A. रासायनिक खेती:---
1. मिट्टी की संरचना में बदलाव
2. मिट्टी की उर्वरा शक्ति मैं कमी होना
3. Humus के प्रबंधन में कमी होना
4. जमीन के ऊपर तथा नीचे के इको सिस्टम में बदलाव होना
5. इनपुट्स की कीमतों में वृद्धि की वजह से फसल उत्पादन लागत में बढ़ोतरी
6. घाटे का सौदा
7. मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन
8. नवीन कीटों व बीमारियों का प्रकोप होना
9. कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होना
10 ग्लोबल वार्मिंग वाली गैसों के उत्सर्जन होने से ग्लोबल वार्मिंग अर्थात वैश्विक तापमान में वृद्धि होना l
11. फसल की कटाई के बाद फसल को उचित भाव तथा खरीदारों का ना मिला
12. फसल की कटाई के बाद सरकार के द्वाराo निर्यात को बंद करना
13. बायोडायवर्सिटी का नष्ट होना
14. बैंकों का कर्जा ना देने के कारण किसानों के द्वारा आत्महत्या
15. फसल प्रोडक्शन में कमी होना
16. प्रकृति के अनुकूल ना होना
17. सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता ,प्रकृति व समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव
18. रासायनिक खेती ईश्वर व प्रकृति मान्य नहीं है l
19. प्रकृति में रासायनिक खेती का अस्तित्व नहीं हैl
20 . Depletion of Ozone layer पृथ्वी के चारों तरफ पाए जाने वाले ओजोन परत का नष्ट होना l
21. धान जैसी फसलों में पानी खड़ा देने से विभिन्न खरपतवार ओं एवं पत्तियों तथा फसल अवशेषों को सड़ने से मीथेन नाइट्रस ऑक्साइड जय श्री ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाली गैसों का उत्सर्जन होनाl
22. मानसून मैं बदलाव
23. रासायनिक खेती से अनाज ,मिट्टी ,पानी, हवा, फल, सब्जियां ,पशुओं का दूध, पशुओं का दाना चारा एवं हमारा पर्यावरण सभी जहरीले हो गए हैं l रसायनिक खेती से कृषि उत्पादन लागत बढ़ रही है ,समाज में बीमारियां फैल रही हैं, इसके अतिरिक्त रसायनिक खेती से जैव विविधता नष्ट हो रही है तथा मिट्टी ,पानी ,हवा आदि की गुणवत्ता खराब हो रही है l किसान करजा में फस रहे हैं और उनकी आत्महत्या बढ़ रही हैं, फसल की उत्पादकता घट रही है तथा अब वह ऑप्टिमम या मैक्सिमम पर पहुंच चुकी है l खेती अब घाटे का सौदा हो गया है युवकों का खेती से रुझान नष्ट हो रहा है l
24. भविष्य में खाद्यान्न का बहुत बड़ा संकट आने वाला है l अभी हमारे पास देश में कुल 35 करोड़ एकड़ जमीन खेती करने लायक बच्ची है जिससे सन 2050 तक 50 करोड़ मेट्रिक टन खाद्यान्न उत्पन्न होना चाहिए l अर्थात अभी जो खाद्यान्न पैदा हो रहा है उससे दोगुने से ज्यादा से खाद्यान्न पैदा होना चाहिए जो कि एक गंभीर समस्या है तथा इसमें वैज्ञानिकों एवं सरकार को बड़े ही गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है l हम खेती की पैदावार कैसे बढ़ाए यह एक चिंतन का विषय है रसायनिक खेती से हम खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित नहीं रख सकते रासायनिक खेती से कृषि उत्पादन घट रहा है और यह घाटे का सौदा बन चुका है l रासायनिक खेती से विभिन्न प्रकार की बीमारियां मनुष्य पशु तथा पक्षियों में भी होने लगे हैंl रासायनिक खेती से खाद्यान्न एवं फल सब्जियां आदि जहरीली हो चुकी है तथा हो रही है l इसके साथ साथ हमारा पर्यावरण भी जहरीला हो रहा है l हम समाज को जहर युक्त खाना दे रहे हैं जो कि संवैधानिक दृष्टि से भी गलत है l हमें रसायनिक खेती को त्यागना ही पड़ेगा l पहाड़ों पर जंगलों को काट कर कई स्थानों पर चाय के बागान तथा चाय की खेती की जाने लगी है जिससे वहां का तापक्रम बढ़ने लगा है जो अच्छा नहीं है l फसल के अवशेषों को जलाने से पर्यावरण प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से तापक्रम बढ़ रहा है इसके साथ साथ जैव विविधता नष्ट हो रही है और विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो की प्रजातियां भी extinct रही हैं l हमने कभी सोचा भी नहीं था 1 दिन आएगा जब हमें केंचुए भी खरीदने पड़ेंगे l आजकल मिट्टी एवं पानी के साथ साथ हमें ऑक्सीजन भी खरीदनी पड़ रही है जिसकी आजकल मैं करुणा की महामारी के दौरान बहुत कमी हो रही है l
