I PM is an integrated concept of crop production,crop protection,crop management, marketing and trade in which chemicals are used only to manage the crop or pest emergency purpose and pest population in Agroecosystem is maintained below ETL and safety community health, environment, ecosystem, biodiversity,life ,nature and society is also maintained simultaneously.
Friday, September 29, 2023
IPM beyond plant protection
IPM is not confined only up to plant protection or pest management but it is also extended beyond plant protection related with different aspects of crop production ,Protection and management, community health, environment, ecosystem, biodiversity,economy different aspects of life,nature, and society, bussiness , trade,global warming, social prosperity,Earth,water, solar energy, cosmic energy and air,food security along with food safety, harmony with nature and society etc.
Thursday, September 28, 2023
आईपीएम की आध्यात्मिक तौर पर विवेचना भाग 1
जीवन से तथा जीवन की मूल आत्मा से जुड़े हुए अध्ययन को ही आध्यात्मिक कहा जाता है। आध्यात्मिक तौर पर जीव अथवा जीवन की रचना पांच तत्वों से मिलकर बनी है जिनको परमात्मा ने स्वयं प्रकृति के रूप में बनाया है और जिसका संचालन स्वयं प्रकृति के द्वारा प्रकृति में पाए जाने वाले जैविक और अजैविक कारकों के द्वारा किया जाता है क्योंकि यह कारक एक दूसरे पर आश्रित होते हैं और जीवन का संचालन कर ते है ।
संत श्री तुलसीदास जी ने कहा है
क्षित ,जल ,पावक, गगन, समीरा
पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीव की संरचना उपरोक्त पांच तत्वों से मिलकर बनी है यह तत्व इस प्रकार से हैं।
क्षति=मिट्टी,soil,Earth
जल =पानी=water
पावक=आग=कार्बन=Organic Chemistry=सौर ऊर्जा
गगन=आकाश=ब्रह्मांड ऊर्जाCosmic Energy.
समीर=वायु mixer of Nitrogen,Oxygen,Corbon di Oxide etc.
यह पांचो तत्व प्रकृति के संसाधन हैं जिन्हें सम्मिलित रूप से भगवान भी कहा जाता है भगवान शब्द का अर्थ इस प्रकार से है।
भ= भूमि
ग =गगन अथवा आकाश<=ब्रह्मांड ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा
वा=वायु=हवा=एयर
न=नीर=पानी=वाटर
अर्थात शरीर की रचना मिट्टी ,पानी, आग,आकाश, हवा के द्वारा हुई है परंतु विडंबना यह है कि अब यह पांचो तत्व प्रदूषित हो चुके हैं। और इनको प्रदूषित करने में मनुष्य का बहुत बड़ा योगदान है मनुष्य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर अर्थात टॉप ऑफ द क्रिएचर कहता है या मानता है तथा अपना अस्तित्व इस प्रकृति में हर हालत में बनाए रखना चाहता है । इन तत्वों को प्रदूषित करने में मनुष्य की कभी ना खत्म होने वाली इच्छाएं हैं जो अनंत है। इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रकृति को नष्ट कर रहा है तथा उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित कर रहा है।
एक दिल लाखों तमन्ना और उसे पर ज्यादा हविश
फिर ठिकाना है कहां उसको टीकाने के लिए
मनुष्य अपने इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के संसाधनों को नष्ट कर रहा है एवं प्रदूषण कर रहा है। प्रकृति में मनुष्य ही सिर्फ ऐसा एक जीव है जो आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करता है ।
प्रकृति में ऐसा दूसरा कोई अन्य जीव नहीं है जो अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति के संसाधनों का प्रयोग करता हो।
दिमाग की गीजा हो या gijai जिस्मानी
यहां तो हर गीजा में मिलावट मिलती है
उपरोक्त तत्वों को प्रदूषित करने में फसल उत्पादन में बढ़ते हुए रासायनिक किट नशकों एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे , स्वास्थ्य,पर्यावरणीय तथा इकोलॉजिकल समस्याएं पैदा हो गई हैं।
इन समस्याओं के निवारण हेतु इन रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग को कम करना अति आवश्यक हो गया है जिसके लिए एकीकृत नासिजीव प्रवधन पद्धति को नासि जीव प्रबंधन हेतु बढ़ावा देना आवश्यक है ।
फसलों को पौधे के रूप में तथा जंतुओं को जीवन के रूप में प्रकृति ने बनाया है फसलों के उत्पादन हेतु मिट्टी अथवा सॉइल जैसे मध्यमअथवा मीडियम की आवश्यकता होती है अतः फसलों को उत्पादन करने के लिए मिट्टी का बलवान होना अति आवश्यक है मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव ,सूक्ष्म तत्व, ह्यूमस ,मॉइश्चर ,नमी तथा प्रकृति में पाई जाने वाली ब्रह्मांड एवं सौर ऊर्जा का फसल उत्पादन में अपना विशेष महत्व है।
