Friday, July 31, 2020

स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन ,स्वस्थ समाज एवं उत्तम पर्यावरण हेतु ऑर्गेनिक फार्मिंग और आईपीएम अपनाएं.

 दोस्तों जीवन को आरामदायक बनाने के लिए स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन, अनुशासित जीवन चर्या एवं योगाभ्यास  ,उत्तम पर्यावरण एवं जीवन में संतुलन बनाए रखना अति आवश्यक है l जिसके लिए जैविक खेती या ऑर्गेनिक खेती और IPM   पद्धतियां अपनाएं  l
      दोस्तों कवियों ने कहा है की
    पहला सुख निरोगी काया
    दूसरा सुख जो घर में माया
    तीजा सुख जो   पुत्र आज्ञाकारी
      चौथा सुख जो घर  सुकुमारी
 अर्थात जीवन को सुखमय बनाने के लिए निरोगी काया अथवा बीमारी रहित शरीर का होना अति आवश्यक है और स्वस्थ शरीर के लिए तथा बीमारी रहित काया स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन को उगाना और समाज को उपलब्ध करवाना एक मात्र विकल्प है  l
   सुरक्षित एवं स्वस्थ भोजन भोजन उगाने के लिए कृषि कार्य में या फार्मिंग में जहरीले रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध होने वाले प्रयोग को कम करना और अगर हो सके तो बिल्कुल ना करना एक मात्र उपाय हैं l इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट  को अपनाकर फसल उत्पादन में  रसायनिक कीटनाशकों एवं  रसायनिक उर्वरकों  के उपयोग को कम किया जा सकता है एवं इनका उपयोग उपयोग बिल्कुल ना करने से जैविक कृषि अथवा ऑर्गेनिक फार्मिंग के द्वारा रसायन रहित कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है l सरकार के द्वारा चलाए जा रहे ग्रो सेफ फूड  campaign के द्वारा कृषकों एवं खेतिहर मजदूरों तथा आईपीएम के सभी भागीदारों के बीच में जागरूकता पैदा की जा रही है एवं उनको प्रशिक्षित भी किया जा रहा है l   खाद्य सुरक्षा एवं सुरक्षित भोजन  उत्पादन करने वाली वाली   विधियों को एक साथ अपनाकर सुरक्षित भोजन का उत्पादन किया जा सकता है जिसके लिए फसल उत्पादन हेतु रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग को ना किया जाए l
 जिस भोजन को खाने से शरीर को कोई नुकसान ना होता हो या जिसका शरीर पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़ता है उसे सुरक्षित भोजन कहते हैं l कृषि उत्पादों या भोजन  के उत्पादन हेतु विभिन्न प्रकार के रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जाता है जिससे इन कीटनाशकों एवं उर्वरकों के अवशेष भोजन उत्पादों  मैं आ जाते हैं और वह भोजन श्रंखला के द्वारा हमारे शरीर में पहुंचकर विभिन्न प्रकार की बीमारियां पैदा करते हैं l सबसे ज्यादा मिलावट आजकल खेती व उससे उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों में हो रही है जो रसायनिक कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग करने से होती है अतः स्वस्थ फसल उत्पादन हेतु खेतों में रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का  न्यायोचित इस्तेमाल करें या हो सके तो बिल्कुल ना करें और ऑर्गेनिक खेती या जैविक खेती को बढ़ावा दें l रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर  पशुओं , वनस्पतियों  आदि पर आधारित  कृषि इनपुट  के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए जिससे उत्पन्न होने वाले कृषि उत्पादों में सायनिक कीटनाशकों के अवशेषों की संभावना कम की जा सके l स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन ही स्वस्थ समाज की निशानी है l  स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन ही स्वस्थ जीवन का आधार है l
   दूसरा खानपान क्या खाया जाए और क्या ना खाया जाए यह भी बहुत आवश्यक है अनुभव के आधार पर यह बताया जाता है कि अधिक नमक  ,maida ,चीनी  एवं जंक फूड को  खाने से बचा जाए l
 सही जीवन शैली  या लाइफस्टाइल के बगैर ham स्वस्थ नहीं रह सकतेl loop
  खेत ,खलियान, किसानों की दशा इतनी अच्छी नहीं है जितने की होनी चाहिए l किसानों व मजदूरों को विशेष महत्व देने की आवश्यकता है जो कि अभी तक उपेक्षित होते रहे हैं बहुत सारे सरकारी योजनाएं भी कृषक हितेषी नहीं है  l
खेती जोखिम भरा व्यवसाय है अतः उसको प्राकृतिक तरीके से बर्बाद होने पर उचित मुआवजा भी देना चाहिए तथा इसको प्राकृतिक आपदा मैं शामिल करना चाहिए l
     शुद्ध भोजन के लिए हम तरस या छत पर बागवानी को महत्व दे सकते हैंl  प्रतिदिन योगाभ्यास एवं व्यायाम से स्वस्थ समाज बना सकते हैं l योगा विभिन्न बीमारियों को दूर करता है और समाज को स्वस्थ रखने में मदद करता है l खेती या जैविक खेती एवं एक ही क्लास में जो प्रबंधन के द्वारा हम सुरक्षित खेती को बढ़ावा दे सकते हैं और जहर मुक्त खेती बना सकते हैं l मैं विभिन्न बीमारियों से छुटकारा दिला सकती है l
      आरामदायक जीवन के लिए प्रकृति और उसके संसाधनों का संरक्षण करना अति आवश्यक है जिसके लिए मनुष्य का योगदान अति आवश्यक है l प्रकृति को बचाएं उसका संरक्षण करें तभी हमारे जीवन का संरक्षण हो सकता है l
 स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन स्वस्थ समाज एवं उत्तम पर्यावरण हेतु आईपीएम एवं ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती को अपनाने एवं बढ़ावा दें l



