Saturday, February 22, 2020

आज के परिवेश में IPMकी विचारधारा

आज के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक, पर्यावरण  परिपेक्ष एवं  परिवेश में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा तथा आईपीएम की विचारधारा या कांसेप्ट पर्यावरण ,प्रकृति, एवं समाज हितेषी, लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ  सुरक्षित, स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार को बढ़ावा देने वाली तथा आय बढ़ाने वाली, समाज, प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली तथा जीवन को जीने की राह को आसान बनाने वाली होनी चाहिए तथा आर्थिक जीडीपी पर आधारित विकास के साथ-साथ सामाजिक, प्राकृतिक, पर्यावरण पारिस्थितिक तंत्र, के विकास को करने वाली एवं कृषको तथा कृषि श्रमिकों के जीवन स्तर में सुधार करने वाली होनी चाहिए इसके लिए कृष को, कृषि श्रमिकों ,उपभोक्ताओं व समाज के अन्य घटकों तथा प्राकृतिक और पर्यावरणीय समस्याओं का अध्ययन करके उनके अनुकूल विधियों तथा इंफ्रास्ट्रक्चर व इनपुट्स की उपलब्धता सुनिश्चित करके अपनाई जाने वाली विधियों एवं प्रैक्टिस इसमें बदलाव लाने की प्रमुख आवश्यकता हैl  इसके लिए स्टेकहोल्डर्स के बीच पारस्परिक सहयोग होना आवश्यक है जिसके लिए उनकी मानसिकता में परिवर्तन लाना अति आवश्यक हैl अतः हमें सभी स्टेकहोल्डर्स के बीच में एक जागरूकता लानी आवश्यक है l

Thursday, February 20, 2020

Different Modules of Farming and plant Protection

1.Tradditional Farming
 2.Grow More Food
 3.Green Revolution
 4.Pest Monitoring and Surveillance.
  5.Biocontrol of crop pests and weeds
  6 .IPM Demonstrations 
  7.IPM Modules 
  8.AESA based IPM.
  9.Plant Health Management
  10.Organic Farming
  11.Integrated Farming
  12.Climate Smart Farming
  13.Prescision Farming.
  14.Natural Farming.
  15.Zero based Farming
  16.Trade specific Farming
  17.Area specific  Farming.
  18.Second Green Revolution.
  19.Grow Safe food 
  20.Sustainable Agriculture.



Wednesday, February 12, 2020

आध्यात्मिक तौर पर आई पीएम की विवेचना

आध्यात्मिक तौर से जीवन की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है l जीवन का संचालन पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जैविक व अजैविक कारकों के द्वारा  किया जाता है l
       संत तुलसीदास जी ने कहा है
   क्षिति, जल, पावक, गगन ,समीरा, पंचतत्व मिल बना शरीरा l अर्थात शरीर या जीवन की रचना क्षति मतलब पृथ्वी या मिट्टी या जमीन ,जल पानी , पावक मतलब अग्नि या मेटाबोलिक एक्टिविटीज ,गगन आकाश या सोलर सिस्टम ,समीर यानी वायु जिसमें बहुत सारे गैस  आती हैं lयह पांच तत्व प्रकृति के ही संसाधन है जिन्हें सम्मिलित रूप से भगवान भी कहा जाता है lभगवान शब्द की विवेचना में भी इन सभी प्राकृतिक संसाधनों का जिक्र होता है lभा से भू. जानी, पृथ्वी, गां से गगन यानी आकाश, व से वायु यानी हवा, ना से  नीर यानी पानी अर्थात इन्हीं पांचों तत्वों को ही सामूहिक रूप से भगवान कहते हैं l परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचों तत्व प्रदूषित हो चुके हैं  दिमाग की    गिजा हो या गिजाए जिस्मानी यहां हर गिजा में मिलावट मिलती है l इन पांचों तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है l हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम प्रकृति व पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं जिनका प्रभाव हमारे जीवन संचालन एवं पृथ्वी पर जीवन के स्थायित्व प्रदान करने पर पड़ता है l जीवन के संचालन हेतु एवं पृथ्वी पर जीवन को स्थायित्व प्रदान करने हेतु हमें पर्यावरण प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण करना अति आवश्यक है lअतः पृथ्वी पर जीवन के संचालन एवं स्थायित्व प्रदान करने वाले सभी पांचों तत्वों को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए तथा इन को बर्बाद नहीं होना देना चाहिए lआईपीएम वनस्पति संरक्षण का वह तरीका है जो Nashiजीवों के प्रबंधन के साथ साथ प्रकृति व उसके संसाधनों ,पर्यावरण व उसके पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण भी करता है जिससे समाज सामुदायिक स्वास्थ्य एवं समाज सुरक्षित रहता है l
        मनुष्य को धार्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रकृति का सिरमौर यानी टॉप ऑफ द क्रिएचर कहते हैं जिसमें परमात्मा ने सही व गलत पहचान करने की ताकत व विवेक दिया है परंतु मनुष्य यह शक्ति सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है तथा दूसरों के लाभ के लिए नहीं जिसमें प्रकृति समाज ,परिस्थितिक तंत्र ,पर्यावरण ,जैव विविधता आदि भी शामिल है l मनुष्य प्रकृति में अपना अस्तित्व हर हालत में बनाए रखना चाहता है lइन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी न खत्म होने वाली इच्छाएं है जो अनंत हैं इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा जीवन बनाने व उसको स्थायित्व प्रदान करने वाले तत्वों को प्रदूषित कर रहा है l उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित करने में खेती के काम  प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों का विशेष स्थान है जिनका खेती में अंधाधुंध तरीके से प्रयोग होना भी  हैl  जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं पैदा होती हैl अतः पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र ,प्रकृति व उसके संसाधनों के संरक्षण हेतु आईपीएम  अपनाना चाहिए जिससे पृथ्वी पर जीवन कायम रह सके l आईपीएम को आर्थिक सामाजिक, पारिस्थितिक ,पर्यावरण आदि दृष्टिकोण या परिपेक्ष में सोचकर अपनाना चाहिए और कम से कम खर्चे, कम से कम कीटनाशकों व उर्वरकों का प्रयोग करके हानिकारक  जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए भरपूर फसल फसल उत्पादन करना चाहिए lयही आईपीएम का प्रमुख उद्देश्य है l

