Monday, June 28, 2021

Release of biocontrol agents जैविक नियंत्रण कारकोकी निर मुक्ति

प्रयोगशाला में उत्पादित जैविक नियंत्रण   कारकों को विभिन्न हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु फसलों के खेतों में छोड़ा जाता है l विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार को की विभिन्न अवस्थाओं को हानिकारक जीवो की विभिन्न प्रकार के परजीवी ओं के लिए चाहे जाने वाली अवस्थाओं की खेतों में अधिक मात्रा में उपस्थिति के दौरान विभिन्न समय के हिसाब से छोड़ी जाती हैं तब इन्हें इन्ना को लेटिव रिलीज Innoculative releases कहते हैं इसमें विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार्य को की संख्या अथवा dosages पूर्व अनुभव के हिसाब से फिक्स करके छोड़ी जाती है और वंचित रिजल्ट प्राप्त किए जाते हैं l जिन हानिकारक जीवो की जीवन चक्र broods स्पष्ट नहीं होते हैं उन हानिकारक जीवो की जीवन की लगभग सभी stages  संपूर्ण फसल अवधि के दौरान उपस्थित होने की वजह से जैविक नियंत्रण कार्य को कि अधिक से अधिक संख्या अधिक से अधिक बार खेतों में छोड़ी जाती है और वांछित नतीजे प्राप्त किए जाते हैं इस प्रकार से छोड़े जाने वाले जैविक नियंत्रण कार्य को के रिलीज के तरीके को inundative releases कहते हैं l विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार को की विभिन्न stages को अलग अलग तरीके से छोड़ते हैं l खेतों में छोड़ने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की जैविक नियंत्रण कारकों को खेतों में छोड़ने के बाद उनको उचित माइक्रोक्लाइमेट प्राप्त हो सके जिससे वे नए फसल पर्यावरण में कॉलोनाइज , तथा प्रतिस्थापित हो सके और भविष्य में डिजायर्ड या वांछत हानिकारक जीवो के नियंत्रण में अपना योगदान दे सकेंl जैविक नियंत्रण कार्य को को छोड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उस समय बरसात और अत्यधिक तापक्रम तथा बहुत तेज हवा या आंधी ना चलती हो l कभी-कभी इसके लिए जैव नियंत्रण कारकों को छोड़ते समय विभिन्न प्रकार की तरकीबें इस्तेमाल करते हैं l जैसे ट्राई को ग्रामा के कार्डों को कई बार गत्ते के अथवा प्लास्टिक के जालीदार cages मैं छोड़ते हैं l ज्यादातर ट्राई को ग्रामा को छोड़ते समय ट्राइकों कार्ड को गन्ने जैसी फसलों में leafsheath मैं फसा देते हैं अथवा लीफ लैमिना में स्टेपल की सहायता से स्टेपल कर देते हैं अथवा कपास जैसी फसलों में धागे की सहायता से टहनियों में टांग भी देते हैं l जैविक नियंत्रण कार्य को की रिलीज ज्यादातर खेतों की bunds  से दूर खेत के मध्य की तरफ छोड़ते हैं इसके लिए सुबह अथवा शाम का समय उपयुक्त समझा जाता है l
जैव नियंत्रण कार्य को के adults को इसी प्रकार से खेत के मध्य भाग में छोड़ देते हैं l
गन्ने के Pyrilla के नियंत्रण हेतु उसका nymphal and adult parasitoid Epiricania melanoleuca के कोकून तथा अंडे के समूहों को गन्ने की पत्तियों पर स्टैटलर की सहायता से स्टेपल करते देते हैं l जलकुंभी के नियंत्रण हेतु Neochetina bruchi and Neochetina eichhorniae नामक Weevils के एडल्ट को तथा जलकुंभी के पौधों को इन वीविल्स के द्वारा  innoculate करा के जलकुंभी द्वारा ग्रसित पानी के तालाबों नदियों आदि में छोड़ दिया जाता है l प्रकार से पार्थी नियम के नियंत्रण हेतु उनके लिए जायेगो ग्रामा नाम के बीटल्स को  पार्थी नियम द्वारा ग्रसित क्षेत्र में पार्थ नियम के पौधों के ऊपर छोड़ा जाता है l
अनुभव के आधार पर यह पाया गया है कि 2000 से 3000 कोकून तथा 400000 से 500000 अंडे जिसमें प्रत्येक अंड समूह में औसतन 400 अंडे होते हैं प्रति हेक्टर रिलीज करने से शुगर केन Pyrilla के नियंत्रण के वांछित परिणाम 15 दिनों के अंदर मिलते हैं अगर खेतों में पर्याप्त आद्रता हो l
इसी प्रकार से Trichogramma के द्वारा parasitized Corcyra के 20000 अंडे प्रति एकड़ प्रति सप्ताह संपूर्ण फसल अवधि के दौरान innundatively गन्ने , कपास, चना ,धान ,सब्जियों आदि के फसलों में रिलीज करने से सभी प्रकार के लेपिडॉप्टरन पेस्ट का वंचित नियंत्रण प्राप्त होता है l इसी प्रकार सेBraconids parasitoids के भी 20000 Adults per Acr per week के हिसाब से विभिन्न फसलों में छोड़ने से इनके विभिन्न हानिकारक जिओ के नियंत्रण मैं वांछित योगदान प्राप्त होता है l
  जैविक नियंत्रण कारकों की निर मुक्ति खेतों के bonds से दूर अंदर की तरफ छोड़ना चाहिए जिससे उन्हें उचित माइक्रोक्लाइमेट प्राप्त हो सके l.Releases must be timed with  availability of host stages in the crop fields  to ensure initial binocular of biocontrol agents in the fields .

