Tuesday, July 25, 2023

रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से धरती मां की मिट्टी ,पर्यावरण एवं समाज की दुर्दशा

1, फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार की जैविक इकाइयों अथवा जीवों को सम्मिलित रूप से जैव विविधता कहते हैं। फसलों में रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से इन जैविक इकाइयों अथवा जीवो के नष्ट और विलुप्तिकरण होने से फसल पारिस्थितिक तंत्र का विनाश हो रहा है जिससे जैव विविधता बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। तितलियां, मधुमक्खियां, सांप, मेंढक, घोंघे, विभिन्न प्रकार के मिली पीठ केंचुआ आदि तथा जमीन के अंदर पाए जाने विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीव तथा फफुंदीय आदि नष्ट होरहे हैं । जीवन तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र के सुचारू रूप से संचालन हेतु नष्ट हुई जैव विविधता का पुनर्स्थापना करना आज की प्राथमिकता बनी हुई है जिसे हमें आस्था का विषय बनाना चाहिए। प्रकृति और पर्यावरण  तथा जैव विविधता की की रक्षा आस्था का विषय है। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन है क्योंकि हमारी पिछली पीडिया ने इन संसाधनों की रक्षा की। हमें अपने आने वाली पीढियां के लिए भी ऐसा करना चाहिए तथा प्रकृति के संसाधनों ,फसल पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधताऔर पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए और इसके लिए खेती में रसायनों के उपयोग को न्यूनतम अथवा शून्य स्तर तक कम करना चाहिए।
आने वाली पीढियो के उज्जवल भविष्य के लिए प्रकृति ,जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण को आस्था का विषय बनाएं  और इनका संरक्षण करें इसके लिए खेती में रसायनों के उपयोग को क्रमबद्ध तरीके से कम करते हुए शून्य स्तर तक पहुंचाएं।
उत्तम पर्यावरण, सक्रिय फसल पारिस्थितिक तंत्र तथा संरक्षित जैव विविधता हेतु आईपीएम और प्राकृतिक खेती अपनाए।
2, मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है तथा मिट्टी बंजार हो रही है ।
3, फसल उत्पादन क्षमता स्थिर हो चुकी है।
4, उत्पादित फसल उत्पाद जहरीले हो रहे हैं।
5, मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन कम हो रहा है तथा इसके लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीव एवं कार्बनिक पदार्थ भी मिट्टी में काम हो रहे हैं।
6, मनुष्य एवं जानवरों में तरह-तरह की बीमारियां उत्पन्न हो रही है।
7, किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि उनके ऊपर बैंकों का कर्ज बढ़ रहा है।
8, पानी, हवा, वायु ,मिट्टी प्रदूषण तथा जहरीले हो रहे हैं। 
9, सब्जियां, दूध , मांस, फल, अनाज आदि में कीटनाशकों के अवशेषों की उपस्थिति बढ़ जाने से जहरीले हो रहे हैं।
10, कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत बढ़ रही है।
11, मानव तथा जमीन की प्रतिरक्षात्मक शक्ति कम हो रही है।
12, ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित समस्याएं बढ़ती जा रही।
13, रसायनों के अवशेष खाद्य श्रृंखला के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं और शरीर में तरह-तरह की बीमारियां पैदा कर रहे हैं।
14, फसलों में नवीन अथवा नए-नए हानिकारक जीवो की समस्याएं बढ़ती जा रही है।
15, मिट्टी का पीएच बदलते जा रहा है
16, जमीन में पानी कास्तर गिरता जा रहा है।
जमीन के द्वारा पानी का शोषण कम होता जा रहा है।
17,


Wednesday, July 5, 2023

IPM activities performed

I served in biological control,pestsurveillance,IPM,Plant quarantine,Locust control and research and bioassay division of CIL,schemes of Dte of PPQ and S under union  Ministry of Agriculture and Farmers welfare from 2nd Feb 1978 to 31st Jan 2016.and performed the following activities in different schemes of this Dte.for popularizing IPM among the farmers , scientific communities and state Department officers.
1.Mass production  and field releases of biocontrol agents against different crop pests and weeds in different crops and weeds.,assessment of their effectiveness through recovery trials from fields and  field collected material.Collection and preservation of specimens of different crop pests and their natural enemies.
 Protection,preservation and conservation of biodiversity including biocontrol agents of different crop pests in different Agroecosystem.
2.Pest Surveillance and monitoring in different crops through fixed plot and rapid roving surveys, Agroecosystem analysis with different devices and tools.Transfer of pest staus from field to CIPMCs through I T based tecnology for compilation of data and issuence of Pest advisories to different central and state agencies for their follow up actions.
3.Conducting IPM training and demonstrations in the form of IPM Farmers Field  Schools,Season Long and short duration  traning programmes.
4 Conducting trials of Ecological Engineering in different crops.
5.IPM publicity through electronic and  print  media, through placement of hoardings and also  organising meetings ,State leve conferences on IPM to finalize IPM strategy,farmers fairs,Kisan goshthiies and electronic and print media etc.
6.Promoting Cultural,Machanical genetical,legal, social  , Ecological,methods of pest management.
7.Preparation and distribution of publicity material among different stakeholders.
8..Preparation and application of plant Extract based IPM inputs  ,different types of traps and cages in farming.Including traddional ni we l nonchemical methods of farming including pest management.
10.In IPM the Chemicals are used only as last weapon to solve any emergency situation in crops.
11.Any method of   Natural farming including pest management other than chemicals can be included in IPM.
12.Co ordination,co operation ,management,and control  of Integrated pest management scheme and system at national and international level.
13.Reading,writing,speaking and delevering lectures  ,research and  publication of papers and books related with IPM.Also gave several  TV interviews related with  IPM.
15.Implementation of plant Quarantine  order to prevent entry of exotic pests in India and also to ensure availability of quality IPM Inputs to the farmers.
16.Maintaining of A blog named  "IPM Sutra , "blong and preparation and placing of vedio on
Eutube on different aspects of IPM.

