Sunday, September 7, 2025

खेती में रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से होने वाले दुष्परिणाम

1.जैवविविधता का विनाश । तितली, मधुमक्खियां, भौंरे, मकड़ियां, सांप ,मेंढक, घोंघा, केचुआ, मिलीपीड,वेलवेट Mite गिद्ध,tatha जमीन के अंदर पाए जाने वाले बहुत सारे सूक्ष्मजीव मार रहे हैं। तथा तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बिगड़ने से हानिकारक जीवों की संख्या बढ़ रही है। इसके लिए खेतों की मैड पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर पेड़ लगाए। 
मुख्य फसल के साथ-साथ sahफसल अथवा अंतर फसल लगाई जाए । मधुमक्खियां आदि को आकर्षित करने फूलों वाली फसलों को खेतों के चारों तरफ लगाई जाए।
2,. मिट्टीमे ऑर्गेनिक कार्बन घट रहा है। I इसके लिए हरी खाद जैसे नील,सनाई, ढांचा,मूंग आदि फसलों को मुख्य फसल के बोने से पहले बोया जाए तथा उनको इस खेत में हाल चाल कर ट्रैक्टर चला कर दबा दिया जाए। तथा रासायनिकखादों  की जगह गोबर क खाद
 इस्तेमाल की जाए। फसलों तथ
 फसलों के अवशेषों का अच्छा धन किया जए । 
3. जमीन बंजर हो रही है।

4. मिट्टी की उर्वरा शक्ति घट रही है। जीवामृत घन जीवामृत तथा बीज अमृत आदि का प्रयोग किया जाए।
5. जहरीले खाद्य पदार्थों का उत्पादन हो रहा है। सुरक्षित फसलों के उत्पादों का उत्पादन किया जए  इसके लिए रसायनों का इस्तेमाल कम से कम अथवा ना कियाजए । 6.मनुष्यों तथा जानवरों  में कई तरह की बीमारियां पन पने लगीं हैं।
7. पानी, हवा, मिट्टी आदि प्रदूषित होने लगे है। Rasayanon tatha audyogik ikaiyon se nikale hue Pani aadi ka prayog sinchai ke liye Na kiya jaaye. 

8,. मिट्टी जहरीली होने लगी है। Mitti mein rasayanon ka upyog kam se kam kiya jaaye.
9. मनुष्य एवं पशुओं के खाद्यपदार्थ मे जहरीले कीटनाशकोके अवशेष मिल रहे है। राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य पदार्थों के अंदरपाए जाने वाले की विनाशों के अवशेषों की जांच की  जाए तथा जाच के दौरान जिन इलाकों में फसल उत्पादों में कीटनाशकों के अवशेषों की मात्रा अधिक पाई गई हो उन क्षेत्र में रासायनिक किट रस को का इस्तेमाल शक्ति से काम किया जाए ।
10. फसल उत्पादन लागत बढ़ रही है। प्राकृतिक खेती में तथा आईपीएम में रसायनों का इस्तेमाल कम होने की वजह से उत्पादन लागत काम होजाती हैं। 

11.मानव तथा पशुओं एवं जमीन की पतिक्षात्मक शक्ति घट रही है। आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती के उपयोग से प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ जाएगी।
12. ग्लोबल वार्मिंग k दुष्प्रभाव सामने आ रहे है । तुम अपनी वली फसलों के बोने से ग्लोबल वार्मिंग का
 खतरा कम हो जाता है।
13.फसल पारिस्थितिक तंत्र में जैव विविधता समाप्त हो रही है। खेतों में लाभदायक जीवन की संख्या घट रही है। ऊपर बताया हुआ है।
14. खेतों के चारों तरफ पेड़ों तथा पेड़ों पर पक्षियों की संख्या संख्या कम हो रही है। इसके लिए खेतों की मेलो पर पेड़ लगाए।
15. प्रकृति के संसाधन घट रहे हैं। पानी का स्टार नीचे की ओर जा रहा है। कहीं-कहीं पर पानी बहुत नीचे चला गया है तथा कहीं-कहीं पर पानी ऊपर भी आ गया है इस स्थिति को रोकने का प्रयास किया जाए ।

16. मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या काम हो रही है जिससे ऑर्गेनिक कार्बन नहीं बन पा रहा। प्राकृतिक खेती के इन पुश का प्रयोग किया जाए। 
17. मशीनीकरण से किसानों के पास जानवरों की संख्या घट रही है। 
18. अनुभवी किसने की संख्या घट रही है। 
19. नवयुवकों में खेती के पति रुझान घट रहा है । नवयुवकों में खेती के प्रति रुझान पैदा किया जए । 
20.रसायनों के प्रयोग से फसलों के उत्पादों की उत्पादन दर घट रही है या स्थाई बन चुकी है। प्राकृतिक खेती के लगातार प्रयोग से यह उत्पादन दर बढ़ सकते हैं ।
21. फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता घट रही है। आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती को अपने से फसल पारिस्थितिक तंत्र की सक्रियता बढ़ सकती है।
22. किसने की आत्महत्यआएं । फसल लागत कम होने की वजह से किसानों को लोन नहीं लेना पड़ेगा और उनकी आत्महत्या में काम हो सकते हैं।
23. किसानों पर बैंकों का लोन
24. कार्बन नाइट्रोजन का अनुपात बिगड़ गया है। 17वो शताब्दी में कार्बन एवं नाइट्रोजन का अनुपात एक परसेंट था जो अब काम हो रहा है । प्राकृतिक खेती तथा आईपीओ को अपने से कम रेशों बढ़ सकता है।
25. जमीन के नीचे पानी का स्तर 
   नीचे चला गया । ट्यूबवेल के द्वारा जमीन से पानी को ना निकल जाए। 
26. मिट्टी में ह्यूमस खत्म हो रहा है। पशुओं तथा पौधों के अवशेषों के सड़ने से हमस की निर्मित होती है जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। Prakrutik kheti ke istemal se Yunus badh sakta hai।

27. खेतीस जुड़े हुए व्यापारीकिसानों का शोषण कर रहे हैं । प्राकृतिक खेती में कोई भी इनपुट बाहर से खरीदना नहीं पड़ता है इसलिए किसानों का शोषण बंद हो सकता है।
याद रहे आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती के क्रयान्वयन
 करते समय उपरोक्त सभी दुष्परिणामों को दूर करने की कोशिश की जाती है और उसके हिसाब से आईपीएम तथा प्राकृतिक खेती के इनपुट खेती में प्रयोग किए जाते हैं।
ध्यान रहे पंचमहा भूत अर्थात क्षति,जल, पावक,गगन ,समीरा
को समझना तथा इनका प्रबंध करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है ।
प्रकृति  की परस्पर्ता के साथ जीना तथा प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना प्राकृतिक खेती कहलाता है। 
प्राकृतिक खेती के सभी इनपुट आईपीएम में इस्तेमाल किया जा सकते हैं।
मिट्टी की उर्वरl शक्ति की क्षमता के हिसाब से ही खेती करनी चाहिए या फसलों को बोना चाहिए । मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना प्राकृतिक खेती का प्रथम कुल क्षेत्रफल का 25% क्षेत्रफल में जंगल होना चाहिए ।
देश तथा परिवार जिसमें जानवर भी शामिल हो की जरूरत के हिसाब से फसलों का चयन व नियोजन करके हीफसले बनी चहिए ।
फसलों,गायों, के परंपरिक प्रजातियों का संरक्षण करना चाहिए ।
किसी धंधा नहीं बल्कि संस्कृति है ।
खेती में canopy बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन डालते हैं 
फसल के ताने को मजबूती देने के लिए फास्फोरस डालते है तथा चमक लाने के लिए पोटाश डालते हैं ।
खेती करने मैं98.5 percent  nutrients are taken fromAir,Water and Solar  by the crops or         plants and only 1.5percent nutrients taken from soil.
जीवामृत, घन जीवामृत, बीजमृत, एवं वनस्पतियों के ark प्राकृतिक खेती के प्रमुख इनपुट है। जीवामृत तथा घन जीवामृत के प्रयोग से जमीन में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है तथा देसी केंचुआ जो जमीन में समाधि में चले गए हैं वह ऊपर आ जाते हैं जिनके साथ न्यूट्रिएंट भी ऊपर आ जाते हैं ।


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