Friday, June 25, 2021

जैविक नियंत्रण कारकों काभंडारण एवं रखरखाव

जैविक नियंत्रण कारकों का भंडारण उनके जैविक अवस्था में अथवा जीवित अवस्था में होना चाहिए उनकी जीवित अवस्था कि किसी विशेष स्टेज में भंडारण की जाती है और उनको किसी निश्चित समय तक थी भंडारण किया जा सकता है l के भंडारण के लिए एक एक निश्चित तापक्रम होना चाहिए l विभिन्न प्रकार के आंड परजीवी ओ का भंडारण उनके होस्ट के परजीवी के द्वारा ग्रसित अथवा parasitized eggs के रूप में किया जाता है जिनके अंदर परजीवी ओ की एक विशेष अवस्था एक विद्व मान होती है l विभिन्न प्रकार के आंड परजीवी ओं को विभिन्न समय अवधि तक रिस्टोर किया जा सकता है l इसी प्रकार से लारवाल पैरासाइट को को कौन अवस्था में फ्रिज में भंडारण करते हैं l कुछ larval parasitoid  को एडल्ट स्टेज में रखते हैं इसी प्रकार से कुछ nymphs  एंड एडल्टparasitoids को cocoons तथा एक मैसेज के रूप में भंडारा करते हैं l

Thursday, June 24, 2021

Transport of biocontrol agents from one place to another place जैव नियंत्रण कारकों कोएक स्थान से दूसरे स्थान तकपहुंचाना

जैविक नियंत्रण कारकों को प्रयोगशाला से खेत तक, एक प्रयोगशाला से दूसरी प्रयोगशाला तक अथवा एक खेत से दूसरे खेत तक ले जाना एक बहुत ही टेक्निकल काम है जिसको विशेष महत्व नहीं दिया जाता है l इसकी वजह से जैव नियंत्रण कारक जीवित अवस्था में कई बार प्रयोगशाला से खेत तक अथवा एक खेत से दूसरे खेत तक ,एक शहर से दूसरे शहर तक सुरक्षित तथा जीवित नहीं पहुंच पाते हैं जिसकी वजह से जैविक नियंत्रण कारकों का सही नतीजा या फल नहीं मिल पाता हैl जैविक नियंत्रण कार्य को को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए उनकी सही पैकेजिंग तथा पैकेजिंग कंटेनर में उचित नमी उन को नष्ट होने से बचाने के लिए उचित प्रबंध होना आवश्यक है नमी के लिए कंटेनर में भीगी हुई Mossअथवा moist sponge , अथवा बर्फ का उचित प्रबंध होना चाहिए l जैविक नियंत्रण कारकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिए अति शीघ्र अथवा अति तीव्र तरीके का पालन करना चाहिए जिससे समय रहते हुए या समय से उनको गंतव्य स्थान पर अर्थात रिलीज करने वाले स्थान अथवा क्षेत्र तक समय से जीवित अवस्था में पहुंचाया जा सके lकई बार आइस बॉक्स इसका भी प्रयोग करना पड़ता है जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के दौरान तापक्रम ज्यादा ना हो पाय l

Mass production of bio control agentsजैव नियंत्रण कारकों का बहुतायत संख्या में प्रयोगशाला में उत्पादन

जैव नियंत्रण कारकों के प्रकार :-
दोस्तों जैव नियंत्रण कारक विभिन्न प्रकार के होते है जिनमें से कुछ निम्न वत है:-
1. स्पाइडर Spiders : जाला बनाने वाली एवं बिना जाला बनाने वाली मकड़िया
2. कीट परभक्षी Insect predators
3.Insect Parasitoids
4.Insect pathogens .
5.Nimatodes- Neoaplectana carpocapsae (DD136  Nematodes).
6.Antagonestic fungi.
7.Green Muscarin fungi.Metarhyzium anisopleae
8.Beauveria bassiana.
9.Cryptolaemus montronuzieri  a predator on mealy bug.
10.Scymnus coccivora .
जैविक नियंत्रण कारकों का प्रयोगशाला में बहुतायत मात्रा में उत्पादन:--
जैव नियंत्रण कार्य को का प्रयोगशाला में बहुतायत मात्रा में उत्पादन हेतु दो प्रकार के कल्चर मेंटेन किए जाते हैं पहला होस्ट कल्चर और दूसरे जैव नियंत्रण कारकों के कल्चर l
होस्ट कल्चर को या तो नेचुरल डाइट पर उत्पादन किया जाता है या फिर आर्टिफिशियल डाइट पर उत्पादन किया जा सकता है अधिकांशत कोर्सरा सेफालोनिका एक प्रकार का स्टोर ग्रेन pest  है जिसके ऊपर अधिकांशत पैरासाइट एवं प्रेडेटर्स के कल्चर मेंटेन किए जाते हैं कोर्सरा को प्रयोगशाला में टूटी हुई ज्वार अथवा बाजरा तथा मक्का आदि पर वेयर करते हैं और कोर्सरा के अंडों तथा लारवा के ऊपर अंड परजीवी एवं लारवालparasitoids उत्पादन किया जाता है l. तथा दूसरे प्रकार के predators का उत्पादन उनके ओरिजिनल पेस्ट पर किया जाता है जिनको प्रयोगशाला में विभिन्न प्रकार के अल्टरनेट होस्ट पर रिय र किया जाता है lHeliothis armigera and Soodoptera litura आदि होस्ट कीटों का उत्पादन आर्टिफिशियल डाइट पर किया जाता है l विभिन्न प्रकार केfungi का उत्पादन आर्टिफिशियल मीडिया पर किया जाता हैl