Tuesday, February 11, 2020

कैसी हो खेती करने व आईपीएम क्रियान्वयन करने की विचारधारा

 आजकल के सामाजिक,-आर्थिक, और प्राकृतिक परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति और समाज हितेषी ,लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,आय बढ़ाने वाली एवं  समाज  प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने  वाली होनी चाहिए l  आज की खेती एवं आईपीएम को क्रियान्वयन  करने की विचारधारा मैं आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक ,पर्यावरण विकास को भी शामिल करने की आवश्यकता है l यह देखा गया है कि आज का जीडीपी बेस्ट विकास प्रकृति व समाज दोनों के लिए नुकसानदायक सिद्ध होने लगा है प्रकृति और समाज एक दूसरे पर आधारित हैं lएक का अस्तित्व दूसरे के बिना नहीं कायम रह सकता अतः हमें विकास को समाज के अनुकूल होने के साथ-साथ प्रकृति के अनुकूल भी बनाना पड़ेगा और विकास को विनाशकारी बनने से रोकना पड़ेगा l  आईपीएम प्रकृति ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता एवं समाज को नुकसान पहुंचाए बिना खेती करने का एक तरीका है या विचारधारा है इसमें समाज ,प्रकृति और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालने वाली फसल उत्पादन व फसल सुरक्षा की क्रियाओं को बढ़ावा नहीं देना पड़ता है l  आज का विकास     प्रतिस्पर्धा   पर आधारित  विचारधारा है जिससे रासायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का खेती में अंधाधुंध प्रयोग होने लगा है l जिसकी वजह से पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,आर्थिक एवं सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणाम सामने आते हैं l मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए प्रकृति तथा उसके संसाधनों जैसे जल ,जमीन, जंगल ,मिट्टी आदि सभी को दोहन कर रहा है और उसका उनका दुरुपयोग कर रहा है जिससे प्रकृति में संबंधी एवं आर्थिक व सामाजिक दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं lआजकल ऑक्सीजन एवं पानी जो दोनों जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है की कमी होने लगी है एवं इनको बोतलों में बंद करके बेचा जाने लगा हैl हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि 1 दिन ऐसा आएगा जब की केंचुए जैसे जियो को हमें खरीदना पड़ेगा इन दुष्परिणामों को देखते हुए आजकल जीडीपी पर आधारित विकास  के साथ-साथ पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति व समाज पर आधारित विकास को बढ़ावा देना पड़ेगा तथा जीडीपी के साथ-साथ ग्रास एनवायरनमेंट प्रोडक्ट  जीईपी  की ओर भी ध्यान देना पड़ेगा जिससे यह पता चल सके की हमारे पर्यावरण में आबोहवा किस ओर जा रही है इसके लिए वैज्ञानिकों को किसान बनना पड़ेगा जिससे  और किसान को वैज्ञानिक बनकर खेती करना पड़ेगा जिससे विज्ञान और वास्तविकता के बीच में पाया जाने वाला अंतर समाप्त हो सके lहमें एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना पड़ेगा और समाज व प्रकाश के हित को सर्वोपरि मानना पड़ेगा तभी प्रकृति पर्यावरण  समाज को बचाते हुए विकास तथा सुरक्षित फसल उत्पादन किया जा सकता है l
          मानवीय गतिविधियों एवं उनसे होने वाले विकास या विनाश की वजह से पर्यावरण व प्रकृति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है जिसकी वजह से नदियों के सूखने, धरती की उर्वरा शक्ति में कमी तथा उसको सारी भूमि में बदलाव ग्लोबल वार्मिंग ,जलवायु परिवर्तन जैसे संकट व उनके दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैंl  प्रकृति संसाधन जैसे पानी यदि बोतलों में बंद ना होकर नदियों तालाबों एवं पोखरा में होता तो प्रकृति चक्र पर विपरीत प्रभाव ना पड़ता ऐसी स्थिति में सरकार को प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण की और