Tuesday, February 11, 2020

कैसी हो खेती करने व आईपीएम क्रियान्वयन करने की विचारधारा

 आजकल के सामाजिक,-आर्थिक, और प्राकृतिक परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति और समाज हितेषी ,लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,आय बढ़ाने वाली एवं  समाज  प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने  वाली होनी चाहिए l  आज की खेती एवं आईपीएम को क्रियान्वयन  करने की विचारधारा मैं आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक ,पर्यावरण विकास को भी शामिल करने की आवश्यकता है l यह देखा गया है कि आज का जीडीपी बेस्ट विकास प्रकृति व समाज दोनों के लिए नुकसानदायक सिद्ध होने लगा है प्रकृति और समाज एक दूसरे पर आधारित हैं lएक का अस्तित्व दूसरे के बिना नहीं कायम रह सकता अतः हमें विकास को समाज के अनुकूल होने के साथ-साथ प्रकृति के अनुकूल भी बनाना पड़ेगा और विकास को विनाशकारी बनने से रोकना पड़ेगा l  आईपीएम प्रकृति ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता एवं समाज को नुकसान पहुंचाए बिना खेती करने का एक तरीका है या विचारधारा है इसमें समाज ,प्रकृति और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालने वाली फसल उत्पादन व फसल सुरक्षा की क्रियाओं को बढ़ावा नहीं देना पड़ता है l  आज का विकास     प्रतिस्पर्धा   पर आधारित  विचारधारा है जिससे रासायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का खेती में अंधाधुंध प्रयोग होने लगा है l जिसकी वजह से पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,आर्थिक एवं सामाजिक, स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणाम सामने आते हैं l मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए प्रकृति तथा उसके संसाधनों जैसे जल ,जमीन, जंगल ,मिट्टी आदि सभी को दोहन कर रहा है और उसका उनका दुरुपयोग कर रहा है जिससे प्रकृति में संबंधी एवं आर्थिक व सामाजिक दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं lआजकल ऑक्सीजन एवं पानी जो दोनों जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है की कमी होने लगी है एवं इनको बोतलों में बंद करके बेचा जाने लगा हैl हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि 1 दिन ऐसा आएगा जब की केंचुए जैसे जियो को हमें खरीदना पड़ेगा इन दुष्परिणामों को देखते हुए आजकल जीडीपी पर आधारित विकास  के साथ-साथ पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति व समाज पर आधारित विकास को बढ़ावा देना पड़ेगा तथा जीडीपी के साथ-साथ ग्रास एनवायरनमेंट प्रोडक्ट  जीईपी  की ओर भी ध्यान देना पड़ेगा जिससे यह पता चल सके की हमारे पर्यावरण में आबोहवा किस ओर जा रही है इसके लिए वैज्ञानिकों को किसान बनना पड़ेगा जिससे  और किसान को वैज्ञानिक बनकर खेती करना पड़ेगा जिससे विज्ञान और वास्तविकता के बीच में पाया जाने वाला अंतर समाप्त हो सके lहमें एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना पड़ेगा और समाज व प्रकाश के हित को सर्वोपरि मानना पड़ेगा तभी प्रकृति पर्यावरण  समाज को बचाते हुए विकास तथा सुरक्षित फसल उत्पादन किया जा सकता है l
          मानवीय गतिविधियों एवं उनसे होने वाले विकास या विनाश की वजह से पर्यावरण व प्रकृति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है जिसकी वजह से नदियों के सूखने, धरती की उर्वरा शक्ति में कमी तथा उसको सारी भूमि में बदलाव ग्लोबल वार्मिंग ,जलवायु परिवर्तन जैसे संकट व उनके दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैंl  प्रकृति संसाधन जैसे पानी यदि बोतलों में बंद ना होकर नदियों तालाबों एवं पोखरा में होता तो प्रकृति चक्र पर विपरीत प्रभाव ना पड़ता ऐसी स्थिति में सरकार को प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण की और