भूमंडल में पाए जाने वाले सभी जड़ और चेतन की संपूर्ण व्यवस्था ही प्रकृति कहलाती है। प्रकृति में प्रकृति की व्यवस्था एवं प्रकृति का कानून चलता है मनुष्य का कानून नहीं ।
प्रकृति में प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने तथा जीवन को स्थायित्व प्रदान करने हेतु एक स्वयं संचालित, स्वयं विकास, स्वयं पोशी, स्वयं नियोजित, स्वयं सक्रिय एवं सहजीवी, आत्मनिर्भर ,फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा पद्धति पाई जाती है। इस पद्धति को अध्ययन करना तथा उसको खेती में प्रयोग करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है।
कृषि की समग्रता को सिर्फ प्रकृत ही जानती है। हमें प्रकृति के साथ मिलकर ही जीना है। प्रकृति के साथ परस्पर ता में जीना प्राकृतिक खेती है।
प्रकृति में पाए जाने वाले सभी सभी जड़ एवं चेतन अर्थात जीवित व जीवित कार क एक दूसरे पर आधारित है तथा उनको एक विशेष कार्य भी प्रकृति के द्वारा सौंपा गया है। प्रकृति में किसी एक अकेले जैविकअथवा अजैविक कारक का अपने आप में कोई विशेष अस्तित्व नहीं है बल्कि प्रकृति के सभी जैविक व अजैविक कारक एक दूसरे के ऊपर निर्भर रहते हुए एक पद्धति अथवा सिस्टम का संचालन करते हैं।
कृषि अथवा प्राकृतिक खेती का अर्थ होता है संसार को पालना। प्रकृति में पाए जाने वाले जैविक और अजैविक कारकों का हमारे जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक ऐसा रिश्ता है जिस के बगैर हमारा अस्तित्व नहीं रह सकता । प्रकृति में पाए जाने वाले इस प्रकार के पद्धति या सिस्टम तथा प्रकृति के विभव अथवा पोटेंशियल को कायम रखने के लिए हमें अपना योगदान देना होगा तथा हमें यह संकल्प करना होगा कि हम प्रकृति की किसी भी इकाई को क्षतिनहीं कहीं पहुंच। ऊंगा। ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में खाद्यान्न की समस्या थी जिसके लिए सिंचाई के साधन, फसलों की उन्नत प्रजातियों के बीज, रसायनिक कीटनाशक एवं उर्वरक तथा ट्रैक्टर जैसे कृषि के यंत्र विकसित हुए जिनके उपयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि हुई और हम खाद्यान्न मैंआत्मनिर्भर बने । जहां एक तरफ हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बने वहीं दूसरी तरफ रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से प्रकृति ,फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि से जुड़ी हुई बहुत सारी समस्याएं उभर कर आ गई। मिट्टी की उर्वरा शक्ति मैं कमी, मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्व तथा ऑर्गेनिक कार्बन ,ह्यूमस, आदि की कमी, भूजल स्तर का नीचे चले जाना, मिट्टी की संरचना में परिवर्तन, फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जैसे मेंढक ,केचआ, खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जियो जैसे मकड़िया मधुमक्खियां तितलियां भोरे आदि,खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पक्षी आदि विलुप्त हो गए। इसके साथ साथ विभिन्न प्रकार के फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की संख्या में बढ़ोतरी एवं इन जीवो से संबंधित नए हानिकारक जीवो की समस्याएं उभर कर आई।
फसल उत्पादों के उत्पादन लागत मैं बढ़ोतरी, बढ़ती हुई जनसंख्या को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा रोगों से सुरक्षा पर्यावरण सुरक्षा जैव विविधता की सुरक्षा सुनिश्चित करना आज के तथा भविष्य की प्रमुख समस्या है। इसके साथ-साथ मिट्टी पानी हवा प्राकृतिक के संसाधनों की सुरक्षा मिट्टी व भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना रसायनों का उचित विकल्प ढूंढना फसलों की उत्पादकता बढ़ाना कृषकों की आमदनी बढ़ाना गुणवत्ता युक्त प्रश्न उत्पादों का उत्पादन करना भूजल स्तर को ऊपर लाना कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत को कम करना फसलों के देसी बीज एवं देसी गायों की नसों को बचाना आज की खेती की प्रमुख मांगे हैं। प्राकृतिक खेती के द्वारा इन मांगों को पूरा किया जा सकता है। किसानों की समृद्धि को बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना आज की खेती के प्रमुख मांग है जिनको प्राकृतिक खेती के द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है।
2. खेती में रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग इस्तेमाल से हमारा खान-पान विषैला हो चुका है और जमीन बंजर होती जा रही है। आम नागरिक कैंसर, शुगर, हाई ब्लड प्रेशर ,हृदयरोग इत्यादि गंभीर बीमारियों का शिकार होते जा रहे हैं ,कृषि उपज लागत भी बढ़ती जा रही है तथा जैव विविधता भी नष्ट होती जा रही है। प्राकृतिक खेती तथा आईपीएम के प्रयोग से उपरोक्त परेशानियों से बचा जा सकता है।
Due to indiscriminate use of chemical pesticides and fertilizers:
.Our foods and drinks have become poisonous
.Land become barren.
.Public or society is suffering from diseases like Cancer, Diabetes,high blood pressure,and with other cardiac diseases etc.
.Biodiversity, Agroecosystem,and other natural resources has been damaged,
.Cost of crop production and protection has been enhanced or increased.
The above problems can be avoided through the use of IPM and Natural Farming.
3. प्राकृतिक खेती तथा आईपीएम के बल पर ही भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है, उसकी उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है जल, जमीन और जीवन के साथ-साथ किसान को भी बचाया जा सकता है ।इसी से समाज को स्वस्थ तथा किसान को समृद्ध साली बनाया जा सकता है ।
The soil fertility, safety of natural resources like land or soil,water, biodiversity and life etc can be ensured on the strength of Natural farming and IPM .The sefety and prosperity of the of society including Farmers can also be ensured though these types of farming systems.