Sunday, July 26, 2020

Different types of pestsविभिन्न प्रकार के हानिकारक जीव

 फसल पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के नशे जीव पाए जाते हैं जिनको उनके द्वारा पहुंचाई जाने वाले नुकसान या हानि, विभिन्न नाशि जीवो के बीच में  हानि का तुलनात्मक अध्ययन करके सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने एक ही क्षेत्र में पाए जाने वाले वाले दो-तीन  प्रभावशाली हानिकारक जीव  या  pest, एक ही क्षेत्र में सामान्य रूप से हानी ना पहुंचा कर कुछ विशेष पॉकेट मैं सक्रिय कुछ हानिकारक जीव, किसी विशेष फसल में प्रतिवर्ष प्रभावशाली स्तर तक हानि पहुंचाने वाले हानिकारक जीव या pests आदि विभिन्न प्रकार के श्रेणियों में बांटा जा सकता हैl  जिनके अनुसार निम्नलिखित प्रकार के  pests   पाए जाते हैं l
1.Key Pests  की pests:-
         किसी विशेष खेत या फसल पारिस्थितिक तंत्र में या क्षेत्र में पाए जाने वाले किसी विशेष pest complex के बीच में पाए जाने वाले विभिन्न  हानिकारक जीवो में से कुछ दो या तीन सबसे अधिक हानि पहुंचाने वाले या प्रभावशाली हानिकारक जीवो को Key pests  कहते हैं l   यह हानिकारक जीव पेरिनियल प्रकृति के होते हैं जो संपूर्ण वर्ष  किसी फसल को महत्वपूर्ण  स्तर तक हानि पहुंचाते हैं l  इनका तुरंत प्रभावी नियंत्रण किया जाता है l

2.Endemic pests:-
किसी भी   हानिकारक जीव को किसी विशेष क्षेत्र या    locality  में किसी विशेष फसल में प्रतिवर्ष महत्वपूर्ण स्तर तक प्रकट होना एंडेमिक पेस्ट कहते है l occurrence of pest in a low level in few pocket, regularly and confined  to a particular area  .
3.Sporedic pests:- वह हानिकारक जीव जो किसी विशेष क्षेत्र या किसी विशेष फसल पर्यावरण में विशेष वर्ष में अलग-अलग स्थानों पर पॉकेट में महत्वपूर्ण स्थिति के रूप में प्रकट होता है Sporedic Pest कहलाता है l Occurs in isolated pockets during same period.
 4.Regular pest::-Frequently occurring pest .
5.Occasional Pest.:-Infrequently occurring pests.
6.Persistent Pest:-Occurs throughout yearand difficult to control.
7 Pest Epidemic:- Sudden outbreak of pest in severe form in few areas or in pockets .
8 Seasonal pests.:-Occrs inparticular season every year as tremendous increase .such as Red hairy Catterpillar on groundnut and Mango hoppers.
9. Pest resurgence :- Tremandus increase in pest population about by Insecticides.

Saturday, July 25, 2020

Provocative and favurable conditions leading the pest problems

The following activities and problems give rise the emergence of the pest problems.
1.Indiscriminate use of certain chemical pesticides and fertilizers leading the resurgence  pest resistance,,damage of ecosystem and biodiversity give rise the emergence of the certain pest problems.
2.Burning of crop residue in the fields itself  kills various beneficials found in agroecosystem which are helpful  to regulate the pest population in the agroecosystem.
3.Adoption of same crop rotation
4.Stacking of the crop residue near the crop fields.
5.Growing of other preferable host crops.
6 Misuse of the natural resources.
7. Growing of susceptible varieties 
8.Brealing of resistance.
9.Growing of infested seeds.
10.

