Friday, July 29, 2022

Different principles and modules of Safe and chemicalless Farming जहर मुक्त खेती के लिए कुछ सिद्धांत एवं सुझाव

जैसा कि पहले मैंने बताया है की आईपीएम जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती तीनों में प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों एवं विधियों से जहर मुक्त खेती की जा सकती हैl तीनों प्रकार की खेती के मॉड्यूल Bioecological  पारिस्थितिक तरीकों पर आधारित है जिसमें फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले भूमि के ऊपर तथा भूमि के नीचे के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी जैविक एवं अजैविक कार को का संतुलन ध्यान में रखते हुए खेती की जाती है तथा ऐसी विधियां प्रयोग की जाती है जिनसे पारिस्थितिक तंत्र संतुलित  एवं सक्रिय रहे  और इसके लिए प्रकृति, पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता हितैषी विधियां प्रयोग की जाती है l रसायन मुक्त खेती करने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार से हैl I..Fiew Major tips and principles of chemical less farming. 
1. भूमि को बलवान बनाया जाए l खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना l खेत की मिट्टी में पाय जाने वाले माइक्रो ऑर्गेनिक जमस, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स, ऑर्गेनिक कार्बन तथा ह्यूमस की मात्रा को ऑर्गेनिक तरीके से बढ़ाना जिसकी वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है l खेत में फसल अवशेषों के आच्छादन और सड़ने से पानी एवं माइक्रो organisms  के संरक्षण से खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है l धान गन्ना जैसी फसलों में नमी रखना आवश्यक है l
2. एक फसली फसल उत्पादन प्रणाली को बंद करना l  कृषकों एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की मांग पर आधारित फसल चक्कर अपनाना l अर्थात एक ही फसल को एक खेत में बार-बार नहीं लेना चाहिए एक फसल को लगभग 3 साल बाद उस खेत में लेना चाहिए l जमीन को खाली ना रखें l खेत में कोई ना कोई फसल आवश्यक होनी चाहिए जिससे बायोडायवर्सिटी या जैव विविधता कायम रहे l
3. अंतर फसली अथवा सहफसली खेती की प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिए  l जैसे गाजर के साथ प्याज तथा ज्वार के साथ लोबिया गेहूं के साथ चना एवं अरहर आदि l
4. Bio-diversity को बढ़ाना और उसका संरक्षण करना l अर्थात मुख्य फसल के साथ-स अन्य पौधे जैसे करौंदे की बेल, सूरजमुखी ,गेंदा धनिया आदि लगाएं जिससे मित्र कीट वापस आ जाएंगे l यह कार्य पारिस्थितिक अभियंत्रिकी  इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग के द्वारा किया जा सकता है l मुख्य फसल के  साथ बॉर्डर और इंटर क्रॉप के रूप में कीड़ों को आकर्षित करने वाले फसल जैसे गेंदा, सरसों, सूरजमुखी, धनिया एवं कुछ पेड़ों अथवा वृक्ष व लताओं आदि को  अवश्य लगाएं l  अपनी बनाई हुई खाद का प्रयोग किया जाए जैसे गोबर की खाद, हरी खाद ,पशुओं के मल मूत्र एवं मी गनियो से बनी हुई खाद का प्रयोग किया जाए l
5. कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच उचित अंतर रखना अति आवश्यक है सूरज की रोशनी पौधों को मिलती रहे तथा उनके बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह भी मिलती रहे जिससे पौधे स्वस्थ रहेंगे l
6. खेती के साथ-साथ पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी तथा उनसे प्राप्त गोबर से खाद बनेगी l
7. लाभदायक जीव जैसे Earthworms, मधुमक्खी विभिन्न प्रकार की मकड़ियां एवं लाभदायक ततैया की संख्या को बढ़ाया जाए l केचुआ खेतों में संरक्षण से प्राकृतिक जल संरक्षण या प्राकृतिक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कायम हो सके और वर्षा जल का संरक्षण हो सके l
8. प्रकृति की व्यवस्था, स्थानीय संसाधनों एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव विविधता को संरक्षित करते हुए, देसी बीज, देसी प्रजातियां ,देसी गाय तथा देसी methods घरों पर बनाए गए देसी गाय के गोबर तथा मूत्र से बनाए गए देसी इनपुट के द्वारा सुरक्षित खेती की जा सकती है l
9. अति आवश्यकता एवं अंतिम उपाय के रूप  मैं 1500 ppm से ऊपर वाला नीम ऑयल 5-7 एम एल प्रति लीटर पानी में शाम के समय per Acr Spray  करने से विभिन्न प्रकार के हानिकारक कारक जीवो की  रोकथाम की जा सकती है l जानवरों के गोबर से बने हुए uplon को जलाकर बनी हुई राख को dusting करने  से विभिन्न प्रकार केsucking pests  की रोकथाम की जा सकती हैl कुछ किसान भाई मट्ठा ,छाछ ,बटर्मिल्क को सड़ा कर अथवा ताजे 10 लीटर बटर्मिल्क में ढाई सौ ग्राम नीम की निमोली का रस या तेल मिलाकर छिड़कने से कई प्रकार के कीड़े खेतों से दूर भागते हैं l
10. डॉक्टर सुभाष पालेकर के प्राकृतिक खेती मॉडल में सुझाए गए जीवामृत ,घन जीवामृत, खरपतवार कीटनाशक तथा माइक्रो न्यू ट्रेंस केsolution का प्रयोग किया जा सकता है l इसके साथ साथ फसल अवशेषों का खेतों मैं ही आच्छादन करने से कि जमीन में माइक्रो ऑर्गेनिक जमस की मात्रा बढ़ती है जो ह्यूमस के निर्माण में सहायक होती है  l
11. प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी बीज तथा देसी पद्धतियों के ऊपर आधारित है l
12. बोने से पहले बीजों का जैविक फंगीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा Trichderma viridae औरTrichderma harzianim आदि के द्वारा बीज संशोधन किया जा सकता है तथा बोने के बाद विभिन्न प्रकार के मौजूद आई पीएम इनपुट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है l ध्यान रहे फेरोमोन ट्रैप्स का इस्तेमाल सिर्फ हानिकारक जीवो की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है ना कि उनकी रोकथाम के लिए l

