2. प्राकृतिक खेती आईपीएम का ही एक सुधरा
हुआ रूप है जिसमें फसलों के उत्पादन एवं फसलों की रक्षा हेतु रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति ,खेतों की जैव विविधता ,जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा तथा ह्यूमस तथा इसको जमीन में बनाने सूक्ष्मजीव और सूक्ष्म तत्व ऑन ,जमीन में भूमि जल स्तर को ऊपर लाने वाले प्रयासों तथा वर्षा जल संचयन के प्रयासों को बढ़ावा देकर तथा देसी गायों ,फसलों के देशी बीजों की प्रजातियां को संरक्षित करते हुए, गायों के मूत्र एवं गोबर के प्रयोग को शामिल करते हुए तथा देशी बीजों को प्रयोग को फसल उत्पादन में बढ़ावा देते हुए उचित तथा लाभकारी एकल फसल चक्र पद्धति के स्थान पर बहू फसली खेती की फसल चक्र को अपना कर नवीन विधियों के साथ-साथ पारंपरिक विधियों को शामिल करते हुए कृषक परिवारों जिसमें जानवर भी शामिल है समाज ,सरकार और बाजार की जरूरत के हिसाब से फसलों का नियोजन अथवा चयन करते हुए ,स्वस्थ समाज की कामना करते हुए ,कम से कम खर्चे में अथवा शून्य लागत पर जो खेती की जाती है उसे ही प्राकृतिक खेती कहते हैं यह खेती देसी बीजों, देसी गाय, देसी केंचुआ, देसी पद्धतियों, देसी गाय के मल मूत्र एवं गोबर के प्रयोग पर आधारित इनपुट तथा देसी परंपराओं पर आधारित खेती करने का तरीका है।
3. क्षति Earth or soil, जल Water, पावक Solar Emergy, गगन Sky or Cosmic Energy or Brahamand Urja in form of 27 Nakshtra. Each Nakshtra having 4 , समीरा Air or Vayu
पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीव की उत्पत्ति उपरोक्त पांच तत्वों के द्वारा मिलकर हुई है या बनी है। उपरोक्त पांचो तत्व प्रकृति से हमें प्राप्त होते हैं जिनके लिए प्रकृति हमें कोई बिल नहीं भेजती।
उपरोक्त पांच महाभूत 108 एलिमेंट अथवा तत्वों से बने हुए होते हैं । जिनको चार श्रेणी में बांटा गया है। प्रथम श्रेणी में कार्बन, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन तत्व आते हैं। दूसरी श्रेणी में नाइट्रोजन ,फास्फोरस तथा पोटाश तत्व आते है। तीसरी श्रेणी मैं कैल्शियम मैग्नीशियम तथा सल्फर आते हैं और बाकी सारे तत्व 99 तत्वों को सूक्ष्म तत्वों के रूप में अलग श्रेणी में रखा गया है।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा कच्ची शर्करा तथा ऑक्सीजन का निर्माण होता है। कच्ची शर्करा पौधों को भोजन के रूप में जड़ों के पास पाए जाने वाले सूक्ष्म रेशों के द्वारा प्राप्त होती है।ऑक्सीजन हमारे श्वसन क्रिया में सहायक होती है। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पौधों के पत्तों में पाए जाने वाले हरित कड़ जिसको क्लोरोफिल कहते हैं भी सहायक होते हैं। प्रति वर्ग फुट पत्तों के द्वारा 1250 किलो कैलोरी सूर्य ऊर्जा अवशोषित होती है जिसमें से सिर्फ एक परसेंट अर्थात 12.5 किलो कैलोरी ऊर्जा ही पत्तों में संग्रहित की जा सकती है। किस प्रकार से पौधों की जीवन चक्र तो पौधों को भोजन मिलता रहता है।
6CO2+6H20 --sunlight , Chlorophyll
------C6H12o6 +6o2
1 दिन में एक स्क्वायर फीट पौधे का हरा पत्ता 4.5 ग्राम कच्ची शर्करा का निर्माण करता है जिसमें से कुछजड़ों के द्वारा पौधों को भोजन के रूप में प्रदान किया जाता है तथा कुछ पौधों के विकास में काम में आता है ।
4. हवा नाइट्रोजन का महासागर है। पौधे हवा से नाइट्रोजन सीधे प्राप्त नहीं करते हैं बल्कि वह नाइट्रेट के रूप में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया के द्वारा नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर पौधों को प्रदान करते हैं। यह बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं सिंबायोटिक बैक्टीरिया और एबायोटिक बैक्टीरिया। राइजोबियम माइकोर्रहिज़ा और ब्लू ग्रीन algae सिंबायोटिक बैक्टीरिया होते हैं जबकि एजोटोबेक्टर तथा Pseudpmonas आदि बैक्टीरिया असहजीवी बैक्टीरिया होते हैं। इस प्रकार से इन बैक्टीरिया की मदद से पौधों को नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
5.Phasphate Solveliging bacteria के द्वारा फास्फोरस जमीन के अंदर पौधों को मिलता है । भूमि में फास्फेट के रूप में पाया जाता है जबकि पौधों को एक कला के रूप में चाहिए दो कन वाले फास्फेट को एक कन वाले फास्फेट में बदलने का काम फास्फेट सॉल्युबिसिंग बैक्टीरिया करते हैं।
6, पोटाश भूमि में अनेक कानों के रूप में होता है. जंगल में एक जीवाणु होता है उसका नाम कहते हैं बेसिलस सिलिक्स जो विभिन्न कनों के फास्फेट को एक कण में बदल देता है।
7. उपरोक्त पद्धतियों के आधार पर जंगल में पौधों को विभिन्न प्रकार के खाद्य तत्व माइक्रो एलिमेंट्स के रूप में प्राप्त होते हैं।
8. जीव पदार्थों के अवशेषों के विघटन से जैविक कार्बन बनता है इस क्रिया में बहुत सारे सूक्ष्म जीवाणु सहायक होते हैं।
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