Wednesday, July 22, 2020

नाशि जीव अर्थात Pest

 pest शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच वर्ड peste तथा लेटिन वर्ड पेस्टिसpestis से हुई है जिन का अर्थ होता है troublesome अर्थात मनुष्य को  तकलीफ पहुंचाने वाला या नुकसान पहुंचाने वाला या हानि पहुंचाने वाला जीव l कोई भी  हानिकारक जीव मनुष्य को आर्थिक दृष्टिकोण से ,सामुदायिक स्वास्थ्य की दृष्टि से ,पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने की दृष्टि से, जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने की दृष्टि से   ,प्राकृतिक संसाधनों एवं समाज को किसी भी प्रकार से हानिपहुंचा सकता है lकोई भी जीव जो मनुष्य को आर्थिक दृष्टि से तथा अन्य प्रकार से हानि पहुंचाता है नाशी जीव अथवा  Pest कहलाता है l परंतु हमारे विचार से संसार का कोई भी जीव ना सी जीव या हानिकारक जीव या पेस्ट नहीं होता है l वह पारिस्थितिक तंत्र की एक इकाई होता है lअगर कोई भी जीव नासि जीव की तरह व्यवहार करता है तो वह मनुष्य के द्वारा  srijit  या बनाई गई उत्तेजक परिस्थितियों provocative conditions  के कारण ही व्यवहार करता है l खेती करते समय  किसान भाई  निम्न प्रकार   उत्तेजक गतिविधियां खेतों में करते हैं  जिससे  विभिन्न प्रकार के  हानिकारक जीव  या pests   उत्पन्न होते हैं l
1. खेतों में रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करने से pest resurgence and pest resistance  विकसित होता है  जिससे pests  की संख्या अचानक  बढ़ जाती है l अथवा वह अपने अंदर एक प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है  इससेpests  कुछ कीटनाशकों के छिड़काव से भी नहीं मरते हैं l
2. खेतों में पाए जाने वाले फसलों के अवशेषों को खेतों में जलाने से विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव जो कि हानिकारक जीवो की संख्या पर नियंत्रण रखते हैं भी नष्ट हो जाते हैं और pests की संख्या  बाद में बढ़ जाती है lसाथ ही साथ फसल पारिस्थितिक तंत्र नष्ट होजाता है l
3. एक ही प्रकार के फसल चक्र को एक जगह पर बार-बार अपनाने से फलो में पाए जाने वाले हानिकारक कीटों या जीवो का जीवन चक्र में रुकावट नहीं होती है और वह हर साल एक समस्या के रूप में उभर कर आते रहते हैं l
4. फसलों के नजदीक फसलों के अवशेष को एकत्रित करने से अगली फसल में फसलों को पहुंचाने फसलों को हानि पहुंचाने वाले ना सीजी वो संख्या को बढ़ने के लिए एक स्रोत मिल जाता हैl
5. किसी भी एक क्षेत्र में प्रतिवर्ष पाए जाने वाले हानिकारक जीव की पसंद की फसल को उगाने से उस हानिकारक जीव की संख्या हर साल बढ़ती रहती है या प्रभावी स्तर पर पहुंचती रहती हैl
6. प्राकृतिक संसाधनों  का दुरुपयोग करना   l
7.फसलों की pest susceptible  प्रजातियों का  बोना l
8. नासिक  जीव  हानिकारक जीवो में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना l
9 हानिकारक जीवो से ग्रसित बीजों का को   बोना l
10.
मनुष्य इस पृथ्वी पर प्रकृति को नष्ट करने वाला  सबसे बड़ा विनाश कारी जीव है या हानिकारक जीव है l यद्यपि इसको प्रकृति का सिरमौर अथवा टॉप ऑफ द क्रिएचर कहा जाता है और परमात्मा ने इसमें विवेक अथवा सेंस आफ डिस्क्रिमिनेशन की शक्ति प्रदान की हुई है l परंतु इसके बावजूद वह इस शक्ति का प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए दुरुपयोग करता है तथा प्राकृतिक  तथा प्रकृति के संसाधनों को दुरुपयोग तथा अधिक उपयोग करके नष्ट करता है l मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो प्रकृति के संसाधनों का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है अर्थात वह भोजन का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है ,पानी का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है ,पेड़ पौधों और साग सब्जियों का भी उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है l वह  प्रकृति के संसाधनों का उपयोग ना करके उनका दुरुपयोग करता है जिससे प्रकृति मैं पाए जाने वाला प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ जाता है  l जिसका  दुष्प्रभाव  मनुष्य के ही जीवन पर पड़ता है l  मनुष्य की इच्छाएं बढ़ती जाती है और वह कभी पूरी नहीं होती lएक इच्छा पूरी होने के बाद दूसरी इच्छा जागृत हो जाती है जिसे पूरी करने के लिए मनुष्य प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है l प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की वजह से प्रकृति में विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं जिनका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है l excess of everything is bad अर्थात प्रत्येक चीजों की अधिकता अच्छी नहीं होती l ग्लोबल वार्मिंग अर्थात पृथ्वी के ताप क्रम मैं बढ़ोतरी तथा जलवायु परिवर्तन जैसे दुष्परिणाम मनुष्य के द्वारा की जाने वाली विभिन्न प्रकृति विरोधी गतिविधियों के ही दुष्परिणाम है l जिनकी वजह से विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं natural disasters उत्पन्न होती है जिनका मनुष्य के जीवन पर बहुत बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है l विभिन्न प्रकार के समुद्री तूफानों की घटनाएं ,बेमौसम की बरसात तथा बाढ़, आंधी और तूफान की घटनाएं ,बादलों से बिजली गिरने ओले की घटनाएं मैं बढ़ोतरी, बादलों का फटना ,जमीन का फटना, देश के विभिन्न इलाकों में  भूकंप के झटके,  फसलों  में विभिन्न प्रकार के हानिकारक कीटों  की महामारी आ, मनुष्यों में विभिन्न बीमारियों की महामारिया आदि विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदाएं या नेचुरल डिजास्टर्स समय-समय पर देखने को मिलती है या इनकी घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है l जिसके लिए  मनुष्य स्वयं ही जिम्मेदार है l
 अभी हाल में भारत में टिड्डियों  की महामारी भी जलवायु परिवर्तन का ही एक परिणाम है l जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तानी क्षेत्रों में तापमान और वर्षा में वृद्धि तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात पुरानी ट्रॉपिकल साइक्लोन से जुड़ी हुई तेज हवाएं कीट प्रजनन ,विकास और प्रवास के लिए एक नया वातावरण प्रदान करती है हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों  जैसे राजस्थान ,मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और गुजरात के  विभिन्न जिलों में   locusts  के बड़े आक्रमण झुंड  ने हमला किया था वह भी जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम स्वरूप हुआ था l  विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार के नाशि जीवो  की महामारी व आउटब्रेक का होना तथा विभिन्न प्रकार के कीटों व बीमारियों की समस्याओं में वृद्धि होना मनुष्य के द्वारा फसल पारिस्थितिक तंत्र  को नष्ट करने का ही  परिणाम है l जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए तथा उस को स्थायित्व प्रदान करने के लिए प्रकृति व जीवन के बीच में संतुलन होना बहुत ही आवश्यक है जीवन व प्राकृतिक संतुलन के नष्ट होने से बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाते हैं l जब हम प्रकृति को नष्ट करते हैं तथा अपने स्वार्थ के लिए उसका दुरुपयोग करते हैं तथा प्रकृति को अपने अनुसार चलने के लिए प्रेरित करते हैं तो प्रकृति हमारे ऊपर दुष्परिणाम डालती है जिनकी वजह से बहुत सारी प्राकृतिक समस्याएं जिनमें से नाशिजीवो की समस्याएं भी उत्पन्न होती है l जब हम पारिस्थितिक तंत्र तथा अपने प्रतिरोधी सिस्टम व पर्यावरण के सिस्टम से समझौता करते हैं तभी हमें विभिन्न प्रकार की परेशानियां देखने को मिलते हैं l कोरोना प्रॉब्लम भी इसी प्रकार की समस्या है जो कि हमारे शरीर मैं इम्यून सिस्टम या प्रतिरोधी क्षमता की कमी के कारण होती है l अभी करो ना रोकथाम के लिए संपूर्ण भारत वर्ष में लगाया गया लॉकडाउन के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रदूषण कम हुए और हमें आसमान में तारे स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे नहीं  तो पहले प्रदूषण की परत आसमान  में छा जाने की वजह से तारे भी स्पष्ट रूप से नहीं दिखा दिखाई पड़ते
उसकी आर्थिक हानि स्तर  के नीचे तक की संख्या रहने पर  उसे हानिकारक जीव नहीं मानते हैं l

