Wednesday, August 12, 2020

खेती करने की पद्धतियों के विकासके संबंध मेंअपने कुछ विचार

दोस्तों भारत एक कृषि प्रधान देश है l भारत की कुल जीडीपी में कृषि की भागीदारी 17 परसेंट है जो कि 1951 में 61 परसेंट थी l अभी तक भारत में कुल 45 पर्सेंट भूमि ही सिंचित है जहां प्रति हेक्टर उत्पादकता का औसतन 4 टन है शेष 55 परसेंट भूमि वर्षा आधारित है जहां  जहां प्रति हेक्टर उत्पादकता 1.2 टन प्रति हेक्टर है l खेती अभी तक 45 परसेंट लोगों लोगों को रोजगार प्रदान करती है l कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर 5.9% होने की वजह से खेती देश की अर्थव्यवस्था का आधार है l
      दोस्तों खेती हमें हमारे समाज को सिर्फ भोजन ही नहीं प्रदान करती है बल्कि वह हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है l खेती किसानों का मुख्य धंधा है जिन पर उनकी लवली हुड या जीवन चर्या निर्भर करती है l खेती प्रकृति पर आधारित एक व्यवसाय है जो बहुत ही जोखिम भरा व्यवसाय है l देश का किसान ही एक ऐसा समाज एवं इंसान है जो अपने कमाई को खुले आसमान के नीचे रखता है l ऐसा कोई भी व्यक्ति चाहे वह व्यापारी हो या उद्योगपति अपनी कोई भी कमाई खुले आसमान के नीचे नहीं छोड़ सकता l यह हिम्मत सिर्फ भारतीय किसानों में ही है l खेती कई बार प्राकृतिक आपदाओं से बर्बाद हो जाती है और किसान का जीवन कष्ट में हो जाता है lकई बार बाढ़ आ जाने से ,ओले गिर जाने से ,बादल फट जाने से, आग लग जाने से ,सूखा पड़ने से ,किसी विशेष कीट  व बीमारी के अचानक महामारी के आ जाने से  कृषि का व्यवसाय चौपट हो जाता है और साथ ही साथ किसान का जीवन भी चौपट हो जाता है l कई बार देखा गया है कि सरकारी नीतियां व  कृषि में काम आने वाली technologies  या तकनीकी आ कृषि के उत्पादन तथा कृषकों के जीवन चर्या तथा उनकी समृद्धि पर विपरीत असर डालते हैं जिस से किसानों का जीवन कष्ट में होता है l कई बार देखा गया है की फसल बर्बाद होने के बाद अथवा फसल का उचित मूल्य ना मिलने के कारण किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं l अतः हमें  तकनीकी एवं नीतियों के विकास करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका विपरीत प्रभाव कृषकों के रहन सहन  एवं जीवन चर्या पर ना पड़े l
   फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई प्रकार के तकनीकी विकास किए गए l लगभग 20 प्रकार के कृषि उत्पादन एवं कृषि रक्षा से संबंधित मॉड्यूस बनाए गए l इन मॉड्यूस का तथा इन तक नीतियों technologies  का भारतीय किसानों ने भरपूर उपयोग किया एवं कृषि उत्पादन बढ़ाने में और भारत को भोजन के लिए आत्मनिर्भर बनाने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया अर्थात जो भी कृषि तकनीकी कृषि वैज्ञानिकों या सरकार के द्वारा किसानों को दी गई उसका उन्होंने सही समुचित उपयोग  किया और भरपूर लाभ उठाया l कृषि तकनीकों के विकास में एक महत्वपूर्ण चीज यह देखी गई कि कोई भी कृषि तकनीकी चाहे वह कृषि उत्पादन या कृषि रक्षा या अन्य किसी विचारधारा से संबंधित हो लगभग 10 से 15 साल तक ही अपना योगदान दे   सकी l उसके बाद  उनके कुछ ना कुछ दुष्परिणाम अवश्य सामने आने लगे l  उदाहरण के तौर पर अधिक  उपज देने वाली फसलों की किस्में वाली फसलों के बीजों  का विकास, सिंचाई के साधनों का विकास , रासायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का विकास एवं उनके के प्रयोग से हरित क्रांति का आगाज हुआ और देश का  खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना l परंतु  10 या 15 साल में ही अधिक उपज देने वाली फसलें विविन कीड़ों व बीमारियों के लिए susceptible  हो गई और विभिन्न प्रकार के कीड़े एवं बीमारियों की समस्याएं उत्पन्न हो गए l
  1960 के दशक के अंतिम  सालों में धान की अधिक उपज देने वालीvariety TN 1और IR8  जो धान के फसल को बढ़ाने के लिए प्रयोग की की जा रही थी वह Green Leaf hopper,Rice Tungro Virus, Bacterial Leaf Blight आदि  pests वा बीमारियों से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश ,बिहार ,उड़ीसा एवं मध्य प्रदेश  राज्यों में भयंकर रूप से प्रभावित हुई l इसके अलावा विभिन्न सिंथेटिक Pyrithroids  के प्रयोग से व्हाइटफ्लाई  नमक pests  की resurgence होने की वजह से वजह से 80 s के दशक में आंध्र प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कपास की फसल में व्हाइटफ्लाई का भयंकर प्रकोप देखने को मिला जिससे कपास की फसल पूर्ण रूप से बर्बाद हो गई और  कपास  की फसल की जगह इस फसल के स्थान पर हल्दी की फसल ली थी l यूरिया एवं नाइट्रोजेनस उर्वरकों के अधिक प्रयोग वाले क्षेत्रों में धान की फसल में कई स्थानों पर या कई प्रदेशों में Brown Plant Hopper or बीपीएच का प्रकोप भी देखा गया l 
 सन 2006 में BT cotton को व्यवहारिक रूप में    बोने की   मान्यता प्राप्त हुई थी l 10 साल तक BT Cotton  ने कॉटन बॉल worms के प्रति  प्रतिरोधक क्षमता दिखाइ l  सन 2016 में BT cotton  का का प्रतिरोधक क्षमता वाला  character  टूट गया और  उसमें पिंक बॉल वार्म  का अटैक गुजरात जैसे प्रांतों में देखने को मिला l अतः हम यह कह सकते हैं कि कोई भी टेक्नोलॉजी लगभग 10-15 साल तक अगर ठीक प्रकार से चलती है तो वह अच्छी टेक्नोलॉजी कही जा सकती है l
रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति व समाज से संबंधित दुष्परिणाम भी सामने आ गए जिनके लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किए गए और विभिन्न प्रकार की पद्धतियों का विकास किया गया lआजकल इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट और ऑर्गेनिक फार्मिंग आधुनिक पद्धतियां या विकास के प्रमुख उदाहरण है l

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