प्रकृति में चल रही स्वचालित self organised, स्वयं सक्रिय self active,स्वयं पोशी, self nourishedस्वयं vikashi, स्वयं नियोजित self planned सहजीवी symbiotic एवं आत्मनिर्भरself sustained फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन पद्धति के आधार पर प्रकृति में प्राकृतिक खेती की जाती है या होती है जिसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है यह स्वयं प्रकृति के द्वारा संचालित की जाती है प्रकृति में चल रही इसी प्राकृतिक खेती की व्यवस्था का अध्ययन करके अब प्राकृतिक खेती को समाज के विकास अथवा उत्थान हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधार।हुआ रूप है जिसमें फसलों के उत्पादन एवं फसलों की रक्षा हेतु रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति, खेतों की जैव विविधता, जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा तथा हमस Humus तथा इसको जमीन में बनाने वाले सूक्ष्म जीवों और सूक्ष्म तत्वों ,जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों को बढ़ावा देकर देसी गायों ,फसलों के देसी बीजों की प्रजातियां को संरक्षित करते हुए गायों के मूत्र एवं गोबर के प्रयोग को करते हुए इन पर आधारित इनपुट तथा देश देशी बीजों की प्रजातियों के इनपुट को बढ़ावा देते हुए उचित लाभकारी फसल चक्र एकल फसल पद्धति के स्थान पर बहू फसली पद्धति का फसल चक्र अपना कर ,नवीन विधियो के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को शामिल करते हुए, परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हैं ,समाज ,सरकार ,व्यापार और बाजार की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन अथवा चयन करते हुए स्वस्थ समाज की कामना करते हुए कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर जो खेती की जाती है उसे ही हम प्राकृतिक खेती कहते हैं। यह खेती देसी बीजों ,देसी गाय, देसी केंचुआ ,देसी पद्धतियों,देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर के प्रयोग पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित वीडियो पर खेती करने का एक तरीका है।
प्राकृतिक खेती के लिए पानी की पूर्ति मानसून से प्राकृतिक तौर पर परमात्मा के द्वारा की जाती है। हवा नाइट्रोजन का महासागर है। पौधे हवा से नाइट्रोजन लेते हैं। पौधे अपने भोजन को बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड भी वातावरण से अथवा हवा से लेते हैं। सूरज की रोशनी पानी कार्बन डाइऑक्साइड तथा क्लोरोफिल जो हरे रंग का पदार्थ पौधों में पाया जाता है की सहायता से प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा पौधे अपना भोजन मानते हैं। फसलों की उर्वरा शक्ति जमीन में पाए जाने वाले ह्यूमस से बढ़ती है इसका निर्माण विभिन्न प्रकार के मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव के द्वारा पौधों खरपतवार ऑन तथा अन्य प्रकार के पौधों के भाग ऑन के विघटन के द्वारा किया जाता है। मिट्टी में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं जो पौधों के वृद्धि में सहायक होता है। मिट्टी इन सूक्ष्म तत्व का महासागर है । कुछ फसलों की जड़ों में ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो भूमि में नाइट्रोजन फिक्सेशन पर मदद करते हैं यह बैक्टीरिया ज्यादातर दाल है नहीं फसलों में पाए जाते हैं इसके साथ-साथ यह बैक्टीरिया कुछ प्रकार के खरपतवारों की चलो आदि में भी पाए जाते हैं भी पाए जाते हैं । इस प्रकार से प्रकृति प्रकृति में फसल उत्पादन व्यवस्था प्राकृतिक रूप से चलती रहती है। इस प्रकार से प्रकृति में स्वचालित व्यवस्था चल रही है जिससे फसलों का उत्पादन होता है।
Wednesday, September 20, 2023
एकीकृत नासि जीव प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (आईपीएम) के ऊपर कुछ नवीन विचार
एकीकृत नासि जीव प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट(आईपीएम) के ऊपर कुछ नवीन विचार
हमने अपनी सरकारी सेवा वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय में 2nd February,1978 से जैविक नियंत्रण स्कीम शुरू की से शुरू की बाद में क्रॉप पेस्ट सर्विलेंस,प्लांट Quqrantine,लोकस्ट कंट्रोल एंड रिसर्च, तथा सेंट्रल इंसेक्टिसाइड्स लेबोरेटरी एवम स्ट्रेंथनिंग एंड modernaisation ऑफ पेस्ट मैनेजमेंट एप्रोच इन इंडिया के विभिन्न केंद्रीय एकीकृत नासिक जीव प्रबंधन केदो तथा निदेशालय के मुख्यालय फरीदाबाद में स्कीम ऑफिसर के रूप मे संयुक्त निदेशक एवं अपार वनस्पति संरक्षण सलाहकार आईपीएम के पद पर काम किया जिसमें आईपीएम केप्रचार एवं प्रसार तथा क्रियान्वयन में काम किया तथा आईपीएम क्रियान्वयन का अनुभव प्राप्त किया।