अपनी हकीकत से वाकिफ हूं मैं
मुझे किसी के नजरिए से फर्क नहीं पड़ता


चुप रहना ही बेहतर है
लोग सच सुनकर नाराज हो जाते हैं

Monday, July 3, 2023

जी हां _ खेती की प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम पद्धति अपनाकर रसायन मुक्त खेती की जा सकती है

मैंने वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय की जैविक नियंत्रण स्कीम मैं अपना योगदान 2 फरवरी 1978 से प्रारंभ किया बाद में केंद्रीय निगरानी केंद्र बारामुला जम्मू एंड कश्मीर बाद में केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र सूरत गुजरात तथा तथा केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र श्रीगंगानगर के अतिरिक्त प्रभार के साथ केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्र फरीदाबाद जो बाद में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन मैं परिवर्तित हो गया विभिन्न पदों पर कार्य किया जिसके दौरान जैविक नियंत्रण,  पेस्ट सर्विलेंस, का अनुभव प्राप्त किया, इसके बाद रीजनल प्लांट क्वॉरेंटाइन स्टेशन अमृतसर पर दो बार कार्य किया और वनस्पति संगरोध से संबंधित ज्ञान  एवं अनुभव प्राप्त किया। इस बीच कि निदेशालय की लॉकस्ट कंट्रोल  एंड रिसर्च  स्कीम का योजना प्रभारी अथवा स्कीम इंचार्ज के रूप में भी कार्य किया तथा लोकस्ट कंट्रोल का अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद नेशनल आईपीएम प्रोग्राम में आईपीएम स्कीम का संचालन एवं योजना प्रभारी के रूप में भी काम किया। जैविक नियंत्रण एवं आईपीएम स्कीम के कार्यकाल के दौरान प्राय यह प्रश्न सामने आते रहे की क्या देश में बगैर रसायन के अथवा रसायन मुक्त खेती की जा सकती है या नहीं। मैंने तब भी अपने अनुभव के आधार पर यह कहा था कि जी हां रसायन मुक्त खेती करना संभव है और रसायन मुक्त खेती की जा सकती है। जो बाद में श्री सुभाष पालेकर तथा अन्य वैज्ञानिकों के द्वारा सही सिद्ध हुई। अब प्रश्न यह उठता है कि प्राकृतिक खेती  एवं आईपीएम से गुणवत्ता युक्त खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यहां पर फिर भी मेरा अर्थ यही है की जी हां प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम के इस्तेमाल से गुणवत्ता युक्त भोजन एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। वशर्तें आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती के इनपुट पर्याप्त मात्रा में कृषकों के द्वार पर उपलब्ध कराए जा सके इसके लिए इन इनपुट्स को पर्याप्त मात्रा में उत्पादन हेतु सरकार के द्वारा बड़े रूप में इनके उद्योग स्थापित किया जाए और उसके लिए बड़े प्रोजेक्ट बनाया जाए।
हमारे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर मैं यह कहता हूं कि कुछ विशेष जैव नियंत्रण कारकों के द्वारा कुछ चुनिंदा हानिकारक  जीवो का नियंत्रण नियंत्रण किया जा सकता है और जैविक नियंत्रण कारकों का प्रयोग अन्य विधियों के साथ समेकित या एकीकृत रूप में प्रयोग करके आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु भी प्रयोग किया जा सकता है।
प्राकृतिक खेती के प्रयोग से रसायन रहित खेती की जा सकती है क्योंकि प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधार हुआ रूप है जिसमें रसायनों का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं किया जाता हैं।
आईपीएम पद्धति से खेती करने अथवा हानिकारक जीवों के प्रबंधन हेतु रसायनों का इस्तेमाल सिर्फ अंतिम उपाय के रूप में आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु किया जाता है जबकि प्राकृतिक खेती में रसायनों का इस्तेमाल पूर्ण रूप से वर्जित है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं खेतों में जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता को बढ़ावा देते हुए प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित रसायन रहित विधियों का प्रयोग करके अथवा गायआधारित विधियों का प्रयोग करके खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है जिसमें फसलों के उत्पादन के साथ खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति, खेतों में पाए जाने वाली जैव विविधता तथा  फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता बरकरार रखी जाती है। इसके लिए रन नीति की पूर्व योजना बनाई जाती है तथा पूर्व सक्रियता के साथ सही विजन और उद्देश्य को लेकर तथा टीम भावना के साथ काम करने को प्राथमिकता के साथकिसी भी तरीके से वंचित परिणाम लिए जाते हैं।