Friday, September 25, 2020

कृषि विकास एवं कृषक संपन्नता के बारे में कुछ विचार

दोस्तों किसी भी देश के विकास में वैज्ञानिकों इंजीनियरों, राजनीतिज्ञ एवं प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा कृष को व कृषि श्रमिकों का विशेष योगदान होता है  l कृष को या  कृषि श्रमिकों के योगदान के बगैर किसी भी देश का विकास संभव नहीं है l कृषक हमारे अन्नदाता है जो हमारे जीवन को चलाने के लिए हमें भोजन   प्र दान करते हैं l इसी प्रकार से कृषि श्रमिकों एवं अन्य श्रमिकों का देश के इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण एवं विकास हेतु महत्वपूर्ण योगदान होता है जिस के बगैर इंफ्रास्ट्रक्चर विकास संभव नहीं है l परंतु हमारे ही देश में नहीं बल्कि विश्व के अधिकतर देशों में कृष को एवं कृषि श्रम को तथा अन्य श्रमिकों को उपेक्षित किया जाता रहा है l उनके द्वारा पैदा की गई कृषि उत्पादकों का उचित मूल्य को निर्धारण करने  का अधिकार उन्हें नहीं दिया गया है l जबकि किसी उद्योगपति को उनके द्वारा निर्माण की गई की जाने वाली सभी औद्योगिक चीजों के मूल्य निर्धारण का अधिकार  उन्हें ही दिया गया है l यह चीज हमारे हिसाब से ठीक नहीं है l  कृषि के क्षेत्र में समय-समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा अनेक मॉड्यूल विकसित किए गए जिनका उपयोग करके कृष को  ने कृषि उत्पादन विशेष तौर से अनाज के उत्पादन में गुणात्मक वृद्धि प्राप्त कर ली है परंतु इसके बावजूद भी उनकी संपन्नता का विकास नहीं हुआ है क्योंकि उत्पादन वृद्धि के अनुपात में उनकी आय वृद्धि नहीं हुई है जबकि सरकारी कर्मचारियों की आय वृद्धि कई गुना हो चुकी है  l जीवन चलाने के  लिए सभी वर्ग के लोगों के लिए एक ही प्रकार की आवश्यकताएं जरूरी होती है तभी सभी वर्गों का विकास एवं संपन्नता हो सकेगी l  कृष को के द्वारा उत्पादन की गई कृषि उत्पादों के मूल्यों वृद्धि  सरकारी कर्मचारियों के  वेतन में हुई वृद्धि  के अनुपात में कुछ भी नहीं हुई है l इसका कारण  कृषक हितेषी नीतियों कl ना बनाना तथा कृषकों एवं कृषि श्रम को की उपेक्षा करना ही है l हरित क्रांति तथा धवल क्रांति जैसी  उपलब्धियों के बावजूद भी कृषकों की आय में वृद्धि एवं उनकी संपन्नता नहीं हो पाई है इसके लिए आवश्यक है की कृषक हितेषी नीतियां बनाई  जाएं एवं नीति बनाते समय उन्हें उपेक्षित ना किया जाए l अधिक उत्पादन जहां एक ओर कृषि निर्यात आदि को बढ़ावा देने में सक्षम हुआ है वहीं दूसरी तरफ के एक समस्या भी बन गया है जिसकी वजह इन उत्पादों के रखरखाव के लिए तथा इनके प्रसंस्करण आदि के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर या आवश्यक मूलभूत ढांचा का ना बनना है कृषि क्षेत्र अब आवश्यकता से अधिक उत्पादन कर रहा है वर्ष 2019-20 मैं खाद्यान्नों का29.50 करोड़ टर्न रिकॉर्ड उत्पादन हुआ l 18.50 करोड़ तन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व के प्रथम स्थान पर है बागवानी फल सब्जियों का उत्पादन भी32 करोड़ टर्न वार्षिक हो रहा है l 2018-19 मैं332 डॉक्टर चीनी उत्पादन कर हम विश्व में प्रथम स्थान पर रहे l सिर्फ  तिलहन ओ एवं दlलों को छोड़कर सभी खाद्य पदार्थों के उत्पादन आवश्यकता से अधिक रहा है l खाद्य भंडारण की सुविधा एवं प्रसंस्करण में आधारभूत ढांचे के अभाव के कारण हर साल 16% फल और सब्जियां 10% खाद्यान्न डालें एवं तिलहन खराब हो जाते हैं l उचित भंडारण क्षमता ना होने के कारण किसान  aune पौने दामों में अपने कृषि उपज को बेचने में मजबूर हो जाते हैंl महंगाई की वृद्धि के अनुपात में कृषि उत्पादन के विक्रय मूल्य कृष को को ना मिलने की वजह से  उनकी आय वृद्धि नहीं हो पाती है  इसी वजह से  इनकी आर्थिक संपन्नता ही नहीं बढ़ पाती है l 
         आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध कराए जाने वाले संसाधनों सुविधाओं वं तरीका को  विकास कहते हैं आवश्यकताएं अनंत होती है जो कभी पूरी नहीं की जा सकती एक आवश्यकता पूरी होती है तो दूसरी उत्पन्न हो जाती है अतः विकास एक लगातार प्रोसेस है l
      ताश का दूसरा अर्थ ही महंगाई होता है विकास का दूसरा अर्थ ही महंगाई होता है जहां जितना विकास होगा उतनी ही महंगाई होगी क्योंकि विकास का अर्थ सुविधा प्रदान करना होता है और सुविधा है बनाने के लिए हमें अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है जिससे महंगाई बढ़ती है परंतु विकास करते समय यह ध्यान रखा जाए कि विकास को विनाशकारी ना होने दिया जाए इसी को अच्छा विकास कहा जा सकता है l
       विकास में महंगाई अवश्य होती है और महंगाई होने पर आए वृद्धि का कोई महत्व नहीं होता है आए चाहे दोगुनी हो जाए या तीन गुनी हो जाए परंतु जब तक महंगाई पर लगाम नहीं लगाई जाती तब तक उस हाय वृद्धि का कोई महत्व नहीं होता है और उससे आर्थिक संपन्नता नहीं हो सकती आर्थिक संपन्नता लाने के लिए महंगाई को सीमित रखते हुए विकास करना आवश्यक है l
    देश को दो प्रकार के लोग चलाते हैं एक नेता और दूसरे ग्रुप रेट्स नेता किसी ना किसी मत या विचारधारा या पार्टी का होता है जो अपना एजेंडा लागू कर आते हैं जो लेता जितनी चतुराई से अपनी विचारधारा को लागू कर आता है उतना ही सक्षम माना जाता है अपनी विचारधारा को लागू कराते हुए विकास को आगे बढ़ाना ही नेता की काबिलियत मानी जाती है नीतियां भी चतुराई के साथ बनाई जाती है या लागू की जाती है कि वह आसानी से जनता के समझ में ना आ सके इसी को राजनीति कहते हैं l संतुलित विकास के लिए समाज की सभी वर्गों का घटकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार की व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए संसाधनों को बनाना  तथा उन संसाधनों का वैज्ञानिक तरीकों से तथा सही तरीके से सही समय पर उपयोग करना  विकास को बढ़ाने में सहायक होता है प्रकृति व समाज तथा अन्य सभी प्रकार की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए विकास करना ही समाज को आगे ले जा सकता है इसके लिए समाज की तथा प्रकृति की जरूरतों को समझना भी आवश्यक होता है  l और उसी हिसाब से विकास करना आवश्यक होता है तभी  देश के लोगों की तथा समाज की संपन्नता सुनिश्चित की जा सकती है l
            एकीकृत नासि जीव प्रबंधन  अथवा IPM   समाज व प्रकृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जो समाज व प्रकृति के  अनुरूप चलकर, इनकी आवश्यकता को ध्यान में रख कर तथा उनके अनुरूप संसाधनों का विकास करके बताए गए सही वैज्ञानिक तरीकों से सही समय पर  अपनाकर अपनाई जाती जा सकती है  और और प्रकृति में संतुलन लौटते हुए समाज में संपन्नता प्राप्त की जा सकती है l
          

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