मैंने वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय की जैविक नियंत्रण स्कीम मैं अपना योगदान 2 फरवरी 1978 से प्रारंभ किया बाद में केंद्रीय निगरानी केंद्र बारामुला जम्मू एंड कश्मीर बाद में केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र सूरत गुजरात तथा तथा केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र श्रीगंगानगर के अतिरिक्त प्रभार के साथ केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र फरीदाबाद जो बाद में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन मैं परिवर्तित हो गया विभिन्न पदों पर कार्य किया जिसके दौरान जैविक नियंत्रण, पेस्ट सर्विलेंस, का अनुभव प्राप्त किया, इसके बाद रीजनल प्लांट क्वॉरेंटाइन स्टेशन अमृतसर पर दो बार कार्य किया और वनस्पति संगरोध से संबंधित ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त किया। इस बीच कि निदेशालय की लॉकस्ट कंट्रोल एंड रिसर्च स्कीम का योजना प्रभारी अथवा स्कीम इंचार्ज के रूप में भी कार्य किया तथा लोकस्ट कंट्रोल का अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद नेशनल आईपीएम प्रोग्राम में आईपीएम स्कीम का संचालन एवं योजना प्रभारी के रूप में भी काम किया। जैविक नियंत्रण एवं आईपीएम स्कीम के कार्यकाल के दौरान प्राय यह प्रश्न सामने आते रहे की क्या देश में बगैर रसायन के अथवा रसायन मुक्त खेती की जा सकती है या नहीं। मैंने तब भी अपने अनुभव के आधार पर यह कहा था कि जी हां रसायन मुक्त खेती करना संभव है और रसायन मुक्त खेती की जा सकती है। जो बाद में श्री सुभाष पालेकर तथा अन्य वैज्ञानिकों के द्वारा सही सिद्ध हुई। अब प्रश्न यह उठता है कि प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम से गुणवत्ता युक्त खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यहां पर फिर भी मेरा अर्थ यही है की जी हां प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम के इस्तेमाल से गुणवत्ता युक्त भोजन एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। वशर्तें आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती के इनपुट पर्याप्त मात्रा में कृषकों के द्वार पर उपलब्ध कराए जा सके इसके लिए इन इनपुट्स को पर्याप्त मात्रा में उत्पादन हेतु सरकार के द्वारा बड़े रूप में इनके उद्योग स्थापित किया जाए और उसके लिए बड़े प्रोजेक्ट बनाया जाए।
हमारे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं यह कहता हूं कि कुछ विशेष जैव नियंत्रण कारकों के द्वारा कुछ चुनिंदा हानिकारक जीवो का नियंत्रण नियंत्रण किया जा सकता है और जैविक नियंत्रण कारकों का प्रयोग अन्य विधियों के साथ समेकित या एकीकृत रूप में प्रयोग करके आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु भी प्रयोग किया जा सकता है।
प्राकृतिक खेती के प्रयोग से रसायन रहित खेती की जा सकती है क्योंकि प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधार हुआ रूप है जिसमें रसायनों का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं किया जाता हैं।
आईपीएम पद्धति से खेती करने अथवा हानिकारक जीवों के प्रबंधन हेतु रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ अंतिम उपाय के रूप में आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु किया जाता है जबकि प्राकृतिक खेती में रसायनों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से वर्जित है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं खेतों में जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता को बढ़ावा देते हुए प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित रसायन रहित विधियों का प्रयोग करके अथवा गायआधारित विधियों का प्रयोग करके खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है जिसमें फसलों के उत्पादन के साथ खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, खेतों में पाए जाने वाली जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता बरकरार रखी जाती है। इसके लिए रन नीति की पूर्व योजना बनाई जाती है तथा पूर्व सक्रियता के साथ सही विजन और उद्देश्य को लेकर तथा टीम भावना के साथ काम करने को प्राथमिकता के साथकिसी भी तरीके से वंचित परिणाम लिए जाते हैं।
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