खेती को लाभकारी बनाने के लिए तथा तथा किसानों की आय को दुगनी करने के लिए हमें एकीकृत खेती अथवा इंटीग्रेटेड फार्मिंग अर्थात खेत मुख्य खेती के साथ-साथ खेती पर आधारित व्यापारिक गतिविधियां और कुछ उद्योग धंधे भी करने पड़ेंगेl तथा खेती का अन्य क्षेत्रों में विविधीकरण यार डायवर्सिफिकेशन करना पड़ेगा l
B.Organic Farming :--- जैविक खेती
1. जैविक खेती मैं कोई भी रसायनिक इनपुट प्रयोग नहीं किया जाते हैं l जैविक खेती में काम आने वाले इनपुट्स रासायनिक खेती में काम आने वाले इनपुट से भी ज्यादा महंगे होते हैं आता फसल उत्पादन लागत जैविक खेती में रसायनिक खेती की अपेक्षा ज्यादा होती है l
2. इनपुट्स की उपलब्धता का ना होना
3. इनपुट्स की उपलब्धता संभाव ना होना
4. उत्पादकता में कमी
5. वर्मी कंपोस्ट में Cadmium ,Arsenic,lead,Mercury आदि हानिकारक पदार्थ होते हैं जो खाद्य श्रृंखला के द्वारा शरीर में जाते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं l वर्मी कंपोस्ट मैं 46 परसेंट जैविक कार्बन होता है जो हवा में ऑक्सीजन से क्रिया करके कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में हवा में चला जाता है इसके अतिरिक्त नाइट्रस ऑक्साइड तथा मीथेन जैसे-जैसे भी रसायनिक खेती तथा जैविक खेती में से उत्पन्न होती है जो ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है इनसे क्लाइमेट चेंज होता है l
C. आईपीएम खेती पद्धति:---
1. एकीकृत ना सी जीव जीव प्रबंधन अथवा आईपीएम खेती करने की एक पद्धति है जिसमें कम से कम खर्चे में , रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का कम से कम उपयोग करके अथवा ना करते हुए सामुदायिक स्वास्थ्य ,पारिस्थितिक तंत्र ,पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्रकृति व समाज को कम से कम बाधा पहुंचाते हुए फसल का इष्टतम उत्पादन रखने की चेष्टा रखते हुए खाने की दृष्टिकोण से स्वस्थ एवं सुरक्षित खेती की जाती है जिससे समाज ,प्रकृति व जीवन में सामंजस्य स्थापित रहे , साफ सुथरा एवं हरित पर्यावरण रहे तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन मिलता रहे तथा कृषक समाज की संपन्नता बनी रहे l इसके लिए रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का उपयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु इस्तेमाल करने की तथा बगैर रसायनों वाली विधियों को बढ़ावा देने की सिफारिश की जाती है जिससे फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा पद्धति प्रकृति व समाज के लिए अनुकूल बनी रहे l आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु फसल उत्पादन व फसल रक्षा की विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं मैं से प्रकृति व समाज हितेषी विधियों ,टेक्नोलॉजी आदि को सावधानी तथा बुद्धिमत्ता पूर्वक चयन करके उनको समेकित या एकीकृत रूप से प्रयोग करके सुरक्षित तथा स्वस्थ फसल का उत्पादन एवं फसल रक्षा की जाती है जिससे फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा पद्धति किफायती एवं लाभ कारी बन सके तथा समाज, पर्यावरण व प्रकृति को वनस्पति रक्षा व फसल उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली विधियों के दुष्परिणामों से बचाया जा सके l