प्रभावी कदम उठाना चाहिए तथा खेती व अन्य योजनाओं में उन गतिविधियों को नहीं अपनाना चाहिए जिनका सामुदायिक स्वास्थ्य एवं प्रकृति पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो l जीवन को पृथ्वी पर स्थायित्व प्रदान करने के लिए स्वस्थ समाज बनाने ,के लिए शुद्ध एवं स्वच्छ पर्यावरण बनाने हेतु खेती में IPM को बढ़ावा देना आवश्यक है lइसके लिए खेतों में रसायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों को सिर्फ किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने की स्थिति में ही प्रयोग किया जाना चाहिए और इनका उपयोग सुरक्षित  एवं न्यायोचित ढंग से किया जाना चाहिए lआईपीm के क्रियान्वयन हेतु बिना रसायन वाली विधियां को बढ़ावा देना चाहिए इसी सिद्धांत पर आधारित फसल सुरक्षा एवं फसल उत्पादन की विचारधारा के अनुसार खेती में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा करनी चाहिए l
       सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक ,पर्यावरण सुरक्षा एवं जीवन को स्थायित्व प्रदान करने की मांगों के अनुसार खेती करने की अवधारणा में समय अनुसार अनेक परिवर्तन किए गए जैसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को खाद्यान्न मेंआत्मनिर्भर करने के लिए ग्रो मोर फूड कार्यक्रम, हरित क्रांति कार्यक्रम बाद में फसल सुरक्षा के हेतु इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट, विधियों को अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करके कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोककर न्यायोचित प्रयोग करने के उद्देश्य तथा जैविक विधियों को बढ़ावा देकर हानिकारक जीवो के प्रबंधन के लिए प्रयास किए गए lपरंतु यह देखा गया की आईपीएम की विधियां अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करने पर उतनी लाभकारी सिद्ध नहीं हुई जितनी की एकीकृत रूप से  क्या समेकित रूप से करने से हुई l इसके बाद IPM demonstration क्या आईपीएम विधियों को पैकेज के रूप में  इस्तेमाल करने से  आईपीएम विचारधारा  को आगे बढ़ाया गया  जिससे  फसल उत्पादन  मैं वृद्धि के साथ साथ  कीटनाशकों के उपयोग    में कमी  आई  इसके बाद प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट    ,जलवायु आधारित स्मार्ट फार्मिंग ,,ऑर्गेनिक फार्मिंग, जीरो बजट  फार्मिंग, इंटीग्रेटेड फार्मिंग ,तथा प्रेसीजन फार्मिंग जैसे खेती की विभिन्न तकनीकों को विकसित किया गया  तथा मॉडल विकसित किए गए जिनका अलग-अलग    उद्देश्य थे.  l हरित क्रांति कार्यक्रम से देश खाद्यान्न के लिए आत्मनिर्भर तो बन गया परंतु इस कार्यक्रम में प्रयोग किए गए  रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग प्रोफिलैक्टिक यूज के रूप में किया गया जिससे फसल उत्पादन में इन कीटनाशकों तथा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया जिससे बहुत सारी स्वास्थ्य व पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुई तथा कृषि लागत में भी बढ़ोतरी देखी गई l इन सभी चीजों  से निपटने के लिए अन्य कार्यक्रम जो ऊपर बताए गए हैं विकसित किए गए जिसका उद्देश्य पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य,  आमदनी सुरक्षा की सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आय को बढ़ाना सर्वोपरि रखा गया lइंटीग्रेटेड फार्मिंग का मुख्य उद्देश्य खेती के साथ-साथ खेती से जुड़े हुए या जुड़ी हुई व्यापारिक गतिविधियां या उद्योगों को बढ़ावा देना शामिल है जिससे किसानों की आय को बढ़ाया जा सके तथा उनके जीवन स्तर को सुधार जीवन स्तर में सुधार लाया जा सके l उपरोक्त परिस्थितियों तथा कारणों से खेती करने की था फसल सुरक्षा की विचारधाराओं में उपयुक्त परिवर्तन लाना आज की प्रमुख आवश्यकता है lजिससे प्रकृति को व जीवन को दोनों को स्थायित्व प्रदान किया जा सके l

