ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों से निर्मित रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों व खरपतवार ना सको तथा वृद्धि नियंत्रक का प्रयोग ना करते हुए जीवांश युक्त खादो का प्रयोग किया जाता है तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है जैविक खेती कहलाती है l
जैविक खेती में Jaivik inputs का प्रभुत्व होता है l
जैविक खेती आज के युग की प्रमुख मांग है l जैविक खेती जहां एक तरफ समाज को सुरक्षित भोजन भोजन प्रदान करती है वहीं दूसरी तरफ प्रकृति व पारिस्थितिक तंत्र को क्रियाशील रखने में मदद करती है की जैविक खेती जहां एक तरफ जैविक इनपुट ओं का प्रयोग किया जाता है वहीं दूसरी तरफ जीवन तथा पारिस्थितिक तंत्र को स्थायित्व प्रदान किया जाता है l
दोस्तों आध्यात्मिक तौर से जीव की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है तथा जिनका संचालन जैविक व अजैविक कारकों के द्वारा किया जाता है l.संत तुलसीदास जी ने कहा है की
छिति ,जल, पावक,गगन समीरा
पंच तत्व मिल बना शरीरा
अर्थात शरीर की रचना मिट्टी Soil अथवा Earth, जमीन अथवा prithvi
जल Water, पावक Agni ,Fire,,Solar Energy,
गगन Cosmic Energy
समीरा वायु Air ,Oxygen,Nitrogen
इन पांच तत्वों से मिलकर के बनी हुई है l परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचों तत्व प्रदूषित हो चुके हैंl इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है l मनुष्य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर यानी टॉप ऑफ द क्रिएचर मानता है तथा अपना अस्तित्व इस प्रकृति में हर हालत में बनाए रखना चाहता है l इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी ना खत्म होने वाली इच्छाएं हैं ,जो अनंत हैं l इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित कर रहा है l उपरोक्त तत्व प्रकृति के ही संसाधन हैं इनको मनुष्य प्रदूषित कर रहा है और नष्ट कर रहा है l जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन पांचों प्रकृति के संसाधनों तथा इनके अलावा अन्य पाए जाने वाले सभी जैविक व अजैविक कारकों जीवों व पदार्थों को एक उचित मात्रा में प्रकृति में रहना बहुत ही जरूरी है जिससे प्रकृति में संतुलन कायम रहेगा l
उपरोक्त तत्व को प्रदूषित करने में फसल उत्पादन में बढ़ते हुए रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य ,पर्यावरण एवं इकोलॉजिकल ,सामाजिक तथा प्राकृतिक समस्याएं उत्पन्न हो गई है l पारंपरिक खेती प्रणाली मैं रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से प्रभावित होने के कारण उपरोक्त दुष्परिणाम अथवा उपरोक्त प्रकार की समस्याएं पैदा करते हैं l जिससे कृषि में पैदा होने वाले फसल उत्पाद दूध ,फल ,सब्जियां ,पानी ,मांस एवं अंडा आदि खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो चुके हैं अर्थात इनके अंदर रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष प्रविष्ट हो चुके हैं जिससे यह खाद्य पदार्थ या कृषि उत्पाद जहरीले हो जाते हैं इसीलिए पारंपरिक खेती को जहरीली खेती भी कहते हैं l यह कीटनाशकों के अवशेष खाद्य श्रृंखला के द्वारा मनुष्यों तथा अन्य जीवो और जानवरों के शरीर में पहुंचते हैं और तरह-तरह की बीमारियां पैदा करते हैं l इन समस्याओं के निवारण हेतु खेती में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करना