Sunday, July 19, 2020

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट(आईपीएम)हमारे विचार से

 दोस्तों मेरे विचार से इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अथवा आईपीएम अथवा एकीकृत नासि जीव प्रबंधन वनस्पति संरक्षण की कोई विधि नहीं है बल्कि यह वनस्पति संरक्षण करने की अथवा खेती करने की एक विचारधारा है अथवा एक प्रकार का कांसेप्ट है l इससे पहले कि हम एकीकृत नlसी जीव प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दें यह जरूरी है कि हम यह अवश्य जान लें की विचारधारा या कंसेप्ट क्या होते हैं और वह किस तरीके से विकसित होते हैंl दोस्तों पृथ्वी पर जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अथवा अपना जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए हम विभिन्न प्रकार की गतिविधियां करते हैं जिससे दो प्रकार के परिणाम मिलते हैं एक प्रकार के वह  परिणाम जो हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप होते हैं और दूसरे प्रकार के वह  परिणाम जो हमारी इच्छा  एवं आकांक्षाओं के विपरीत होते हैं l इनमें से जो परिणाम हमारे आकांक्षाओं व इच्छाओं के अनुरूप होते हैं अगर वह परिणाम समाज के द्वारा स्वीकार कर लिए जाते हैं और किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए उनका प्रयोग धरातल पर किया जाने लगता  है तो   उनको हम विचारधारा या कंसेप्ट कहते हैं l तथा जो परिणाम  हमारे आकांक्षाओं  के विपरीत होते हैं  और वह समाज के द्वारा  स्वीकार नहीं किए जाते  उन्हें  lessons कहते हैं  जिनको भविष्य में कभी प्रयोग नहीं किया जाता lयह विचार धाराएं अथवा कंसेप्ट हमारी इच्छाओं के बदलने के साथ साथ बदल जाते हैं lअतः किसी कंसेप्ट से लाभ उठाने के लिए हमारी हमें अपनी इच्छाओं को काबू  मैं रखना चाहिए l
        नासि जीव प्रबंधन  अथवा  Pest  Management :--------
 किसी भी हानिकारक जीव की संख्या  को किसी भी प्रकार से इस स्तर तक सीमित रखना कि उस से होने वाला नुकसान नगण्य हो Pest Management    कहलाता है l जब हानिकारक जीवो की संख्या को प्रबंधन करने हेतु एक से अधिक विधियों का प्रयोग किया जाता है तो उसे इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अथवा एकीकृत नाशि जीव प्रबंधन कहते हैं l यह नाशिजीव प्रबंधन  की बेसिक विचारधारा या   कांसेप्ट हैl 
किसी भी कंसेप्ट या विचारधारा को स्वयं के प्रोफेशनल, सामाजिक, आर्थिक ,पर्यावरणीय  और प्राकृतिक अनुभव के आधार पर परिभाषित करना चाहिए l उस विचारधारा के प्रति अपनी स्वयं की सोच विकसित होती है l अक्सर यह देखा गया है  कि किसी भी विचारधारा की परिभाषा को हम अपने वरिष्ठ सहयोगी यों   अधिकारियों ,वैज्ञानिकों अथवा गूगल पर दी गई परिभाषा ओं के आधार पर अध्ययन करते हैं एवं उन को परिभाषित करते हैंl  हमारे विचार से किसी भी कंसेप्ट या विचारधारा को अपने अनुभव के आधार पर परिभाषित करना चाहिएl यहां पर मैं यह भी उल्लेख करना चाहता हूं की हमारे पूर्वज वरिष्ठ साथियों, वैज्ञानिकों अथवा गूगल पर दी गई  किसी भी विचारधारा की परिभाषाएं गलत  नहीं  होती है  परंतु यह  भाषाएं उनकी स्वयं की सोच को प्रदर्शित करती हैं ना कि आपकी अपनी सोच को l किसी भी कंसेप्ट या विचारधारा के बारे में स्वयं को शिक्षित करना चाहिए तथा अपने अनुभवों के आधार पर अपनी सोच को भी समावेशित करके उस कांसेप्ट या विचारधारा को परिभाषित करना चाहिए l
 IPM एक प्रकार का खेती करने का तरीका अथवा विचारधारा है इसमें कम से कम खर्चा करके ,कम से कम रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हुए  ,सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता, प्रकृति व समाज को कम से कम हानि पहुंचाते हुए वनस्पति संरक्षण या नाशिजीव प्रबंधन की सभी  मौजूदा संभावित ,कम खर्चीली  ,समाज के द्वारा स्वीकार ली सभी विधियों को सिस्टमैटिक तरीके से समेकित रूप से प्रयोग करके फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखा जाता हैl
    lintegrated Pest Management(IPM) एक प्रकार का स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम है जिसमें हम कृष को, कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं तथा अन्य सभी भागीदारों को कम खर्चे में रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का कम से कम प्रयोग करते हुए तथा समाज, सामुदायिक स्वास्थ्य ,प्रकृति, जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र आदि को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए अधिक से अधिक एवं खाने योग्य सुरक्षित फसल उत्पादन , तथा व्यापार योग्य गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पाद का उत्पादन करते हैं l
      हमारे हिसाब से देश का हर किसान अपने खेतों में एकीकृत नासिजीव प्रबंधन  अपना ता है क्योंकि वह कृषि उत्पादन एवं कृषि रक्षा अथवा फसल उत्पादन तथा फसल फसल रक्षा हेतु संस्तुति की गई सभी पद्धतियों, गतिविधियों एवं प्रैक्टिसेस को अपने खेत में फसल उत्पादन हेतु अपनाता है परंतु फिर भी हम इसको एकीकृत ना शि जीव प्रबंधन नहीं कहते हैं  क्योंकि  फसल उत्पादन करते समय  कृषक सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,प्रकृति व समाज की सुरक्षा को ध्यान में नहीं रखते हैं l  वनस्पति रक्षा का कार्यक्रम जब  सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,प्रकृति व समाज की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए क्रियान्वयन किया जाता है तब ही उसे आईपीएम अथवा एकीकृत नासि जीव प्रबंधन कहते हैंl 
IPM  समाज प्रकृति वा जिंदगी  के सभी पहलुओं से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जो समाज ,जीवन व प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए क्रियान्वयन की जाती है l
        IPM  अथवा एकीकृत नाशिजीव प्रबंधन वनस्पति संरक्षण अथवा प्लांट प्रोटेक्शन का वह तरीका है जिससे समाज ,प्रकृति व पर्यावरण का हित सुनिश्चित हो सके l plant protection  अथवा वनस्पति संरक्षण  फसल उत्पादन हेतु की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों मैं से एक प्रकार की गतिविधि हैं जिससे हम फसलों को उनके हानिकारक जीवो और विभिन्न प्रकार के अजैविक कारकों से सुरक्षित रखते हैं l इस प्रकार से IPM  एक प्रकार का खेती करने का अथवा फसलों को हानिकारक जीवो व विभिन्न प्रकार के अजैविक कारकों से सुरक्षित रखने का एक तरीका है जिसमें फसलों की उत्पादकता ,गुणवत्ता तथा पर्यावरण ,प्रकृति व समाज की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए फसलों के हानिकारक जीवो की संख्या को  फसल पर्यावरण में  अथवा फसल पारिस्थितिक तंत्र में  आर्थिक हानि स्तर के नीचे  सीमित रखते हैं l 
      वैज्ञानिकों के द्वारा फसल अथवा कृषि उत्पादन हेतु समय-समय पर किए गए शोध कार्य एवं तकनीकी ओ को किसानों के द्वारा अपनाया गया और फसल उत्पादन मैं वृद्धि करके देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया गया l   अक्सर यह भी देखा गया है जब जब फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई विधियों को सही तरीके से नहीं प्रयोग किया गया  तभी वैज्ञानिकों के द्वारा बताई गई एवं अपनाई गई विधियों के द्वारा दुष्परिणाम प्राप्त हुए जिससे जान- माल ,पर्यावरण एवं प्रकृति तथा समाज से संबंधित दुष्परिणाम प्राप्त हुए lअतः किसी भी वैज्ञानिक विधि को सही तरीके से अपनाने से ही वंचित नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं  l  प्रायः यह भी देखा गया है कि फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु किए जाने वाले रसायनिक उर्वरकों एवं रसायनिक कीटनाशकों के दुरुपयोग से समाज ,पर्यावरण ,प्रकृति तथा पारिस्थितिक तंत्र संबंधी दुष्परिणाम मिले हैं l दुष्परिणामों से बचने के लिए फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण हेतु एकीकृत नlसी जीव प्रबंधन नाम की एक पद्धति विकसित की गई जिसके अनुसार फसलों का संरक्षण अथवा फसलों की रक्षा सामुदायिक स्वास्थ्य ,पारिस्थितिक तंत्र ,पर्यावरण ,प्रकृति व समाज को नुकसान पहुंचाए बिना किया जाता है l आईपीएम विचारधारा का मुख्य उद्देश्य देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, प्राकृति एवं सामाजिक विकास भी करना है   l जिससे समाज को खाने योग्य रसायनिक  कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अवशेषों से रहित सुरक्षित भोजन पहुंचाना सुनिश्चित किया जा सके ,साथ ही साथ विपणन हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन भी सुनिश्चित किया जा सके साथ ही साथ समाज पर्यावरण व प्रकृति के बीच सामंजस्य भी स्थापित हो सके और जीवन को संतुलित रूप से चलाया जा सके l जीवन व  प्रकृति के बीच में पाए जाने वाला संतुलन सब समाप्त होने लगता है और मनुष्य प्रकृति को अपनी तरह  डालने की कोशिश करने लगता है तभी प्रकृति के विपरीत परिणाम अथवा  प्रकृति के द्वारा दुष्परिणाम प्राप्त होने लगते हैं एवं हमारा जीवन कष्ट में होने लगता हैl इससे बचने के लिए प्रकृति एवं जीवन के बीच सामंजस तथा संतुलन रहना परम आवश्यक है l इसके लिए  प्रकृति को प्रकृति की तरह   व्यवहार करते रहने लायक बनाए रखना आवश्यक हैl
      बुद्धिमत्ता पूर्वक, विवेक पूर्वक तथा समझ बूझ के साथ वनस्पति संरक्षण करना आईपीएम कहलाता है l  lPM is a way of doing plant protection,with intelligence,sense of discrimination and understanding. 
     प्रकृति व समाज के भावी विकास को ध्यान में रखते हुए वनस्पति संरक्षण करना आईपीएम कहलाता है l 
   IPM is a vision for the betterment of future and nature.
     आईपीएम विचारधारा से लाभ प्राप्त करने हेतु हमें आईपीएम प्रैक्टिसेज को सही तरीके से खेतों में लागू करना चाहिए l
     आजकल के सामाजिक ,आर्थिक ,प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा यानी इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति ,समाज हितेषी लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,आय को बढ़ाने वाली तथा समाज , प्रकृति व जीवन के बीच  सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए  तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, प्राकृतिक, पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र, विकास करने वाली होनी चाहिए l 
  In view of today's social,natural,ecological, environmental, economical scenarios and context the concept of crop production and protection or IPM must be safe, sustainable, profitable,business and income oriented, and harmonious with nature and society.
   किसी भी विचारधारा को सही तरीके से क्रियान्वयन करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति, सही विजन ,काम करने का जज्बा ,समय रहते सही कदम उठाना ,किसी भी कीमत पर सफलता प्राप्त करना आदि प्रमुख मंत्रास है जिनको माननीय प्रधानमंत्री  जी ने Corona वायरस की रोकथाम के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति में शामिल किया था और उससे करो ना की रोकथाम मैं सफलता प्राप्त हुई l  इस रणनीति से हमें सीख लेनी चाहिए कि जब हम बगैर दवाई के कोरोना की रोकथाम कर सकते हैं तो बगैर रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग से हम रसायन कीटनाशकों के अवशेषों  रहित फसल उत्पादों का उत्पादन कर सकते हैंl  बस जरूरत है जन सहयोग की ,जन आंदोलन की ,एक प्रबल इच्छाशक्ति की ,सही नेतृत्व की ,सही समय पर कदम उठाने की, IPM inputs को सही समय पर कृषकों को उपलब्ध कराने की और सही विधियों को सही तरीके से अपनाए जाने कीl
     IPM सामाजिक ,फसली तथा प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र ओं को सही तरीके से कार्यरत रहने एवं करने के लिए सुविधा प्रदान करता हैl
   IPM  अहिंसा, संवेदनशीलता, सहानुभूति ,सहनशीलता एवं सामंजस्य के सिद्धांतों पर आधारित वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है  IPM is a concept which is based on the principles related with nonviolence, sensitivity,sympathy,tolerance and hormony. 
 जियो और जीने दो, फसलों में पाए जाने वाले सभी लाभदायक एवं हानिकारक जीवो के प्रति सहानुभूति रखें, नासि जीवो की संख्या को ईटीएल सीमा के नीचे तक की संख्या तक के नुकसान को सहन करें, समाज और प्रकृति के बीच तालमेल बनाकर आईपीएम करें तथा रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग प्रथम प्रयोग के रूप में ना करें तथा कम से कम करें या किसी आपातकालीन स्थिति से  निपटान हेतु  ही करें l
       

