Saturday, October 29, 2022

History of organized pest Surveillance and monitoring programme in India

In late 1960s high yielding varieties of Rice Taichung -1(TN-1),and IR8 were introduced to maximise crop production..Lateron these varieties were found widely attacked by Green leaf hoppers,(Nephotetix  sp )RTV and BLB during 1969 kharief season in UP,Bihar,WB,Orissa and MP.
Certral Govt of India along with Ford foundation in collaboration with state Govts had started adhoc  Rice surveys,with periodicity of 10 days during kharief 1970 onwards .This was the real beginning of organised crop pest Surveillance programme in India.
 During 4th five year plan12 Central Surveillance stations were established were increased to 19 lateron .

Bio-control Scheme of Dte. of Plant Protection,Quarantine and Storage .

Directorate of plant Protction ,Quarantine and Storage (Dte
of PPQ&S)had implemented a pilot project for the establishment of parasites and predators for biocontrol of insect pests and weeds during fourth five year plan  which lateron converted as a scheme entitled as "Control of crop pests and weeds by biological means"which continued up to 7th five year  plan.Initially only five Central Biological Control Stations(CBCS) were set up at Bangalore(Karnataka state,Faridabad,(Haryana),Gorakh pur (UP ),Hyderabad (A P )and Srinagar of J& k state up to end of 5th five year plan.The project was further continued during 6th plan.During 6th five year plan CBCS Solan (HP),Sriganganagar,(Raj)Burdwan(WB) and Surat(Guj),Raipur(MP now in Chhattishgarh),were also set up.
  The year wise opening of CBCS,s is given below:-
1.Hyderabad      1971
2.Faridabad      1972  
3.Gorakhpur      1974
4.Bangaloe        1976
5.Srinagar           1976
6.Solan                1980-81
7.Surat                  1981
8.Burdwan            1980-81
9.Raipur                 1983
10.Bhuveneshwar1983
11.Parasite Multiplication unit  Bangalore              1982-83.
 In January 1972  ICAR  has also launched an All India Coordinated Resarch project on Biological Control
of crop pests though 12 Co operative centresof National Centre for biocontrol at Indian Institure of Horticultural research Bangalore in Jan.1977.
State govt of kerala,TN,Karnataka,Orissa and AP have also implemented biocontrol programme of Coconut blackhead Catterpillar,Sugarcane borers, Scale insect of Sugarcane ,Castor Semilooper,and Spodoptera litura.
Some firms have also started Commercial insectaries .
    Commonwealth Institute of Biological control  Bangalore was established in 1957.



:

Monday, October 17, 2022

आईपीएम- संक्षिप्त विकास ,परिभाषा एवं विचारधारा संबंधी अनुभव और विचार


आईपीएम का संक्षिप्त विकास
सन 1943 हुए Bengal Famine के बारे में विस्तृत रूप से छानबीन करने के लिए तब की ब्रिटिश इंडिया सरकार ने सन 1944 में एक वुडहेड कमीशन नियुक्त किया था जिसकी संस्तुति आधार पर तब कि ब्रिटिश इंडिया सरकार ने सन 1946 में एक सेंट्रल प्लांट प्रोटक्शन ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना आसफ अली रोड न्यू दिल्ली मैं की थी जो बाद में सन 1969 में फरीदाबाद में आ गया  l इसी सेंट्रल प्लांट प्रोटक्शन ऑर्गेनाइजेशन का नाम बाद में बदल कर Directorate of Plant protection,Quarantine and Storage( वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय) हो गया  l इस निदेशालय का मुख्य उद्देश्य भारत की विभिन्न राज्य एवं केंद्र सरकार को वनस्पति संरक्षण से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सलाह देना है इस निदेशालय ने भारत के विभिन्न राज्यों में 13 केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों की स्थापना की जो राज्य में वनस्पति संरक्षण के संबंधित तकनीकों का क्रियान्वयन एवं विकास करते थे l          चौथी पंचवर्षीय योजना मै भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट या प्रायोगिक परियोजना जिसका नाम"Establishment of Parsites and predators for BioControl of crop pests and weeds " था प्रारंभ किया गया जो बाद में"Bio-Control  of crop pests and Weeds " नाम की स्कीम के रूप में परिवर्तित हो गया l इस योजना के अंतर्गत शुरू में 5 केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों की स्थापना फरीदाबाद ,गोरखपुर ,बेंगलुरु, श्रीनगर एवं हैदराबाद मै की गई जिनकी संख्या बाद में 11 हो गई थी l  जिनका मुख्य कार्य फसलों के हानिकारक जीवो के प्राकृतिक शत्रुओं का प्रयोगशाला में उत्पादन करके उनकी निर मुक्ति विभिन्न एवं विशेष प्रकार के फसलों के हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु खेतों में करके खेत फसल पर्यावरण में उनका स्थापन करना तथा विशेष हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु उनकी प्रभावशीलता का अध्ययन करना था l इसके साथ साथ यह केंद्र विभिन्न प्रकार के फसलों के नासी जीवो एवं उनके प्राकृतिक शत्रुओं का सर्वेक्षण करते थे तथा फसलों के विभिन्न हlनी कारक जीवो के indigenous प्राकृतिक शत्रुओं का विभिन्न फसल वातावरण में बढ़ोतरी एवं संरक्षण भी करते थे l
    वर्ष 1969 के खरीफ सीजन में धान की फसल में उत्तर प्रदेश, बिहार, वेस्ट बंगाल ,उड़ीसा और मध्यप्रदेश के राज्यों में Green leaf hopper,Rice Tungru Virus, और Bacterial leaf blight का भयंकर प्रकोप हुआ जिनकी निगरानी एवं सर्वेक्षण हेतु Ford Foundation, राज्य सरकारों तथा भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण ,संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के आपसी सहयोग से धान की फसल में 10 दिनों के अंतराल पर वर्ष 1970 से Adhoc Rice Surveys प्रारंभ किए गए जो फसलों के हानिकारक जीवो के लिए नासि जीव निगरानी एवं आकलन कार्यक्रम की संगठित शुरुआत थी जिसके अंतर्गत चौथी पंचवर्षीय योजना मैं भारत के विभिन्न राज्यों में 12 केंद्रीय निगरानी केंद्रों की स्थापना की गई जिनकी संख्या बाद में 19 हो गई थी l
      वर्ष 1981 से 40 हेक्टर धान की फसल मैं तथा 10 हेक्टर कपास की फसल में आई पी एम प्रशिक्षण  एवं प्रदर्शन कार्यक्रम वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के विभिन्न केंद्रीय वनस्पति रक्षा केंद्रों ,केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों तथा केंद्रीय निगरानी केंद्रों  द्वारा आपसी सहयोग से देश के विभिन्न राज्यों में शुरू किए गए  l इसी वर्ष यानी 1981 से ही राज्य सरकारों के आग्रह पर विभिन्न राज्यों में दो दिवसीय आईपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करना प्रारंभ किए किया गया l वर्ष 1984 से संपूर्ण फसल अवधि के दौरान के सीजन लॉन्ग ट्रेनिंग प्रोग्राम, 1992-93 से आईपीएम क्लस्टर डेमोंसट्रेशन कम कृषक खेत पाठशाला कार्यक्रम प्रारंभ किए गए जो बाद में आईपीएम कृषक खेत पाठशाला कार्यक्रम में परिवर्तित हो गए l
