Monday, December 25, 2023
Saturday, December 23, 2023
प्राकृतिक खेती एवं आईपीएम का आध्यात्म
1 मानव से पहले प्रकृति का जन्म हुआ।.प्रकृति में चल रही स्वचालित (Self Organised), स्वयं सक्रिय(Self active), स्वयं पोशी (Self nourished), स्वयं विकाशी(Self developing), स्वयं नियोजित (Self planned), सहजीवी (Symbiotic), एवं आत्मनिर्भर (Self sustained) फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन पद्धति के आधार पर प्रकृति में प्राकृतिक खेती होती है जिसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है। प्रकृति में चल रही इसी प्राकृतिक खेती की व्यवस्था का अध्ययन करके अब प्राकृतिक खेती को समाज के विकास एवं उत्थान हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रकृति की समग्रता तथा उसके स्वरूप को बचाते हुए अथवा उसकी रक्षा करते हुए स्वयं का ज्ञान तथा समझ को इस्तेमाल करते हुए खेती करना ही प्राकृतिक खेती है। फसलों का भोजन जीवाश्म अथवा माइक्रोऑर्गेनाइज्म आदी की डेड इकाइयां हैं।
2. प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधरा
हुआ रूप है जिसमें फसलों के उत्पादन एवं फसलों की रक्षा हेतु रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति ,खेतों की जैव विविधता ,जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा तथा ह्यूमस तथा इसको जमीन में बनाने सूक्ष्मजीव और सूक्ष्म तत्व ऑन ,जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों को बढ़ावा देकर तथा देसी गायों ,फसलों के देशी बीजों की प्रजातियां को संरक्षित करते हुए, गायों के मूत्र एवं गोबर के प्रयोग को शामिल करते हुए तथा देशी बीजों को प्रयोग को फसल उत्पादन में बढ़ावा देते हुए उचित तथा लाभकारी एकल फसल चक्र पद्धति के स्थान पर बहू फसली खेती की फसल चक्र को अपना कर नवीन विधियों के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को शामिल करते हुए कृषक परिवारों जिसमें जानवर भी शामिल है समाज ,सरकार और बाजार की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन अथवा चयन करते हुए ,स्वस्थ समाज की कामना करते हुए ,कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर जो खेती की जाती है उसे ही प्राकृतिक खेती कहते हैं यह खेती देसी बीजों, देसी गाय, देसी केंचुआ, देसी पद्धतियों, देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर के प्रयोग पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है।
3. क्षति Earth or soil, जल Water, पावक Solar Emergy, गगन Sky or Cosmic Energy or Brahamand Urja in form of 27 Nakshtra. Each Nakshtra having 4 , समीरा Air or Vayu
पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीव की उत्पत्ति उपरोक्त पांच तत्वों के द्वारा मिलकर हुई है या बनी है। उपरोक्त पांचो तत्व प्रकृति से हमें प्राप्त होते हैं जिनके लिए प्रकृति हमें कोई बिल नहीं भेजती।
उपरोक्त पांच महाभूत 108 एलिमेंट अथवा तत्वों से बने हुए होते हैं । जिनको चार श्रेणी में बांटा गया है। प्रथम श्रेणी में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन तत्व आते हैं। दूसरी श्रेणी में नाइट्रोजन ,फास्फोरस तथा पोटाश तत्व आते है। तीसरी श्रेणी मैं कैल्शियम मैग्नीशियम तथा सल्फर आते हैं और बाकी सारे तत्व 99 तत्वों को सूक्ष्म तत्वों के रूप में अलग श्रेणी में रखा गया है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा कच्ची शर्करा तथा ऑक्सीजन का निर्माण होता है। कच्ची शर्करा पौधों को भोजन के रूप में जड़ों के पास पाए जाने वाले सूक्ष्म रेशों के द्वारा प्राप्त होती है।ऑक्सीजन हमारे श्वसन क्रिया में सहायक होती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पौधों के पत्तों में पाए जाने वाले हरित कड़ जिसको क्लोरोफिल कहते हैं भी सहायक होते हैं। प्रति वर्ग फुट पत्तों के द्वारा 1250 किलो कैलोरी सूर्य ऊर्जा अवशोषित होती है जिसमें से सिर्फ एक परसेंट अर्थात 12.5 किलो कैलोरी ऊर्जा ही पत्तों में संग्रहित की जा सकती है। किस प्रकार से पौधों की जीवन चक्र तो पौधों को भोजन मिलता रहता है।