यह आईपीएम क्रियान्वयन के प्रमुख सिद्धांत हैl IPM वनस्पति संरक्षण ,प्रकृति एवं समाज के बीच संबंध स्थापित करने का एक तरीका है l आईपीएम क्रियान्वयन करते समय फसल पर्यावरण  में पाए जाने वाले जमीन के ऊपर तथा जमीन के नीचे पाए जाने वाले सभी सूक्ष्मजीवों एवं सूक्ष्म तत्व का ध्यान रखते हुए करें l पीएम का क्रियान्वयन करते वक्त फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण की उन सभी विधियों का प्रयोग ना करें जिनका समाज प्रकृति पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव विविधता आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l फसलों में लाभदायक जीवो के संरक्षण हेतु इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग विधि अपनाएं l 
      आई पीएम का मुख्य उद्देश्य फसल उत्पादन एवं फसल  रक्षा मैं  प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रभुत्व को कम करना है परंतु इसका यह कतई मतलब नहीं है की आईपीएम रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के खेती में उपयोग के खिलाफ हैl IPM  फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु उपयोग उपयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के उपयोग के कतई खिलाफ नहीं है परंतु इनके दुरुपयोग के खिलाफ अवश्य हैl अतः आई पीएम के क्रियान्वयन हेतु सबसे पहले फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु किया जाए किए जा रहे रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुरुपयोग को रोकना हमारी प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए l इसके बाद ही हम कृषि उत्पादन एवं कृषि रक्षा मैं प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के उपयोग को रोक सकते हैं या कम कर सकते हैं l
       अक्सर यह देखा गया है कि केआईपीएम के अधिकांश भागीदार तथा स्टेकहोल्डर आईपीएम को सिर्फ प्लांट प्रोटक्शन या वनस्पति संरक्षण तक ही सीमित रखते हैं जबकि ऐसा नहीं है lआईपीएम जीवन  व समाज के हर पहलू से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है जिसमें प्लांट प्रोटक्शन या वनस्पति संरक्षण के साथ-साथ कृषकों की संपन्नता ,उनके स्वास्थ्य उनको तथा समाज को सुरक्षित सुरक्षित भोजन प्रदान करना , अर्थात समाज को खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करना , रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के द्वारा नष्ट हुए पारिस्थितिक तंत्र ओं तथा  जैव विविधता का पुनर स्थापन करना, तथा समाज व प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करना आदिअन्य उद्देश्य भी शामिल हैl इसके लिए वनस्पति संरक्षण करते समय बिना रसायनिक कीटनाशकों तथा उर्वरकों की विधियों को बढ़ावा देना ,लाभदायक फसल चक्र अपनाना प्रति यूनिट एरिया से अधिक लाभ लेना, क्षतिग्रस्त फसल पर्यावरण या फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन करना, जीरो बजट पर आधारित  तथा कृषकों के पुराने अनुभव पर  आधारित फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की विधियों को बढ़ावा देना आदि गतिविधियों को बढ़ावा देना परम आवश्यक है l इसके लिए प्रकृति की फसल उत्पादन व्यवस्था को अध्ययन करके फसल सुरक्षा तथा फसल उत्पादन अथवा फसल रक्षा तथा IPM पद्धतियों को व्यावहारिक रूप से शामिल करना अति आवश्यक है l रासायनिक उर्वरकों एवं  रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को फसल उत्पादन तथा फसल सुरक्षा मैं कम करने के लिए गाय ,गोबर, मूत्र आदि पर आधारित practices ,लाभकारी  फसल चक्र की खोज और उन को बढ़ावा देना, मिश्रित खेती को बढ़ावा देना, हरी खाद केंचुआ खाद  एवं कंपोस्ट खाद के प्रयोग को बढ़ावा देना, पशुओं के मल मूत्र पर आधारित   methods को बढ़ावा देना ,मिट्टी की उर्वरा शक्ति  को  बढ़ाने वाली  तकनीको को बढ़ावा देना आवश्यक हैl

