Monday, March 9, 2015

आई.पी.एम – आवश्य कता, समझ एवं कार्यान्व्यन

आवश्‍यकता – आध्‍यात्‍मिक तौर से जीव की रचना पांच तत्‍वों से मिलकर बनी है, जिनको परमात्‍मा ने स्‍वयं प्रकृति के रूप में बनाया है तथा जिसका संचालन जैविक और अजैविक कारकों के द्वारा किया जाता है। संत श्री तुलसीदास जी ने कहा है –
क्षिति जल पावक गगन समीरा
पंच तत्‍व मिल बना शरीरा
क्षिति = मिट्टी Soil = earth ,   
जल = पानी,  water
पावक = आग , carbon (Organic Chemistry)
गगन = आकाश , Inert gases etc.
समीर = वायु , Oxygen

      अर्थात् शरीर की रचना मिट्टी, पानी, आग, आकाश एवं आक्‍सीजन के द्वारा हुई है परंतु विडम्‍बना यह है कि अब ये पांचों तत्‍व प्रदूषित हो चुके हैं । इन तत्‍वों को प्रदूषित करने में मनुष्‍य का बहुत बड़ा योगदान है । मनुष्‍य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर (Top of the creature) मानता है तथा अपना अस्‍तित्‍व इस प्रकृति में हर हालत में बनाए रखना चाहता है। इन तत्‍वों को प्रदूषित करने में मनुष्‍य की कभी न खत्‍म होने वाली इच्‍छाएं हैं जो अनन्‍त हैं, इन इच्‍छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्‍य प्रकृति को नष्‍ट कर रहा है तथा उपरोक्‍त तत्‍वों को प्रदूषित कर रहा है ।

एक दिल लाखों तमन्‍ना और उस पर ज्‍यादा हविश
फिर ठिकाना है कहां उसको टिकाने के लिए ।

मनुष्‍य अपने इच्‍छाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के संसाधनों को नष्‍ट कर रहा है एवं प्रदूषित कर रहा है ।
दिमाग की गिजा हो या गिजा ए जिस्‍मानी
यहां तो हर गिजा में मिलावट मिलती है

 उपरोक्‍त तत्‍वों को प्रदूषित करने में फसल उत्‍पादन में बढ़ते हुए रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग का महत्‍वपूर्ण योगदान है, जिससे विभिन्‍न प्रकार की स्‍वास्‍थ्‍य, पर्यायवरणीय एवं इकोलॉजिकल समस्‍याएं पैदा हो गई हैं ।


इन समस्‍याओं के निवारण हेतु इन रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग को कम करना अति आवश्‍यक हो गया है जिसके लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन पद्धति को नाशीजीव प्रबंधन हेतु बढ़ावा देना आवश्‍यक है इसके लिए आई.पी.एम के सभी भागीदारों (stakeholders) को आई.पी.एम अवधारणा (concept) एवं उद्देश्‍यों को ठीक प्रकार से समझना अतिआवश्‍यक है । 

समझ: आई.पी.एम भागीदारों (stakeholders) के द्वारा आई.पी.एम को सही प्रकार से नहीं समझा गया प्रत्‍येक भागीदार ने इसको अपने –अपने कामों जो कि वे कर रहे हैं की दृष्‍टिकोण से आई.पी.एम को समझ पाया है एवं आई.पी.एम का वास्‍तविक उद्देश्‍यों को दूर कर दिया गया है । कृषक कम लागत से अधिक पैदावार के उद्देश्‍य को समझता है तथा स्‍वास्‍थ्‍य व पर्यावरणीय मांगों को दरकिनार कर देता है । आई.पी.एम कम खर्चे में अधिक व सुरक्षित फसल उत्‍पादन हेतु फसलों के स्‍वास्‍थ्‍य प्रबंधन हेतु प्रयोग की जाने वाली सभी विधियों का एक समग्र पैकेज है, जो इकोलॉजिकल, इकोनामिकल, सोशल, crop physiological एवं पर्यावरणीय सिद्धांतों पर आधारित है इसके लिए आई.पी.एम को इन परिप्रेक्ष्य एवं दृष्‍टिकोणों से समझना अतिआवश्‍यक है । 
      रामायण एक बहुत ही पवित्र ग्रंथ है जिसका विवरण या वर्णन चार पंक्‍तियों में इस प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है –
एक राम हतो, एक रावना
उनने उनकी सिया चुराई
उनने उनको मारना
तुलसीदास जी ने लिख दिया पोथना।