अति आवश्यक हो गया है जिसके लिए जैविक खेती, एकीकृत नासिजीव प्रबंधन पद्धति, जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती आदि पद्धतियों को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है l इन पद्धतियों के द्वारा की जाने वाली खेती का मुख्य उद्देश्य खाने योग्य सुरक्षित खाद्य पदार्थ ,व्यापार योग्य गुणवत्ता युक्त खाद्य पदार्थ उत्पादन के साथ-साथ फसल पारिस्थितिक तंत्र जिसमें जमीन के नीचे पाया जाने वाला पारिस्थितिक तंत्र जिसमें विभिन्न प्रकार के लाभदायक बैक्टीरिया भी पाए जाते हैं जो Humus नामक बायो केमिकल रसायन का उत्पादन करते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है का संरक्षण करना भी परम आवश्यक है l आत : जैविक खेती अथवा जीरो बजट आधारित प्राकृतिक खेती करते समय हमें किसी भी रसायनिक पदार्थों जैसे रसायनिक कीटनाशकों अथवा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए l
भोजन तो जहर से मुक्त रहे
हवा भी हो अमृत जैसी
यह वस्त्र जहर से मुक्त रहें
जब करें थोड़ी-थोड़ी जैविक खेती
जैविक खेती के बारे में तथा खेती में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के इनपुट के उत्पादन इकाइयों के द्वारा जैविक खेती से संबंधित विभिन्न प्रकार के नेगेटिव विचारधाराएं पैदा की जाती हैं जिससे उनके रासायनिक पदार्थों की बिक्री होती रहे l दोस्तों किसी भी विचारधारा से वांछित नतीजे तभी प्राप्त किए जा सकते हैं जब उस विचारधारा को सही तरीके से क्रियान्वयन किया जाए l जैविक खेती, IPM पद्धति से की जाने वाली खेती, अथवा जीरो बजट पर आधारित की जाने वाली प्राकृतिक खेती मैं प्रकृति पारिस्थितिक तंत्र( भूमिगत एवं भूमि के ऊपर ), प्रकृति के संसाधन आदि का क्रियाशील रहना परम आवश्यक है l उपरोक्त सभी प्रकार की खेती की पद्धतियां स्वास्थ्य प्रकृति पर्यावरण एवं समाज के लिए सचेत रहकर खेती की जाती हैl इसके लिए विभिन्न छोटे बड़े कृषकों के द्वारा प्रयोग धर्मिताExperiment righteousness खेतों में प्रदर्शन तथा ट्रायल करके सीखने की विधि द्वारा self understanding स्वयं समझ विकसित करना चाहिए तथा बाद में उसका प्रचार एवं प्रसार करना चाहिए l
जैविक खेती के बारे में किए जा रहे विभिन्न प्रकार के दुष्प्रचार ओं की वजह से ऐसा देखा गया है कि किसान जैविक खेती करना बाद में छोड़ देते हैं अतः इस परिस्थिति में जैविक खेती करने का प्रवाह टूट जाता है पारिस्थितिक तंत्र में हुए परिवर्तन रसायनों के प्रयोग से पुनः बिगड़ जाते हैंl
एक गाना में कहा गया है कि राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते l
गंगा तभी मैली होती है जबकि उसके पानी का प्रवाह बंद हो जाता है l गंगा ko mei Li होने से बचाने के लिए होने से उसका प्रवाह जारी रखना की आवश्यक है इसी प्रकार से जैविक खेती मैं लगातार खेती करने से फसल पारिस्थितिक तंत्र संरक्षित रहते हैं और उपज भी बढ़ती है l
भविष्य में आने वाला Yug जैविक खेती अथवा प्राकृतिक खेती का Yug hoga जिसमें ऑर्गेनिक पदार्थों की आंतरिक मांग तथा तथा इनका निर्यात बढ़ेगा l
यह अनुभव किया जाता है कि जब हमारे शरीर की इम्युनिटी समाप्त हो जाती है तब हम बीमार पड़ते हैंl
