Tuesday, December 5, 2023

आईपीएम सिर्फ वनस्पति संरक्षण तक सीमित ना रहकर यह फसल उत्पादन, फसल रक्षा, फसल प्रबंधन,पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी, फसल विपणन, फसल व्यापार,फसल उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक,जीवन के सभी पांचो तत्वों,फसल पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति और उसके संसाधन तथा समाज से जुड़े हुए सभी मुद्दों,गतिविधियों एवं इकोनॉमिक्स आदि के समेकित प्रबंधन की विचारधारा बन गई है।

आईपीएम फसल उत्पादन ,फसल रक्षा, फसल प्रबंधन ,फसल विपणन, फसल कटाई के उपरांत की टेक्नोलॉजी ,जीवन, प्रकृति ,समाज एवं फसलों के उत्पादों के अंतिम प्रयोग तक की सभी गतिविधियों एवं विचारधाराओं का संपूर्ण एवं समेकित प्रबंधन है जिसमें उपरोक्त गतिविधियों से संबंधित सभी प्रकार की विधियों का समेकित प्रयोग करके खाने के लिए सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जाता है जिससे सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके तथा समाज और प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित हो सके ।
आईपीएम की शुरुआत भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि एवं सहकारिता विभाग के अधीनस्थ वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के द्वारा गठित राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम के रूप में सन 1991- 92 में उत्तम पर्यावरण के लिए आईपीएम नाम के स्लोगन से प्रारंभ की गई थी। जिसमें इस निदेशालय की तीन अलग-अलग स्कीम्स वनस्पति संरक्षण स्कीम, पेस्ट सर्विलेंस एंड मॉनिटरिंग स्कीम तथा बायो कंट्रोल ऑफ़ क्रॉप पेस्ट एंड वीड्स स्कीम का एकीकरण अथवा मर्जर करके स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशनऑफ  पेस्ट मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया नाम की स्कीम बनाई गई जिसमें विभिन्न प्रदेशों में केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन नाम के विभिन्न राज्यों में 26 केंद्रों की स्थापना की गई । बाद में आईपीएम के विस्तृत स्कोप को ध्यान में रखते हुए आईपीएम के कार्य क्षेत्र अथवा मेंडेड को प्रकृति, जीवन, समाज, विपणन, आर्थिक क्षेत्र से संबंधित मुद्दों को भी शामिल कर लिया गया। आईपीएम का मुख्य उद्देश्य खेती में रसायनों के प्रयोग को कम करना अथवा ना करना तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाई जाने वाली जैव विविधता तथा खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढना तथा प्रकृति के अन्य संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज को स्वस्थ बनाना तथा उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

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