2. फसलों में हानिकारक कीट निगरानी एवं उनकी संख्या का आकलन का कार्यक्रम सघनता से चलाकर एक निश्चित समय अंतर पर फसल पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण तथा पेस्ट रिस्क एनालिसिस के द्वारा फसल में अपनाई जाने वाली गतिविधियों के बारे में निर्णय लेकर विभिन्न विभिन्न गतिविधियों को क्रियान्वित करें l हानिकारक कीटों के संख्या की तथा उनकी उपस्थिति की जानकारी हेतु विभिन्न प्रकार के ट्रैप्स का इस्तेमाल करें l
3. प्राकृतिक खेती हेतु देसी बीज का चयन करें l
4. फसल बोने से पहले बीजों का वीजा मृत सेउपचार करेंl
5. खेत की मिट्टी को जीवामृत एवं घन जीवामृत से उपचारित करें l बोने के बाद फसलों में जीवामृत का निश्चित अंतराल से प्रयोग करते रहे l जिससे फसल में जमीन के ऊपर तथा जमीन के नीचे के फसल पारिस्थितिक तंत्र मेंजैव विविधता की बढ़ोतरी होती रहेगी जिससे फसलों की जड़ों को Humus , तथा जैविक कार्बन की निर्मिती में सहयोग करने वाले सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुआ आदि लाभदायक जीवो की मिट्टी में वृद्धि होती रहेगी l
6. फसल चक्र को बदलते हुए तथा एक फसली फसल चक्र की जगह बहु फसली खेती को बढ़ावा देते हुए खेती करनी चाहिए l
7. बीज उपचार हेतु Trichodermma,Pseudomonas,Beauveri bassiana, Metarhyzium,नीम oil, आदि के प्रयोग को बढ़ावा दें l
8. गहरी जुताई से दूर रहें तथा फसलों में विभिन्न प्रकार के आच्छादन करें l आच्छादन से लगभग 90% पानी की बचत की जा सकती है l
9. फसलों की चारों तरफ मैडों के किनारे विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगाएं l
10. खरपतवार ओं को मुख्य फसलों से ऊपर ना बढ़ने दिया जाए तथा उनको फसलों के अंदर ही मिट्टी से दबा दिया जाए l
11. Chusak kiton or sucking insects ke लिए नीमस्त्र, lepidopterans के लिए, ब्रह्मास्त्र, चने की सुंडी के लिए अग्नि अस्त्र तथा सभी प्रकार के हानिकारक कीटों के लिए दशपर्णी अर्क जो डॉक्टर सुभाष पालेकर के द्वारा बताए गए हैं के प्रयोगों को बढ़ावा दें l
6.
No comments:
Post a Comment