2। प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार या उसे व्यवस्था में सुधार करके जब खेती की जाती है तब उसे प्राकृतिक खेती कहतेहैं।
3, जीवामृत ही सिर्फ प्राकृतिक खेती नहीं है यह प्राकृतिक खेती का एक घटक है । जीव जंतु ऑन तथा पौधों की उत्पत्ति कार्बनिक पदार्थ से हुई है। मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु भी कार्बनिक पदार्थ पर निर्भर रहते हैं। जब यह माइक्रोऑर्गेनाइज्म कार्बनिक पदार्थ कोखाते हैं तो एक प्रकार का भाई प्रोडक्ट बनताहै जिसमेंबहत सारे लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुह होते हैं ।
4, प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करने में निम्नलिखित चार चीज़ आते हैं।
*भूमि की उर्वरता
*पानी। सिटही जल और भगर्भ जल
*जलवायु जिसमें कम से कम 25 परसेंट वनस्पतियां होनी चाहिए।
*जैव विविधता का माहौल बनाकर संरक्षण।
वनस्पतियों का भोजन होता है मरे हए जीव । रसायनों के उपयोग से लाभदायk जीवाणु मर जाते हैं । जब जमीन में ह्यूमस काम होता है तो जमीन में पानी रोकने कीक्षमता घट जाती है। जीवामृत तथा कार्बनिक पदार्थ से ह्यूमसबनत है। लूमोस से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है । प्रकट के वैभव को सजा कर कर की प्राकृतिक खेती की जा सकती है। प्रकट के वैभव को सजाने का अर्थ होता है उपरोक्त बताई हुई चारो चीजे को सही मात्रा में मिट्टी में उपस्थित होना।
जीवामृत के बनाने की वधि
*ऑर्गेनिक कार्बन युक्त जंगल में पेड़ पधों
की पत्तियां आदि के सड़ने से तैयार मिट्टी 2.5 केजी।,गुड 2.5 kg, आते.5 kg पानी 100 लीटर इस पदार्थ को प्रतिदिन डंडे से चलना चाहिए तथा इसमें 15 दोनोंबद और 1 किलो गुड़ तथा इसकेबद फिर 10 दिन बाद एक किलोआत एवं 1 किलोगल्ड मिलान इस प्रकार से जीवामृत 70 दोनों तैयार हो जाएगा।
घन जीव अमृतबनाने कk यह एक कुंटल गोबर की खाद में उपरोक्त बनाहुआ जीव अमृत 20% सड़े हुए गोबरम तीन-चार dinaun मैं घन जीव अमृत बन जाता है । जीवामृत तथा गंगाजीवमृतन का उपयोग उपयोग बोलने से पहले पलावाक टाइम पर कर देनाचहिए।
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