प्रभावी कदम उठाना चाहिए तथा खेती व अन्य योजनाओं में उन गतिविधियों को नहीं अपनाना चाहिए जिनका सामुदायिक स्वास्थ्य एवं प्रकृति पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो l जीवन को पृथ्वी पर स्थायित्व प्रदान करने के लिए स्वस्थ समाज बनाने ,के लिए शुद्ध एवं स्वच्छ पर्यावरण बनाने हेतु खेती में IPM को बढ़ावा देना आवश्यक है lइसके लिए खेतों में रसायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों को सिर्फ किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने की स्थिति में ही प्रयोग किया जाना चाहिए और इनका उपयोग सुरक्षित  एवं न्यायोचित ढंग से किया जाना चाहिए lआईपीm के क्रियान्वयन हेतु बिना रसायन वाली विधियां को बढ़ावा देना चाहिए इसी सिद्धांत पर आधारित फसल सुरक्षा एवं फसल उत्पादन की विचारधारा के अनुसार खेती में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा करनी चाहिए l
       सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक ,पर्यावरण सुरक्षा एवं जीवन को स्थायित्व प्रदान करने की मांगों के अनुसार खेती करने की अवधारणा में समय अनुसार अनेक परिवर्तन किए गए जैसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को खाद्यान्न मेंआत्मनिर्भर करने के लिए ग्रो मोर फूड कार्यक्रम, हरित क्रांति कार्यक्रम बाद में फसल सुरक्षा के हेतु इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट, विधियों को अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करके कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोककर न्यायोचित प्रयोग करने के उद्देश्य तथा जैविक विधियों को बढ़ावा देकर हानिकारक जीवो के प्रबंधन के लिए प्रयास किए गए lपरंतु यह देखा गया की आईपीएम की विधियां अलग अलग तरीके से इस्तेमाल करने पर उतनी लाभकारी सिद्ध नहीं हुई जितनी की एकीकृत रूप से  क्या समेकित रूप से करने से हुई l इसके बाद IPM demonstration क्या आईपीएम विधियों को पैकेज के रूप में  इस्तेमाल करने से  आईपीएम विचारधारा  को आगे बढ़ाया गया  जिससे  फसल उत्पादन  मैं वृद्धि के साथ साथ  कीटनाशकों के उपयोग    में कमी  आई  इसके बाद प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट    ,जलवायु आधारित स्मार्ट फार्मिंग ,,ऑर्गेनिक फार्मिंग, जीरो बजट  फार्मिंग, इंटीग्रेटेड फार्मिंग ,तथा प्रेसीजन फार्मिंग जैसे खेती की विभिन्न तकनीकों को विकसित किया गया  तथा मॉडल विकसित किए गए जिनका अलग-अलग    उद्देश्य थे.  l हरित क्रांति कार्यक्रम से देश खाद्यान्न के लिए आत्मनिर्भर तो बन गया परंतु इस कार्यक्रम में प्रयोग किए गए  रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग प्रोफिलैक्टिक यूज के रूप में किया गया जिससे फसल उत्पादन में इन कीटनाशकों तथा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया जिससे बहुत सारी स्वास्थ्य व पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हुई तथा कृषि लागत में भी बढ़ोतरी देखी गई l इन सभी चीजों  से निपटने के लिए अन्य कार्यक्रम जो ऊपर बताए गए हैं विकसित किए गए जिसका उद्देश्य पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य,  आमदनी सुरक्षा की सुरक्षा के साथ-साथ किसानों की आय को बढ़ाना सर्वोपरि रखा गया lइंटीग्रेटेड फार्मिंग का मुख्य उद्देश्य खेती के साथ-साथ खेती से जुड़े हुए या जुड़ी हुई व्यापारिक गतिविधियां या उद्योगों को बढ़ावा देना शामिल है जिससे किसानों की आय को बढ़ाया जा सके तथा उनके जीवन स्तर को सुधार जीवन स्तर में सुधार लाया जा सके l उपरोक्त परिस्थितियों तथा कारणों से खेती करने की था फसल सुरक्षा की विचारधाराओं में उपयुक्त परिवर्तन लाना आज की प्रमुख आवश्यकता है lजिससे प्रकृति को व जीवन को दोनों को स्थायित्व प्रदान किया जा सके l

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