लेकिन ऐसा नहीं है, रामायण रूपी ग्रंथ में जीवन के हर पहलू एवं दर्शन को दर्शाया गया है । मुसीबत में किस तरीके से व्‍यक्‍ति को अपने कर्त्‍तव्‍यों का पालन करना चाहिए, राजधर्म को निभाते हुए राजत्‍याग की भावना का एक विस्‍तृत संदेश इस पवित्र ग्रंथ में छिपा हुआ है जो हमें तरह-तरह की शिक्षाएं तथा जीवन का दर्शन प्रदान करता है । इसी प्रकार से आई.पी.एम सिर्फ कल्‍चरल, मैकेनिकल, बॉयोलॉजिकल एवं अंत में कैमिकल नियंत्रण विधियों तथा इनके साथ-साथ नाशीजीव निगरानी को एकीकृत करके प्रयोग में ला कर नाशीजीव प्रबंधन करना नहीं है बल्‍कि फसल स्‍वास्‍थ्‍य प्रबंधन की सभी विधियों एवं फिलॉसिफीस को समझना तथा प्रयोग करना है । आई.पी.एम के सभी भागीदारों को कृषकों को आई.पी.एम क्रियान्‍वयन की सभी तकनीकों को कृषकों को समझाने के लिए सुविधा प्रदान करनी चाहिए ।

            कृषि एक ऐसा विषय है जो वैज्ञानिकों के द्वारा खोजा जाता है तथा प्रचारएवं प्रसारकार्यकर्ताओं के द्वारा उसका प्रचार एवं प्रसार किया जाता है तथा कृषकों के द्वारा अपनाया जाता है । सही तकनीकी जो कि वैज्ञानिकों के द्वारा खोजी जाती है जब कृषकों के द्वारा अपनाई जाती है तो उसमें कुछ अंतर आ जाता है तथा किसान उस तकनीक को सही रूप से नहीं क्रियान्‍वति कर पाता है । सही तकनीक एवं क्रियान्‍वयन करने में पाए जाने वाले अंतर को सुविधाप्रदाताओं (facilitators) के द्वारा चिन्‍हित करना चाहिए तथा इन अंतरों को दूर करने के लिए कृषकों को सुविधा प्रदान करनी चाहिए ताकि कोई तकनीक सही तरीके से अपनाई जा सके। किसी तकनीकी का गुणात्‍मक प्रभाव (multiplier effect) तभी हो सकता है जबकि तकनीक साधारण, संभव, किफायती, प्रयोग करने लायक, अनुकूल (compatible), स्‍वीकारणीय, वहन करने योग्‍य तथा प्रबंधन योग्‍य हो । आई.पी.एम हेतु फसल उत्‍पादन में काम में आने वाली सभी गतिविधियां सम्‍मिलित होनी चाहिए और उनका उपयोग आता है, परंतु बहुत सारी विधियां (practices) शामिल नहीं की जाती और उनके योगदान को जिम्‍मेदार नहीं बनाया जाता है तथा योगदान नहीं आंका जाता और तकनीक को दोषारोपित किया जाता है । तकनीक का सही उपयोग जब नहीं किया जाता तो उससे होने वाला लाभ भी सामने नहीं आ पाता ।

कार्यान्‍वयन: आई.पी.एम को अपनाते समय किसान के मन में काफी संदेह रहता है, ये संदेहात्‍मक चीजें निम्‍नवत् हैं –

1 रासायनिक कीटनाशकों के प्रमाण को चूंकि वह काफी दिनों से देखता आ रहा है अत: उस पर उसे पूर्ण विश्‍वास हो गया है कि नाशीजीव का नियंत्रण कीटनाशकों से ही संभव है। अत: हमें उसके मन में यह विचार जागृत करना चाहिए कि बिना रासायनिक कीटनाशकों के भी नाशीजीवों का नियंत्रण किया जा सकता है। उसके लिए हमें इस बात को प्रदर्शित करना चाहिए एवं demonstrations करके सिद्ध करके दिखाना चाहिए । आई.पी.एम टेक्‍नॉलाजी पर विश्‍वास न करने का एक प्रमुख कारण है कि हम अपनी तकनीक के परिणाम को कृषकों को प्रदर्शित करके नहीं दिखा पाए । जब तक किसान इसको नहीं देख पाएगा वह इस बात पर विश्‍वास नहीं कर सकता जो चीजें हम किसानों को आई.पी.एम दृष्‍टिकोण से बताना चाहते हैं वे लाभदायक है और उनके लाभ को उनको कृषकों को सिद्ध करके, प्रदर्शन करके दिखाना चाहिए । जैसा कि देखा गया है आई.पी.एम demos , mid crop season से प्रारंभ होते हैं जो गलत है और तकनीक सही तरह से प्रदर्शित नहीं की जाती है । उसको दोष भी नहीं देना चाहिए अत: हमें तकनीक प्रदर्शित करके कृषकों के बीच उनके मन में तकनीकी के प्रति विश्‍वास पैदा करना चाहिए ।  
  