IPM सभी प्रकार की खेती पद्धतियों की तुलना में एक मध्यम मार्ग है जिसमे रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम से कम मात्रा में अत्यधिक आवश्यकता पड़ने पर किसी आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु ही किया जाता है और प्रकृति तथा सामाजिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जाता है l
जैसा कि ऊपर बताया है की IPM फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा का एक तरीका है जिसके लिए फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा के काम में आने वाली सभी प्रकार की प्रैक्टिस विधियां और उपाय एकीकृत रूप से किसानों के द्वारा अपनाए जाते हैं l फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु अपनाने अपनाए जाने वाला रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग भी ipm का एक अंतिम विकल्प के रूप में अपनाए जाने वाला एक घटक है यद्यपि इस घटक को किसानों के द्वारा अंतिम उपाय के रूप में ना अपना कर प्रथम अथवा वरीयता पूर्वक अपनाया जाता है जो ipm के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है इस इस प्रकार अगर देखा जाए तो देश का हर किसान ipm पद्धति से ही खेती करता है अगर वह रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को न्याय उचित ढंग से करें l इस प्रकार से सोचा जाए तो हमारे देश के सभी किसान ipm का क्रियान्वयन करते हैं l बे बीज का चयन फसल का चयन फसल की बुवाई निकाय व गुड़ाई सिंचाई खरपतवार नियंत्रण तथा उपलब्धता होने पर वह ipm इनपुट का भी प्रयोग करते हैं l IPM inputs ipm के क्रियान्वयन में सहूलियत प्रदान कर सकते हैं परंतु अगर यह कहा जाए कि बिना ipm इनपुट के खेती नहीं की जा सकती तो गलत है l हमारे हिसाब से फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु की जाने वाली गतिविधियां अथवा प्रैक्टिसेज ipm की ही practices व शर्तें वह ipm के सिद्धांतों के अनुसार प्रयोग की जाएं l
हमारी आवश्यकता दिन प्रतिदिन बदलती जा रही हैं उन्हीं को पूरा करने के लिए फसल फसल उत्पादन तथा फसल रक्षा हेतु फसल विभिन्न प्रकार के सिद्धांत अथवा विचारधाराएं विकसित की जा रही हैं अथवा खोजी जा रही है प्रत्येक विचारधारा में कुछ विशेषताएं तथा कुछ सीमाएं होती हैं परंतु अगर कोई रिसर्च अगर 10 साल तक भी सही तरीके से नतीजे देती रहे तो हम उससे एक अच्छी रिसर्च या अच्छा शोध कार्य कहते हैं l उदाहरण के तौर पर बीटी कॉटन का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल सरकार के द्वारा लगभग 2006 से शुरू किया गया था जो लगभग 2016 तक बिल्कुल ठीक चला और कॉटन का करीब 95% क्षेत्र बीटी कॉटन में बदल गया इस प्रकार से यह शोध कार्य उपयोगी ही माना जाएगा l 2016 में बीटी कॉटन Pink boll worm का resistance टूट गया और एक नए शोध के लिए एक नया क्षेत्र खुल गया l इस प्रकार से 1960 के दशक के बाद कृषि में समय-समय पर कई शोध कार्य किए गए और उनके परिणाम भी देखे गए इन्हीं शोध कार्यों के karan विभिन्न प्रकार के मील के पत्थर स्थापित किए गए l आवश्यकताओं के अनुसार यह शोध का अर्थ कृषि में अभी भी चले आ रहे हैं और चलते जाएंगे तथा उन से लाभ और हानियां आती रहेंगी जिनका निवारण भी समय-समय पर भविष्य में भी किया जाएगा क्योंकि विकास एक लगातार चलने वाली पद्धति है जो समय के अनुसार चलती आ रही है और चलती ही रहेगी l
C. जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक अथवा आध्यात्मिक खेती:---
आज के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक ,जलवायु एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन ,फसल सुरक्षा ,अथवा IPM तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी, मांग पर आधारित होने के साथ-साथ ,सुरक्षित ,स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार व आय को बढ़ाने वाली, समाज प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली ,कृषकों के जीवन स्तर में सुधार करने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली व जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण ,प्रकृति ,समाज , पारिस्थितिक तंत्र के विकास को भी करने वाली होनी चाहिए तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली ही होनी चाहिए l
किसानों के विचार से खेती या कोई भी पेशा में लागत मूल्य कम से कम होना चाहिए या नहीं के बराबर होना चाहिए तथा उत्पादन अधिक से अधिक होना चाहिए तथा प्रयोग में लाने वाली विधियां पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,सामुदायिक स्वास्थ्य, प्रकृति उसके संसाधनों तथा समाज हितेषी एवं अनुकूल होनी चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो तथा जिन के दुष्परिणाम ना के बराबर हो या हो ही ना l
आज के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में फसल उत्पादन ,फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन तथा कृषि की विचारधारा आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक अर्थात इकोनॉमिकली वायबल, Economically viable,पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित environmentally safe ,पारिस्थितिकी दृष्टि से स्थाई ecologically sustainable, जलवायु की दृष्टि से मजबूतClimatically strong, वाणिज्य की दृष्टि से लाभकारीCommercially profitable , प्रकृति व समाज के बीच सामंजस्य स्थापित करने वालीHamonoius with nature and society, आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय प्राकृतिक एवं सामाजिक विकास को बढ़ावा देने वाली , आय व रोजगार प्रदIncome and business oriented होनी चाहिए
आज के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में कृषि उत्पादों का उत्पादन मूल्य कम करके zero करना , खाद्यान्न उत्पादन 2050 तक सिर्फ बची हुई खेती करने लायक 35 करोड़ एकड़ जमीन से आज के उत्पादन लगभग 30.50 करोड़ Ton से दोगुने से ज्यादा करना तथा कृषकों की आमदनी या आए भी दुगनी करना, खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित रसायन कीटनाशकों के अवशेषों रहित भोजन अथवा खाद्यान्न ,चारा ,दाना आदि पैदा करना, खेती में रसायनों के उपयोग को समाप्त करना या न्यूनतम करना, फसल पर्यावरण तथा प्रकृति में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की जैव विविधताओं की ब
ढ़ोतरी करना तथा उनको संरक्षित करना, प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण करना, भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना, भूमि एवं फसल पर्यावरण के माइक्रोक्लाइमेट को फसल उत्पादन के लिए अनुकूल बनाना, ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को न्यूनतम करना, आज की कृषि या खेती की प्रमुख वरीयताएं हैं l
जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक अथवा आध्यात्मिक खेती में मल्चिंग ,इंटर क्रॉपिंग तथा देसी गाय तथा देशी बीज व प्रकृति पर आधारित विभिन्न प्रकार के preparations जैसे जीवामृत वीजा मृत आच्छादन या mulching आदि को प्रयोग किया जाता है तथा बाजार से खरीद कर कोई भी चीज प्रयोग न की जाती है l इस प्रकार की खेती में प्रकृति में चल रही वनस्पति उत्पादन , वनस्पति रक्षा हेतु चल रही पद्धतियों का अध्ययन करके जीरो बजट आधारित प्राकृतिक या आध्यात्मिक खेती का क्रियान्वयन किया जाता है l
जीरो बजट प्राकृतिक खेती परंपरागत ,रासायनिक तथा जैविक खेती से अलग है l इसमें कोई भी इनपुट बाजार से खरीद कर खेत में नहीं डाला जाता है l इसमें गोबर की खाद ,कंपोस्ट ,कीटनाशक ,फफूंदी नाशक इनपुट नहीं प्रयोग किए जाते हैं जिससे इस खेती में फसल उत्पादन की लागत लगभग जीरो होती है l इसमें हाइब्रिड बीज के स्थान पर देसी बीज प्रयोग किए जाते हैं l जीरो बजट प्राकृतिक खेती माननीय प्रधानमंत्री के mission 2022 के अनुसार फसल उत्पादन एवं कृषकों की आय दुगनी करने मैं सहायक सिद्ध हो सकती है l जैविक व रासायनिक खेती में फसल उत्पादन लागत मूल्य अधिक होता है तथा जीरो बजट प्राकृतिक खेती में लागत मूल्य zero होता है l जीरो बजट प्राकृतिक खेती l
भूमि ही हमारी अन्नपूर्णा है और खाद्य तत्वों का महासागर है l भूमि के नीचे पाए जाने वाले फसलों के लिए यह वृक्षों के लिए जरूरी खाद्य तत्व पौधों की जड़ों के द्वारा पौधों को प्रदान किए जाते हैं l जमीन के नीचे से यह खाद्य तत्व जंगली पौधों को निम्न चार विधियों के द्वारा मिलते हैं l
1.Nutrient Cycle खाद्य चक्र
2.Capilary Action
3.Cyclone cycle चक्रवात चक्र
4. देसी केचुआ की गतिविधियां
फसल की दो लाइनों के बीच में फसल अवशेषों का आच्छादन करने से तथा उनके डीकंपोज होने से उन में पाए जाने वाले पोषक तत्व पौधों को प्राप्त होते हैं l फसल उत्पादन अवशेष जलाना महापाप है l
खेतों की उर्वरा शक्ति humus के द्वारा बढ़ाई जा सकती है humus एक प्रकार का biochemical पदार्थ है जो वृक्षों की जड़ों के पास पाया जाता है इसका निर्माण पौधों के अवशेषों के विघटन से होता है l कोयला जैविक कारबन नहीं होता है l
हवा नाइट्रोजन का महासागर है l हवा में 78.6 percent नाइट्रोजन होती है हवा की नाइट्रोजन वृक्षों को प्रदान करने का ठेका प्रकृति ने कुछ प्रकार के जीवाणुओं को दिया है जिनको नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया कहते हैं l दाल के साथ रोटी से फसल होनी चाहिए अर्थात कार्बोहाइड्रेट वाली अनाज वाली फसलों के साथ दलहनी फसलों को से फसली के रूप में बोना चाहिए l केंचुआ खाद बनाने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाला जीव केंचुआ या अर्थवर्म नहीं होता है यह ऐसी नियर सिटी दा नाम का एक जीव होता है यह जीव भूमि में छेद नहीं करता है जबकि केंचुआ फेरीतिमा पोस्टमा मिट्टी में छेद करके जमीन को पोली बनाता है जिससे पानी तथा पोषक तत्व की आपूर्ति जमीन के नीचे तक होती रहे l
शंकर बीज क्रांति के आधार बने l शंकर बीज अधिक उत्पादन देने वाले होते हैं यह दावा गलत है l यह वीडियो रसायनिक उर्वरकों के डालने के बाद ही उपज दे सकते हैं l संकर बीजों को हर साल खरीदना पड़ता है l जीरो बजट प्राकृतिक खेती में संकर बीजों के स्थान पर देशी बीच इस्तेमाल किए जाते हैं l