हमारे संपूर्ण सेवा काल में एक ही सवाल आया की क्या रसायन के बगैर खेती की जा सकती है अथवा आईपीएम के द्वारा खेती को रसायनों से दूर किया जा सकता है यद्यपि
आईपीएम का मुख्य उद्देश्य खेतों में रसायनों के उपयोग को जहां तक हो सके कम करना है और इसके लिए रासायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को अंतिम विकल्प के रूप में सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु प्रयोग करने की अनुमति अथवा सस्तुति दी गई है । प्राकृतिक खेती ऑर्गेनिक खेती तथा आई पी एम के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बिना रसायनों के खेती की जा सकती है। 2020 में आई कोरोना महामारी के अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जब बगैर दवाई के कोरोना का प्रबंध किया जा सकता है तो बगैर दवाई के अथवा बगैर कीटनाशकों के अथवा बगैर रसायनों के खेती भी की जा सकती है बस जरूरत है सिर्फ एक प्रबल इच्छा शक्ति की, पूर्व रननीति की, आईपीएम के सभी भागीदारों को सहयोग के साथ टीम भावना से कम करने की तथा किसी भी कीमत पर वंचित परिणाम प्राप्त करने की।
आईपीएम को उसके हर एक भागीदार अथवा स्टेके होल्डर ने अपने रोजगार के अनुसार, अपनी समझ के अनुसार लाभ और नुकसान के अनुसार वास्तविक उद्देश्य से हटकर विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार परिभाषित किया तथा क्रियान्वयन किया। कई बार कृषकों एवं आईपीएम के अन्य साझेदारों के द्वारा केमिकल पेस्टीसाइड इंडस्ट्रीज के प्रभाव में आकर आईपीएम को केमिकल पेस्टीसाइड की महत्ता देकर परिभाषित किया और आईपीएम की विचारधारा को रसायन ऑन से भरपूर करके कृष को एवं एग्रीकल्चर एक्सटेंशन ऑफिसर्स के द्वारा क्रियान्वित करवाया गया आईपीएम की विचारधार विचारधारा से परे है।
संक्षिप्त रूप में आईपीएम को ईस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति, समाज एवं जीवन को कम से काम बाधित करते हुए फसलों में हानिकारक जीवों अथवा Pests की समस्याओं से दूर करना अथवा छुटकारा प्राप्त करना ही आईपीएम कहलाता है।
आईपीएम जीडीपी पर आधारित अथवा आर्थिकविकास के साथसाथ समाज, पर्यावरण, जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति और जीवन के विकास को भी महत्व देता है और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है तथा मिट्टी को बलवान बनाता है।
आईपीएम सिर्फ नाशिजीव प्रबंधन की वीधियों का ही एकीकरण नहीं करता बल्कि वह संपूर्ण फसल उत्पादन ,फसल रक्षा और फसल प्रबंधन की सभी विधियों के अलावा फसल विपणन और फसलों के उत्पादों के प्रयोग की वीदीयो का भी एकीकरण करता है।
IPM Does not only integrate the methods and technologies of pest management but it also integrate the methods and technologies of total crop production, protection, management, marketing and consumption of agricultural commodities.
I PM is a complete crop production, protection and management system from seed to marketing and even up to the consumption of their end products with due care of community health, environment, ecosystem, biodiversity, nature and society.
I PM हानिकारक जीवों के प्रबंधन हेतु आईपीएम इनपुट्स तथा आईपीएम विधियों को सावधानी तथा विशेषज्ञता पूर्वक इस्तेमाल करनेका तरीका है।
IPM is not only plant protection but it is the plant protection with due care of community health, environment, ecosystem, biodiversity nature, society and different aspects of life.
खेती से जुड़ी हुई विभिन्न विविधताओं के अनुकूल खेती और वनस्पति संरक्षण करना अथवा नासिक जीव प्रबंध करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का प्रमुख सिद्धांत है।
Monday, September 4, 2023
Seven Years/A decade of Excellence after retirement
Seven years / A decade of Excellence after retirement.
(2016- to 2023)
,(. )
Integrated Pest Management (IPM)---My Professional Soul
*Concept & difinition
*Philosophy
*Suitch over to Natural Farming
*Future Vision of Integrated pest management $ Natural Farming.
