दोस्तों मुझे आईपीएम के क्रियान्वयन का सन 19 सौ 78 से अभी तक का लगभग 44 साल का अनुभव है l सन 1979 से डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन, क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के विभिन्न केंद्रीय जैविक नियंत्रण केंद्रों, केंद्रीय वनस्पति संरक्षण केंद्रों एवं केंद्रीय निगरानी केंद्रों मैं से कुछ निकटवर्ती केंद्रों के द्वारा 40 हेक्टर धान तथा 25 हेक्टेयर कपास में भारत के विभिन्न प्रदेशों में आईपीएम डेमोंसट्रेशन प्रारंभ किए गए थे l इसके बाद 1991 से इन्हीं तीनों तरह के केंद्रों को मिलाकर केंद्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना हुई जिसके द्वारा आईपीएम की विचारधारा का विभिन्न फसलों में आईपीएम डेमोंसट्रेशंस एवं आईपीएम ट्रेनिंग आदि के द्वारा विस्तृत रूप से विभिन्न प्रदेशों में प्रचार एवं प्रसार किया गया जिसके दौरान हमें निम्नलिखित प्रकार के अनुभव प्राप्त हुए l
1. आईपीएम के विभिन्न भागीदारों के द्वारा आईपीएम को विभिन्न तरीके से समझा गया और उनका विभिन्न तरीके से क्रियान्वयन किया गया जिससे आईपीएम को इसकी मुख्य विचारधारा से हटाकर IPM के विभिन्न भागीदारों ने अपने अपने तरीके से समझा एवं उसका अपने अपने तरीके से ही क्रियान्वयन किया l जिसके दौरान यह देखा गया की आईपीएम को सिर्फ अधिक फसल उत्पादन के रूप में देखा गया और उसको उसके वास्तविक उद्देश्यों से दूर रखते हुए उसका क्रियान्वयन किया गया और आई पी एम के वरीयता उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मानसिकता परिवर्तन सही तरीके से नहीं किया गया अर्थात आईपीएम करते समय रसायनों का इस्तेमाल सही तरीके से न्यायोचित ढंग से नहीं किया गया तथा आईपीएम क्रियान्वयन करते समय सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र , जैव विविधता प्रकृति एवं उसके संसाधनों तथा समाज आदि की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया l
2. अभी भी किसान फसल उत्पादन करते समय फसल की उत्पादन लागत की तरफ ध्यान में ना रखते हुए अधिक फसल उत्पादन की ओर ध्यान देते हैं l तथा सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व समाज हितों की तरफ आईपीएम के द्वारा होने वाले प्रभावों की तरफ सही तरीके से ध्यान नहीं देते हैं l क्योंकि वह नहीं समझते हैं की प्लांट प्रोटक्शन को जब तक समाज व प्रकृति हितेषी के रूप में क्रियान्वयन नहीं किया जाता तब तक उसको आईपी एम नहीं कहते हैं l
3. फसल उत्पादन में अथवा फसल रक्षा हेतु अभी भी कुछ किसान रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग करते हैं जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,प्राकृतिक संसाधन तथा जीवन विभिन्न क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l जोकि आई पीएम विचारधारा के एकदम विपरीत है l
4. आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु सुविधा प्रदान करने वाले आईपीएम इनपुट कि कृषकों के द्वार पर उपलब्धता की तरफ सरकार के द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया गया इसके साथ साथ विभिन्न राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकारों की विभिन्न एजेंसियों के बीच संपर्क सहयोग एवं समन्वय की कमी से आईपीएम का प्रचार एवं प्रसार उस स्तर तक नहीं हो पाया जिस स्तर तक होना चाहिए था l
5. ऐसा भी महसूस किया गया कि आई पीएम के क्रियान्वयन करते समय कुछ आईपीएम के भागीदार परोक्ष रूप से रसायनों के उपयोग को महत्व देते हैं और उनका बढ़ावा देते हैं तथा वे अंतर्मन से रसायनों के उपयोग उपयोग को कम नहीं होने देना चाहते l
6. रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के उपयोग का प्रचार एवं प्रसार टीवी आदि माध्यम पर किया जा रहा है जो आईपीएम के क्रियान्वयन में बाधक है l
7. आईपीएम के कुछ भागीदार सिर्फ उस वनस्पति संरक्षण को आईपीएम समझते हैं जिनमें सिर्फ जैविक विधियां या जैविक अथवा आईपी एम इनपुट ही इस्तेमाल किए गए हो परंतु ऐसा नहीं है l आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु उन सभी मौजूदा संभव,कम खर्चीली, समाज के द्वारा acceptable विधियों का प्रयोग किया जाता है जोकि सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता ,प्रकृति एवं समाज के लिए हितेषी हो और और उनका इनके ऊपर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़ता हो तथा फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा मैं अपना विशेष महत्व रखते हो l
8. फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा में रसायनों के उपयोग को कम करने हेतु सरकार की प्राथमिकता एवं सहयोग परम आवश्यक है जिस के बगैर फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा हेतु रसायनों का उपयोग को कम करना असंभव है l क्योंकि किसानों तथा आईपीएम के कुछ भागीदारों में यह भावना घर कर गई है कि बगैर रसायनों के फसल का उत्पादन नहीं किया जा सकता जो कि गलत है अब यह सिद्ध हो गया है की प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली विधियों को आई पीएम में सम्मिलित करके बगैर रसायनों के उपयोग के भी खेती की जा सकती है l
9. बीज से लेकर फसल विपणन तक फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन में प्रयोग की जाने वाल वाली सभी विधियां एवं आईपीएम methods को आईपीएम मेथड्स की श्रेणी में गिना जाता है l
10. आंखों की रोशनी से कुछ हो नहीं सकता जब तक की जमीर की लो बुलंद ना हो
अर्थात जब तक हम मन से किसी काम को नहीं करेंगे तब तक कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती l
11. अगर हम बगैर दवाई के करोना वायरस की रोकथाम कर सकते हैं तो बगैर IPM inputs के आई पीएम का क्रियान्वयन क्यों नहीं कर सकते सिर्फ जरूरत है दृढ़ इच्छाश7क्ति की और समय से सही रणनीति अपनाने की l
12. कृषकों की मानसिकता में यह परिवर्तन ला ना अति आवश्यक है कि केमिकल पेस्टिसाइड्स एवं उर्वरक जो समाज वा प्रकृति के लिए हानिकारक है और इनका उपयोग खेती में न्यूनतम स्तर तक अथवा बिल्कुल नहीं करना चाहिए l तथा आईपीएम डेमोंसट्रेशंस के बाद में उन इलाकों में कृष को में हुई मानसिकता परिवर्तन का मूल्यांकन भी करना चाहिए l
13. आईपीएम अथवा अन्य किसी भी विचारधारा का सुचारू रूप से क्रियान्वयन सिर्फ जन आंदोलन के द्वारा ही किया जा सकता है l सरकारी विभागों में अधिकांश पदों की रिक्तियां रहती हैं तथा उनको बहुत सारी गतिविधियों सौंप दी जाती है जिससे वे आईपीएम अथवा अन्य विशिष्ट विचारधारा की तरफ एकाग्र मन से काम नहीं कर पाते है और कई बार यह भी देखा गया है कि प्रशिक्षित अधिकारी अन्य विभाग में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं l यह भी देखा गया है कि कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशानुसार ही काम करते हैं और जब तक मन से यह वरिष्ठ अधिकारी रसायनिक कीटनाशकों अथवा उर्वरकों का प्रयोग बंद नहीं करना चाहते तब तक उनका प्रयोग बंद नहीं हो सकता अतः ज नआंदोलन ही एकमात्र विकल्प बचता है रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए l
14. पहले यह मानसिकता थी कि बगैर रसायनिक रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती परंतु श्री सुभाष पालेकर जी ने प्राकृतिक खेती द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि बगैर रसायनों के खेती की जा सकती है और वह भी सिर्फ कृषकों के सहयोगसे की जा सकती है सरकार का सहयोग इसको को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है l
15. आईपीएम क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट या विकल्प प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता किसानों तक सुनिश्चित नहीं हो सकी तथा उनके प्रोडक्शन के लिए कोई भी एंटर पर नूर सामने नहीं आया अतः अब यह आवश्यक हो गया है कि इन विकल्पों के साथ साथ हमें आईपीएम में कुछ ऐसे विकल्प या विधियां शामिल करनी चाहिए जो आसानी से उपलब्ध हो सके तथा उनको कृषक भाई अपने ग्रामीण स्तर पर स्वयं बना सकें l श्री सुभाष पालेकर जी के द्वारा बताई गई जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में कुछ ऐसे ही विकल्प सुझाए गए हैं को किसान अपने लेवल पर बना सकता है एवं उनका प्रयोग भी कर सकता है तथा यह विकल्प पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय बनाने में तथा फसल में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो के संरक्षण में अपना योगदान भी देते हैं और फसल उत्पादन व संरक्षण एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों के उपयोग को जीरो स्तर तक लाने में सक्षम है तथा फसल पर्यावरण जैव विविधता सामुदायिक स्वास्थ्य प्रकृति व उसके संसाधनों एवं समाज को भी सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है l