Types of hosts cultures  maintained:--1.Corcyra cephalonica 
 2.Helicoverpa armigera
  3.Spodoptera litura 
  4.PTM (Ptato tuber Moth)
5.San Jose scale  
6.Sugae cane scale insects
7.Chilo partillus 
8.Chilo infususcatellus
8.Gurdaspur borer of Sugarcane 
9.Achroea grisella
10  Mealy bug 
11.Waterhyacinth 
12.Parthenium Weed 
 13.Galleria mellonella.
Cultures of Egg parasitiods:---
1.Trichogramma chilonis 
2.T.perkinsi
 3.T.exiguum
4.T.japonicum
5 T.minutum 
6.T. brassiliensis
7 T.cacoeciae pallidum
8.Telenomus remus
9.T.embryophagum
10 .Trichogramma  pretiosum 
Larval Parasitoids:----
1.Bracon hebetor
2 B.brevicornis 
3.B.kirkpatriki
4.Paratheresia claripalpis 
5.Eucelatoria bryani
Egg larval parasitoid
1 Chelonus  Blackburni
2.C. kelleiae
Nematodes :-
1.DD 136 Neoaplectana carpocapsae
Phytophagous insects 
1.Neochetina bruchi
2 N.eichhorniae
Insect predators 
1.Chrysopa scelestis 
2.Coccinella sp
3.Lindorus lophanthae 
4.Pharoschymnus horni
5 Stichlotis Madagasca
6.Cryptolemus montezeri 
7 .Coccinella septumpunctata.
8.Chilocorus nigritus 
Fungi
1.Trichoderma viridae 
2.T.harzianum
3.Beauveria bassiana





Sunday, June 20, 2021

जैविक नियंत्रण Biological Control-Pragmatic Approach.व्यवहारिक दृष्टिकोण

नासि जीवो का जीवों से नियंत्रण


 फसलों के नासिजीवो को नियंत्रित करने के लिए दूसरे जीवो का प्रयोग में लाना जैविक नियंत्रण कहलाता है l जैव नियंत्रण एकीकृत नासि जीव प्रबंधन का एक महत्व पूर्ण अंग है l जैविक नियंत्रण एकीकृत नासिजीव प्रबंधन रणनीति का एक घटक है lजब नाशि Jio फसल पारिस्थितिक तंत्र ओं में पाए जाने वाले नासिजीवो के प्राकृतिक शत्रुओं जिन्हें जैव नियंत्रण एजेंट कहते हैं प्राकृतिक तौर पर नासिजीवो की संख्या को फसल पर्यावरण में नियंत्रित रखते हैं तो इसविधि को प्राकृतिक जैव नियंत्रण कहते हैंl जैविक नियंत्रण हेतु प्रयोग की जाने वाली वह गतिविधियां जिनमें जैविक नियंत्रण  कार को को प्रयोगशाला में बहुतायत में उत्पादन करके फसल पर्यावरण में किसी विशेष नाशिजीव के नियंत्रण हेतु  निर मुक्ति मुक्ति की जाती है अथवा छोड़ा जाता है और बाद में उन जैव नियंत्रण कार्य को की क्रियाशीलता का रिकवरी  ,Colonization   और Establishment अथवा स्थापन का अध्ययन करके अथवा ट्राइल करके पता लगाया जाता है तब इस संपूर्ण विधि को क्लासिकल बायोलॉजिकल कंट्रोल कहते हैं l
 जैविक नियंत्रण हेतु काम में आने वाले अथवा प्रयोग किए जाने वाले जैविक नियंत्रण  कारक या तो अपने ही देश में पाए जाते हैं जिन्हें इंडीजीनस जैव नियंत्रण कारक कहते जो जैव नियंत्रण कारक अपने देश में नहीं पाए जाते हैं उनको इंपोर्ट करके उनका प्रयोग यहां पर किया जाता है इनको एग्जॉटिक    जैविक नियंत्रण कारक कहते हैं l जैव नियंत्रण कार को को बहुतायत मात्रा में पाए जाने वाले क्षेत्र से कम मात्रा में पाए जाने वाले क्षेत्र में पहुंचाने को और उनकी उस क्षेत्र मेंजैविक नियंत्रण  कारकों की संख्या को बढ़ाने को augmentation  कहते हैं l
जैविक नियंत्रण कारकों का प्रयोगशाला में बहुतायत संख्या में उत्पादन करने के लिए प्रयोगशाला में मेजबान तथा जैव नियंत्रण कारकों दोनों के कल्चर maintain  किए जाते हैं l दोनों प्रकार के कल चरों को प्रयोगशाला में मेंटेन करने के लिए  प्रयोगशाला  का टेंपरेचर 28 डिग्री सेंटीग्रेड प्लस माइनस एक होना चाहिएl तथा आद्रता 75%+- 5% होनी चाहिए l
  खेती की विभिन्न गतिविधियों में एकीकृत नासि जीव  प्रबंधन वनस्पति संरक्षण की रणनीति बनाने वाली एक गतिविधि है जिसमें जैविक नियंत्रण भी एक प्रमुख अंग है आत: अतः जैविक नियंत्रण भी जैविक खेती की एक प्रमुख गतिविधि है l खेती मैं जैविक नियंत्रण जैसी अन्य जैविक गतिविधियों जैसे फसल पर्यावरण में लाभदायक  जीवो व सूक्ष्म जीवों का संरक्षण करना, रसायनिक इनपुट के स्थान पर जैविक इनपुट को बढ़ावा देना जैविक खेती की जैविक खेती की प्रमुख गतिविधियां हैं 
फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले विभिन्न जैव नियंत्रण कार को का फसल पर्यावरण में संरक्षण करना जैविक नियंत्रण की एक प्रमुख गतिविधि है। इसके लिए फसलों में रसायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग को बंद करना पड़ता है इसके साथ साथ अंतर फसलें बॉर्डर क्रॉप्स आकर्षण करने वाली फसलें अथवा ट्रैप्स क्रॉप्स खेतों में फसलों के अवशेषों का आच्छादन इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देकर फसलों में पाए जाने वाले इंडीजीनस जैव नियंत्रण कारकों का संरक्षण किया जा सकता है । भाई आया देखा गया है कि विशेष प्रकार का जैव नियंत्रण कारक किसी विशेष प्रकार के हानिकारक कीटों अथवा नाशिक जीवो के लिए ही उपयोगी सिद्ध होता है अर्थात किसी विशेष नासिक जीव का ही नियंत्रण कर सकता है। अक्सर यह देखा गया है कि जैव नियंत्रण एकीकृत नासि जीव प्रबंधन की विभिन्न विधियों के साथ समेकित रूप से ही फलदायक अथवा उपयोगी सिद्ध हुआ है। आईपीएम की विधियां स्वतंत्र रूप से कार नहीं करते हैं बल्कि वे समेकित रूप से काम  करती हैं क्योंकि यह एक दूसरे के ऊपर आश्रित कोएक्जिस्टेंस होते है।

