रकार के कृषि उत्पादों का उत्पादन करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए इसके लिए वांछित इंफ्रास्ट्रक्चर एवं टेक्नोलॉजी तथा फूड प्रोसेसिंग की तकनीकी ओं  का  उचित विकास करना आवश्यक है l इसके लिए सरकारी नीतियों में परिवर्तन करना तथा कृषकों को प्रशिक्षितl करना एक महत्वपूर्ण कदम होना चाहिए l इसके लिए साइलोस  , पैक हाउस ,साल्टिंग व ग्रेडिंग यूनिट ,कोल्ड स्टोरेज, ट्रेन लॉजिस्टिक सुविधाएं ,प्रोसेसिंग सेंटर , राय पैनिंग चेंबर और ऑर्गेनिक इनपुट उत्पादन यूनिट को स्थापित करना प्राथमिकता होनी चाहिए l उत्पादन के साथ-साथ खरीदारों का  भी स्कोप देखना आवश्यक होता है l इसके साथ-साथ छोटे और बड़े किसानों की समस्याओं का अध्ययन करना भी अति आवश्यक होता है  l
       आज के परिदृश्य के परिपेक्ष में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा समाज ,हमारा पर्यावरण एवं जलवायु तथा प्रकृति किस ओर जा रही है और उसे किस ओर जाना चाहिए , इसकी जानकारी के अनुसार ही हमें अपने बुद्धि एवं विवेक के अनुसार वंचित  ऐसी विधियों का प्रयोग करके जिनका हमारे शरीर  स्वास्थ्य, पर्यावरण ,प्रकृति एवं समाज पर विपरीत प्रभाव ना पड़ता हो और जो विपरीत परिस्थितियों में भी कारगर सिद्ध हो खेती करनी चाहिए या आईपीएम करना चाहिए l 
      वनस्पति संरक्षण की विधियों को अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार प्रयोग करके प्रकृति समाज और पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए वनस्पति संरक्षण करना ही आईपीएम कहलाता है l
    किसी भी विचारधारा चाहे वह आई पीएम की विचारधारा हो या कोई अन्य विचारधारा हो से वांछित लाभ प्राप्त करने के  लिए उस 9 को सही तरीके से क्रियान्वयन करना परम आवश्यक है जिसके लिए प्रबल इच्छा शक्ति, सही विजन ,काम करने का जज्बा , समय रहते सही कदम उठाना  ,किसी भी कीमत पर सफलता हासिल करना, समाज एवं जनता को  जागरूक  एवं प्रेरित करके तथा एवं कानून को बलपूर्वक सही तरीके से प्रयोग  करना उचित रणनीति  बनाना परम आवश्यक है  जिसको सामाजिक जागरूकता ,शिक्षा ,प्रशिक्षण, स्वयं की भागीदारी, प्रदर्शन ,सशक्तिकरण एवं वंचित इनपुट्स की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हुए सामाजिक आंदोलन चलाकर प्राप्त किया जा सकता है l
         फसल उत्पादन , फसल  रक्षा एवं  फसल प्रबंधन में प्रभुत्व के रूप में  प्रमुखता से  तथा अंधाधुंध तरीके से प्रयोग किए जाने वाले  जाने वाले रसायनों जैसे कि रसायनिक उर्वरक एवं रसायनिक कीटनाशकों का अपना विशेष महत्व होता है जो सामुदायिक स्वास्थ्य पर्यावरण पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता प्रकृति एवं समाज को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं और उनको नुकसान पहुंचाते हैं अतः इन रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों को फसल उत्पादन  व संरक्षण एवं फसल प्रबंधन  मैं कम करना हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए l इसके लिए एनजीओ, यूथ एवं महिला संगठनों ,सामाजिक, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण एक्टिविस्ट्स ,अध्यापकों एवं स्कूल के बच्चों को आई पीएम को क्रियान्वयन करने हेतु एवं रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों की जानकारी समाज में प्रचार एवं प्रसार करने हेतु तथा पहुंचाने करने हेतु एंबेसडर के रूप में कार्यरत होना चाहिए जिससे पर्यावरण, प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण हो सके और समाज तथा प्रकृति और   पारिस्थितिक तंत्र के बीच संतुलन कायम रह सके और विकास विनाशकारी ना बन सके l
       आजकल के परिपेक्ष एवं परिदृश्य
 में आईपीएम हेतु एक   नवीन  या  नई वैज्ञानिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक सोच की आवश्यकता है जो प्रकृति  तथा,समाज सुरक्षा तथा सुरक्षित भोजन  उगाना का समर्थन करती हो  l
                                     राम आसरे