Tuesday, July 26, 2022

जहर मुक्त खेती... सदियों की परंपरा और आज की जरूरत

जब होगा जहर मुक्त अनाज हमारा
तब होगा स्वस्थ समाज हमारा
जहर मुक्त खेती के लिए आई पी एम, जैविक खेती अथवा ऑर्गेनिक फार्मिंग और प्राकृतिक खेती अपनाएं l
To inculcate Environment,Agroecosystems,nature and society friendly habits and farming practices among the farmers and other sectors of society dealing with farming  to get chemical free food and also to lead a green lifestyle ,to protect and prevent  Environment, ecosystem biodiversity, nature and society from the adverse effects of chemicals being used in farming indiscriminatly is the to days need of the hour.
 खेती में रसायनों के उपयोग बंद करके उपरोक्त तीनों प्रकार के खेती की पद्धतियों को एक दूसरे के पर्याय बनाया जा सकता है जिसे जहर मुक्त खेती कहा जा सकता हैl 
     जहर मुक्त खेती उस खेती को कहा जा सकता है जिसमें रसायनिक कीटनाशकों तथा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग ना कया गया हो तथा ऐसी पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया हो जिससे उत्पादित फसल उत्पादों में रसायनों की मात्रा की मौजूदगी ना हो तथा तथा खेत की मिट्टी मैं भी रसायनों की उपस्थिति ना पाई जाए l हरित क्रांति से पूर्व हमारे पूर्वज रसायन मुक्त खेती ही किया करते थे जिसमें किसी प्रकार के रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता था l इसके लिए बे उचित फसल चक्र, हरी खाद का प्रयोग, मुख्य फसल के साथ-सथ विभिन्न प्रकार की अंतर फसलें ,बॉर्डर फसलें, गोबर की खाद पशुओं का मल मूत्र आदि का प्रयोग किया करते थे जिससे खाने योग्य सुरक्षित फसल उत्पाद पैदा हुआ करते थे l हरित क्रांति के शुरुआत से अब तक खेती में रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग से अनेक प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए हैं जिनको दूर करने के लिए फिर से हमें जहर मुक्त खेती की ओर प्रस्थान करना पड़ेगा l  जहर मुक्त खेती हमारी पुरानी परंपरा एवं आज की जरूरत है l
     स्थानीय परिस्थितियों तथा समस्याओं का अध्ययन करके आज की आवश्यकता के अनुसार उपरोक्त तीनों प्रकार की कृषि पद्धतियों से समुचित methods को select करके तथा समेकित रूप से प्रयोग करके  जहर मुक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है जरूरत है तीनों तीनों प्रकार के बुद्धिजीवियों ,कृषि वैज्ञानिकों, कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ताओं तथा उन्नति उन्नति शील किसानों को एकमत होने की तथा एक दूसरे की आलोचना की जगह विकल्प तलाशने की तथा मौजूदा संभव संसाधनों को बढ़ावा देकर खेती को जहर मुक्त बनाने की l
      हरित क्रांति के दौरान खेती में अंधाधुंध प्रयोग किए गए रसायनों के फलस्वरूप खेतों की मिट्टी, पानी ,हवा ,सभी प्रदूषित हो चुके हैं जिसके फलस्वरूप खेती के लिए उपयोगी सूक्ष्म तत्व एवं सूक्ष्म जीव भी खेतों से नदारद हो चुके हैं या नष्ट हो चुके हैं l कृषि उत्पादों में विभिन्न प्रकार के रसायनों के अवशेष मिलने लगे हैं जिनकी वजह से हमारा निर्यात प्रभावित हुआ है तथा हमारे समाज के स्वास्थ पर विपरीत असर पड़ा है और जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की नई-नई बीमारियां पैदा होने लगी है l मिट्टी की संरचना बदल गई है तथा खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव जंतु या जैव विविधता भी नष्ट हो चुकी है l कृषि उत्पादों में विभिन्न प्रकार के रसायनों के अवशेष पाए जाते हैं जिनकी वजह से कृषि उत्पाद जहरीले हो चुके हैं l इसी कारण से रसायनों से की जाने वाली खेती को रसायनिक खेती अथवा जहरीली खेती के नाम से पुकारा जाने लगा हैl उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है की खेती को सामुदायिक स्वास्थ ,पारिस्थितिक तंत्र, पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज के प्रति सुरक्षित बनाया जाए जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य ठीक रहे, पारिस्थितिक तंत्र सक्रिय एवं बरकरार रहे, पर्यावरण प्रदूषित ना हो, जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित बने रहे तथा प्रकृति और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके और खाने के योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन हो सके कृषि उत्पादों में जहरीले रसायनों की उपस्थिति ना हो l इसके अतिरिक्त जहरीले रसायनों के उपयोग से नष्ट हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन हो सके l 
            __________________
      आजकल के सामाजिक  ,आर्थिक ,प्राकृतिक, पर्यावरणीय ,जलवायु, व्यापारिक, परिदृश्य एवं परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति, व समाज हितेषी, लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली कृष को एवं कृषि मजदूरों की आए बढ़ाने वाली एवं समाज व प्रकृति तथा जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक ,पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करने वाली होनी चाहिए तथा नवयुवकों का खेती के प्रति रुझान पैदा करने वाली होनी चाहिए l इसके साथ साथ आज की खेती खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ समाज को जहर मुक्त सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा भी सुनिश्चित करने वाली खेती में उत्पादन लागत कम करने वाली समाज प्रकृति, पारिस्थितिक तंत्र पर   ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभावों को निष्क्रिय करने वाली अथवा सहन करने वाली तथा जीवन और जीविका दोनों को सुरक्षा प्रदान करने वाली होनी चाहिए  l उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए हमें ऐसी खेती करनी पड़ेगी जो खाने की दृष्टि से सुरक्षित हो तथा व्यापार की दृष्टि से गुणवत्ता युक्त हो जिसके करने से जैव विविधता प्रकृति व उसके संसाधन सुरक्षित रहे तथा पारिस्थितिक तंत्र सुरक्षित एवं सक्रिय रहे l अर्थात हमें जहरीली खेती से जहर मुक्त खेती की ओर अग्रसारित होना पड़ेगा l तथा यह कार्य जन जागरण एवं किसानों के सहयोग एवं भागीदारी से ही करना पड़ेगा l आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए आत्मनिर्भर किसान एवं  आत्मनिर्भर एवं सुरक्षित खेती बनाना पड़ेगा l जहर मुक्त खेती बनाने के लिए खेती पद्धति से रसायनों के उपयोग को पूर्ण रुप से बंद करना पड़ेगा जो आईपीएम, जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती से संभव हो सकता है l आईपीएम में से यदि रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंतिम विकल्प के रूप में अथवा किसी आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु होने वाले प्रयोग को रोक दिया जाए तो उपरोक्त तीनों प्रकार की खेती एक दूसरे के पर्याय बन सकती हैं l स्थानीय समस्याओं का निदान करते हुए एवं स्थानीय सुविधाओं तथा स्थानीय पद्धतियों के समुचित उपयोग बढ़ावा देते हुए नवीनतम अविष्कारों एवं तकनीको को सम्मिलित करते हुए हम जहर मुक्त खेती की तरफ  बढ़ सकते हैं l जरूरत है इन तीनों प्रकार की खेती की बारीकियों को समझने की तथा उनमें उचित संशोधन करने की l तथा उन विकल्पों को एवं विधियों को ढूंढने एवं प्रयोग करने की जो आसानी से कृषकों के द्वार पर अथवा खेतों पर उपलब्ध हो सके वा कृषकों के द्वारा बनाए जा सके और आसानी से उपयोग में लाया जा सके l
    आज की खेती अथवा आज के आई पी एम का अर्थ होता है कम से कम खर्चे में तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज को कम से कम बाधा पहुंचाते हुए अधिक से अधिक एवं खाने के योग्य सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना l
प्रकृति की व्यवस्था को बनाए रखते हुए खेती में रसायनों के प्रयोग को बंद करके तथा खेती की पारंपरिक विधियों एवं नवीन methods को समेकित रूप से प्रयोग करते हुए खाने के योग्य सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन आज की प्रमुख आवश्यकता है जिसका आई पीएम, जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती के द्वारा उत्पादन किया जा सकता है l
प्रदूषण मुक्त पर्यावरण, सक्रिय पारिस्थितिक तंत्र, एवं जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु जहर मुक्त खेती अपनाएं  l

