ईश्वर या परमात्मा को किसी ने देखा नहीं है ईश्वर कोई वस्तु नहीं है उसका कोई सही वर्णन नहीं किया जा सकता परंतु उसके अस्तित्व को नकारा भी नहीं जा सकता l हर छड़ हमें परमात्मा का अस्तित्व महसूस होता है l जिस प्रकार से हवा सूर्य की रोशनी आदि को देखा नहीं जा सकता परंतु उसका अस्तित्व महसूस किया जा सकता है उसी प्रकार से परमात्मा को देखा नहीं जा सकता बल्कि उसके अस्तित्व को महसूस किया जा सकता हैl परमात्मा के दो रूप होते हैं एक निर्गुण या निराकार रूप दूसरा शगुन या साकार रूप l प्रकृति परमात्मा का साकार रूप है l निर्गुण रूप को तो किसी ने देखा ही नहीं l ईश्वर या परमात्मा को जानने के लिए हमें प्रकृति को जानना अति आवश्यक हैl जंगल में पाए जाने वाले वृक्ष हमें प्रतिवर्ष अनगिनत फल देते हैं बिना मानव के सहायता के क्योंकि उनका पालन तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति के द्वारा की जाती है l
प्रकृति में चल रही वनस्पति उत्पादन व वनस्पति रक्षा की पद्धति या पद्धतियों को IPM की पद्धति मैं शामिल करके फसल रक्षा करना आज के IPM की मुख्य मांग है परंतु ध्यान रहे कि इससे प्रकृति का नुकसान ना हो l यह सब चीजें संकल्प से ही हो सकती हैं कानूनों से नहीं l प्रकृति हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए सक्षम है परंतु वह लालच को पूरा नहीं कर सकते l Nature can fulfill our needs but it can not fulfill our greeds.
प्रकृति के संसाधनों का न्यायोचित या सीमित ढंग से उपयोग करके ही उन्हें हमारी भावी पीढ़ियों के लिए बचाया जा सकता है l
खेती के लिए जितनी भी पद्धतियां विकसित की गई है इनमें से कोई भी पद्धति प्रकृति हितैषी नहीं है l खेती करने की सभी पद्धतियों को प्रकृति हितैषी बनाना ही IPM का मुख्य उद्देश्य है l
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