    इन आई पी एम प्रदर्शनों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार के उपरोक्त निदेशालय ने वर्ष1991-92 मैं देश के वनस्पति संरक्षण कार्यक्रम का पुनर्गठन किया गया जिसमें 13 केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों ,19 केंद्रीय निगरानी केंद्रों तथा 11 केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों को एक साथ मिलाकर देश में" भारत में Nashijeev प्रबंधन दृष्टिकोण का सुदृढ़ीकरण तथा आधुनिकीकरण " नाम की परियोजना के अंतर्गत एक राष्ट्रीय एकीकृत ना सी जीओ प्रबंधन कार्यक्रम(National Integrated Pest Management Programme I.e.National IPM Programme  ) का गठन किया जिसके अंतर्गत देश के 22 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 26 केंद्रीय एकीकृत Nashijeev प्रबंधन केंद्र (Central Integrated Pest Management Centeres I.e.CIPMCs 
स्थापित किए गए जिनकी संख्या बाद में 36 हो गई l जिनका मुख्य कार्यक्षेत्र आईपीएम की गतिविधियों को देश के विभिन्न राज्य एव केंद्र शासित प्रदेशों मैं लोकप्रिय बनाना तथा क्रियान्वयन कराना है  l 
    वर्ष 1988 मै ICAR  ने National Centre For   Integrated Pest Management ,Faridabad मैं स्थापित किया जो बाद में IARI
Campus Pusa  New Delhi मैं शिफ्ट हो गया l 
आईपीएम की विचारधारा
, , IPM is "To get rid of from pest problems with minimum expenditure,with or without use of chemicals in farming and with least disturbance to Environment, nature and society".
खेती करने में कम से कम खर्चे में, रसायनों का कम से कम अथवा ना प्रयोग करते हुए और पर्यावरण ,प्रकृति और समाज को कम से कम बाधित करते हुए खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करना आईपीएम की विचारधारा है l
     आईपीएम की परिभाषा 
         आईपीएम खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है जिसमें खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की सभी विधियों को समेकित रूप से इस प्रकार से रूपांतरित करके और प्रयोग करके जिससे सामाजिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्रकृति ,समाज, जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, को महफूज रखते हुए कम से कम खर्चे में तथा कम से कम मात्रा में सिर्फ आपातकालीन परिस्थिति के निपटान हेतु अंतिम विकल्प के रूप में रसायनों का उपयोग करते हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए खाने योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है  साथ ही साथ भूमि की उर्वरा शक्ति की बढ़ोतरी,  फसल परिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता का संरक्षण एवं रसायनों के दुरुपयोग से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन भी किया जाता है l
         किसी भी विचारधारा को स्वयं के रोजगारी, वैज्ञानिक , राजनीतिक ,सामाजिक, आर्थिक ,पर्यावरण, प्रशासनिक आदि अनुभव के आधार पर स्वयं परिभाषित करना चाहिए l इसका अर्थ है नहीं है की पूर्व वैज्ञानिकों, कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं अथवा संस्थानों के द्वारा लिखी गई किसी भी विचारधारा की परिभाषाएं गलत है l समय परिवर्तनशील है समय के परिवर्तन के साथ-सथ     परिस्थितियां एवं आवश्यकताएं बदलते रहते हैं उसी प्रकार से किसी भी विचारधारा की परिभाषा में परिवर्तन होना भी जरूरी होता है क्योंकि विचारधारा भी आवश्यकताओं के आधार पर समय-समय पर बदलती रहती है l



           आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु उपरोक्त विचारधारा एवं परिभाषा में खेती करने अथवा वनस्पति संरक्षण  अथवा फसलों के  हानिकारक जीवो के प्रबंधन हेतु रसायनों अथवा रसायनिक कीटनाशकों  के प्रयोग की संस्तुति सिर्फ अंतिम विकल्प के रूप में हानिकारक जीवो की आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु दी गई है l हमारे कृषक भाई तथा आईपीएम के अन्य भागीदार आईपीएम की उपरोक्त परिभाषा एवं विचारधारा की इसी संस्तुति का दुरुपयोग करके वनस्पति संरक्षण हेतु तथा फसल उत्पादन हेतु रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग अभी तक करते चले आ रहे हैं जबकि उपरोक्त परिभाषा विचारधारा के अनुसार फसल उत्पादन और फसल रक्षा हेतु  रसायनों का उपयोग कम से कम सिर्फ आपातकालीन परिस्थिति मैं ही करना चाहिए l  खेती में रसायनों का उपयोग कम करना आई पी एम का प्रथम उद्देश्य है l
2. आईपी एम का क्रियान्वयन रॉकेट साइंस की तरह किया गया जिसमें आईपीएम इनपुट के उत्पादन  हेतु प्रयोगशालाओं का होना आवश्यक था  l  इसके साथ साथ आईपीएम इनपुट के व्यापारिक उत्पादन हेतु कोई भी उत्पादक एजेंसी आगे नहीं आई क्योंकि आईपीएम इनपुट जैसे जैव नियंत्रण कार को की सेल्फ लाइफ बहुत कम है अतः वांछित मात्रा में ज्यादातर आईपीएम इनपुट की उपलब्धता संभव नहीं हो सकी  l यद्यपि आई पी एम डेमोंसट्रेशन हेतु विभिन्न प्रकार की एजेंसियों के द्वारा आई पी एम इनपुट की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकी l परंतु रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों की तरह आईपी एम इनपुट की प्रोडक्शन अथवा उत्पादन एवं उपलब्धता किसानों के द्वार पर सुनिश्चित नहीं की जा सकी l अतः आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक आईपीएम इनपुट की उपलब्धता कृषकों के द्वार पर ना होना आईपीएम के क्रियान्वयन में बहुत बड़ी बाधा है l
     हमारे व्यक्तिगत विचार से आई पी एम मैं रसायनिक नियंत्रण विधियों अथवा रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ pest इमरजेंसी के निपटान हेतु, देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु, तथा कृषकों, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं मैं रसायन रहित विधियों के परिणामों के ऊपर आत्मविश्वास का ना होना तथा रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उद्योगों के  मालिकों के interest की वजह ही होना चाहिए l    ,             आईपीएम डेमोंसट्रेशन मैं प्रयोग किए गए विभिन्न प्रकार के आईपीएम इनपुट जैसेBiocontrol agents ,biopesticides,,different types of traps , विभिन्न प्रकार के एवं विशेष हानिकारक जीवो के लिए लाभदायक सिद्ध हुए l
     अतः यह आवश्यक है की विभिन्न प्रकार के आई पीएम इनपुट  की उत्पादन विधियों का इस प्रकार से सरलीकरण किया जाए जिससे वह किसानों के द्वार पर उत्पादन किए जा सकें जैसे कि प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले इनपुट का उत्पादन किसानों के द्वार पर  आसानी से किया जा सकता है l
3. प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग किए जाने वाले इनपुट जैसे जीवामृत, घन जीवामृत बीजा मृत, विभिन्न प्रकार के पौधों के भागों के सत का उत्पादन कृष को के द्वारा उनके घरों   पर ही किया जा सकता है और उनका प्रयोग उनके खेतों में किया जा सकता है l
4. प्राकृतिक खेती में प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपी एम में प्रयोग की जा सकती है l
5. जैविक खेती में प्रयोग की जाने वाली कुछ inputs जैसे वर्मी कंपोस्ट बहुत ही महंगे होते हैं तथा उनसे पर्यावरण में वैश्विक ताप क्रम वृद्धि(Global Warming ) जैसी समस्याएं भी सामने आ जाती है l 
6. आईपी एम के क्रियान्वयन करते समय सिर्फ हानिकारक जीवो की संख्या प्रबंधन पर ध्यान दिया गया है परंतु जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए l यद्यपि फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवों के संरक्षण हेतु भिन्न प्रकार के उपाय जैसे इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग अर्थात मुख्य फसल के चारों तरफ एवं इंटरक्रॉपिंग के रूप में विभिन्न प्रकार के लाभदायक एवं हानिकारक कीटों को आकर्षित करने वाली फसलों को बोना, रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को ना करना, फसल के अवशेषों को ना जलाना तथा खेतों की मेड़ों पर रखना, बदल बदल कर उचित फसल चक्र अपनाना, फूल वाली फसलों को लगाना जैसे उपाय किए गए l परंतु फसल पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता की बढ़ोतरी एवं संरक्षण हेतु और भी अनेक प्रकार के और उपायों के आवश्यकता है जो प्राकृतिक खेती में बताए गए हैं इन उपायों को आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु आसानी से प्रयोग किया जा सकता है l
7 i.जहर मुक्त खेती एवं रोग मुक्त समाज
    यही है आई पीएम का प्रयास
 ii. आई पीएम फॉर बेटर एनवायरनमेंट
iii. जब होगा जहर मुक्त अनाज या भोजन हमारा
     तभी बनेगा स्वस्थ समाज हमारा
iv. जहर मुक्त खेती करने के लिए आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती अपनाएं l
V. जहां तक काम चलता हो गीजा से
     वहां तक बचना चाहिए दवा सेl
VI. No first use of chemicals in farming. खेती करने हेतु रसायनों का प्रथम उपयोग ना करें l
