आज के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, जलवायु एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन ,फसल सुरक्षा अथवा आईपीएम तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार व आय को बढ़ावा देने वाली, नवयुवकों का खेती की तरफ रुझान पैदा करने वाली, समाज ,प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली ,कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली व जीडीपी पर आधारित विकास के साथ-साथ पर्यावरण , प्रकृति ,समाज ,पारिस्थितिक तंत्र के विकास को भी करने वाली व सुनिश्चित करने वाली होनी तथा खाद्य सुरक्षा के साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली होनी चाहिए l इसके अलावा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा ,खेती में उत्पादन लागत को कम करने वाली ,समाज, पर्यावरण ,प्रकृति ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,आदि पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव को निष्क्रिय करने वाली अथवा सहन करने वाली ,Biofortified and drought resistant प्रजातियों को बढ़ावा देने वाली ,कृषि का विभिन्न लाभकारी क्षेत्रो मैं विविधीकरण एवं फसल चक्र में परिवर्तन करने वाली ,जैविक खेती, IPM पद्धति पर आधारित खेती को बढ़ावा देने वाली ,फसलों की उत्पादन लागत को कम करने वाली ,आयात करने वाली फसलों जैसे दलहनी ,तिलहनी फसलों ,फलों व सब्जियों वाली फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने वाली, जीवन व जीविका ,प्रकृति, समाज व पर्यावरण को सुरक्षित रखने वाली ,पारिस्थितिक तंत्र ओं ,को क्रियाशील रखने वाली ,खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ रख सुरक्षित भोजन को सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए l खेती को लाभकारी बनाने के लिए तथा कृषकों की आय को बढ़ाने के लिए एकीकृत खेती जिसमें मुख्य खेती के साथ-साथ व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है का समावेश होना आज के परिवेश में अति आवश्यक है l उपरोक्त विचारधाराओं के अलावा खेती में आधुनिकता तथा नवीन तकनीकों जैसे कंप्यूटर पर आधारित टेक्नोलॉजी पर आधारित होनी चाहिए l इसके अलावा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते हुए कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करना घटाना या ना करना की सोच को रखते हुए खेती करना परम आवश्यक है एवं प्रकृति के सिद्धांतों के आधार पर जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना अति आवश्यक है l
जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव लाना अति आवश्यक है l इसके लिए बेहतर विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता है l आहरण के तौर पर हरियाणा पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र में जहां बरसात LLP औसत से कम होती है लेकिन यहां पर अत्यधिक पानी वाली फसल धान और गन्ने की खेती की जाती है इसी तरह कर्नाटक तमिल नाडु महाराष्ट्र से विदर्भ क्षेत्र में पानी की भारी कमी के बावजूद गन्ने की खेती की जाती है l क्योंकि यह आदित्य फायदे वाली फसलें हैं l हालांकि जलवायु परिवर्तन के अनुरूप कृषि पैटर्न में बदलाव के लिए किसानों को राजी करना आसान नहीं है इसकी वजह है कि किसान वही boyega जिसमें उसे फायदा होगा l cropping pattern बदलाव करवाने के लिए सरकार को नीतिगत फैसले लेने होंगे l
मांग पर आधारित खेती करने के लिए सबसे पहले मांगों का वर्गीकरण करना आवश्यक है तथा प्राथमिकता के अनुसार मांगों को छांटना भी आवश्यक है l मांगों का वर्गीकरण करते समय मोटे तौर पर producer अर्थात उत्पादक तथा यूजर अर्थात उपभोक्ता दोनों की मांगों के साथ-साथ प्रकृति ,पर्यावरण तथा समाज की मांगों को भी शामिल करना चाहिए l