Saturday, June 19, 2021

जैविक खेतीकी विचारधारा

खेती करने का वह तरीका जिसमें किसी भी रसायन पदार्थ का प्रयोग न किया जाए तथा जिससे उत्पादित कृषि पदार्थों में  किसी भी रसायनिक पदार्थों के अवशेषों की उपस्थिति ना हो जैविक खेती  कहलाती है तथा इससे उत्पन्न कृषि उत्पादों को जैविक उत्पाद कहते हैं l
      ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व  स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों से निर्मित रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों व खरपतवार  ना सको तथा वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग ना करते हुए जीवांश युक्त खादो का प्रयोग किया जाता है तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है जैविक खेती कहलाती है l
 जैविक खेती में  Jaivik inputs   का प्रभुत्व होता है l
 जैविक खेती आज के युग की प्रमुख मांग है l जैविक खेती जहां एक तरफ समाज को सुरक्षित भोजन भोजन प्रदान करती है वहीं दूसरी तरफ प्रकृति व पारिस्थितिक तंत्र को क्रियाशील रखने में मदद करती है की जैविक खेती जहां एक तरफ जैविक इनपुट ओं का प्रयोग किया जाता है वहीं दूसरी तरफ जीवन तथा पारिस्थितिक तंत्र को स्थायित्व प्रदान किया जाता है l
 दोस्तों आध्यात्मिक   तौर से जीव की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है तथा जिनका संचालन जैविक व अजैविक कारकों के द्वारा किया जाता है l.संत तुलसीदास जी ने कहा है की
छिति ,जल, पावक,गगन समीरा 
पंच तत्व मिल बना शरीरा
    अर्थात शरीर की रचना मिट्टी Soil अथवा Earth, जमीन अथवा prithvi
 जल  Water, पावक Agni ,Fire,,Solar Energy,
गगन  Cosmic Energy
 समीरा  वायु Air ,Oxygen,Nitrogen
इन पांच तत्वों से मिलकर के बनी हुई है l  परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचों तत्व प्रदूषित हो चुके हैंl इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है l मनुष्य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर यानी टॉप ऑफ द क्रिएचर  मानता  है तथा अपना अस्तित्व इस प्रकृति में हर हालत में बनाए रखना चाहता है l इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी ना खत्म होने वाली  इच्छाएं हैं ,जो अनंत हैं l इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित कर रहा है  l उपरोक्त  तत्व प्रकृति के ही संसाधन हैं इनको मनुष्य प्रदूषित कर रहा है और नष्ट कर रहा है l जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन पांचों प्रकृति के संसाधनों तथा इनके अलावा अन्य पाए जाने वाले सभी जैविक व अजैविक कारकों जीवों व पदार्थों को एक उचित मात्रा में प्रकृति में रहना बहुत ही जरूरी है जिससे प्रकृति में संतुलन कायम रहेगा l
      उपरोक्त तत्व को प्रदूषित करने में फसल उत्पादन में बढ़ते हुए रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य ,पर्यावरण एवं इकोलॉजिकल ,सामाजिक तथा प्राकृतिक समस्याएं  उत्पन्न हो गई है  l पारंपरिक खेती प्रणाली मैं रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से प्रभावित होने के कारण  उपरोक्त दुष्परिणाम अथवा उपरोक्त प्रकार की समस्याएं पैदा करते हैं l जिससे कृषि में पैदा होने वाले फसल उत्पाद दूध ,फल ,सब्जियां ,पानी  ,मांस एवं अंडा आदि खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो चुके हैं अर्थात इनके अंदर  रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष प्रविष्ट हो चुके हैं जिससे यह खाद्य पदार्थ या कृषि उत्पाद जहरीले हो जाते हैं इसीलिए  पारंपरिक खेती को जहरीली खेती भी कहते हैं l यह कीटनाशकों के अवशेष खाद्य श्रृंखला के द्वारा मनुष्यों तथा अन्य जीवो और जानवरों के शरीर में पहुंचते हैं और तरह-तरह की बीमारियां पैदा करते हैं l इन समस्याओं के निवारण हेतु खेती में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग  को कम करना अति आवश्यक हो गया है जिसके लिए जैविक खेती, एकीकृत नासिजीव प्रबंधन पद्धति, जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती आदि पद्धतियों को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है l इन पद्धतियों के द्वारा की जाने वाली खेती का मुख्य उद्देश्य खाने योग्य सुरक्षित खाद्य पदार्थ ,व्यापार योग्य गुणवत्ता युक्त खाद्य पदार्थ  उत्पादन के साथ-साथ फसल पारिस्थितिक तंत्र जिसमें जमीन के नीचे पाया जाने वाला पारिस्थितिक तंत्र जिसमें विभिन्न प्रकार के लाभदायक बैक्टीरिया भी पाए जाते हैं जो Humus  नामक बायो केमिकल रसायन का उत्पादन करते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है का संरक्षण करना भी परम आवश्यक है l आत : जैविक खेती अथवा जीरो बजट  आधारित प्राकृतिक खेती  करते समय हमें किसी भी रसायनिक पदार्थों जैसे रसायनिक कीटनाशकों अथवा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना  चाहिए l
      भोजन तो जहर से मुक्त रहे
        हवा भी हो अमृत जैसी
        यह वस्त्र जहर से मुक्त रहें 
       जब करें थोड़ी-थोड़ी जैविक खेती