6CO2+6H20 --sunlight , Chlorophyll
------C6H12o6 +6o2
1 दिन में एक स्क्वायर फीट पौधे का हरा पत्ता 4.5 ग्राम कच्ची शर्करा का निर्माण करता है जिसमें से कुछजड़ों के द्वारा पौधों को भोजन के रूप में प्रदान किया जाता है तथा कुछ पौधों के विकास में काम में आता है ।
4. हवा नाइट्रोजन का महासागर है। पौधे हवा से नाइट्रोजन सीधे प्राप्त नहीं करते हैं बल्कि वह नाइट्रेट के रूप में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया के द्वारा नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर पौधों को प्रदान करते हैं। यह बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं सिंबायोटिक बैक्टीरिया और एबायोटिक बैक्टीरिया। राइजोबियम माइकोर्रहिज़ा और ब्लू ग्रीन algae सिंबायोटिक बैक्टीरिया होते हैं जबकि एजोटोबेक्टर तथा Pseudpmonas आदि बैक्टीरिया असहजीवी बैक्टीरिया होते हैं। इस प्रकार से इन बैक्टीरिया की मदद से पौधों को नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
5.Phasphate Solveliging bacteria के द्वारा फास्फोरस जमीन के अंदर पौधों को मिलता है । भूमि में फास्फेट के रूप में पाया जाता है जबकि पौधों को एक कला के रूप में चाहिए दो कन वाले फास्फेट को एक कन वाले फास्फेट में बदलने का काम फास्फेट सॉल्युबिसिंग बैक्टीरिया करते हैं।
6, पोटाश भूमि में अनेक कानों के रूप में होता है. जंगल में एक जीवाणु होता है उसका नाम कहते हैं बेसिलस सिलिक्स जो विभिन्न कनों के फास्फेट को एक कण में बदल देता है।
7. उपरोक्त पद्धतियों के आधार पर जंगल में पौधों को विभिन्न प्रकार के खाद्य तत्व माइक्रो एलिमेंट्स के रूप में प्राप्त होते हैं।
8. जीव पदार्थों के अवशेषों के विघटन से जैविक कार्बन बनता है इस क्रिया में बहुत सारे सूक्ष्म जीवाणु सहायक होते हैं।
Saturday, December 16, 2023
IPM is a sprituality आईपीएम एक खेती करने तथा नासिजीव प्रबंधन करने से जुड़ा एकअध्यात्म वाद है
What is Sprituality ?sprituality is the Philosophy related with the things which are not physically present but their presece can not be ignored because of systematic system of approach to achieve goal alreadyfound existing in the world. For example no body has seen God but his presence can not be ignored as many things are available and are working through systematic approach or system or ecosystem created by nature or self created in form of nature and it's resources .There is a self organised ,self active,self nourished ,self sustained self developomg ,self managed,symbiotic,and self dependent system of crop production,crop protection and crop management which is being maintained by nature or by God an unseen power.This unseen and fully working system is referred as sprituality.Nature is the existing forms of God.There are five elements or panch Bhootas ie Earth, water,Agni,Sky and air which forms life.but now all these five Bhootas or elements have now become polluted.we must keep these panch Bhootas clean and unpolutted for the sustainability of life in the word .Plants and animals both are the two major forms of life which are also interdependent on each other.Lets implement IPM in such a way so that life may become sustainable .
Adopt IPM to sustain life on earth.
Wednesday, December 6, 2023
IPM Massages
Adopt IPM for. :-
1.Better Environment
2.To grow safe and secure Agriculture.
3.To ensure food security along with food safety .
4.Poison free food and disease free society.
5.To conserve Agroecosystem ,biodiversity.
and natural resources .Be sympathetic to all living organisms found in Agroecosystem.
6.. Sustainable Agriculture
7.To promote chemicalless Farming
8.To reduce the use of chemicals in Agricultureand to promote chemical free methods of crop production and protection.