Vii. आई पी एम तथा प्राकृतिक खेती हेतु फसल निगरानी कार्यक्रम को सघनता पूर्वक लागू करते हुए जमीन के ऊपर एवं नीचे के फसल पारिस्थितिक तंत्र का एक निश्चित समय अवधि पर विश्लेषण करें तथा खेती में अपनाए जाने वाले अगले कदम अथवा गतिविधि के बारे में निर्णय लें l
Viii. प्राकृतिक खेती में अपनाई जाने वाली सभी गतिविधियों को आई पी एम कार्यक्रम में शामिल करें तथा फसल उत्पादन लागत को कम से कम करते हुए खेती से सुरक्षित भोजन के साथ साथ खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करें l यही आई पी एम का मुख्य उद्देश्य है l जमीन को बलवान बनाते हुए अर्थात जमीन की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखना अथवा बढ़ाना तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन करते हुए खेती करना भी प्राकृतिक खेती का मुख्य उद्देश्य है l
8. प्राकृतिक खेती जमीन को सेहतमंद बनाने के सिद्धांत पर आधारित है l
9.Go away from chemicals and come closer to the nature is the principle of IPM and Natural Farming.
रसायनों को दूर करते हुए तथा प्रकृति के निकट आते हुए खेती करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का प्रमुख सिद्धांत है l
10. प्राकृतिक खेती आई पी एम का ही एक सुधरा हुआ रूप है जिसमें रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति और जमीन के ऊपर सफर नीचे पाए जाने वाले पारिस्थितिक तंत्र मैं पाई जाने वाली जैव विविधता को बढ़ावा दिया जाता है l
11. सभी रासायनिक कीटनाशक हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता,nature, प्रकृति और उसके संसाधनों तथा समाज के लिए हानिकारक है l
12. रसायनिक कीटनाशक फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो से अधिक हानिकारक होते हैं l Chemical pesticides are more harmful than the pests.  
13 Agroecosystem Analysis and Pest Risk Analysis is needed at weekly basis to assess the need of the practices or activities to be applied in the crop field .
13.All organisms found in Agroecosystem are not pests .Majority of them are beneficial. फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी जीव हानिकारक नहीं होते हैं बल्कि उनमें से ज्यादातर लाभदायक होते हैं l
14. फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु कैलेंडर पर आधारित फसलों पर रसायनों का प्रयोग उचित नहीं है क्योंकि यह फसल उत्पादन वृद्धि के लिए लाभदाई नहीं है l
15. फसल उत्पादन से जुड़े हुए सभी कार को की सक्रियता रखने के लिए इनसे संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए l
16 . जब तक मानव जाति का वजूद दुनिया में है तब तक आई पी एम का Scope दायरा अथवा कार्य क्षेत्र बना रहेगा l आई पी एम में नवीन शोध एवं गतिविधियों को समावेश करने की जरूरत है l हो सकता है आवश्यकतानुसार आई पी एम का नाम, प्रारूप एवं क्रियान्वयन करने का तरीका समय अनुसार बदल जाए परंतु आई पीएम का मूल उद्देश्य ब्रह्मांड का कल्याण सुनिश्चित करते हुए खेती करना सदैव बना रहेगा l
17. "राष्ट्रीय आई पी एम कार्यक्रम" की स्थापना खेती में अंधाधुंध रूप से प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग को कम करने तथा उसकोzero  स्तर तक लाने के उद्देश्य से की गई थी l इस कार्य के लिए भारत सरकार के द्वारा आईपी एम भागीदारों तथा कृषकों के बीच प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण तथा जागरूकता कार्यक्रमों को लागू किया गया l अब मुझे इस बात की खुशी हो रही है की देश के विभिन्न भागों में खेती में रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए खेती से संबंधित विभिन्न प्रकार के बुद्धिजीवियों, जागरूक किसानों, वैज्ञानिकों , कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं के बीच में रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरको के दुष्प्रभाव के बारे में स्वयं जागरूकता उत्पन्न हुई है और वह विभिन्न नामों से रसायन रहित खेती को अपना रहे हैं एवं प्रोत्साहित कर रहे हैं l साथ ही साथ श्री सुभाष पालेकर जैसे बुद्धिजीवी किसान अन्य किसानों के लिए प्रदर्शन एवं प्रचार एवं प्रसार कार्यक्रम को अपनी तरफ से चला रहे हैं और उनकी लोकप्रियता विभिन्न प्रकार की खेती जैसे प्राकृतिक खेती ,जैविक खेती आदि के रूप में सोशल मीडिया जैसे तरीकों से कर रहे हैं l श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा देश के विभिन्न भागों में किए गए प्राकृतिक खेती के एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों से यह सिद्ध हो चुका है कि बगैर रसायनों के भी खेती की जा सकती है तथा प्राकृतिक खेती आदि को रासायनिक खेती के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है l
18. आईपीएम मैं खेती करने हेतु शोध किए गए नवीनतम रसायन रहित विधियों एवं इनपुट्स तथा ज्ञान को समावेशित करने का स्कोप हमेशा रहता है और बना भी रहेगा l इसी से फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा अथवा खेती करने की विभिन्न विचारधाराओं का विकास होता है l
                                              राम आसरे
             अपर वनस्पति संरक्षण सलाहकार                     आईपीएम( सेवानिवृत्त)
 ,         ,    वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह                   निदेशालय  फरीदाबाद   