Saturday, July 18, 2020

Locust Control -,Experience of managing locust control Operations in SDA and Cold Desert areas.

Locust Control is a community  ,Integrated and global approach with global strategy as developed ,described and specified by FAO.Being a global pest the locust control efforts at global level are coordinated by FAO.Specific approach for specific stage of locust at specific location is required to control locust.Different strategies of locust control  are required to control locust in different locations nd different terrains  are needed to control locust.I have got the experience of managing locust control Operations both in Scheduled Desert Area of Rajasthan Haryana  and Gujarat states along with IndoPak border areas and   Cold desert areas  of kargil and Leh districts of Ladakh region of the then J And K  states I.e.along with Indo China border areas .. Which are having different types of terrains and ecological conditions.Earlier the Scheduled Desert Area was mostly dry area having less humidity but now due the formation of Indira Gandhi Canal now the many areas of the  Scheduled Desert Area have conveted in to cropped area in most of the localities and is now  need to be  redefined but the Cold desert area was found  full of moisture due availability of Glacials   ,Rivers and water  channels and also having pasture lands . 
        During June to August 2006Migratory locust has emerged as a serious pest in Zanskar valley of Distt kargil and Changthang valley of Leh distt.J and K state.Temp of both zanskar religions well as Changthang valley  ranges from 20-30,Cduring August 2006. 
   In Changthang area river Indus and its tributaries were found making conditions most suitable for locust breeding.Most of the area long the River Indus was found sandy and desert in nature called as Cold desert.
   Religious sentiments prevented the locust control Operations on few occassions .pasture ares and area of wild life sanctuary was spared fom spray of insecticides.
   China is not the member of FAO hence no global cooperation with China Govt could be established either by FAO or by Indian Govt.  
      Locust population was also found floating in water flowing in the water channels ,found hidden under the pebbles etc.Due to low temperature the flying of the adults of the migratory locust was started late which give us more time of conducting spraying of insecticides on ground.After flying starts no spraying was possible as there was no provision of aerial spraying in Ladakh region for the control of migratory  locust.
    Similar types of control strategy was adopted in both types of desert areas except in Cold desert area where small equipments like micro ulva and knapsack sorters are used in cold desert area whereas in SDA big control equipments like Micronair AU586 and Ulvamast were used by LWO.
     elocust I and elocust II, RAMSES,(Reconnaossance And Monitoring of Environment of Schistocerca ,),systems were used for locust Surveillance and monitoring  .

Monday, July 13, 2020

Combat the Locust Emergency in the year of invasion itself to prevent to become plague like situation in future.

Though Locust is not a regular pest but it needs regular attention for monitoring its population both at national and global level and also to keep Locust Warning Organisation(LWO) on alert and in readiness with all control potential combat sudden Locust emergency or invasions,outbreaks and upsurges.
  Presently India is facing the the problem of locust invasions since 2019 which also continued during 2020.During this year i e.2020 India faced worst locust swarms invasions through IndoPak  border areas which also migrated to various states of India.This is the biggest locust swarm invasion after 1993.This is the second year of locust emergency being faced by our country continuously. 
 We must must combat this problem of locust during this year itself to prevent the chances of the formation of locust plague like situation in future which India has not noticed since 1962 onwards which is considered as  the biggest achievement on locust control in India.