Thursday, February 6, 2020

what is Philosophy in English

Philosophy is the habit of obtaining knowledge about a scientific principle and concept,it's deep thinking and describing in different aspects and view pints and also relating it to society,nature,spirituality,economics,ecology and life to provide it's benefit to the nature ,society and life,and also save them from their ill effects .

IPMदर्शन या IPMफिलॉस्फी क्या है

 किसी वस्तु या विचारधारा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने, उसके बारे में वैज्ञानिक, आध्यात्मिक ,सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक, पारिस्थितिक तंत्र आदि की  दृष्टिकोण से एवं विभिन्न नजरियों से सोचने ,गहन अध्ययन एवं गहन चिंतन करने ,विवेचना करने की आदत को दर्शन या फिलासफी कहते हैंl फिलॉसफी का मुख्य उद्देश्य किसी भी वैज्ञानिक सिद्धांत एवं विचारधारा को जीवन व प्रकृति से जोड़ना है जिससे उस विचारधारा व सोच का प्रकृति व समाज को उचित लाभ मिल सके एवं  विचारधारा से संभावित नुकसान से बचाया जा सके l एकीकृत    नाशिजीव प्रबंधन या IPM को मैंने विभिन्न पहलुओं या दृष्टिकोण से अध्ययन करके तथा चिंतन करके समाज एवं प्रकृति से जोड़ने का प्रयास किया है lइसी को आईपीएम फिलासफी कहा गया हैl  चिंतन  एवं अध्ययन में  मैंने यह प्रयास किया है कि आई पीएम को समाज व प्रकृति के  साथ इस प्रकार से जोड़ा जाए जिससे समाज और प्रकृति को कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सके l मेरे द्वारा दिए गए   IPM     
 फिलॉस्फी को  मेरे  द्वारा लिखे गए आईपीएम सूत्रा ब्लॉग पर लिखे गए आईपीएम फिलॉस्फी से संबंधित सभी लेखों में पढ़ा जा सकता है IPM philosophy जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जो पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्रों, जैव विविधता प्रकृति व समाज को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए खाने योग सुरक्षित भोजन, पीने योग्य सुरक्षित पानी तथा रहने योग सुरक्षित पर्यावरण प्रदान  करती हैl IPM भारत सरकार के फिट इंडिया ,स्वस्थ इंडिया, समृद्धि  भारत , और ग्रीन इंडिया आदि प्रोग्राम को बढ़ावा देने में अपना महत्व पूर्ण योगदान देती है यह जीवन को सुचारू रूप से चलाने तथा उसको सरलतम बनाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं IPM जीवन को सरलतम तरीके से चलाने में सहायक होती है यह सुरक्षित ,लाभकारी ,स्थाई, अधिक आय देने वाली खेती की पद्धति है जो जीवन को स्थायित्व प्रदान करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है lआईपीएम के द्वारा हम कम से कम खर्चे में ,कम से कम रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग करते हुए फसल पर्यावरण ,सामुदायिक स्वास्थ्य, जैव विविधता, समाज व प्रकृति को कम से कम हानि पहुंचाते हुए IPM की विभिन्न विधियों को एकीकृत रूप से प्रयोग करते हुए  खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की संख्या को Arthik Hani स्तर के नीचे सीमित रखते हुए खाने योग्य सुरक्षित तथा व्यापारि हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है l
      IPM आईपीएम अहिंसा ,संवेदनशीलता ,सहानुभूति ,सहनशीलता एवं समाज व प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने के सिद्धांतों पर आधारित वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जो जिओ और जीने दो, फसलों में पाए जाने वाले सभी लाभदायक एवं हानिकारक जीवो के प्रति सहानुभूति रखना ,नासिजीवो की संख्या को ईटीएल सीमा के नीचे तक की संख्या के नुकसान को सहन करना, समाज और प्रकृति के बीच तालमेल बनाकर रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को प्रथम  प्रयोग के रूप में ना करके केवल आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए करके क्रियान्वयन किया जाता है l