2. आई.पी.एम इनपुट्स का कृषकों के द्वार पर उपलब्‍धता न होना आई.पी.एम के प्रचार एवं प्रसार में बाधक सिद्ध हो रही है । इसके लिए हमें आई.पी.एम इनपुट्स को बनाने व उत्‍पादन करने की विधियों का सरलीकरण करना चाहिए तथा कृषकों को ही उनके उत्‍पादन का प्रशिक्षण देकर उन्‍हें सक्षम बनाना चाहिए जिससे वे आई.पी.एम इनपुट्स को अपने आप बना कर इसका प्रयोग आसानी से कर सके । यह कार्य भी हमें प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए ।

3. जब कृषक आई.पी.एम इनपुट्स का उत्‍पादन खेत स्‍तर पर कर सकने में सक्षम होंगे तब वे इनका प्रयोग फसल उत्‍पादन हेतु कर सकेंगे और इनके उपयोग से होने वाले परिणामों के प्रति जागरूक एवं आश्‍वस्‍त होंगे और उनको इनके प्रयोग के प्रति भरोसा बढ़ेगा । जब ये चीजें प्राइवेट उद्यमी देखेंगे कि इनकी मांग बढ़ गई है तो प्राइवेट उद्यमी भी आगे आयेंगे और इनके उत्‍पादन हेतु कदम बढ़ायेंगे ।

4. एक बार जब जैव-कीटनाशकों एवं आई.पी.एम इनपुट्स की मांग बढ़ेगी तभी हमें इनके गुणवत्‍ता नियंत्रणंर्टान‍ (क्‍वालिटी कंट्रोल) हेतु सोचना पड़ेगा ।

5. रासायनिक कीटनाशक हानिकारक हैं यह हमें पता है । क्‍या इस चीज की जानकारी कृषकों को है ? यदि इस चीज की जानकारी कृषकों को सही तरह से होती तो शायद वे इनके उपयोग को कम करने के बारे में सोचते । इस चीज की जानकारी कृषकों को पहुंचाना हमारा परम कर्त्‍तव्‍य ही नहीं बल्‍कि पर्यावरण सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति हमारा धर्म भी बनता है कि इसकी जानकारी कृषकों को प्रदर्शित करके दें ।

6. अब नाशीजीवों को नियंत्रण एवं प्रबंधन से पहले रासायनिक कीटनाशकों के प्रबंधन की आवश्‍यकता है इसको प्राथमिकता के तौर पर अपनायें एवं बढ़ावा दें ।

7. रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता बल्‍कि दुरूपयोग किया जाता है । इनका दुरूपयोग किस प्रकार से किया जाता है उसका पता लगाकर कृषकों को जागरूक करें ।

8. अब कृष्‍कों को इस बात के लिए जागरूक करने की आवश्‍यकता है कि उन्‍हें फसलों में पाए जाने वाले नाशीजीवों का प्रबंधन करते समय सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य एवं पर्यावरणीय सुरक्षा का ध्‍यान रखना अतिआवश्‍यक है जिससे हम देश की जैव सुरक्षा को खतरे से बचा सकते हैं । पहले नाशीजीव फसलों के लिए यह बायो सिक्‍योरिटी के लिए खतरा थे परंतु अब रासायनिक कीटनाशक जैव सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं जिसका प्रबंधन अतिआवश्‍यक है । कृषकों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाएं ।

9. अभी हम इस स्‍तर पर नहीं पहुंच पाए हैं कि बगैर रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग के फसल उगा सकें/पैदा कर सकें परंतु रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम तो कर सकते हैं इसके लिए हमें रासायन रहित फसल उत्‍पादन विधियों को बढ़ावा देना होगा ।

10. आई.पी.एम को हमें इकोनॉमिकल, सोशियोलॉजिकल, इकोलॉजिकल, इनवॉयरमेंटल, कम्‍युनिटी हेल्‍थ के परिप्रेक्ष्‍य में सोचना पड़ेगा एवं अपनाना पड़ेगा । इसके लिए इनसे संबंधित एवं इनको उपयुक्‍त करती हुए विधियों को बढ़ावा देना होगा ।

11. आई.पी.एम की रणनीति कृषकों के समस्‍याओं को ध्‍यान में रखकर बनाना चाहिए ।                    



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