Saturday, July 23, 2022

खेती के लिए अथवा आईपीएम के लिए कुछ आधुनिक विचार

1. पारंपरिक खेती को अथवा खेती की पारंपरिक पद्धतियों को पुनर्जीवित करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता हैl Back to basics. 
2 . प्राकृतिक खेती है जिसमें प्रकृति से जुड़े हुए इनपुट प्रयोग किए जाते हैं कोई भी इनपुट बाजार से ख़रीद कर नहीं प्रयोग किया जाता है l
3 . यह खेती देसी बीज, देसी गाय, देसी प्रैक्टिसेस अथवा पद्धतियों ,प्रकृति एवं जीवन पर आधारित है l
4. इस खेती में पर्यावरण, फसल पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता एवं  प्रकृति के साधनों को सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए खेती की जाती है 
 5. आज की खेती लाभकारी ,मांग पर आधारित ,सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार तथा आय को बढ़ाने वाली, प्रकृति समाज तथा जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली, कृषकों के , जीवन की राह को आसान करने वाली, जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण ,प्रकृति, समाज एवं पारिस्थितिक तंत्र के विकास को करने वाली, खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली, खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा करने वाली, खेती में उत्पादन लागत को कम करने वाली, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन का समाज ,पर्यावरण, प्रकृति व उसके संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों को निष्क्रिय करने वाली एवं सहन करने वाली, क्षतिग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र का पुनर स्थापन करने वाली, पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने वाली, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने वाली, मिट्टी में पाए जाने वाले Humus,Micronutrents,and Micro organisms की संख्या में बढ़ोतरी करने वाली,, जैव विविधता को बढ़ाने वाली, खाने हेतु सुरक्षित एवं निर्यात में गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करने वाली, फसलों में लाभदायक जीवो का संरक्षण करने वाली, मिट्टी या जमीन में पानी का संरक्षण करने वाली होनी चाहिए l इसके साथ साथ नवयुवकों का खेती के प्रति रुझान पैदा करने वाली, खेती को लोकल से ग्लोबल बनाने वाली होनी चाहिए l तथा जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने वाली होनी चाहिए l
उपरोक्त उद्देश्य एवं मांगों के आधार पर आईपीएम की विचारधारा एवं विधियों मैं आवश्यक परिवर्तन इस समय की मांग होती है l आज की प्राकृतिक खेती रसायन रहित तथा जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, Humus, ,Micronutrents ,Microorganisms , को बढ़ावा देने वाली तथा समाज एवं प्रकृति को सुरक्षा प्रदान करने वाली होनी चाहिए l