प्रकृति में रसायनिक खेती का अस्तित्व नहीं है वहां पर प्रकृति या परमात्मा का ही कानून चलता है l रसायनिक कृषि ईश्वर को मान्य नहीं है l ईश्वर की व्यवस्था के आधार पर पेड़ पौधे मानव की सहायता के बिना भरपूर फसल या फल देते हैं l जंगल का पेड़ कुछ मांग नहीं सकता परंतु फिर भी वह खाली पेट नहीं होता है यह व्यवस्था ईश्वर ने ही कायम की है l हमें ऐसी व्यवस्था कैसी करनी चाहिए जिसमें लागत मूल्य ना के बराबर हो l जीरो बजट आधारित प्राकृतिक खेती में लागत मूल्य शून्य होता है l एक गाय से 30 एकड़ की खेती की जा सकती हैl इस प्रकार की खेती में देसी बीज ही इस्तेमाल करना चाहिए संकर बीज नहीं l इस प्रकार की खेती में ग्लोबल वार्मिंग संबंधी समस्याओं का कोई खतरा नहीं होता है क्योंकि इस प्रकार की खेती में ग्लोबल वार्मिंग संबंधी गैसों का उत्सर्जन नहीं होता हैl इस प्रकार की खेती में किसानों की आत्महत्या की समस्या की संभावना नहीं होती क्योंकि इस प्रकार की खेती में कोई कर्जा नहीं लिया जाता है जिसकी भरपाई के लिए किसानों को आत्महत्या करने पड़े l जीरो बजट खेती नो मोर केमिकल्स के सिद्धांत पर आधारित है l बिना अतिरिक्त निवेश के फसल पैदा करना जीरो बजट फार्मिंग कहलाता हैl इस प्रकार की खेती में सिर्फ श्रम अथवा लेबर की लागत शामिल होती है l जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग एक रसायन फ्री खेती करने की एक तरकीब है जो स्थाई कृषि को प्रमोट करने मैं मदद करते हैं l यह तरकीब आंध्र प्रदेश में प्रमुख रूप से एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अपनाई जाने लगी है जिसमें लगभग 500000 किसानों के द्वारा यह तरकीब अपनाई जाती है इस तरकीब में पहले किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है तथा बाद में कृषक को के द्वारा ही कृषकों को प्रशिक्षित करके इस स्कीम को प्रमोद किया जाता है 2024 तक यह आंध्र प्रदेश से लगभग सभी पंचायत स्तर पर लागू हो चुकी होगी इस प्रकार के नीति में सरकार के द्वारा आरकेबीवाई स्कीम तथा फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन आदि के द्वारा पायलेट प्रोजेक्ट बनाया गया है इस स्कीम की थीम डॉक्टर सुभाष पालेकर के द्वारा दी गई है इस theme ka mukhya uddeshy कृषि उत्पादन लागत के nymphs मूल्य को जीरो स्तर तक ले जाना है
D. Integrated farming एकीकृत खेती
एकीकृत खेती में मुख्य खेती के साथ-साथ खेती से जुड़ी हुई व्यापारिक गतिविधियां ऐसी गतिविधियां जैसे कृषकों को खेती में होने वाले आर्थिक लाभ के अतिरिक्त उनकी आय में इजाफा हो सके या वृद्धि हो सके को बढ़ावा दिया जाता है l इस प्रकार की खेती में मुख्य n मछली पालन मधुमक्खी पालन भेड़ पालन सूअर पालन बकरी पालन केंचुआ खाद का उत्पादन दुग्ध का कार्य मशरूम का उत्पादन शहद का उत्पादन लाख का उत्पादन पत्तल दोनों का उत्पादन बीड़ी उत्पादन अगरबत्ती यों का उत्पादन रेशम के कीड़ों से रेशम बनाने का उत्पादन आदि प्रकार के व्यवसायिक गतिविधियों वा धंधा को बढ़ावा दिया जाता है l जिससे किसानों को अतिरिक्त आय होती है l मुख्य खेती के साथ-साथ एग्रोफोरेस्ट्री को बढ़ावा देना कृषकों की आय में इजाफा करता है l
E.Diversification of Agriculture in to other sectors like power and Energy sectors. खेती का अन्य क्षेत्रों जैसे कि पावर तथा ऊर्जा क्षेत्रों के लिए विविधीकरण
जब मुख्य फसल चक्र मै बोई जाने वाली फसलें लाभकारी ना सिद्ध हो रही हो अथवा जरूरत की चीजों को पुरा ना कर रही हो तो उस वक्त हमें हमें उन फसलों के स्थान पर नवीन लाभकारी फसलों को बोलना चाहिए l उन फसलों से अन्य क्षेत्रों में लाभ उठाना चाहिए l उदाहरण के तौर पर आजकल हमारे पास गेहूं चावल गन्ना मक्का आदि फसलें बहुतायत में है जिनका उपयोग या तो निर्यात करके अथवा उन फसलों से दूसरे उपयोगी पदार्थ बनाकर के उन से लाभ प्राप्त किया जा सकता है चावल मक्का गन्ना हम बायोडीजल तैयार कर सकते हैं उदाहरण