इसी प्रकार से आप प्रकृति में पाए जाने वाले मिट्टी ,पानी, हवा आदि सभी प्रदूषित हो चुके हैं जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में इनकी इम्यूनिटी खत्म हो जाती है बाद में मिट्टी में पाए जाने वाले माइक्रो Organisms समाप्त होने लगते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है lआत: जैविक खेती करते समय हमें मिट्टी की इम्युनिटी को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है जिसे सिर्फ जैविक इनपुट से ही बढ़ाया जा सकता है l जमीन की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए गोवर की खाद, हरी खाद तथा पौधों के अवशेषों को खेतों में आच्छादन करते जमीन में सूक्ष्म जीवों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है l जमीन में पाए जाने वाले देसी Earth Worms भी जमीन को पोला बनाने में सहायक होते हैं जिससे पानी जमीन में प्रवेश होता है और माइक्रोक्लाइमेट निर्मित होता है जिससे माइक्रो ऑर्गेज्म की संख्या जमीन में बढ़ती है l अर्थात जमीन की उर्वरा शक्ति अथवा एवं इम्यूनिटी भी बढ़ती है l भोजन पदार्थों में रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अवशेषों की उपस्थिति एवं उनके दुष्प्रभावों के बारे में ग्रहणी अथवा घरेलू महिलाओं जागरूक करना आवश्यक है जिससे उनको यह पता चल सके कि वह सुबह अपने बच्चों के टिफिन में क्या खाने योग्य खाद्य पदार्थ पैक कर रहे हैं अथवा पेस्टिसाइड से युक्त दूषित खाद्य पदार्थ बच्चों को दे रहे हैं l
एक घटना में सामने आया है कि किसी चिड़ियाघर में एक हाथी बीमार हुआ क्योंकि उसको सब्जी मंडी से निकला हुआ कचरा भोजन के रूप में खिलाया गया था lजब हाथी जैसे बड़े जानवर पर रसायनों का दुष्प्रभाव पड़ सकता है तो हमारे बच्चों पर रासायनिक कीटनाशकों का दुष्प्रभाव क्यों नही पढ़ सकता l भैंस और गायों के यहां तक कि महिलाओं के दूध में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष पाए गए हैं जिनका हमारे शरीर पर दुष्परिणाम पढ़ रहे हैं l अतः इस बारे में लोगों को जागरूक करना अति आवश्यक है l हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने बच्चों को जैविक भोजन ही खिलाएंगे l
खेतों की मिट्टी में लगभग 16 तरह के न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो फसल के उत्पादन मैं सहायक होते हैं प्राय: यह देखा गया है कि खेतों की मिट्टी के जांच कराए बिना ही किसान भाई सिर्फ तीन प्रकार के न्यू ट्रेंस जिन्हें एनपीके कहते हैं को ज्यादा प्रयोग करते हैं बाकी micro न्यू ट्रेंस जैसे ,Cobalt ,Magneze,Zinc आदि को neglect उपेक्षित करते हैं l जब तक जमीन को संपूर्ण भोजन नहीं मिलेगा उस की उर्वरा शक्ति नहीं बड़ सकती है l गोबर की खाद में 16 प्रकार के न्यू ट्रेंस होते हैं l सड़ी हुई गोबर की खाद को बोरे में बंद करके पानी लगाने वाली नाली में रख कर के खेतों में डाला जा सकता है इसमें कंद वाली फसलें जैसे प्याज शलगम ,चुकंदर आदि का विकास अच्छा होता है l
अच्छी पैदावार के लिए जमीन को जीवित रखना बहुत ही आवश्यक है क्यों जीवित जमीन के अंदर ही जीवित पौधे पैदा होते हैं जब जमीन जीवित रहेगी तो वह living media रूप में व्यवहार करेगी जिसमें स्वस्थ पेड़ पौधे पैदा होंगे l जमीन जीवित रखने के लिए जमीन के अंदर पाए जाने वाले microorganisms कोजीवित रखना अत्यंत आवश्यक है l
खेत को प्रयोगशाला बनाओ स्वयं वैज्ञानिक बनो तभी खेती का विकास हो सकता है l
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