Saturday, July 9, 2022

Let's pray with IPM Goddess

1. सुरक्षित भोजन के साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली Ensures food security along with food safety
2. वैश्विक कल्याण करने वाली perceives 
global welfare.
3. सार्वभौमिक भाईचारे का प्रचार एवं प्रसार करने वाली propagates universal brotherhood.
4. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की ओर लक्ष्य रखने वाली
    Pursuses International           
cooperation
5. पर्यावरण प्रदूषण को रोकने वाली
Prevents Environmental pollution
6. पशु एवं मानव स्वास्थ्य की रक्षा करने वाली
     Protects animal and human health.
7. टिकाऊ कृषि प्रदान करने वाली
     Provides sustainable Agriculture. 
8. सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने वाली
     Promotes community development. 
9.पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने वाली
Preserves Ecosystems.
10 प्रकृति व समाज के बीच तालमेल बैठाने वाली.Maintains harmony with nature and society.
11. जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने वाली
Coverts poisonous farming in to safe farming.
12. जीवन कl निर्माण एवं स्थायित्व प्रदान करने वाली Makes and sustains life.


आईपीएम देवी की प्रार्थना करें

आई पी एम क्रियान्वयन के बारे में कुछ अनुभव

दोस्तों मुझे आईपीएम के क्रियान्वयन का सन 19 सौ 78 से अभी तक का लगभग 44 साल का अनुभव है l सन 1979 से डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन, क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों, केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों एवं केंद्रीय निगरानी केंद्रों मैं से कुछ निकटवर्ती केंद्रों के द्वारा 40 हेक्टर धान तथा 25 हेक्टेयर कपास में भारत के विभिन्न प्रदेशों में आईपीएम डेमोंसट्रेशन प्रारंभ किए गए थे l इसके बाद 1991 से इन्हीं तीनों तरह के केंद्रों को मिलाकर केंद्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना हुई जिसके द्वारा आईपीएम की विचारधारा का विभिन्न फसलों में आईपीएम डेमोंसट्रेशंस एवं आईपीएम ट्रेनिंग आदि के द्वारा विस्तृत रूप से विभिन्न प्रदेशों में प्रचार एवं प्रसार किया गया जिसके दौरान हमें निम्नलिखित प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए l
1. आईपीएम के विभिन्न भागीदारों के द्वारा आईपीएम को विभिन्न तरीके से समझा गया और उनका विभिन्न तरीके से क्रियान्वयन किया गया जिससे आईपीएम को इसकी मुख्य विचारधारा से हटाकर IPM  के विभिन्न भागीदारों ने अपने अपने तरीके से समझा एवं उसका अपने अपने तरीके से ही क्रियान्वयन किया l जिसके दौरान यह देखा गया की आईपीएम को सिर्फ अधिक फसल उत्पादन के रूप में देखा गया और उसको उसके वास्तविक उद्देश्यों से दूर रखते हुए उसका क्रियान्वयन किया गया और आई पी एम के वरीयता उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मानसिकता परिवर्तन सही तरीके से नहीं किया गया अर्थात आईपीएम करते समय रसायनों का इस्तेमाल सही तरीके से न्यायोचित ढंग से नहीं किया गया तथा आईपीएम क्रियान्वयन करते समय सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र , जैव विविधता प्रकृति एवं उसके संसाधनों तथा समाज आदि की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया l
2. अभी भी किसान फसल उत्पादन करते समय फसल की उत्पादन लागत की तरफ ध्यान में ना रखते हुए अधिक फसल उत्पादन की ओर ध्यान देते हैं l तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व समाज हितों की तरफ आईपीएम के द्वारा होने वाले प्रभावों की तरफ सही तरीके से ध्यान नहीं देते हैं l क्योंकि वह नहीं समझते हैं की प्लांट प्रोटक्शन को जब तक समाज व प्रकृति हितेषी के रूप में क्रियान्वयन नहीं किया जाता तब तक उसको आईपी एम नहीं कहते हैं  l
3. फसल उत्पादन में अथवा फसल रक्षा हेतु अभी भी कुछ किसान रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करते हैं जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्राकृतिक संसाधन तथा जीवन विभिन्न क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l जोकि आई पीएम विचारधारा के एकदम विपरीत है l
4. आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु सुविधा प्रदान करने वाले आईपीएम इनपुट कि कृषकों के द्वार पर उपलब्धता की तरफ सरकार के द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया गया इसके साथ साथ  विभिन्न राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकारों की विभिन्न एजेंसियों के बीच संपर्क सहयोग एवं समन्वय की कमी से आईपीएम का प्रचार एवं प्रसार उस स्तर तक नहीं हो पाया जिस स्तर तक होना चाहिए था l
5. ऐसा भी महसूस किया गया कि आई पीएम के क्रियान्वयन करते समय कुछ आईपीएम के भागीदार परोक्ष रूप से रसायनों के उपयोग को महत्व देते हैं और उनका बढ़ावा देते हैं तथा वे  अंतर्मन से रसायनों के  उपयोग उपयोग को कम नहीं होने देना चाहते l
6. रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के उपयोग का प्रचार एवं प्रसार टीवी आदि माध्यम पर किया जा रहा है जो आईपीएम  के क्रियान्वयन में बाधक है l
7. आईपीएम के कुछ भागीदार सिर्फ उस वनस्पति संरक्षण को आईपीएम समझते हैं जिनमें सिर्फ जैविक विधियां या जैविक अथवा आईपी एम इनपुट ही इस्तेमाल किए गए हो परंतु ऐसा नहीं है l आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु उन सभी मौजूदा संभव,कम खर्चीली, समाज के द्वारा acceptable विधियों का प्रयोग किया जाता है जोकि सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र  जैव विविधता ,प्रकृति एवं समाज के लिए हितेषी हो और और उनका इनके ऊपर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़ता हो तथा फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा मैं अपना विशेष महत्व रखते हो l
8. फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा में रसायनों के उपयोग को कम करने हेतु सरकार की प्राथमिकता एवं सहयोग परम आवश्यक है जिस के बगैर फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु रसायनों का उपयोग को कम करना असंभव है l क्योंकि किसानों तथा आईपीएम के कुछ भागीदारों में यह भावना घर कर गई है कि बगैर रसायनों के फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता जो कि गलत है अब यह सिद्ध हो गया है की प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली विधियों को आई पीएम में सम्मिलित करके बगैर रसायनों के उपयोग के भी खेती की जा सकती है l