Wednesday, November 4, 2020

Lord Buddha's IPM Teachings


0



1.Nonviolance   अहिंसा
2.Sympathy  सहानुभूति
3.Tolerence सहनशीलता
4.Sensitiveness संवेदनशीलता
5.Harmony सामंजस्य
6.kindness दयालुता
7. Humanity इंसानियत या मानवता
8.Universal brotherhood  सार्वभौमिक भाईचारा
9.Global welfare विश्व का कल्याण
10.Friendly for everyone and happiness for everyone सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय






Tuesday, November 3, 2020

Success Story of Biological Control of Sugarcane Pyrilla in India .भारत में गन्ने के Pyrilla के जैविक नियंत्रण की सफलता की कहानी मेरी (राम आसरे )की जुबानी

  गन्ने का Pyrilla  गन्ने के प्रमुख   Sucking pests   अर्थात   chusakहानिकारक जीवो में से एक प्रमुख हानिकारक  जीव  है जो वर्ष1970's व  वर्ष1980's के 10 को के दौरान देश के लगभग सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में  एक endemic pest  के रूप में  बना हुआ था जिस के नियंत्रण हेतु भारत सरकार ,राज्य सरकार एवं गन्ना चीनी मिल मालिकों के द्वारा कीटनाशकों का हवाई छिड़काव  किया जाता था और उस पर खर्च के तौर पर करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष खर्च किए जाते थे l इसके जैविक नियंत्रण हेतु देश के कुछ प्रदेशों में गन्ने के खेतों में पाए जाने वाले गन्ने के Pyrilla के प्रमुख  प्राकृतिक  शत्रु जीवो में  पाए जाने वाला एक परजीवी  कीट जिसको पहले Epipyrops melanoleuca कहां जाता था  और अब Epiricania melanoleuca कहां जाने लगा है एक प्रमुख ectoparasite कीट है जो गन्ने के Pyrilla  के nymphs एवं   adults  को उनका रस चूस कर उनका नियंत्रण करने में  बहुत बड़ा एवं सबसे ज्यादा योगदान करता है l Epiricania  melanoleuca  का adult  एक प्रकार की काली  रंग की एक तितली होती है जो गन्ने की पत्ती  जहां पर Pyrilla कीट का भी प्रकोप या संख्या पाई जाती है  गन्ने की पत्तियों की मध्य सिरा के पास समूह में अपने अंडे देती है   l इस परजीवी कीट की  एक मादा तितली लगभग 600 से 1600  विभिन्न समूहों में देती है lउचित तापमान पर इनमें से 5 से 7 दिनों बाद परजीवी कीट के larvae  निकलते हैं जो गन्ने के Pyrilla  कीट के  nymphs  एवंंadults  पर बैठकरउनका रस चूस कर उनका नियंत्रण करते हैंं l     परजीवी कीट का लारवा प्रारंभिक अवस्था में  गुलाबी रंग का होता है  जो बाद में  भूरे रंग का हो जाता है तथा इसके बाद में  सफेद रंग के  कोकून  मैं परिवर्तित हो जाता है l इस परजीवी की लारवाल स्टेज करीब 11 से 15 दिन की होती है इसके बाद    यह larvae गन्ने की पत्तियों पर ही सफेद रंग के cocoons  में परिवर्तित हो जाते हैं  जिनकी उपस्थिति पत्तियों पर  होती है l गन्ने के Pyrilla  के जैविक नियंत्रण के लिए  इन्हीं cocoons  एवं अंडों के समूह सहित पत्तियों को कैची से टुकड़ों में काट लिया जाता है जिन पर यह एंड समूह एवंं cocoons  लगे होते हैं को गन्ने के उस क्षेत्र अथवा खेतों में ले जातेे हैं जहां इस परजीवी कीट की उपस्थिति नहीं होती है  और  वहां पर गन्ने के खेत में  जहां पर Pyrilla  का प्रकोप होता है उस खेत की गन्नों की पत्तियों में  इन cocoons  एवं eggmasses  को stapler  के द्वारा  लगा दिया जाता है जिनमें से कुछ दिनों में इस परजीवी कीट केlarvae निकलते हैं और उस खेत में  गन्ने की पत्तियों में  पाए जाने वाले  गन्ने के pyrilla  के adults   एवं nymphs  को 