Friday, July 10, 2020

Let's allow nature to behave like nature to avoid the emerging problems.

Let's use right technology at right time,with right way,for right purpose,to get right results.
 Let's not misuse the technology which may leads the adverse effects on Environment, ecosystem, nature and Society. 
 Let's not misuse the resources whether they are natural or artificial,biotic or abiotic.
Use the resources only for the benefits of others,maintain harmony with nature and society. 
       Life is operated ,sustained and maintained by the nature ,its resources and ecosystems and society.There is a need to maintain harmony with nature and society.There is also a need to maintain balance among nature,life ,and society.
       Life is an integrated system which is a combination of various types of circumstances such as happiness and sorrow,good and bad, comfortable and uncomfortable conditions, agreements and disagreements ,favurable and unfavorable conditions and which are being faced by us and also  are  combated by us .To combate these situations we are compromising with the nature and its resources and systems called ecosystems. All these good or bad conditions are results of our reactiveness and actions to the nature and society which is done by us to make our life more and more comfortable.The life is made comfortable on the cost and destruction nature and its ecosystems .More and more comfort of life means more and more destruction of nature and its ecosystems. 
     We the humanbeing or   Man is the biggest destroyer of the nature and its various ecosystems.W e are getting the problems because of loss of balance in our life  with the nature.When the balance gets upset then the reaction takes place which create the problems.We have to bring about the balance on our life.We have compromised with our ecological system ,We have compromised with the immune system of our body due to which we are getting various types of problems like Corona .This is Lord's way of teaching .or the nature's way of teaching..Let's not destroy the nature and allow the nature to behave  like nature to sustain life on earth.

Saturday, July 4, 2020

कृषिशिक्षा एवं अनुसंधान का कृषि में योगदान

O I'm आज के दौर में करोड़ों रुपए कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान पर खर्च होते हैं l कि तू  उस ज्ञान का उपयोग खेती को बढ़ावा देने के लिए या उसको प्रमोट करने के लिए नहीं हो पा रहा है l कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निकले हुए कृषि स्नातक एवं परास्नातक विद्यार्थी या वैज्ञानिक कृषि के कार्य को स्वतंत्र रूप से करने तथा कृषि को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं रहते हैं बल्कि वहi white collar job  अर्थात office    और  प्रशासनिक पोस्टों पर कार्य करना ज्यादा पसंद करते हैं इसके साथ-साथ हुए अगर सरकारी विभाग में नौकरी ना मिले तो वह कारपोरेट सेक्टर में जाना पसंद करते हैं या बैंकों में जाना पसंद करते हैं परंतु खेती के कार्य को बढ़ावा देना या उस में भागीदारी करना पसंद नहीं करते हैं lयह हमारी शिक्षा नीति मैं कमी है l  हमारे कृषि विश्वविद्यालयों ने यह तय नहीं कर पाया है कि उन्हें कृषि स्नातक किसान बनाने हैं  जो  हमारी खेती  के कार्य में सहायक हो सके  तथा खेती को बढ़ावा देने के लिए  अपना योगदान दे सकें  अथवा उनको  एग्रीकल्चर  या कृषि के ज्ञान युक्त  कृषि के कार्यालयों में  या बैंकों में   या  फार्मास्युटिकल्स में  या कारपोरेट सेक्टर में  एक प्रकार के बाबू या क्लर्क के रूप में काम करने वाले बाबू बनाने है l पर यह देखा गया है कि कृषि विश्वविद्यालय से निकला हुआ विद्यार्थी जोकि परास्नातक एवं पीएचडी की डिग्री धारी होता है स्वतंत्र रूप से खेती के कार्य करने में सक्षम नहीं होता या रुचि नहीं लेता है तथा उनके ऊपर विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया खर्च व्यर्थ जाता है l अतः हमें कृषि विश्वविद्यालय के मैंडेट पर पुनर्विचार करना पड़ेगा तथा इस प्रकार से शिक्षा देनी होगी की विश्वविद्यालयों से निकले हुए वैज्ञानिक स्वतंत्र रूप से खेती कर सकें तथा खेती के कार्य को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकें l इसके लिए हमें कुछ नियमों में भी परिवर्तन करना होगा कि कृषि स्नातक वैज्ञानिक या पीएचडी होल्डर वैज्ञानिकों को कुछ  दिनों तक कृषकों के मध्य रह करके भारतीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए उसमें सुधार लाने के लिए अपने ज्ञान का एवं कृषकों के ज्ञान के साथ अपना ज्ञान समन्वय करके कृषि क्षेत्र में अपने अनुसंधान का प्रयोग करके भारतीय कृषि को स्ट्रैंथ इन या सुदृढ़ बनाने में मददगार सिद्ध हो सके l 
      प्रय : यह देखा गया है कि सरकारी योजनाओं एवं वैज्ञानिक तकनीकी ओं का सही प्रकार से क्रियान्वयन किसानों के बीच नहीं हो पाता है और किसान अपने हिसाब से मेहनत करके फसल उगाता है और अगर एक ही फसल की पैदावार ज्यादा होता है तो कई बार रेट धराशाई हो जाते हैं और किसानों को नुकसान सहन करना पड़ता है l  से बचने के लिए किसानों को सरकार की योजनाओं तथा वैज्ञानिक तकनीकी ओं का का भली-भांति ज्ञान होना चाहिए l जिसे वह कृषि उत्पादन मैं प्रयोग कर सकें तथा अपनी इनकम को बढ़ा सकें और देश के विकास में अपना योगदान और अधिक दे सके l  प्राय यह देखा गया है कि जब भी कोई कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता कृषकों के मध्य जाता है तो वह किसी विशेष विषय का ज्ञान रखता होता है परंतु किसान यह उम्मीद करता है की वह प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता उसकी सभी प्रकार की आर्थिक ,सामाजिक ,राजनैतिक एवं कृषि संबंधी सभी प्रकार की समस्याओं का निवारण कर सकें l इस प्रकार की क्वालिटी एक सक्षम कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता मैं होनी भी चाहिए इससे वह कृषकों को संतुष्ट कर सकेl कृषक भाई लर्निंग बाय डूइंग मेथड के द्वारा किसी के ज्ञान को सुगमता से सीख सकते हैं l जिसके लिए उनकी लोकेलिटी यहां उनके गांव मैं ही कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के द्वारा कृषि तकनीकी का demonstration  करना आवश्यक होता हैl
 अतः कृषि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शिक्षा की पद्धति में लर्निंग बाय डूइंग मेथड को प्राथमिकता देना आवश्यक है l स्नातक एवं परास्नातक विद्यार्थियों को कृषकों के बीच में कम से कम 1 वर्ष या सीजन लॉन्ग practical training कोर्स को भी शामिल करना चाहिए जिससे हुए खेती करने की पद्धति से भलीभांति अवगत हो सकें तथा कृष को को खेती करने में  आने वाली समस्याएं उनकी सोशियो इकोनामिक की जानकारी समस्याएं आर्थिक समस्याएं प्राकृतिक समस्याएं एवं आपदाएं नीति संबंधी समस्याएं या विपणन संबंधी समस्याएं की जानकारी एवं उन से बचने के उपाय हो की समझ भी विद्यार्थियों एवं भावी वैज्ञानिकों के बीच में उत्पन्न हो सके l