 जैविक खेती के बारे में  तथा खेती में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के इनपुट के उत्पादन इकाइयों के द्वारा जैविक खेती से संबंधित विभिन्न प्रकार के नेगेटिव विचारधाराएं पैदा  की  जाती  हैं जिससे उनके रासायनिक पदार्थों की बिक्री होती रहे l दोस्तों किसी भी विचारधारा से वांछित नतीजे तभी प्राप्त किए जा सकते हैं जब उस विचारधारा को सही तरीके से क्रियान्वयन किया जाए l जैविक खेती, IPM  पद्धति से की जाने वाली खेती, अथवा जीरो बजट पर आधारित की जाने वाली प्राकृतिक खेती मैं प्रकृति पारिस्थितिक तंत्र( भूमिगत एवं भूमि के ऊपर ), प्रकृति के संसाधन आदि का क्रियाशील रहना परम आवश्यक है l उपरोक्त सभी प्रकार की खेती की  पद्धतियां स्वास्थ्य प्रकृति पर्यावरण एवं समाज के लिए सचेत रहकर खेती की जाती हैl इसके लिए विभिन्न   छोटे बड़े कृषकों के द्वारा  प्रयोग धर्मिताExperiment righteousness खेतों में प्रदर्शन तथा ट्रायल करके सीखने की विधि द्वारा self understanding  स्वयं समझ विकसित करना चाहिए तथा बाद में उसका प्रचार एवं प्रसार करना चाहिए l
  जैविक खेती के बारे में किए जा रहे विभिन्न प्रकार के दुष्प्रचार ओं की वजह से ऐसा देखा गया है कि किसान जैविक खेती करना बाद में छोड़ देते हैं अतः इस परिस्थिति में जैविक खेती करने का प्रवाह टूट जाता है पारिस्थितिक तंत्र में हुए परिवर्तन  रसायनों के  प्रयोग से पुनः बिगड़ जाते हैंl 
 एक गाना में कहा गया है कि राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते l
 गंगा तभी मैली होती है जबकि उसके पानी का प्रवाह बंद हो जाता है l गंगा  ko mei Li होने से बचाने के लिए होने से उसका प्रवाह जारी रखना की आवश्यक है इसी प्रकार से जैविक खेती मैं लगातार खेती करने  से  फसल पारिस्थितिक तंत्र संरक्षित रहते हैं  और उपज भी बढ़ती है l
 भविष्य में आने वाला Yug  जैविक खेती अथवा प्राकृतिक खेती का Yug  hoga जिसमें ऑर्गेनिक पदार्थों की आंतरिक मांग  तथा तथा इनका निर्यात बढ़ेगा l
 यह अनुभव किया जाता है कि जब हमारे शरीर की इम्युनिटी समाप्त हो जाती है तब हम बीमार पड़ते हैंl 
इसी प्रकार से आप प्रकृति में पाए जाने वाले मिट्टी ,पानी, हवा आदि सभी प्रदूषित हो चुके हैं जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में इनकी इम्यूनिटी खत्म हो जाती है   बाद में मिट्टी में पाए जाने वाले माइक्रो Organisms  समाप्त होने लगते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है lआत:  जैविक खेती करते समय हमें मिट्टी की  इम्युनिटी को बढ़ाना   अत्यंत आवश्यक है जिसे सिर्फ जैविक इनपुट से ही बढ़ाया जा सकता है l जमीन की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए गोवर की खाद, हरी खाद तथा पौधों के अवशेषों को खेतों में आच्छादन करते  जमीन में सूक्ष्म जीवों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है l जमीन में पाए जाने वाले देसी  Earth Worms भी जमीन को पोला बनाने में सहायक होते हैं जिससे पानी जमीन में प्रवेश होता है और माइक्रोक्लाइमेट निर्मित होता है जिससे माइक्रो ऑर्गेज्म की संख्या जमीन में बढ़ती है l अर्थात जमीन की उर्वरा शक्ति अथवा  एवं इम्यूनिटी भी बढ़ती है l भोजन पदार्थों में रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अवशेषों की उपस्थिति एवं उनके दुष्प्रभावों के बारे में ग्रहणी अथवा घरेलू महिलाओं जागरूक करना आवश्यक है जिससे उनको यह पता चल सके कि वह सुबह अपने बच्चों के टिफिन में क्या खाने योग्य खाद्य पदार्थ पैक कर रहे हैं अथवा पेस्टिसाइड से युक्त दूषित खाद्य पदार्थ बच्चों को दे रहे हैं l
एक घटना में सामने आया है कि किसी चिड़ियाघर में एक हाथी बीमार हुआ क्योंकि उसको सब्जी मंडी से निकला हुआ कचरा भोजन के रूप में खिलाया गया था lजब हाथी जैसे बड़े जानवर पर रसायनों का दुष्प्रभाव पड़ सकता है तो हमारे बच्चों पर रासायनिक कीटनाशकों का दुष्प्रभाव क्यों नही पढ़ सकता l भैंस और गायों के यहां तक कि महिलाओं के दूध में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष पाए गए हैं जिनका हमारे शरीर पर दुष्परिणाम पढ़ रहे हैं  l अतः इस बारे में लोगों को जागरूक करना अति आवश्यक है l हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने बच्चों को जैविक भोजन ही खिलाएंगे l
 खेतों की मिट्टी में लगभग 16 तरह के न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो फसल के उत्पादन मैं सहायक होते हैं प्राय: यह देखा गया है कि खेतों की मिट्टी के जांच कराए बिना ही किसान भाई सिर्फ तीन प्रकार के न्यू ट्रेंस जिन्हें एनपीके कहते हैं को ज्यादा प्रयोग करते हैं बाकी micro न्यू ट्रेंस जैसे ,Cobalt ,Magneze,Zinc  आदि को neglect  उपेक्षित करते हैं l जब तक जमीन को संपूर्ण भोजन नहीं मिलेगा उस की उर्वरा शक्ति नहीं  बड़ सकती है l गोबर की खाद में 16 प्रकार के न्यू ट्रेंस होते हैं l सड़ी हुई गोबर की खाद को बोरे में बंद करके पानी लगाने वाली नाली में रख कर के खेतों में डाला जा सकता है इसमें कंद वाली फसलें जैसे प्याज  शलगम ,चुकंदर आदि का विकास अच्छा होता है l
अच्छी पैदावार के लिए जमीन को जीवित रखना बहुत ही आवश्यक है क्यों जीवित जमीन के अंदर ही जीवित पौधे पैदा होते हैं जब जमीन जीवित रहेगी तो वह living media  रूप में व्यवहार करेगी जिसमें स्वस्थ पेड़ पौधे पैदा होंगे l जमीन जीवित रखने के लिए जमीन के अंदर पाए जाने वाले  microorganisms  कोजीवित रखना अत्यंत आवश्यक है l
   खेत को प्रयोगशाला बनाओ स्वयं वैज्ञानिक बनो तभी खेती का विकास हो सकता है l



