2. यह खेती देसी गाय देसी बीजदेसी , देसी केचुआ एवं देसी पद्धतियों ,देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है जिसमें प्रकृति में चल रही स्वचालित,self organised, स्वयं सक्रिय self active,स्वयं पोशीself nourished, स्वयं विकास ई self developing,स्वयं नियोजित ,self planned,सहजीवी symbioticएवं आत्मनिर्भर self sustained ,,फसल उत्पादन रक्षा तथा फसल प्रबंधन व्यवस्था पर आधारित तरीकों को अध्ययन करके तथा उनसे संबंधित सभी विधियों फसल उत्पादन हेतु प्रयोग करके या अपना कर खेती की जाती है। इसमें रसायनिक विधियों को छोड़कर आईपीएम में प्रयोग की जाने वाली सभी विधियों को शामिल किया जा सकता है या किया जाता है।
राम आसरे
अप्पर वनस्पति संरक्षण सलाहकार,( ( आई पी एम ) (रिटायर्ड )
प्रकृति की परस्पर्ता ( आपस दारी)के साथ-साथ जीना तथा प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है ।
खेती में रसायनों के विकल्प के रूप में रसायन नहीं हो सकते और ना ही होना चाहिए अपितु इनका विकल्प कुछ वर्षों के लिए क्षेत्र के अनुसार रसायन रहित खेती अथवा प्राकृतिक खेती होना चाहिए जिससे खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जैविक कार्बन एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता तथा सक्रियता का पुनर्स्थापना हो सके ।
आज के परिदृश्य के परिपेक्ष में फसल उत्पादन फसल रक्षा फसल प्रबंधन तथा फसल विपणन , भूमि तथा फसलों का प्रबंधन ऐसा होना चाहिए जिससे हमारी सभी ज़रूरतें पूरी हो जाए तथा प्रकृति व उसके संसाधनों को कोई नुकसान ना हो एग्रोनॉमी कहते हैं । In today's context and Scinario' the Crop production, protection, management and crop marketing must be with due care of community health, environment ecosystem,nature and society.
प्र कति ,समाज ,जैव विविधता तथा जीवन के पंच महाभूत पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,आकाश अथवा गगन ,समीर अथवा वायु तथा जमीन में पाए जाने वाले कार्बन और न्यूट्रिशन के अनुपात की जरूरत के अनुसार अथवा हिसाब से प्रबंधन करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है।
धरती मां तथा जीवन के पांच महाभूतों के साथ छल करना मानवता के प्रति सबसे बड़ा अभिशाप है । धरती मां के स्वास्थ्य का ध्यान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम कर्तव्य अथवा प्रथम सोपान है।
आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती दोनों ही जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ साथ पर्यावरण ,सामाजिक ,
जीवन संबंधी एवं प्राकृतिक विकास को भी को भी फलीभूत करतेहै ।
मिट्टी का स्वस्थ, समाज का स्वास्थ्य ,जैव विविधता को ठीक रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती करनी है ना की इस खेती से हुए फसलउत्पादों से अधिक से अधिक मूल प्राप्त करने के लिए।
भूमि को बलवान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम लक्ष्य होता है।
जिस दिन खेत की मिट्टी स्वस्थ हो जाएगी उसे दिन हम जीरो बजट पर आधारित खेती कर सकते हैं।