Wednesday, February 12, 2020

आध्यात्मिक तौर पर आई पीएम की विवेचना

आध्यात्मिक तौर से जीवन की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है l जीवन का संचालन पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जैविक व अजैविक कारकों के द्वारा  किया जाता है l
       संत तुलसीदास जी ने कहा है
   क्षिति, जल, पावक, गगन ,समीरा, पंचतत्व मिल बना शरीरा l अर्थात शरीर या जीवन की रचना क्षति मतलब पृथ्वी या मिट्टी या जमीन ,जल पानी , पावक मतलब अग्नि या मेटाबोलिक एक्टिविटीज ,गगन आकाश या सोलर सिस्टम ,समीर यानी वायु जिसमें बहुत सारे गैस  आती हैं lयह पांच तत्व प्रकृति के ही संसाधन है जिन्हें सम्मिलित रूप से भगवान भी कहा जाता है lभगवान शब्द की विवेचना में भी इन सभी प्राकृतिक संसाधनों का जिक्र होता है lभा से भू. जानी, पृथ्वी, गां से गगन यानी आकाश, व से वायु यानी हवा, ना से  नीर यानी पानी अर्थात इन्हीं पांचों तत्वों को ही सामूहिक रूप से भगवान कहते हैं l परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचों तत्व प्रदूषित हो चुके हैं  दिमाग की    गिजा हो या गिजाए जिस्मानी यहां हर गिजा में मिलावट मिलती है l इन पांचों तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है l हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम प्रकृति व पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं जिनका प्रभाव हमारे जीवन संचालन एवं पृथ्वी पर जीवन के स्थायित्व प्रदान करने पर पड़ता है l जीवन के संचालन हेतु एवं पृथ्वी पर जीवन को स्थायित्व प्रदान करने हेतु हमें पर्यावरण प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण करना अति आवश्यक है lअतः पृथ्वी पर जीवन के संचालन एवं स्थायित्व प्रदान करने वाले सभी पांचों तत्वों को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए तथा इन को बर्बाद नहीं होना देना चाहिए lआईपीएम वनस्पति संरक्षण का वह तरीका है जो Nashiजीवों के प्रबंधन के साथ साथ प्रकृति व उसके संसाधनों ,पर्यावरण व उसके पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण भी करता है जिससे समाज सामुदायिक स्वास्थ्य एवं समाज सुरक्षित रहता है l
        मनुष्य को धार्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रकृति का सिरमौर यानी टॉप ऑफ द क्रिएचर कहते हैं जिसमें परमात्मा ने सही व गलत पहचान करने की ताकत व विवेक दिया है परंतु मनुष्य यह शक्ति सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करता है तथा दूसरों के लाभ के लिए नहीं जिसमें प्रकृति समाज ,परिस्थितिक तंत्र ,पर्यावरण ,जैव विविधता आदि भी शामिल है l मनुष्य प्रकृति में अपना अस्तित्व हर हालत में बनाए रखना चाहता है lइन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी न खत्म होने वाली इच्छाएं है जो अनंत हैं इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा जीवन बनाने व उसको स्थायित्व प्रदान करने वाले तत्वों को प्रदूषित कर रहा है l उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित करने में खेती के काम  प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों का विशेष स्थान है जिनका खेती में अंधाधुंध तरीके से प्रयोग होना भी  हैl  जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं पैदा होती हैl अतः पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र ,प्रकृति व उसके संसाधनों के संरक्षण हेतु आईपीएम  अपनाना चाहिए जिससे पृथ्वी पर जीवन कायम रह सके l आईपीएम को आर्थिक सामाजिक, पारिस्थितिक ,पर्यावरण आदि दृष्टिकोण या परिपेक्ष में सोचकर अपनाना चाहिए और कम से कम खर्चे, कम से कम कीटनाशकों व उर्वरकों का प्रयोग करके हानिकारक  जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए भरपूर फसल फसल उत्पादन करना चाहिए lयही आईपीएम का प्रमुख उद्देश्य है l

No comments:

Post a Comment