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आईपीएम से संबंधित स्वयं के कुछ अनुभव
1.कीटनाशकों के बगैर खेती की जा सकती है
परंतु कीटों के बगैर खेती नहीं की जा सकती
2. No first use of chemicals in Agriculture
3. जब दवाई के बगैर कोरोना का मैनेजमेंट किया जा सकता है तो रासायनिक कीटनाशकों के बगैर हानिकारक जीवो का प्रबंधन भी आईपीएम के क्रियान्वयन से किया जा सकता है बस जरूरत है एक मजबूत प्रशासनिक,राजनीतिक सामाजिक और वैज्ञानिक सहयोग एवं तीव्र इच्छा शक्ति की, टीम भावना के साथ काम करने की, पूर्व सक्रियता के साथ किसी भी कीमत तथा किसी भी तरीके से मौजूद संसाधनों के द्वारा वंचित उद्देश्यों को प्राप्त करने की, रणनीति अपनाकर ।
4. जब तक काम चलता हो हो गीजा से
तब तक बचना चाहिए दवा से
5.Feed the soil not to the plant.
6.Make the soil strong.
7. भूख ही मजहब है इस दुनिया का
बाकी हकीकत कोई नहीं
8. रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से क्षतिग्रस्त हुए फसल पारिस्थितिक का पुनर्स्थापना करना आईपीएम प्राकृतिक खेती का एक मुख्य बिंदु है इससे फसल पर्यावरण जैव विविधता का संरक्षण होता है। फसल में मौजूद विभिन्न प्रकार के लाभदायक एवं हानिकारक जीवों की विविधता के हिसाब से खेती करना आईपीएल तथा प्राकृतिक खेती की प्रमुख आवश्यकता है।
9. समाज व पारिस्थितिकी तंत्र तथा मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के हिसाब से खेती करना भी आईपीएम का प्रमुख कार्य बिंदु है।
10. हमारे हिसाब से फसलों के पारिस्थितिक तंत्र था उसमें पाए जाने वाले सभी कारकों की सतत निगरानी , आकलन एवं विश्लेषण के द्वारा निकल गए निष्कर्ष के अनुसार फसलों में गतिविधियां करने से रसायनों का लगभग50% प्रयोग कम किया जा सकता है और सफलतापूर्वक सामान्य रूप से खेती की जा सकती है।,,
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आई पी एम का फंडा
आओ सुनाएं तुम्हें आईपीएम का फंडा
यह नहीं कोई मामूली फंडा और यह भी नहीं कोई मामूली बंदा
इस फंडे मैं छुपा है जिंदगी का फलसफा
जिंदगी के हर मुद्दे से जुड़ा है यह आईपीएम का फंडा
खेत से जुड़ा है, समाज से जुड़ा है,प्रकृति से जुड़ा है, यह आईपीएम का फंडा
जहर मुक्त खेती और रोग मुक्त समाज
यही है आईपीएम फंडे के प्रयास
क्षति, जल ,पावक, गगन समीरा
पंचतत्व मिल बना शरीरा
आईपीएम रखता इनको प्रदूषण मुक्त
इसीलिए आईपीएम फंडा
है जीवन का सूत्र
मिट्टी को सशक्त बनाता है और उर्वरा शक्ति बढ़ाता है
खाद्य सुरक्षा देता है भोजन को स्वस्थ बनाता है
कृषकों को आत्महत्याओं से बचाता है
और उनको संपन्न बनता है इसीलिए आईपीएम फंडा कहलाता है
विज्ञान है यह खेती का दर्शन है यह जीवन का विचारधारा है यह सुरक्षित भोजन ऊ गाने के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की ।
खेती में रसायन रहित विधियों को बढ़ावा देता है यह फंडा कीट और बीमारियों की आपात स्थिति से निपटान हेतु रसायनों के अंतिम उपयोग को बताता है यह फंडा और
इसीलिए फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा मैं सफलता दिलाता है यह फंडा।
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Different concepts of IPM
1.Integrated Pest Management (IPM) is a Concept related with Science, Philosophy, Spirituality, Sociology, Economics,Ecology/ Ecological Engineering, Environment,nature,and different aspects of life based on pest surveillance , monitoring and Agroecosystem Analysis .
2.It is a skill development programme.
3.It a kind of social movement to reduce the use of chemicals ie Chemical pesticides and fertilizers in Agriculture or farming or pest management.
4.Awareness creation programme.
5.Lord Buddha's principles of IPM.
6.Food Security along with food safety.
7.To get rid of from the pest problems with minimum expenditure and least disturbance to the community health, environment, ecosystem, biodiversity, nature and society throgh adoption of all available, affordable, feasible,and acceptable methods of farming or pest management in compatible manner to maintain the pest population below ETL.
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