के तौर पर अभी हमारे पास सिर्फ 500 करोड़ लीटर इथेनॉल का उत्पादन किया जाता है जबकि हमारी मांग सोलह सौ करोड़ इथेनॉल की है आता है उपरोक्त फसलों की पैदावार को निर्यात करने के साथ-साथ हम उनका उपयोग इथेनॉल बनाने के काम में भी कर सकते हैंl इस प्रकार से हम कृषि व उसके उत्पादों को पावर तथा एनर्जी सेक्टर में भी प्रयोग कर सकते हैं जिसके लिए कृषि व्यवस्था को अध्ययन करके फसलों का विविधीकरण करके अन्य क्षेत्रों में लाभ लिया जा सकता है l इसी प्रकार से हम बालों से अमीनो एसिड बना कर प्लांट बूस्टर के रूप में प्रयोग कर सकते हैं l हमें खेती को इकोनॉमिकली वायबल बनाना चाहिए l
F.Precision Farming :--- इस प्रकार की खेती को सटीक खेती या एक्यूरेट खेती कहते हैं इस प्रकार की खेती में फसल पारिस्थितिक तंत्र की वास्तविक जरूरतों की जानकारी कंप्यूटर जैसी मशीनों आदि की सहायता से प्राप्त कर ली जाती है तथा उसकी आवश्यकता के अनुसार फसल के चाहे जाने वाले परी क्षेत्र में उचित गतिविधियों के द्वारा क्रियान्वित की जाती है इस प्रकार की खेती में GIS,GPS, जैसे उपकरण कंप्यूटर से लाए जाते हैं तथा तथा प्राप्त की गई जानकारी से विभिन्न प्रकार के मॉडल बनाए जाते हैं जिनकी सहायता से उनमें विभिन्न गतिविधियों को क्रियान्वित किया जाता है इससे सही फसल में सही समय पर सही मात्रा में सही तरीके से और सही कीटनाशकों एवं सही उर्वरकों आदि को दिया जाता है रसायनिक उर्वरकों एवं रसायनिक कीटनाशकों पानी आज की मात्रा व्यर्थ नहीं होती है l तथा इनका न्यायोचित इस्तेमाल किया जाता हैl
G. जीरो टिलेज फार्मिंग अथवा बिना जुताई की खेती:--------
बिना जुताई की खेती के लिए हम खेत को जंगल में परिवर्तित करते हैं अर्थात जंगल व प्रकृति के सिद्धांतों के आधार पर यह खेती की जाती है जिस प्रकार से जंगल में बड़े ट्रकों के नीचे उससे छोटे और उससे नीचे उससे छोटे वृक्ष तथा सब उससे नीचे झाइयां और झाड़ियों के नीचे घास फूस आदि प्रकृति अपने आप पैदा करती है इसी सिद्धांत को अपनाकर इस प्रकार की खेती की जाती है l इस प्रकार से जंगल में कोई भी जुताई नहीं करता है कोई भी बुवाई नहीं करता है कोई भी सिंचाई नहीं करता है परंतु फिर भी जंगल हरा भरा रहता है और उस में पाए जाने वाले पेड़ पौधे भरपूर फसल देते हैं उसी सिद्धांत को अपनाकर जीरो टिलेज खेती की जाती है l प्रकार की खेती में रबी व खरीफ दोनों प्रकार के फसल पैदा की जा सकती हैं इस प्रकार की खेती में बीजों को गीली मिट्टी के साथ के उनके छोटे-छोटे गोले बना लिया जाते हैं तथा उनको खेतों में फेंक दिया जाता है बरसात अथवा मौसम की नमी से यह छोटे-छोटे गोले भूल जाते हैं और उनमें से बीज अंकुरित हो जाते हैं जो आगे फसल में परिवर्तित हो जाते हैं l गोले बनाने के लिए काली मिट्टी अथवा बर्तन बनाने वाली मिट्टी का प्रयोग उपयुक्त होता है l इस प्रकार की खेती में शुभ फूल एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तुम भूल से नाइट्रोजन फिक्सेशन पशुओं को चारा तथा ईंधन आदि प्राप्त किया जा सकता है इस प्रकार की खेती में भूमि का क्षरण नहीं होता है l तथा भूमि संरक्षित होती है l
हरित क्रांति ज्यादातर अनाज वाली फसल उगाई जाती है जो रसायनों के प्रयोग पर आधारित होती हैं यह सभी फसलें कार्बोहाइड्रेट वाली फसलें होती हैं यूरिया जैसे तथा अन्य केमिकल्स को मिलाने के बाद यह फसल नुकसानदायक फसल में या वायरस हो जाती है अर्थात आजकल हरित क्रांति के द्वारा बना उपजा उपर जाया गया अनाज जहरीला अनाज होता है यथार्थ हम आजकल हम इंसानों को जहरीली रोटी खिला रहे हैं l