9. बीज से लेकर फसल विपणन तक फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन में प्रयोग की जाने वाल वाली सभी विधियां एवं आईपीएम methods को आईपीएम मेथड्स की श्रेणी में गिना जाता है l
10. आंखों की रोशनी से कुछ हो नहीं सकता जब तक की जमीर की लो बुलंद ना हो
अर्थात जब तक हम मन से किसी काम को नहीं करेंगे तब तक  कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती l
11. अगर हम बगैर दवाई के करोना वायरस की रोकथाम कर सकते हैं तो बगैर IPM inputs के  आई पीएम का क्रियान्वयन क्यों नहीं कर सकते सिर्फ जरूरत है दृढ़ इच्छाश7क्ति की और समय से सही रणनीति अपनाने की l
12. कृषकों की मानसिकता में यह परिवर्तन ला ना अति आवश्यक है कि केमिकल पेस्टिसाइड्स एवं उर्वरक जो समाज वा प्रकृति के लिए हानिकारक है और इनका उपयोग खेती में न्यूनतम स्तर तक अथवा बिल्कुल नहीं करना चाहिए l तथा आईपीएम डेमोंसट्रेशंस के बाद में उन इलाकों में कृष को में हुई मानसिकता परिवर्तन का मूल्यांकन भी करना चाहिए l
13. आईपीएम अथवा अन्य किसी भी विचारधारा का सुचारू रूप से क्रियान्वयन सिर्फ जन आंदोलन के द्वारा ही  किया जा सकता है l सरकारी विभागों में अधिकांश पदों की रिक्तियां रहती हैं तथा उनको बहुत सारी गतिविधियों सौंप दी जाती है जिससे वे आईपीएम अथवा अन्य विशिष्ट विचारधारा की तरफ एकाग्र मन से काम नहीं कर पाते है और कई बार यह भी देखा गया है कि प्रशिक्षित अधिकारी अन्य विभाग में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं l यह भी देखा गया है कि कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशानुसार ही काम करते हैं और जब तक मन से यह वरिष्ठ अधिकारी रसायनिक कीटनाशकों अथवा उर्वरकों का प्रयोग बंद नहीं करना चाहते तब तक उनका प्रयोग बंद नहीं हो सकता अतः ज नआंदोलन ही एकमात्र विकल्प बचता है रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए l
14. पहले यह मानसिकता थी कि बगैर रसायनिक रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती परंतु श्री सुभाष पालेकर जी ने प्राकृतिक खेती द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि बगैर रसायनों के खेती की जा सकती है और वह भी सिर्फ कृषकों के सहयोगसे की जा सकती है सरकार का सहयोग इसको को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है l
15. आईपीएम क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट या विकल्प प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता किसानों तक सुनिश्चित नहीं हो सकी तथा उनके प्रोडक्शन के लिए कोई भी एंटर पर नूर सामने नहीं आया अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि इन विकल्पों के साथ साथ हमें आईपीएम में कुछ ऐसे विकल्प या विधियां शामिल करनी चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो सके तथा उनको कृषक भाई अपने ग्रामीण स्तर पर स्वयं बना सकें l श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा बताई गई जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में कुछ ऐसे ही विकल्प सुझाए गए हैं को किसान अपने लेवल पर बना सकता है एवं उनका प्रयोग भी कर सकता है तथा यह विकल्प पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय बनाने में तथा फसल में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो के संरक्षण में अपना योगदान भी देते हैं और फसल उत्पादन व संरक्षण एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों के उपयोग को जीरो स्तर तक लाने में सक्षम है तथा फसल पर्यावरण जैव विविधता सामुदायिक स्वास्थ्य प्रकृति व उसके संसाधनों एवं समाज को भी सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है l
16. आईपीएम प्रैक्टिसेज अकेले कार्य नहीं करते हैं क्योंकि वह सभी प्रैक्टिसेस एक दूसरे के ऊपर आधारित होती है l
18. कोई भी कीटनाशक या पेस्टिसाइड्स अच्छे या बुरे और सुरक्षित नहीं होते हैं और सभी कीटनाशक समाज तथा प्रकृति के लिए हानिकारक होते हैं l
18. फसल पर्यावरण में पाए जाने वाला कोई भी organism  pest या हानिकारक जीव नहीं होतl हैं  l कोई भी जीव किसी उत्तेजना आत्मक परिस्थिति में अथवा प्रोवोकेटिव कंडीशन मैं ही हानिकारक जीव की तरह व्यवहार करने लगता है l किसी भी हानिकारक जीव को तब तक नहीं नियंत्रित करना चाहिए जब तक उससे होने वाला संभावित नुकसान आर्थिक हानि स्तर के ऊपर ना बढ़ने लगे l 
19. किसी भी महामारी के के निपटान हेतु और आई पीएम के क्रियान्वयन हेतु सतर्कता, जागरूकता और सावधानी रखना ही मूल मंत्र है जिसके लिए जन जागरण एवं जन आंदोलन से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है l
20. आईपी एम के क्रियान्वयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जिवो के प्रबंधन के साथ साथ प्राकृतिक संसाधन , जैव विविधता, फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीव ,मिट्टी ,पानी ,ऑर्गेनिक कार्बन तथा सूक्ष्म जीव एवं सूक्ष्म तत्व भी संरक्षित रहे तथा समाज भी स्वस्थ एवं सुरक्षित रहे l अगर ऐसा नहीं है तो वह वनस्पति संरक्षण आईपीएम नहीं है  l आई पीएम हानिकारक जीवो के प्रबंधन के साथ-साथ उपरोक्त चीजों का भी प्रबंधन होता है l नेशनल आईपी एम कार्यक्रम का गठन आईपीएम फॉर बेटर इनवारा मेंट के साथ किया गया था जिसमें बाद में सामाजिक प्राकृतिक राजनीतिक आध्यात्मिक आर्थिक व्यापारिक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे भी शामिल कर लिए गए l
21. आईपीएम बायो इकोलॉजिकल ,क्रॉप फिजियोलॉजी कल ,इकोनॉमिकल, लीगल, कल्चरल , वैराइटल, मैकेनिकल ,बायो लॉजिकल, नेचुरल, नीति एवं विपणन आदि पर आधारित ना सीजीओ प्रबंधन का तरीका है l
22. आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट जैसे जैव नियंत्रण कारक ,बायोपेस्टिसाइड्स, फेरोमोन ट्रैप्स आदि जो आईपीएम डेमोंसट्रेशंस मैं प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता कृषकों को उनके द्वार पर नहीं हो सकी l इस वजह से इन इनपुट का किसानों के बीच में प्रचार एवं प्रसार तथा प्रायोगिक ढंग से पर्याप्त मात्रा में प्रयोग नहीं हो पाया l इस वजह से किसानों ने उनके पास बचा एकमात्र विकल्प रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग अंधाधुंध तरीके से किया l यद्यपि अधिकांश किसान खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार के जीवो के बारे में एवं उनके योगदान के बारे मैं जागरूक हो सके  l परंतु आईपीएम इनपुट की अनुपलब्धता के कारण उनके प्रयोग को महत्त्व नहीं दे सके  l इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार के कल्चरल कंट्रोल की विधियों को भी वरीयता के रूप में प्रयोग नहीं कर सके l
23. अतः आई पीएम को बढ़ावा देने के लिए हमें डॉक्टर सुभाष पालेकर जी के द्वारा विकसित जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं सुझाए गए सभी विधियां एवं विकल्पों को वनस्पति संरक्षण की आईपी एम पद्धति में सम्मिलित करना पड़ेगा और सभी रासायनिक इनपुट जैसे रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों आदि के प्रयोग को बिल्कुल ही बंद करना पड़ेगा तभी आईपीएम का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त हो सकेगा l प्राकृतिक खेती की तरह आईपीएम भी प्रकृति पर आधारित नासि जीव प्रबंधन की एक पद्धति है जिसमें प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन की प्रकृति की पद्धति को आईपीएम में शामिल करना पड़ेगा l
24. आईपीएम इनपुट कि कृषकों को अनु उपलब्धता के कारण, कृषकों की रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों को उपेक्षा करने वाली कृषकों की मानसिकता, खेती में रसायनों के उपयोग को रोकने वाले मुद्दे को सरकार के द्वारा वरीयता एजेंडा Agenda priority  रूप में ना शामिल करना ही आई पीएम को बढ़ावा देने मैं बाधक सिद्ध हुए हैं l
25. प्राकृतिक खेती आई पीएम का ही अति सुधरा हुआ रूप है या तरीका है जिसमें प्रकृति के सिद्धांत के अनुसार मल्टी लेयर्ड या बहु स्तरीय बहु फसली इंटरक्रॉपिंग का विशेष महत्व दिया जाता है जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में फसलों के हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु उनके प्राकृतिक शत्रु जैविक नियंत्रण कारकों के रूप में अपने आप पनपने लगते हैं और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती है तथा फसलों के हानिकारक कीटों का प्रभावी नियंत्रण कर लेती है तथा खेतों में विभिन्न प्रकार के फसलों के उत्पादन से इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग पद्धति के सिद्धांत पर फसल में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो का फसल पर्यावरण में संरक्षण प्राप्त होता है l
प्राकृतिक खेती में अपनाई जाने वाली फसलों के अवशेषों के आच्छादन से विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो का भी फसल पर्यावरण में या फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षण होता है l 
प्राकृतिक खेती में किसी भी रसायन का प्रयोग ना होने की वजह से फसल पारिस्थितिक तंत्र में हेलो में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो के प्राकृतिक शत्रु ओपन अपने का तथा उनको संरक्षण प्राप्त होने का अवसर प्राप्त होता है l प्राकृतिक खेती में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ बोने से कृषकों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है l
26. रसायनिक कीटनाशकों का दुरुपयोग अर्थात आपातकालीन स्थिति में उपयोग की जगह इनका अंधाधुंध उपयोग किया जाना विभिन्न सामाजिक प्राकृतिक फसल पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित, पर्यावरण एवं जैव विविधता संबंधी समस्याओं का मूल कारण बना जिनकी वजह से आई पीएम के द्वारा यह सोचा गया की फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों का उपयोग सिर्फ इमरजेंसी परिस्थिति को टालने के लिए किया जाए अथवा बिल्कुल ही ना किया जाए जिसके लिए राष्ट्रीय एकीकृत ना सजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना की गई l जिसके फलस्वरूप रसायनों का उपयोग कम तो हुआ परंतु उस स्तर तक नहीं कम हुआ जहां तक वांछित था l इसका दूसरा कारण कृषकों की वह सोच थी कि बगैर रसायनिक कीटनाशकों या बगैर रसायनिक उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती और इसके लिए कई किसान इनका उपयोग प्रोफिलैक्टिक तरीके से भी करने लगे जो कि आई पीएम के सिद्धांत पर एकदम खिलाफ है l यह भी अनुभव किया गया की कैलेंडर पर आधारित रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग फसल उत्पादन के लिए आवश्यक नहीं है और ना ही इसका कोई योगदान फसल की उत्पादकता पर पड़ता है l
       प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से आई पी एम की पद्धति का अपने आप बढ़ावा हो जाएगा क्योंकि आईपीएम भी एक खेती करने का तरीका है जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति एवं समाज को महफूज रखते हुए वनस्पति संरक्षण एवं खेती की जाती है l प्राकृतिक खेती में कोई भी इनपुट बाजार से खरीद कर प्रयोग नहीं किया जाता है कोई भी रासायनिक प्रयोग नहीं किया जाता है तथा हानिकारक जीवो का प्रबंधन भी रसायन रहित इनपुट से किया जाता है जो किसान अपने घर पर बना लेते हैं l प्राकृतिक खेती एवं आई पी एम दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं अगर आईपीएम क्रियान्वयन करते समय किसी भी रसायनों का उपयोग ना किया जाए l
27. आई पी एम क्रियान्वयन हेतु जो आईपी एम इनपुट प्रयोग किए गए या आजमाएं गए उनकी प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी बहुत ही जटिल थी या है जिसके लिए कई बार प्रयोगशाला की आवश्यकता होती है l यद्यपि कुछ आईपीएम इनपुट की प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी सिंपलीफाइड कर ली गई है इससे उनका प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर भी किया जा सकता है l परंतु अन्य inputs के प्रोडक्शन हेतु उद्यमी एंटरप्रेन्योर्स की आवश्यकता है l बहुत सारे आईपीएम इनपुट की self life  कम होने की वजह से कोई भी entepreuners आगे नहीं आते l परंतु प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले सभी inputs का प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर ही किया जा सकता है और इनको आईपी एम  मे बड़ी आसानी से शामिल किया जा सकता है l