    IPM वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत पर आधारित वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जो प्राकृतिक संसाधनों एवं सूक्ष्म जीवों के संरक्षण के लिए आवश्यक है IPM  सामाजिक फसली तथा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को सही तरीके से कार्यरत करने के लिए सुविधा प्रदान करता है lआईपीएम विवेक और होशियारी के साथ खेती करने का तरीका है जिसमें समाज और प्राकृतिक दोनों का ध्यान रखते हुए वनस्पति संरक्षण किया जाता है lआईपीएम अपनाने हेतु प्रकृति व फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जीवो का संरक्षण करना आवश्यक है इसके लिए कीटनाशकों का उपयोग कम से कम किया जाता है lफसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जीवो के संरक्षण हेतु फसल उत्पादन में की जाने वाली वे सभी क्रियाएं जिनका विशेष तौर से फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो की संख्या के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है को ना करें l
     आईपीएम फिलासफी फसल पर्यावरण या फसल पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित सभी जैविक व अजैविक कारकों ,फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो जिनका के .प्रभाव फसल उत्पादन पर पड़ता है ,प्रकृति ,समाज ,क्रॉप फिजियोलॉजी ,अर्थ अर्थशास्त्र से जुड़ी हुई सभी समस्याएं एवं सिद्धांतों, पौधों कि विपरीत परिस्थितियों में सहन करने की क्षमता ,जैविक व अजैविक कारकों के द्वारा होने वाले नुकसान को  कुछ हद तक सहन करने  एवं  कंपन सेट करने की क्षमता  जिनका  फसल उत्पादन पर  प्रभाव पड़ता है  के सामूहिक प्रभाव पर आधारित है  l
    पृथ्वी पर जीवन को स्थायित्व प्रदान करने ,प्रकृति व उसके संसाधनों तथा विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों को स्थायित्व प्रदान करना तथा उनका संरक्षण प्रदान करने के लिए आई पीएम का विशेष योगदान होता है lआईपीएम के मुख्य उद्देश्य में स्वस्थ समाज, संपन्न समाज ,शिक्षित समाज ,कार्य करने योग्य फिट समाज तथा रहने के लिए उपयुक्त तथा खतरों से मुक्त पर्यावरण  बनाना प्रमुख है  इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आईपीएम अपनाएं l अनेकता में एकता हमारे देश की विशेषता हैl एग्रीकल्चर हमारे देश का कल्चर है lएग्रीकल्चर से संबंधित हमारे देश में बहुत सारी विधि बताएं हैं l इन विविधताओं में जलवायु, सीजन या मौसम ,मिट्टी, भोजन ,फसलों ,टोपोग्राफी ,वेशभूषा ,धर्म , जातियों तथा जीवो और पारिस्थितिक तंत्रों की विशेषताएं विविधता प्रमुख है जो खेती करने में अपना विशेष योगदान देती हैं तथा खेती में अपना प्रभाव डालते हैं IPM  टेक्नोलॉजी को हमें इस प्रकार से विकसित करना चाहिए जिनसे इन  विविधताओं के बावजूद हमें खेती का लाभ समाज व प्रकृति को प्रदान कर सकें l इस उद्देश्य को लेकर हमें आईपीएम के विधियों में परिवर्तन लाना चाहिए और उन्हें परिवर्तित करके प्रयोग करना चाहिए l
        21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का खत्म होना ,ताजे पानी और भोजन के घटते स्रोत और तूफान से गर्म हवा चलने तक के चरम मौसम की घटनाएं मानवता के लिए बड़ी चुनौती के रूप में भरकर आ रही है l इन जोखिम ओ  को ध्यान में रखकर खेती और आईपीएम की पद्धतियों में सुधार करने की परम आवश्यकता है