16. आईपीएम प्रैक्टिसेज अकेले कार्य नहीं करते हैं क्योंकि वह सभी प्रैक्टिसेस एक दूसरे के ऊपर आधारित होती है l
18. कोई भी कीटनाशक या पेस्टिसाइड्स अच्छे या बुरे और सुरक्षित नहीं होते हैं और सभी कीटनाशक समाज तथा प्रकृति के लिए हानिकारक होते हैं l
18. फसल पर्यावरण में पाए जाने वाला कोई भी organism pest या हानिकारक जीव नहीं होतl हैं l कोई भी जीव किसी उत्तेजना आत्मक परिस्थिति में अथवा प्रोवोकेटिव कंडीशन मैं ही हानिकारक जीव की तरह व्यवहार करने लगता है l किसी भी हानिकारक जीव को तब तक नहीं नियंत्रित करना चाहिए जब तक उससे होने वाला संभावित नुकसान आर्थिक हानि स्तर के ऊपर ना बढ़ने लगे l
19. किसी भी महामारी के के निपटान हेतु और आई पीएम के क्रियान्वयन हेतु सतर्कता, जागरूकता और सावधानी रखना ही मूल मंत्र है जिसके लिए जन जागरण एवं जन आंदोलन से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है l
20. आईपी एम के क्रियान्वयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जिवो के प्रबंधन के साथ साथ प्राकृतिक संसाधन , जैव विविधता, फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीव ,मिट्टी ,पानी ,ऑर्गेनिक कार्बन तथा सूक्ष्म जीव एवं सूक्ष्म तत्व भी संरक्षित रहे तथा समाज भी स्वस्थ एवं सुरक्षित रहे l अगर ऐसा नहीं है तो वह वनस्पति संरक्षण आईपीएम नहीं है l आई पीएम हानिकारक जीवो के प्रबंधन के साथ-साथ उपरोक्त चीजों का भी प्रबंधन होता है l नेशनल आईपी एम कार्यक्रम का गठन आईपीएम फॉर बेटर इनवारा मेंट के साथ किया गया था जिसमें बाद में सामाजिक प्राकृतिक राजनीतिक आध्यात्मिक आर्थिक व्यापारिक एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे भी शामिल कर लिए गए l
21. आईपीएम बायो इकोलॉजिकल ,क्रॉप फिजियोलॉजी कल ,इकोनॉमिकल, लीगल, कल्चरल , वैराइटल, मैकेनिकल ,बायो लॉजिकल, नेचुरल, नीति एवं विपणन आदि पर आधारित ना सीजीओ प्रबंधन का तरीका है l
22. आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जो इनपुट जैसे जैव नियंत्रण कारक ,बायोपेस्टिसाइड्स, फेरोमोन ट्रैप्स आदि जो आईपीएम डेमोंसट्रेशंस मैं प्रयोग किए गए उनकी उपलब्धता कृषकों को उनके द्वार पर नहीं हो सकी l इस वजह से इन इनपुट का किसानों के बीच में प्रचार एवं प्रसार तथा प्रायोगिक ढंग से पर्याप्त मात्रा में प्रयोग नहीं हो पाया l इस वजह से किसानों ने उनके पास बचा एकमात्र विकल्प रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग अंधाधुंध तरीके से किया l यद्यपि अधिकांश किसान खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक एवं हानिकारक दोनों प्रकार के जीवो के बारे में एवं उनके योगदान के बारे मैं जागरूक हो सके l परंतु आईपीएम इनपुट की अनुपलब्धता के कारण उनके प्रयोग को महत्त्व नहीं दे सके l इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार के कल्चरल कंट्रोल की विधियों को भी वरीयता के रूप में प्रयोग नहीं कर सके l
23. अतः आई पीएम को बढ़ावा देने के लिए हमें डॉक्टर सुभाष पालेकर जी के द्वारा विकसित जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं सुझाए गए सभी विधियां एवं विकल्पों को वनस्पति संरक्षण की आईपी एम पद्धति में सम्मिलित करना पड़ेगा और सभी रासायनिक इनपुट जैसे रासायनिक कीटनाशक एवं रसायनिक उर्वरकों आदि के प्रयोग को बिल्कुल ही बंद करना पड़ेगा तभी आईपीएम का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त हो सकेगा l प्राकृतिक खेती की तरह आईपीएम भी प्रकृति पर आधारित नासि जीव प्रबंधन की एक पद्धति है जिसमें प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन की प्रकृति की पद्धति को आईपीएम में शामिल करना पड़ेगा l
24. आईपीएम इनपुट कि कृषकों को अनु उपलब्धता के कारण, कृषकों की रसायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों को उपेक्षा करने वाली कृषकों की मानसिकता, खेती में रसायनों के उपयोग को रोकने वाले मुद्दे को सरकार के द्वारा वरीयता एजेंडा Agenda priority रूप में ना शामिल करना ही आई पीएम को बढ़ावा देने मैं बाधक सिद्ध हुए हैं l