ऑर्गेनिक और हेल्थ फोर्टीफाइड उत्पादों की मांग वैश्विक स्तर पर एवं देश में भी बढ़ रही है इसके लिए हमें इस मांग को पूरा करने के लिए इस प्रकार के कृषि उत्पादों का उत्पादन करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए इसके लिए वांछित इंफ्रास्ट्रक्चर एवं टेक्नोलॉजी तथा फूड प्रोसेसिंग की तकनीकी ओं का उचित विकास करना आवश्यक है l इसके लिए सरकारी नीतियों में परिवर्तन करना तथा कृषकों को प्रशिक्षितl करना एक महत्वपूर्ण कदम होना चाहिए l इसके लिए साइलोस , पैक हाउस ,साल्टिंग व ग्रेडिंग यूनिट ,कोल्ड स्टोरेज, ट्रेन लॉजिस्टिक सुविधाएं ,प्रोसेसिंग सेंटर , राय पैनिंग चेंबर और ऑर्गेनिक इनपुट उत्पादन यूनिट को स्थापित करना प्राथमिकता होनी चाहिए l उत्पादन के साथ-साथ खरीदारों का भी स्कोप देखना आवश्यक होता है l इसके साथ-साथ छोटे और बड़े किसानों की समस्याओं का अध्ययन करना भी अति आवश्यक होता है l
आज के परिदृश्य के परिपेक्ष में हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा समाज ,हमारा पर्यावरण एवं जलवायु तथा प्रकृति किस ओर जा रही है और उसे किस ओर जाना चाहिए , इसकी जानकारी के अनुसार ही हमें अपने बुद्धि एवं विवेक के अनुसार वंचित ऐसी विधियों का प्रयोग करके जिनका हमारे शरीर स्वास्थ्य, पर्यावरण ,प्रकृति एवं समाज पर विपरीत प्रभाव ना पड़ता हो और जो विपरीत परिस्थितियों में भी कारगर सिद्ध हो खेती करनी चाहिए या आईपीएम करना चाहिए l
वनस्पति संरक्षण की विधियों को अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार प्रयोग करके प्रकृति समाज और पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए वनस्पति संरक्षण करना ही आईपीएम कहलाता है l
किसी भी विचारधारा चाहे वह आई पीएम की विचारधारा हो या कोई अन्य विचारधारा हो से वांछित लाभ प्राप्त करने के लिए उस 9 को सही तरीके से क्रियान्वयन करना परम आवश्यक है जिसके लिए प्रबल इच्छा शक्ति, सही विजन ,काम करने का जज्बा , समय रहते सही कदम उठाना ,किसी भी कीमत पर सफलता हासिल करना, समाज एवं जनता को जागरूक एवं प्रेरित करके तथा एवं कानून को बलपूर्वक सही तरीके से प्रयोग करना उचित रणनीति बनाना परम आवश्यक है जिसको सामाजिक जागरूकता ,शिक्षा ,प्रशिक्षण, स्वयं की भागीदारी, प्रदर्शन ,सशक्तिकरण एवं वंचित इनपुट्स की उपलब्धता को सुनिश्चित करते हुए सामाजिक आंदोलन चलाकर प्राप्त किया जा सकता है l
फसल उत्पादन , फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन में प्रभुत्व के रूप में प्रमुखता से तथा अंधाधुंध तरीके से प्रयोग किए जाने वाले जाने वाले रसायनों जैसे कि रसायनिक उर्वरक एवं रसायनिक कीटनाशकों का अपना विशेष महत्व होता है जो सामुदायिक स्वास्थ्य पर्यावरण पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता प्रकृति एवं समाज को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं और उनको नुकसान पहुंचाते हैं अतः इन रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों को फसल उत्पादन व संरक्षण एवं फसल प्रबंधन मैं कम करना हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए l इसके लिए एनजीओ, यूथ एवं महिला संगठनों ,सामाजिक, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण एक्टिविस्ट्स ,अध्यापकों एवं स्कूल के बच्चों को आई पीएम को क्रियान्वयन करने हेतु एवं रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों की जानकारी समाज में प्रचार एवं प्रसार करने हेतु तथा पहुंचाने करने हेतु एंबेसडर के रूप में कार्यरत होना चाहिए जिससे पर्यावरण, प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण हो सके और समाज तथा प्रकृति और पारिस्थितिक तंत्र के बीच संतुलन कायम रह सके और विकास विनाशकारी ना बन सके l
आजकल के परिपेक्ष एवं परिदृश्य
में आईपीएम हेतु एक नवीन या नई वैज्ञानिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक सोच की आवश्यकता है जो प्रकृति तथा,समाज सुरक्षा तथा सुरक्षित भोजन उगाना का समर्थन करती हो l
राम आसरे