Friday, July 3, 2020

IPM __ To develop understanding among farmers for doing Farmingshould be the the mandate of IPM .कृष को में खेती करने कीसमझ को विकसित करनाआई पीएम का प्रमुख कार्यक्षेत्र होना चाहिए l

फसल सुरक्षा एवं फसल उत्पादन से संबंधित समस्याएं कृषि इनपुट तथा प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से ही उत्पन्न होती है l
 इनके सही और समुचित उपयोग से सुरक्षित खेती की जा सकती है जिसे हम आईपीएम खेती कह सकते हैंl 
   फसल सुरक्षा एवं फसल उत्पादन  क्रिया या प्रैक्टिसेस को बुद्धिमत्ता पूर्वक, विवेक   पूर्वक  तथा समझ बूझ के साथ प्रयोग करना आईपीएम कहलाता  है l
IPM is a way of doing plant protection with intelligence ,sense of discrimination  and understanding .
      प्रकृति व समाज के भावी विकास को ध्यान में रखते हुए और करते हुए वनस्पति संरक्षण करना IPM  कहलाता है l
       IPM is a vision for betterment of future and nature . It is a vision for future, Environment, ecosystem ,society and nature . IPM is way of doing plant protection with a vision for betterment of environment ,nature,ecosystem ,future, society and nature.
      खेती farming करने के लिए प्राकृतिक ecosystem  को फसल उत्पादन करने के अनुरूप बदल करके किया जाता है जो ज्यादातर प्रकृति की गतिविधियों द्वारा नियंत्रित होता है जिनका प्रकृति व समाज पर प्रभाव एवं दुष्प्रभाव भी पड़ता है अतः खेती करने के लिए हमें उन गतिविधियों का प्रयोग करना चाहिए जिन का दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,बायोडायवर्सिटी ,प्रकृति व समाज पर  ना  पढ़ सके l

Thursday, July 2, 2020

आई पीएम केक्रियान्वयन हेतु आईपीएम के कार्यक्षेत्र या मैंडेट में बदलाव भाग 2

O1. प्रकृति और उसके संसाधनों जैसे हवा, मिट्टी ,जल, वन्य जीव ,वनों के पौधे, औषधियों तथा जमीन में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों तथा सूक्ष्म तत्व के लिए हितेषी  वनस्पति संरक्षण की विधियों का विकास करना तथा उन विधियों का जमीनी स्तर पर ट्रायल करके आईपीएम के पैकेज आफ प्रैक्टिसेज मैं शामिल करना  l
2. पारिस्थितिक तंत्र के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल  पदार्थों से निर्मित कृषि उत्पादन एवं फसल सुरक्षा के प्रयोग में आने वाले आईपी m इनपुट्स का विकास करना तथा उनकी उपलब्धता को कृष को को सुनिश्चित करना l
3. किसी विशेष agro-climatic  जॉन के लिए विशेष प्रकार की उपयुक्त के संरक्षण की विधियों विकसित करना अर्थात जोन वाइज आईपीएम पैकेज आफ प्रैक्टिस को विकसित करना तथा उनको  कृष को को और  राज्यों के के कृषि अधिकारियों  को उपलब्ध करवाना l
4.  विभिन्न जोंस के लिए लाभकारी फसल चक्र का चयन करना तथा उनका जमीनी स्तर पर ट्रायल करना l
5. ecological engineering तथा मिक्स क्रॉपिंग के फसल चक्र  का चयन करना एवं उनका जमीनी स्तर पर ट्रायल करके फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले लाभकारी जीवो को संरक्षण करना l
6. पृथ्वी के संरक्षण हेतु बड़े वाले वृक्ष जैसे पीपल ,बरगद, नीम ,आमला ,तुलसी तथा अन्य औषधीय पौधों के रोपण को बढ़ावा देना l
7. मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करके उसकी गुणवत्ता के आधार पर सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्वों की आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों एवं न्यूट्रिएंट्स का प्रयोग करके उनका संरक्षण करना l 
8. किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की समाज व प्रकृति हितेषी methods का संकलन करना उनका वैलिडेशन करना तथा उनको लोकल आईपीएम पैकेज आफ प्रैक्टिसेज में शामिल करना l
9. गाय ,गोबर, मूत्र घरों के कचरा ,फसलों के अवशेष सो ,आदि पर आधारित तकनीकी ,लाभकारी फसल चक्र की को शामिल करना ,मिश्रित खेती को बढ़ावा देना, हरी खाद के प्रयोग को बढ़ावा देना, पशुओं के मल मूत्र पर आधारित विधियां ,मिट्टी की आवश्यकता एवं उर्वरा शक्ति को  बढ़ावा देना से संबंधित methods  आदि को बढ़ावा देना आईपीएम कार्यक्षेत्र में सम्मिलित किया जाए l
10. मुर्गियों के मल ,भेड़, बकरियों के मिंगनी तथा मूत्र, गोमूत्र तथा गाय के गोबर वर्मी कंपोस्ट, एनिमल मैन ओर हुमन वेस्ट पर आधारित उर्वरकों, ग्रीन मैन्यूरिंग , केचुआ पर आधारित  केचुआ खाद ,जीवामृत  नीम के पौधे पर आधारित इनपुट को बढ़ावा दिया जाए l