Wednesday, October 12, 2022

Pest problems appeared in past.

1.1990-2001  American bollworm in Cotton which calm down up to 2oo5.
2.2005-2007Mealy bug 
3.2007  White fly and Greenhopper in Cotton.
अनुभव- कीड़ों को जितना छेड़ो गे कीड़े उतना आप को आप को परेशान करेंगे l More pesticides more pest problem.
कीटनाशकों के बगैर कपास हो सकती है परंतु कीटों के बगैर कपास नहीं हो सकती l

How to make Soil Organic

Structure of Soil :-1.    O2(25%)+H2O(25%)+Minerals(40-45%)+Organic matter(5%)
2.Organic matters consist of Micro organisms and carbon.All living organisms found around Carbon which Lateron converts in Humus . We can enhance the carbon by using Vermicompost,Crop rotation,Cowdung manure,Mulching ,green manuring .
3.There is a parellar  world found under the soil in which microorganisms and micronutrents are found associated with soil Microorganisms help to make free thse minerals free and make available to the roots of the plants through exjuvae .
4.The main minerals are Carbon,Hydrogen,,Oxygen, 
NPK
Ca,Mg,Sulphur 
Boron,Zinc,,Fe,Mn 
Rhyzobium bacteria helps to fix Nitrogen from air in to the roots of the plants .
किसानों को प्रकृति की संरचना को अच्छा बनाने में कार्य करना चाहिए l
जैविक खेती को कांपलेक्स( जटिल) ना बनाएं उसे सरल रखें l.

Sunday, October 9, 2022

Different themes of IPM

1. IPM for better Environment .
2.To reduce the use of chemical pesticides in farming .
3.More  yield with minimum expenditure .
4 Grow safe food .
5.Food safety and food security must go simultaneously. 
6.IPM and Natural farming facilitate the process of crop production and protection system. 
7. जहां तक काम चलता हो गीजा से
   वहां तक बचना चाहिए दवा से
8. दवा उपाय नहीं है बल्कि प्रतिरक्षा शक्ति का निर्माण करना उपाय है l
9. हरित क्रांति में पर्यावरण का विनाश किया है
10.Natural Farming is exploit less farming . प्राकृतिक खेती शोषण रहित खेती है l
11. प्रकृति में रासायनिक खेती का अस्तित्व नहीं है l
12. रासायनिक खेती ईश्वर मान्य नहीं है l
13. रसायनों को खेती से बाहर निकालना ही आज की खेती का प्रमुख उद्देश्य है l
14. Nature has a self developing,self Nourished, Symbiotic  process of development .
15. जहर मुक्त खेती और रोग मुक्त समाज
       यही है आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का           प्रयास 
16. प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद, देसी पद्धति, देसी, Earthworm पर आधारित है l

Sunday, October 2, 2022

IPM Slogons

1. जहर मुक्त खेती एवं रोग मुक्त समाज
     यही है आई पी एम का प्रयास
2. जब होगा जहर मुक्त अनाज हमारा
    तब बनेगा स्वस्थ समाज हमारा
3. प्रकृति की ओर वापस चले यही है प्राकृतिक खेती का सिद्धांत. L
4.Adopt IPM for better Environment 
5. शौ के दीदार अगर है तो नजर पैदा कर
6. आज कल मे राशन की कतारों में खड़ा नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता हूं
7. जिसने अपने खेत जलाएं समझ लो उसने अपने भाग्य जलाए l
8. कृषि को दिनचर्या बनाएं व्यापार नहीं l
9.Feed to soil not to crop .