Parasitized  करके  उनके नियंत्रण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैंl  इस इस परजीवी की कीट की pupal  स्टेज करीब 4 से 7 दिनों की एवं इसके प्रौढ़ एडल्ट स्टेज लगभग 5 से 7 दिनों की ही होती है l  इस प्रकार से इस परजीवी  कीट का जीवन चक्र 25 से 36 दिनों तक का होता है l जबकि गन्ने के पायला Pyrilla का जीवन चक्र लगभग 45 से 60 दिनों का होता है अर्थात जब तक pyrilla का एक जीवन चक्र पूरा होता है तब तक इस परजीवी के दो जीवन चक्र पूरे हो जाते हैं और इस वजह से यह परजीवी Pyrilla कीट के नियंत्रण में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करता है l इस परजीवी किटको किसी क्षेत्र में रिलीज करने के लिए या छोड़ने के लिए कोकून के साथ-साथ अंडों को छोड़ने की प्राथमिकता दी जाती है l 2000 से 3000  cocoons तथा  400000 से 500000 अंडे जिसमें प्रतीक अन्य कई समूह में  लगभग औसतन 400 अंडे होते हैं  प्रति हेक्टर  रिलीज करने  से  Pyrilla के वांछित परिणाम  15 दिनों के  अंदर मिलते हैं  अगर खेतों में पर्याप्त आद्रता  हो l
 भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय फरीदाबाद के अधीनस्थ विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण  केंद्रों के द्वारा गन्ने के  Pyrilla  के इस परजीवी  कीट को भारत के लगभग सभी गन्ना  उत्पादक क्षेत्रों में जहां इस कीट की उपस्थिति नहीं पाई गई थी वहां इस कीट को गन्ने के खेतों में कॉलोनाइज करके  तथा स्थापित करके उन क्षेत्रों में गन्ने  केPyrilla  कीट के प्रकोप को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया तथा इन क्षेत्रों में  गन्ने के फसल के ऊपर  गन्ने केPyrilla के  नियंत्रण हेतु  किया जाने वाला हवाई छिड़काव बंद कराया गया , जिससे इस हवाई छिड़काव  पर भारत सरकार, राज्य सरकारों एवं चीन चीनी मिल मालिकों के द्वारा किया जाने वाला करोड़ों रुपयों का खर्चा  बचाया गया l
   मैंने इस निदेशालय के केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र फरीदाबाद मैं अपना कार्यभार 2 फरवरी 1978 को संभाला था इसके बाद मैंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर के उपरोक्त  परजीवी कीट Epiricania melanoleuca के अंडसमूह वा Cocoons को हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश  के क्षेत्रों से  एकत्रित करके राजस्थान के  बूंदी जिले  के  केशोरायपाटन शुगर मिल  के अंतर्गत  आने वाले  विभिन्न क्षेत्रों में  स्थापित  किया  जिससे  वहां पर  गन्ने के Pyrilla का प्रभावी नियंत्रण  इस कीट के द्वारा  होने लगा  और  तब से इस कीट के द्वारा  किया जाने वाला खर्चा बचने लगा l यह कार्य वर्ष 1978-1979  के दौरान किया  गया था l