Thursday, July 7, 2022

IPM Philosophy part XI

Analysis and manipulation of biotic and abiotic factors and ability of tolerating crop  loss due to adverse ecological and climatic  conditions and pests up to certain extent by the crop plants due to bearing of extra parts by the plants in crop and decision making for the adoption of crop production,protection and management practices to suppress the pests population below ETL is called as AESA based IPM.Habitate manipulation through  Ecological Engineering is an example of AESA based way of IPM.
फसल पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण के द्वारा आईपीएम क्रियान्वयन करना:--
फसल पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण फसल में पाए जाने वाले सभी जैविक व अजैविक कारकों का विश्लेषण करके फसल उत्पादन अथवा फसल रक्षा पर उनके पारस्परिक प्रभाव तथा संबंधों तथा पौधों में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की क्षमताओं का फसल उत्पादन पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के अनुसार कृषि क्रियाओं को खेतों में अपनाने के विषय में निर्णय लेने  को एग्रोइकोसिस्टम एनालिसिस अथवा फसल पारिस्थितिक तंत्र विश्लेषण कहते हैं तथा इस विधि के द्वारा क्रियान्वयन किए जाने वाले आई पीएम के तरीके को एग्रोइकोसिस्टम एनालिसिस पर आधारित आई पीएम कहते हैं l  इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग के द्वारा खेतों में हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानी स्तर के नीचे सीमित रखने को एग्रोइकोसिस्टम एनालिसिस पर आधारित आईपीएम कहते हैं l
आई पी एम एवं जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती दोनों ही प्रकृति पर आधारित खेती करने की विचारधाराएं है l प्राकृतिक खेती की सभी गतिविधियां एवं प्रैक्टिसेज आई पी एम मैं शामिल की जा सकती हैl आईपी एम ऑर्गेनिक खेती तथा प्राकृतिक खेती तक पहुंचने का प्रथम सोपान है l

Wednesday, July 6, 2022

IPM Philosophy part XI

IPM helps to make Agriculture:
Economically viable आर्थिक रूप से व्यवहार कृषि
Ecologically sustainable Agriculture पारिस्थितिक तंत्र हिसाब से टिकाऊ कृषि
Profitable Agriculture. लाभदाई कृषि
Climatically strong Agriculture. जलवायु की दृष्टि से मजबूत कृषि
Environmentally safe Agriculture. पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित कृषि
Food security and food safety must go on simultaneously. खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन
जहरीली खेती के स्थान पर सुरक्षित खेती
समाज प्रकृति हितेषी वनस्पति संरक्षण
Society and nature friendly plant protection.
Diversification of Agriculture towards Energy and power sectors.