Monday, June 7, 2021

World Food Safety Day on 7th June being organized by World Health Organization since 2019.

Theme for World Food Safety Day during 2021.   Today's Safe Food  For Healthy Tomorrow. 
Safe food :----Food does not have any adverse effects on body on consumption .
Contaminated Food :-contaminated food refers to the presence of harmful chemicals and microorganisms in food which can cause illness among consumers .
Biomagnification :--Accumulation of a chemical by an organism from water and food exposure on or within its body tha results in concentration that is greater that would have resulted from water exposure only and thus greater that is expected from Eqilibrilium is called as bio magnification .
     Accumulation of toxic substances in food chain . These chemicals are transferred to different tropic levels when lower organism is eaten by other organisms.
Pesticides Residues...refers to the qualtity of pesticides that may remain on or in food after they are applied .to the food crops .
MRL (MAXIMUM  RESIDUES LIMIT ) is the highest level of pesticides residues that is legally permitted in or on food when  pesticide is applied correctly. 
FSSAI  (FOOD SEFETY ANS STANDARDS SETTING AUTHORITY.  MINISTRY OF HEALTH AND FAMILY WELFARE UNDER FOOD SAFETY AND STANDERD ACT 2006.
Programmes for  growing or providing of safe food to the citizen of INDIA.
1.National IPM programme under SMPA in India of Minstry of Agriculture and Farmers welfare of Government of India  .
* Establishment of 35 CIPMCs in different states of India..
  Trainings and demonstrations programmes  for State Extention Officrers .SLTP ,IPM FFS ,short duration trainings. 
  Awareness creation programmes for implementation of IPM in different crops through training demos ,Organizing and Participation in IPM Exihibitions ,Melas ,display of hoardings ,Distribution if publicity materials etc 
Grow Safe Food Campaign  since 2014.
Trainings of pesticides dealers  
ISSUENCE OF ADVISIRIES TO PESTICIDES DEALERS .
* Monitoring of P esticides r R esidues at  National  Level (MPRNL)    since 2006.by MoA and F W,ICAR,MINISTRY OF HEALTH AND FAMILY WELFARE.,CSIR,FERTILIZER,SAUs,MINISTRY OF COMMERCE  ETC.