          इसी प्रकार का कार्य केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र गोरखपुर द्वारा वर्ष 1979 से दक्षिण गुजरात के सूरत वा वलसाड जिलों की विभिन्न चीनी मिलों के अंतर्गत प्रारंभ किया गया l वर्ष 1982 मैं मेरा चयन Entomologist (Biological Control) के पद पर हुआ था और और मैंने केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र सूरत  गुजरात  मैं 13 अगस्त 1982  को Entomologist ( बायो कंट्रोल ) के पद पर अपना कार्यभार संभाला था और वहां पर मैंने अपने सहयोगियों के साथ सबसे पहले गन्ने के Pyrilla  के नियंत्रण हेतु इस परजीवी कीट का दक्षिण गुजरात के सूरत एवं वलसाड जिला ओ Distts के विभिन्न चीनी मिलों के विभिन्न इलाकों में इसका कॉलोनाइजेशन एवं स्थापन करने का कार्य शुरू किया और इस कीट को विभिन्न इलाकों में पाई जाने वाली गन्ने के खेतों में अथवा फसल में स्थापित किया तथा इस परजीवी कीट की गतिविधि एवं परफारमेंस के ऊपर एक निगरानी कार्यक्रम चलाया और इस की परफॉर्मेंस को देखते हुए मैंने साउथ गुजरात के विभिन्न शुगर मिलो के अधिकारियों को सलाह दी कि वे इस क्षेत्र में गन्ने के ऊपर किए जाने वाले हवाई छिड़काव को बंद कर दें क्योंकि गन्ने की केप्रकोप व समस्या को यह किट प्रतिवर्ष नियंत्रण करने में सक्षम हो चुका था l इसके लिए हमें गुजरात राज्य के नीचे से लेकर ऊपर तक के सभी स्तर के सभी संबंधित अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों के साथ संवाद एवं संपर्क स्थापित करना पड़ा था तथा वहां के मुख्य सचिव को भी पत्र लिखना पड़ा था जिसके फलस्वरूप दक्षिण गुजरात में होने वाले गन्ने की फसल पर होने वाले हवाई छिड़काव को बंद किया गया l इसके फलस्वरूप गुजरात  सरकार की एक एविएशन एडवाइजर की पोस्ट को भी खत्म करना पड़ा इससे राज्य सरकार का बहुत सारा खर्चा बचा बचाया जा सका और राज्य सरकार के खजाने से करोड़ों रुपयों की बचत हुई l
       दक्षिण गुजरात में इस परजीवी कीट की उपयोगिता को देखते हुए इस  परजीवी कीट का स्थापन गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली कोडीनार शुगर फैक्ट्री के विभिन्न इलाकों में मेरे देखरेख एवं भागीदारी  के रूप में भी किया गया और इस क्षेत्र में भी गन्ने के ऊपर होने वाले हवाई छिड़काव को बंद कराया गया l तथा भारत सरकार ,राज्य सरकार एवं गन्ना मालिकों के द्वारा गन्ने की फसल के ऊपर गन्ने के Pyrilla कीट के हेतु नियंत्रण हेतु  होने वाले करोड़ों रुपयों   को बचाया गया l इस प्रकार  का   कार्य वनस्पति संरक्षण ,संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के अधीनस्थ विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों के द्वारा देश के अन्य भागों में भी किया गया l वर्ष 1985 के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने के Pyrilla की महामारी को इसी विधि के द्वारा नियंत्रित किया गया और सरकार का इस कीट के नियंत्रण हेतु किया जाने वाला खर्चा बचाया गया l
    गन्ने के Pyrilla  कीट का जैविक नियंत्रण का यह उदाहरण वनस्पति  संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के अधीनस्थ विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों के द्वारा देश के लगभग सभी गन्ना  उत्पादक राज्यों व क्षेत्रों में किए गए विभिन्न उपलब्धियों मैं से एक प्रमुख उपलब्धि है  जिसके द्वारा गन्ने की प्रमुख हानिकारक कीट Pyrilla की समस्या  का प्रभावी निदान किया गया  और अभी भी किया जा रहा है तथा इसके लिए हवाई छिड़काव बंद होने से इसके ऊपर किया जाने वाले करोड़ों रुपयों की बचत सरकार के खाते मैं हो रही है l