9.Avoid post harvest use of chemical prstides in agriculture
10. खेती करते समय यह ध्यान रहे की प्रकृति और उसके संसाधन, जैव विविधता ,मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरकरार रहे।
Keep in mind that nature and it's resources, biodiversity,and fertility of soil be kept maintained while doing farming.
11. आईपीएम बीज से लेकर बाजार एवं व्यापार तक, तथा फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की संपूर्ण प्रबंधन योजना है जिसका क्रियान्वन कम से कम खर्चे में, रसायनों का कम से कम अथवा बिल्कुल ही ना प्रयोग करते हुए ,सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, समाज, कृषि विपणन एवं व्यापार, प्रकृति और उसके संसाधनों को कम से कम अथवा बिल्कुल ही बाधित ना करते हुए तथा प्रकृति के संसाधनों का दोहन ना करते हुए इस प्रकार से खेती की जाती है की किसान उनके परिवार जिनमें जानवर भी शामिल होते हैं तथा समाज और राजनीति तथा कानून से जुड़ी हुई जरूरतो को पूरा किया जा सके। इसके साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कायम रह सके । इसके लिए रसायन रहित विधियों को बढ़ावा दिया जाता है ।
आईपीएम के क्रियान्वयन के लिए रसायन रहित विधियों को बढ़ावा देते हुए उनको समेकित रूप से प्रयोग करके फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्टर के नीचे सीमित रखक सुरक्षित खेती करें।
12, खेती करते समय अथवा आईपीएम का क्रियान्वयन करते समय ऐसी विधियों का इस्तेमाल करें जिससे कृषकों के परिवार जिसमें जानवर भी शामिल है तथा समाज की ज़रूरतें पूरी हो सके तथा प्रकृति और उसके संसाधनों, पर्यावरण, तथा फसल पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव न पड़े तथा खर्चा भी कम से कम हो।
Tuesday, December 5, 2023
आईपीएम सिर्फ वनस्पति संरक्षण तक सीमित ना रहकर यह फसल उत्पादन, फसल रक्षा, फसल प्रबंधन,पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी, फसल विपणन, फसल व्यापार,फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक,जीवन के सभी पांचो तत्वों,फसल पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति और उसके संसाधन तथा समाज से जुड़े हुए सभी मुद्दों,गतिविधियों एवं इकोनॉमिक्स आदि के समेकित प्रबंधन की विचारधारा बन गई है।
आईपीएम फसल उत्पादन ,फसल रक्षा, फसल प्रबंधन ,फसल विपणन, फसल कटाई के उपरांत की टेक्नोलॉजी ,जीवन, प्रकृति ,समाज एवं फसलों के उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की सभी गतिविधियों एवं विचारधाराओं का संपूर्ण एवं समेकित प्रबंधन है जिसमें उपरोक्त गतिविधियों से संबंधित सभी प्रकार की विधियों का समेकित प्रयोग करके खाने के लिए सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है जिससे सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके तथा समाज और प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित हो सके ।
आईपीएम की शुरुआत भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग के अधीनस्थ वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के द्वारा गठित राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम के रूप में सन 1991- 92 में उत्तम पर्यावरण के लिए आईपीएम नाम के स्लोगन से प्रारंभ की गई थी। जिसमें इस निदेशालय की तीन अलग-अलग स्कीम्स वनस्पति संरक्षण स्कीम, पेस्ट सर्विलेंस एंड मॉनिटरिंग स्कीम तथा बायो कंट्रोल ऑफ़ क्रॉप पेस्ट एंड वीड्स स्कीम का एकीकरण अथवा मर्जर करके स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशनऑफ पेस्ट मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया नाम की स्कीम बनाई गई जिसमें विभिन्न प्रदेशों में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन नाम के विभिन्न राज्यों में 26 केंद्रों की स्थापना की गई । बाद में आईपीएम के विस्तृत स्कोप को ध्यान में रखते हुए आईपीएम के कार्य क्षेत्र अथवा मेंडेड को प्रकृति, जीवन, समाज, विपणन, आर्थिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दों को भी शामिल कर लिया गया। आईपीएम का मुख्य उद्देश्य खेती में रसायनों के प्रयोग को कम करना अथवा ना करना तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाई जाने वाली जैव विविधता तथा खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढना तथा प्रकृति के अन्य संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज को स्वस्थ बनाना तथा उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
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