Monday, May 3, 2021
मानवीय गतिविधियों एवं जीवन चर्या से प्रकृति को होने वाला नुकसान
जैसा कि हमने पहले कई बार बताया है की मनुष्य अपने आप को प्रकृति का सिरमौर या टॉप ऑफ द क्रिएशन कहता है तथा अपने जीवन के अस्तित्व को कायम रखने के लिए वह कई प्रकार की गतिविधियां अथवा अपने जीवन चर्या इस प्रकार से बना लेता है कि उससे प्रकृति के विभिन्न संसाधन तथा जीवन के मूलभूत तत्व समाप्ति की ओर जा रहे हैं l पानी, ऑक्सीजन, मिट्टी, आदि आदि की गुणवत्ता एवं मात्रा दिन प्रतिदिन खराब एवं कम होती जा रही है l मिट्टी और पानी को तो मनुष्य बहुत दिनों से खरीद रहा है परंतु आजकल चल रहे इस वर्ष के करो ना काल में मनुष्य को अर्थात मरीजों के लिए ऑक्सीजन अथवा प्राणवायु को भी जीवन बचाने के लिए खरीदना अति आवश्यक हो गया है l यहां तक की मेडिकल ऑक्सीजन कि आजकल इतनीkoi कमी पड़ रही है की करो ना के मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए medical oxygen की कालाबाजारी तथा जमाखोरी चल रही है l कई मरीजों को उनकी जान से हाथ धोना पड़ रहा है l इसका मुख्य कारण है कि हमारे पर्यावरण में या वातावरण में ही ऑक्सीजन की इतनी कमी है कि वातावरण में मौजूदा सीजन से जीवन की रक्षा कर पाना बड़ा मुश्किल है इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को औद्योगिक रूप में औद्योगिक इकाइयों के द्वारा बनाना पड़ रहा है l इसके लिए मनुष्य स्वयं जिम्मेदार है l मनुष्य के द्वारा जंगलों की कटाई, प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग करने की वजह से यह स्थिति हो रही है l हमें अपने जीवन के अस्तित्व को कायम रखने के लिए प्रकृति व उसके संसाधनों का न्यायोचित इस्तेमाल ही करना चाहिए तथा उन्हें संरक्षण करना चाहिए l इसके लिए हमें प्रकृति हितैषी विधियों अथवा प्रकृति अनुकूल जीवन शैली या दिनचर्या अपनाना चाहिए l फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा के दौरान भी की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों से कई बार प्रकृति को तथा उसके संसाधनों को नुकसान पहुंचता है अतः हमें खेती करते समय फसल उत्पादन तथा फसल रक्षा करते समय प्रकृति हितैषी विधियों को बढ़ावा देना चाहिए l प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना उसके संसाधनों को बर्बाद करना जीवन के लिए घातक सिद्ध हो रहा है l रासायनिक खेती , जैविक खेती तथा अन्य प्रकार के खेती की पद्धतियों मैं की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों से प्रकृति व उसके संसाधनों को होने वाले नुकसान तथा उनके ऊपर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव का विवरण पिछले कुछ पोस्ट में दिया गया हैl खेती की जाने वाली प्रकृति विरोधी गतिविधियों को खेती की पद्धति में शामिल नहीं करना चाहिए साथ ही साथ अपने जीवन शैली को प्रकृति के अनुकूल ही रखना चाहिए l
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