Tuesday, July 5, 2022

आई पी एम दर्शन भाग X

आईपी एम को बढ़ावा देने हेतु प्राकृतिक खेती से जुड़े हुए सभी सिद्धांतों को एवं विधियों को आईपीएम विधियों के रूप में आईपी एम में शामिल किया जा सकता है l प्राकृतिक खेती से संबंधित यह सिद्धांत निम्न लिखित है
1. मेन फसलों के चारों तरफ तथा फसलों के अंतर अथवा अंदर हानिकारक एवं लाभदायक जिवो को आकर्षित करने वाली फसलों को बोते  हुए इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग को अपनाना l
2. फसल के खेतों की मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं की मात्रा को फसल पर्यावरण में अथवा फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षित करना एवं वृद्धि करना l इसके लिए फसल अवशेषों को खेतों में ही डीकंपोज किया जाता है l
3. पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो जिनमें केंचुआ आदि भी सम्मिलित है का फसल पारिस्थितिक तंत्र  में संरक्षण करना l केचआ खेतों में जमीन के अंदर ना ली यां बना कर प्राकृतिक तौर पर वाटर रिजर्वायर बनाता है l
4. फसलों में पाए जाने वाले सभी खरपतवार ओं को फसलों के खेत में ही उखाड़ कर रख देने से उनका खेतों में ही डीकंपोज करना l जिससे Humus का निर्माण होता है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती all
 5. कई प्रकार की फसलों को एक समय में एक ही खेत में साथ साथ बोने से फसल जैव विविधता को बढ़ावा देना l
6. आवश्यकतानुसार फसल चक्र में आवश्यक बदलाव करना l
7. फसल में हमेशा कोई ना कोई फसल अवश्य ही रहनी चाहिए l
8. खेत में फसलों के साथ-साथ पेड़ों का भी होना आवश्यक है l खेतों के किनारों पर भी पेड़ होने चाहिए l
9. वाटर कंजर्वेशन अर्थात जल संरक्षण हेतु खेतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी होना चाहिए l
10. धान एवं गन्ना जैसी फसलों में नमी रखना आवश्यक हैl
11. देसी बीज अथवा अपना बीज बनाकर  प्रयोग करना चाहिए l
12. पशुपालन को भी बढ़ावा बढ़ावा देना चाहिएl
13. खरपतवार ओं को फल बनने से पहले ही उखाड़ लेना चाहिए तथा उनका आच्छादन उसी खेत में करना चाहिए l
14. बाजार से खरीदे हुए इनपुट का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि अपने द्वारा बनाए गए इनपु को बढ़ावा देना चाहिएl
15. फसलों में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा का समय-समय पर आकलन करना चाहिए l
16. क्षति ग्रस्त पारिस्थितिक तंत्र का पुनर्स्थापना अवश्य करना चाहिए l
17. मिट्टी जल ऑर्गेनिक कार्बन सोलर सिस्टम एवं कॉस्मिक ऊर्जा का फसल में संरक्षण करना चाहिए l
18. फसल पारिस्थितिक तंत्र को हमेशा सक्रिय रखना चाहिएl
19. हरी खाद एवं गोबर की खाद को बढ़ावा देना चाहिए l

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Friday, July 1, 2022

आईपीएम दर्शन भाग lX


सांस्कृतिक ,सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक ,तकनीकी ,व्यापारिक, राजनीतिक, नीतियों , जलवायु, पारिस्थितिक तंत्र, जीवन एवं जीवन से जुड़ी हुई विभिन्न गतिविधियों एवं पर्यावरण के बदलते हुए परिपेक्ष एवं परिदृश्य में आईपी एम की विवेचना करना, चिंतन करना एवं परिभाषित करना ही आईपी एम की फिलासफी कहलातl है या आई पीएम दर्शन कहलाता है l
      आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती इनके सभी भागीदारों में जन जागरूकता, कौशल विकास, सशक्तिकरण एवं उनको सक्षम बनाने तथा विचारधारा परिवर्तन व खेती में रसायनों के प्रयोग को कम से कम करने करने या बिल्कुल ना करने का एक जन आंदोलन है l
     आई पी एम अथवा किसी भी वैज्ञानिक या अन्य विचारधारा अथवा कार्यक्रम को सही तरीके से क्रियान्वयन करने हेतु उस कार्यक्रम अथवा विचारधारा को सरकार के द्वारा सरकार के वरीयता एजेंडा के रूप शामिल करना परम आवश्यक है l किसी भी प्रोग्राम अथवा विचारधारा को जब तक सरकार नहीं चाहेगी तब तक उसको सुचारू रूप से क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता l
   सरकार के लगभग सभी विभागों में सभी कैटिगरी के पदों की रिक्तियों तथा उनको ना भरने की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की जन जागरण, जन जागरूकता, जनभागीदारी, जन प्रशिक्षण एकजुटता एवं जन आंदोलन के द्वारा ही किसी भी कार्यक्रम अथवा विचारधारा का सुचारु रुप से क्रियान्वयन किया जा सकता है l जन आंदोलन के द्वारा ही खेती को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है l
   जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने के लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी l
   क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिए हमें स्वयं चेंज होना पड़ेगा l
     खेती को लाभकारी बनाना अर्थात उत्पादन लागत कम करना, किसानों की आय को बढ़ाना  , जहर मुक्त खाना पैदा करना अर्थात खेती में रसायनों के उपयोग को न्यूनतम करना या बिल्कुल भी नहीं करना, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को निष्क्रिय करना, पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र ,प्रकृति व उसके संसाधनों को सुरक्षित रखना, कृषकों को समृद्धि साली तथा बैंकों के एवं साहूकारों से कर्जा मुक्ति प्रदान करना और कृषकों की आत्महत्याओं में कमी लाना, खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा स्वस्थ समाज एवं स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करना, नवयुवकों कl खेती के प्रति रुझान को बढ़ाना, फसल पारिस्थितिक तंत्र को क्रियाशील रखना, क्षतिग्रस्त हुए पारिस्थितिक तंत्र का पुणे स्थापन करना ही आज की खेती की प्रमुख आवश्यकताएं एवं समस्याएं  है जिन का निदान करते हुए खेती करना ही आई पीएम की प्रमुख आवश्यकता है l इसके लिए फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन के अतीत के अनुभव को समाहित करते हुए तथा उपरोक्त समस्याओं के निदान हेतु नवीन  विधियों को सम्मिलित करते हुए एकीकृत रूप से प्रयोग करके फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए वनस्पति संरक्षण करना एवं उपरोक्त समस्याओं का निदान करना ही आईपीएम कहलाता है l 
  Go away from chemicals and come closer to the nature is the basic principle of IPM. 
पहले यह महसूस किया जाता था कि बगैर रसायनों के खेती नहीं की जा सकती परंतु अब यह कृषकों के द्वारा ही प्राकृतिक खेती के विकास के दौरान यह सिद्ध हो चुका है कि बगैर रसायनों के खेती की जा सकती है l
   किसी भी तकनीक एवं विचारधारा को क्रियान्वयन करने से पहले या उसके बाद हमें यह समझना होगा की विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल से मिल रही सुविधाएं पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं आत: हमें इन सुविधाओं का इस्तेमाल सतर्कता पूर्वक करना चाहिएl विज्ञान के नवीन उपहारों को मानव की कसौटी पर परखा जाए और विकास को कभी विनाशकारी ना बनने दिया जाए l