1. खेतों में रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करने से pest resurgence and pest resistance विकसित होता है जिससे pests की संख्या अचानक बढ़ जाती है l अथवा वह अपने अंदर एक प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है इससेpests कुछ कीटनाशकों के छिड़काव से भी नहीं मरते हैं l
2. खेतों में पाए जाने वाले फसलों के अवशेषों को खेतों में जलाने से विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव जो कि हानिकारक जीवो की संख्या पर नियंत्रण रखते हैं भी नष्ट हो जाते हैं और pests की संख्या बाद में बढ़ जाती है lसाथ ही साथ फसल पारिस्थितिक तंत्र नष्ट होजाता है l
3. एक ही प्रकार के फसल चक्र को एक जगह पर बार-बार अपनाने से फलो में पाए जाने वाले हानिकारक कीटों या जीवो का जीवन चक्र में रुकावट नहीं होती है और वह हर साल एक समस्या के रूप में उभर कर आते रहते हैं l
4. फसलों के नजदीक फसलों के अवशेष को एकत्रित करने से अगली फसल में फसलों को पहुंचाने फसलों को हानि पहुंचाने वाले ना सीजी वो संख्या को बढ़ने के लिए एक स्रोत मिल जाता हैl
5. किसी भी एक क्षेत्र में प्रतिवर्ष पाए जाने वाले हानिकारक जीव की पसंद की फसल को उगाने से उस हानिकारक जीव की संख्या हर साल बढ़ती रहती है या प्रभावी स्तर पर पहुंचती रहती हैl
6. प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग करना l
7.फसलों की pest susceptible प्रजातियों का बोना l
8. नासिक जीव हानिकारक जीवो में कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकसित होना l
9 हानिकारक जीवो से ग्रसित बीजों का को बोना l
10.
मनुष्य इस पृथ्वी पर प्रकृति को नष्ट करने वाला सबसे बड़ा विनाश कारी जीव है या हानिकारक जीव है l यद्यपि इसको प्रकृति का सिरमौर अथवा टॉप ऑफ द क्रिएचर कहा जाता है और परमात्मा ने इसमें विवेक अथवा सेंस आफ डिस्क्रिमिनेशन की शक्ति प्रदान की हुई है l परंतु इसके बावजूद वह इस शक्ति का प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए दुरुपयोग करता है तथा प्राकृतिक तथा प्रकृति के संसाधनों को दुरुपयोग तथा अधिक उपयोग करके नष्ट करता है l मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो प्रकृति के संसाधनों का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है अर्थात वह भोजन का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है ,पानी का उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है ,पेड़ पौधों और साग सब्जियों का भी उपयोग आवश्यकता से अधिक करता है l वह प्रकृति के संसाधनों का उपयोग ना करके उनका दुरुपयोग करता है जिससे प्रकृति मैं पाए जाने वाला प्राकृतिक संतुलन भी बिगड़ जाता है l जिसका दुष्प्रभाव मनुष्य के ही जीवन पर पड़ता है l मनुष्य की इच्छाएं बढ़ती जाती है और वह कभी पूरी नहीं होती lएक इच्छा पूरी होने के बाद दूसरी इच्छा जागृत हो जाती है जिसे पूरी करने के लिए मनुष्य प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है l प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की वजह से प्रकृति में विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं जिनका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है l excess of everything is bad अर्थात प्रत्येक चीजों की अधिकता अच्छी नहीं होती l ग्लोबल वार्मिंग अर्थात पृथ्वी के ताप क्रम मैं बढ़ोतरी तथा जलवायु परिवर्तन जैसे दुष्परिणाम मनुष्य के द्वारा की जाने वाली विभिन्न प्रकृति विरोधी गतिविधियों के ही दुष्परिणाम है l जिनकी वजह से विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं natural disasters उत्पन्न होती है जिनका मनुष्य के जीवन पर बहुत बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है l विभिन्न प्रकार के समुद्री तूफानों की घटनाएं ,बेमौसम की बरसात तथा बाढ़, आंधी और तूफान की घटनाएं ,बादलों से बिजली गिरने ओले की घटनाएं मैं बढ़ोतरी, बादलों का फटना ,जमीन का फटना, देश के विभिन्न इलाकों में भूकंप के झटके, फसलों में विभिन्न प्रकार के हानिकारक कीटों की महामारी आ, मनुष्यों में विभिन्न बीमारियों की महामारिया आदि विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदाएं या नेचुरल डिजास्टर्स समय-समय पर देखने को मिलती है या इनकी घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है l जिसके लिए मनुष्य स्वयं ही जिम्मेदार है l
अभी हाल में भारत में टिड्डियों की महामारी भी जलवायु परिवर्तन का ही एक परिणाम है l जलवायु परिवर्तन के कारण रेगिस्तानी क्षेत्रों में तापमान और वर्षा में वृद्धि तथा उष्णकटिबंधीय चक्रवात पुरानी ट्रॉपिकल साइक्लोन से जुड़ी हुई तेज हवाएं कीट प्रजनन ,विकास और प्रवास के लिए एक नया वातावरण प्रदान करती है हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान ,मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और गुजरात के विभिन्न जिलों में locusts के बड़े आक्रमण झुंड ने हमला किया था वह भी जलवायु परिवर्तन के ही परिणाम स्वरूप हुआ था l विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार के नाशि जीवो की महामारी व आउटब्रेक का होना तथा विभिन्न प्रकार के कीटों व बीमारियों की समस्याओं में वृद्धि होना मनुष्य के द्वारा फसल पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने का ही परिणाम है l जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए तथा उस को स्थायित्व प्रदान करने के लिए प्रकृति व जीवन के बीच में संतुलन होना बहुत ही आवश्यक है जीवन व प्राकृतिक संतुलन के नष्ट होने से बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाते हैं l जब हम प्रकृति को नष्ट करते हैं तथा अपने स्वार्थ के लिए उसका दुरुपयोग करते हैं तथा प्रकृति को अपने अनुसार चलने के लिए प्रेरित करते हैं तो प्रकृति हमारे ऊपर दुष्परिणाम डालती है जिनकी वजह से बहुत सारी प्राकृतिक समस्याएं जिनमें से नाशिजीवो की समस्याएं भी उत्पन्न होती है l जब हम पारिस्थितिक तंत्र तथा अपने प्रतिरोधी सिस्टम व पर्यावरण के सिस्टम से समझौता करते हैं तभी हमें विभिन्न प्रकार की परेशानियां देखने को मिलते हैं l कोरोना प्रॉब्लम भी इसी प्रकार की समस्या है जो कि हमारे शरीर मैं इम्यून सिस्टम या प्रतिरोधी क्षमता की कमी के कारण होती है l अभी करो ना रोकथाम के लिए संपूर्ण भारत वर्ष में लगाया गया लॉकडाउन के दौरान विभिन्न प्रकार के प्रदूषण कम हुए और हमें आसमान में तारे स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे नहीं तो पहले प्रदूषण की परत आसमान में छा जाने की वजह से तारे भी स्पष्ट रूप से नहीं दिखा दिखाई पड़ते
उसकी आर्थिक हानि स्तर के नीचे तक की संख्या रहने पर उसे हानिकारक जीव नहीं मानते हैं l
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