25. प्राकृतिक खेती आई पीएम का ही अति सुधरा हुआ रूप है या तरीका है जिसमें प्रकृति के सिद्धांत के अनुसार मल्टी लेयर्ड या बहु स्तरीय बहु फसली इंटरक्रॉपिंग का विशेष महत्व दिया जाता है जिससे फसल पारिस्थितिक तंत्र में फसलों के हानिकारक जीवो के नियंत्रण हेतु उनके प्राकृतिक शत्रु जैविक नियंत्रण कारकों के रूप में अपने आप पनपने लगते हैं और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती है तथा फसलों के हानिकारक कीटों का प्रभावी नियंत्रण कर लेती है तथा खेतों में विभिन्न प्रकार के फसलों के उत्पादन से इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग पद्धति के सिद्धांत पर फसल में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो का फसल पर्यावरण में संरक्षण प्राप्त होता है l
प्राकृतिक खेती में अपनाई जाने वाली फसलों के अवशेषों के आच्छादन से विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो का भी फसल पर्यावरण में या फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षण होता है l
प्राकृतिक खेती में किसी भी रसायन का प्रयोग ना होने की वजह से फसल पारिस्थितिक तंत्र में हेलो में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो के प्राकृतिक शत्रु ओपन अपने का तथा उनको संरक्षण प्राप्त होने का अवसर प्राप्त होता है l प्राकृतिक खेती में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ बोने से कृषकों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है l
26. रसायनिक कीटनाशकों का दुरुपयोग अर्थात आपातकालीन स्थिति में उपयोग की जगह इनका अंधाधुंध उपयोग किया जाना विभिन्न सामाजिक प्राकृतिक फसल पारिस्थितिक तंत्र से संबंधित, पर्यावरण एवं जैव विविधता संबंधी समस्याओं का मूल कारण बना जिनकी वजह से आई पीएम के द्वारा यह सोचा गया की फसल उत्पादन फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन मैं रसायनों का उपयोग सिर्फ इमरजेंसी परिस्थिति को टालने के लिए किया जाए अथवा बिल्कुल ही ना किया जाए जिसके लिए राष्ट्रीय एकीकृत ना सजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना की गई l जिसके फलस्वरूप रसायनों का उपयोग कम तो हुआ परंतु उस स्तर तक नहीं कम हुआ जहां तक वांछित था l इसका दूसरा कारण कृषकों की वह सोच थी कि बगैर रसायनिक कीटनाशकों या बगैर रसायनिक उर्वरकों के खेती नहीं की जा सकती और इसके लिए कई किसान इनका उपयोग प्रोफिलैक्टिक तरीके से भी करने लगे जो कि आई पीएम के सिद्धांत पर एकदम खिलाफ है l यह भी अनुभव किया गया की कैलेंडर पर आधारित रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग फसल उत्पादन के लिए आवश्यक नहीं है और ना ही इसका कोई योगदान फसल की उत्पादकता पर पड़ता है l
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से आई पी एम की पद्धति का अपने आप बढ़ावा हो जाएगा क्योंकि आईपीएम भी एक खेती करने का तरीका है जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र ,प्रकृति एवं समाज को महफूज रखते हुए वनस्पति संरक्षण एवं खेती की जाती है l प्राकृतिक खेती में कोई भी इनपुट बाजार से खरीद कर प्रयोग नहीं किया जाता है कोई भी रासायनिक प्रयोग नहीं किया जाता है तथा हानिकारक जीवो का प्रबंधन भी रसायन रहित इनपुट से किया जाता है जो किसान अपने घर पर बना लेते हैं l प्राकृतिक खेती एवं आई पी एम दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं अगर आईपीएम क्रियान्वयन करते समय किसी भी रसायनों का उपयोग ना किया जाए l
27. आई पी एम क्रियान्वयन हेतु जो आईपी एम इनपुट प्रयोग किए गए या आजमाएं गए उनकी प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी बहुत ही जटिल थी या है जिसके लिए कई बार प्रयोगशाला की आवश्यकता होती है l यद्यपि कुछ आईपीएम इनपुट की प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी सिंपलीफाइड कर ली गई है इससे उनका प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर भी किया जा सकता है l परंतु अन्य inputs के प्रोडक्शन हेतु उद्यमी एंटरप्रेन्योर्स की आवश्यकता है l बहुत सारे आईपीएम इनपुट की self life कम होने की वजह से कोई भी entepreuners आगे नहीं आते l परंतु प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले सभी inputs का प्रोडक्शन कृषकों के द्वार पर ही किया जा सकता है और इनको आईपी एम मे बड़ी आसानी से शामिल किया जा सकता है l