Sunday, April 23, 2023

प्राकृतिक खेती की विचारधारा भाग 2/, प्राकृतिक खेती पर आधारित आईपीएम

आईपीएम का मुख्य उद्देश्य कम से कम खर्चे में, रसायनों का काम से कम उपयोग करते हुए तथा जीवन ,प्रकृति, पर्यावरण, पारिस्थितिकी तत्र ,जैव विविधताऔर समाज को कम से कम बाधित
 करते हुए सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए फसल मैं नशीजीबों की संख्या को आर्थिकहानि स्तर केनीचे सीमित रखते हुए  खाने के योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अथवा आईपीएम कहलाता है। प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधरा हुआ रूप अथवा एक घटक या एक तरीका है जिसमें खेती करने के लिए किसी भी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता तथा भूमि की उर्वरा शक्ति ,खेतों की जैव विविधता एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण, जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा ,ह्यूमस तथा ह्यूमस और जैविक कार्बन को बनाने वाले सूक्ष्मजीवाणुओं तथा सूक्ष्म तत्व को एवं जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों  को बढ़ावा देकर तथा देसी गायों एवं फसलों की देसी प्रजातियों के बीजों को संरक्षित करते हुए एवं इनके प्रयोग को फसल उत्पादन हेतु बढ़ावा देते हुए, उचित तथा लाभकारी फसल चक्र अपनाते हुए, एकल फसल प्रणाली के स्थान पर बहू फसली फसल प्रणाली को बढ़ावा देते हुए , नवीन विधियों के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को भी बढ़ावा देते हुए, परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हो, समाज ,सरकार, व्यापार और बाजार की जरूरत के अनुसार फसलों का नियोजन करते हुए, स्वस्थ समाज की कामना करते हुए कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर खेती की जाती है।
2. यह खेती देसी गाय देसी बीजदेसी , देसी केचुआ एवं देसी पद्धतियों ,देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है जिसमें प्रकृति में चल रही स्वचालित,self organised, स्वयं सक्रिय self active,स्वयं पोशीself nourished, स्वयं विकासीय ,self developing,स्वयं नियोजित ,self planned,सहजीवी symbioticएवं आत्मनिर्भर self sustained ,,फसल उत्पादन रक्षा तथा फसल प्रबंधन व्यवस्था पर आधारित तरीकों को अध्ययन करके तथा   उनसे संबंधित सभी विधियों  फसल उत्पादन हेतु प्रयोग करके या अपना कर खेती की जाती है। इसमें रसायनिक विधियों को छोड़कर आईपीएम में प्रयोग की जाने वाली सभी विधियों को शामिल किया जा सकता है या किया जाता है।
2. प्रकृति की परस्पर्ता अथवा आपस दारी के साथ साथ जीना तथा प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार अथवा उसे व्यवस्था में सुधार करके खेतो करना प्राकृतिक खेती कहलाता है।
3, भूमि को बलवान करना प्राकृतिक खेती का प्रथम स्तंभ है।
    भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना  , उर्वरा शक्ति बढ़ानेहेतु जमीन में जैविक कार्बन, औरह्यूमस तथा इनका बनाने वाले कारकों को जमीन में बढ़ाना प्राकृतिक खेती के लिए अति महत्वपूर्ण है। खेतों के चारों तरफ की जैव विविधता के संरक्षण हेतु खेतों के मेड़ों  पर    थोड़ी-थोड़ी दूर पर आम नीम, पीपल, बरगद ,पाकर    आदि के वृक्षों को लगाना  तथा खेत की मैड को मजबूत करना जिससे एक खेत का पानी दूसरे खेत में न जए  प्राकृतिक खेती की कुछ प्रमुख गतिविधियां हैं।   खेत का कचरा खेत   में तथा    जानवरों के अवशेष गोबर तथा मल मूत्र को भी खेत में डालना प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक है। 
जीव अमृत तथा घन जीव अमृत को सिंचाई   करते समय खेत में पानी के साथ लगा देने से खेत में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ जाती है जो हमस तथा ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ाने में मदद करती है। जीवामृत

 एक प्रकार का जीवाणुओं का घोल होता है अथवा न्यूक्लियस कल्चर होता है जो खेतों में जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाने में मदद करता है।
प्राकृतिक खेती पर आधारित आईपीएम में  नशीजीवों का प्रबंधन वनस्पतियों के अवशेषों एवं अर्क पर आधारित इनपुट्स के द्वारा किया जाता है।

                             
                                        राम आसरे
                            अप्पर वनस्पति संरक्षण सलाहकार,                    (आई पी एम   )   रिटायर्ड  वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय भारत सरकार                                                                              
3,प्रकृति की परस्पर्ता ( आपस दारी)के साथ-साथ जीना तथा प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है ।
खेती में रसायनों के विकल्प के रूप में रसायन नहीं हो सकते और ना ही होना चाहिए अपितु  इनका विकल्प कुछ वर्षों के लिए क्षेत्र के अनुसार रसायन रहित खेती अथवा प्राकृतिक खेती होना चाहिए जिससे खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, जैविक कार्बन एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता तथा सक्रियता का पुनर्स्थापना हो सके । 
      आज के परिदृश्य के परिपेक्ष में फसल उत्पादन फसल रक्षा फसल प्रबंधन तथा फसल विपणन , भूमि तथा फसलों का प्रबंधन ऐसा होना चाहिए जिससे हमारी सभी ज़रूरतें पूरी हो जाए तथा प्रकृति व उसके संसाधनों को कोई नुकसान ना हो एग्रोनॉमी कहते हैं । In today's context and Scinario' the Crop production, protection, management and crop marketing must be with due care of community health, environment ecosystem,nature and society.
         प्र कति ,समाज ,जैव विविधता तथा जीवन के पंच महाभूत पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,आकाश अथवा गगन ,समीर अथवा वायु तथा जमीन में पाए जाने वाले कार्बन और न्यूट्रिशन के अनुपात की  जरूरत के अनुसार अथवा हिसाब से  प्रबंधन करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है।
       धरती मां तथा जीवन के पांच महाभूतों के साथ छल करना मानवता के प्रति सबसे बड़ा अभिशाप है । धरती मां के स्वास्थ्य का ध्यान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम कर्तव्य अथवा प्रथम सोपान है।
आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती दोनों ही जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ साथ पर्यावरण ,सामाजिक ,
जीवन संबंधी एवं प्राकृतिक विकास को भी को भी फलीभूत करतेहै ।
मिट्टी का स्वस्थ, समाज का स्वास्थ्य ,जैव विविधता को ठीक रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती करनी है ना की इस खेती से हुए फसलउत्पादों से अधिक से अधिक मूल प्राप्त करने के लिए।
भूमि को बलवान रखना प्राकृतिक खेती का प्रथम लक्ष्य होता है।
जिस दिन खेत की मिट्टी स्वस्थ हो जाएगी उसे दिन हम जीरो बजट पर आधारित खेती कर सकते हैं।
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