Tuesday, June 1, 2021

जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती एवं IPMके बीच में तुलनात्मक विचार

 जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती तथा  IPM के बेसिक अथवा मूल सिद्धांतों जैसे कम से कम खर्चे में या 0 खर्चे में  अथवा फसल उत्पादन इनपुट पर खर्चा ना करते हुए  सामाजिक स्वास्थ्य ,पारिस्थितिक तंत्र, पर्यावरण, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधनों के साथ-साथ पंच महा तत्व जैसे मिट्टी या भूमि, पानी, अग्नि अथवा सोलर सिस्टम और हवा आदि को नुकसान  अथवा हानि  ना पहुंचाते हुए वनस्पति संरक्षण ,फसल उत्पादन एवं फसल प्रबंधन की सभी गतिविधियों को आवश्यकता  और वरीयता के अनुसार समेकित रूप से प्रयोग  करके फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर तक सीमित रखते हुए तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो का फसल पर्यावरण में अथवा फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षण करते हुए  और इसके साथ साथ पंचमहा  तत्वों का प्रकृति में संरक्षण करते हुए भरपूर फसल का उत्पादन करना IPM एवं जीरो बजट आधारित प्राकृतिक खेती दोनों के सिद्धांत है  l
      जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं काम में आने वाली सभी गतिविधियों को IPM  के क्रियान्वयन हेतु अपनाया जा सकता है परंतु हमारे विचार से एक बार जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में प्रयोग की जाने वाली गतिविधियां  का  Indian Council of Agricultural Research (ICAR) के द्वारा Validation  अथवा   Manya Karan अवश्य करवा लेना चाहिए l
 ZBBNF  और IPM  दोनों ही प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित खेती करने की  विचारधाराएं हैं  जिनका लक्ष्य इनके क्रियान्वयन  करते समय समाज व प्रकृति दोनों को सुरक्षित रखना है l प्रकृति की क्रियाशीलता परमात्मा के द्वारा गवन होती है अथवा संचालित होती है l प्रकृति ईश्वर का संविधान है l प्रकृति में ईश्वरी व्यवस्था है जिससे बिना मानव की सहायता के जंगल के वृक्ष भरपूर फसल देते हैं l इन जंगलों में पाए जाने वाले वृक्षों वनस्पतियों को खाद पानी सिंचाई आदि की व्यवस्था प्रकृति स्वयं ही करती है ,कोई मानव इसमें कोई भी सहयोग नहीं देता है ,फिर भी प्रकृति में पाए जाने Wala कोई भी पौधा भूखा नहीं रहता है  उसको सभी खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं l इसी वजह से जंगल के पौधे वृक्ष मानव  की सहायता के बिना भी भरपूर फसल देते हैं l जंगल में स्थापित फसल उत्पादन की इस व्यवस्था  का अध्ययन करके खेती करने की व्यवस्था में  शामिल किया जा सकता है और  कम से कम  मेहनत  तथा  बाजार से खरीदे गए बिना किसी इनपुट के भरपूर फसल का उत्पादन किया जा सकता है l  प्रकृति में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव एवं बड़े जीव प्रकृति संचालन में अपना बहुत बड़ा योगदान देते हैं l प्रकृति में पाए जाने वाले देसी केंचुए जमीन को पोला बनाते हैं और बरसात के पानी को जमीन में संचयन करते हैं l देसी  केचुआ  वर्षा जल प्रबंधन भी करता है l जमीन को उर्वरा शक्ति पौधों की जड़ों के पास पाए जाने वाले एक जैव 
 जिसे  humus  कहा जाता है  के द्वारा मिलती है l प्रकृति में या जमीन मे humus का निर्माण प्रकृति में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं के द्वारा होता है l यह सूक्ष्म जीवाणु  जमीन में पाए जाने वाले कास्ट पदार्थों के विघटन से बनते हैं l इन जीवाणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए खेतों में फसलों के अवशेषों, मंदिरों में पाए जाने वाले नारियल के रेशों तथा फूल माला आदि का आच्छादन   करके उनके विघटन के द्वारा बढ़ाई जा सकती है l यह सभी पद्धति IPM 
 मैं भी अपना योगदान देती है l जीरो बजट पर आधारित खेती फसल में पाए जाने वाले माइक्रो ऑर्गेनाइज्म को पनपने में मदद करती है या उनके संरक्षण में मदद करती है l जीरो बजट पर आधारित खेती में फसलों के अवशेषों को जलाने की मनाई होती है अतः इन अवशेषों को फसलों में आच्छादन करने से फसलों में जैव नियंत्रण  कार को तथा अन्य लाभदायक जीवो को पनपने एवं संरक्षण का अवसर प्रदान करते हैं अथवा अवसर मिलता हैl जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं  किसी भी प्रकार के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता जिससे जैव नियंत्रण कार को  को खेतों में पनपने के लिए या संरक्षण हेतु बेहतर अनुकूल परिस्थितियां बन जाती है और उनके संरक्षण में मदद मिलती है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती एक प्रकार की इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग का तरीका है जो फसल परिस्थितिक तंत्र को जैविक नियंत्रण कारकों के संरक्षण हेतु अनुकूल परिस्थितियां विकसित करने में सहायक होता है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती फसल पारिस्थितिक तंत्र को क्रियाशील या ऑपरेटिव बनाए रखने में मदद करता है जिससे जैव नियंत्रण कारकों का संरक्षण में मदद मिलती है l प्रकृति तंत्र एक प्रकार का आत्म निर्भय अथवा सेल्फ सस्टेंड और सेल्फ ऑपरेटिव तंत्र होता है जो सभी  प्रकार  के जीवो व निर्जीव वस्तुओं  को फसल पर्यावरण में  क्रियाशील रखता है l अतः  फसल पारिस्थितिक तंत्र को  हमें बाधित नहीं करना चाहिए l फसलों में रसायनिक कीटनाशकों अथवा रसायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध इस्तेमाल फसल पर्यावरण को बिगड़ता है या छतिग्रस्त करता है अतः हमें छतिग्रस्त फसल पर्यावरण या क्षतिग्रस्त  फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन करना चाहिए l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती से क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र की पुनर्स्थापन मदद मिलती है जो लाभदायक जीवो के संरक्षण में सहायक होती है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं संस्तुति की गई इंटरक्रॉपिंग लाभदायक जीवो के संरक्षण में सहायक होती है क्योंकि इंटरक्रॉपिंग से बना हुआ सूक्ष्म पारिस्थितिक तंत्र लाभदायक जीवो के पनपने में तथा उनके संरक्षण में सहायक होता है l
       आज के सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक ,जलवायु एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन, फसल सुरक्षा अथवा IPM तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी,  मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित,स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली, व्यापार व आय को बढ़ाने वाली, समाज ,प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली ,कृषकों के जीवन स्तर में सुधार करने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली व जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण ,प्रकृति ,समाज, पारिस्थितिक तंत्र ,के विकास को भी करने वाली या सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली होनी  चाहिए l
     आजकल खेती करने के लिए विभिन्न प्रकार की विचारधाराएं या तरीके मांग के आधार पर विकसित किए गए हैं जिन के विभिन्न उद्देश्य हैं l  इन तरीकों में ZBBNF ,IPM  पद्धति, ऑर्गेनिक फार्मिंग, protected farming, integrated farming, sustainable agriculture, climet smart farming, आदि  प्रमुख तरीके हैं  जिन का मुख्य उद्देश्य खेती को लाभकारी बनाना ,फसल उत्पादन लागत को न्यूनतम करना अथवा 0 लेवल तक लाना, कृषकों की आय को बढ़ाना ,समाज को जहर मुक्त खाना प्रदान करना, ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक स्तर  की समस्याओं से बचाना तथा पर्यावरण ,पारिस्थितिकी तंत्र ,जैव विविधता, प्रकृति व समाज को सुरक्षा प्रदान करना होता है l उपरोक्त बताई गई खेती की विधियों मैं प्रत्येक विधि में अपने कुछ सीमाएं हैं तथा उनके गुण व दोष भी हैं l Integrated Pest Management,(IPM) पद्धति खेती करने  की पद्धतियों में एक मध्यम मार्ग है जिसमें कम से कम खर्चे में ,रसायनों का कम से कम अथवा ना उपयोग करते हुए तथा सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज को कम से कम हानि पहुंचाते हुए अधिक से अधिक एवं गुणवत्ता युक्त फसल उत्पाद पैदा किए जाते हैं  l उपरोक्त बताई हुई करने की विधियों में से आसानी से उपलब्ध, सस्ती, समाज के द्वारा स्वीकार  तथा संभावित एवं सुरक्षित विधियों   का चयन करके इन सभी विधियों को एकीकृत रूप से प्रयोग करके कम से कम खर्चे में लाभदायक एवं जहर मुक्त खेती की जा सकती है l Integrated Pest Management  खेती करने की पद्धति उपरोक्त बताई गई सभी पद्धतियों मै  से  बुद्धि एवं विवेक द्वारा  चयन की गई विधियों का सही तरीके से और समेकित रूप से प्रयोग करते हुए खेती करने को
 integrated pest management पद्धति कहते हैं जो खेती करने का सस्ता , टिकाऊ आसान, व्यवहार Viable  तरीका है l
 विभिन्न प्रकार की खेती करने की पद्धतियों मैं बताई गई प्रैक्टिसेज या गतिविधियों को बढ़ावा देने से पूर्व इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च से validation  अथवा  मान्य करण अवश्य करवा लेना चाहिए l किसी भी टेक्नोलॉजी को सीधे किसानों के हाथों में नहीं देना चाहिए उससे पहले उनके लिमिटेड सीमित demonstrations  करके trials  अवश्य कर लेना चाहिए उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर वर्कशॉप करके उसकी वैधानिक रूप से सिफारिश कर देनी चाहिए l बात ही वह टेक्नोलॉजी किसानों के हाथ में आनी चाहिए l











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