Friday, July 1, 2022

आईपीएम दर्शन भाग lX


सांस्कृतिक ,सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक ,तकनीकी ,व्यापारिक, राजनीतिक, नीतियों , जलवायु, पारिस्थितिक तंत्र, जीवन एवं जीवन से जुड़ी हुई विभिन्न गतिविधियों एवं पर्यावरण के बदलते हुए परिपेक्ष एवं परिदृश्य में आईपी एम की विवेचना करना, चिंतन करना एवं परिभाषित करना ही आईपी एम की फिलासफी कहलातl है या आई पीएम दर्शन कहलाता है l
      आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती इनके सभी भागीदारों में जन जागरूकता, कौशल विकास, सशक्तिकरण एवं उनको सक्षम बनाने तथा विचारधारा परिवर्तन व खेती में रसायनों के प्रयोग को कम से कम करने करने या बिल्कुल ना करने का एक जन आंदोलन है l
     आई पी एम अथवा किसी भी वैज्ञानिक या अन्य विचारधारा अथवा कार्यक्रम को सही तरीके से क्रियान्वयन करने हेतु उस कार्यक्रम अथवा विचारधारा को सरकार के द्वारा सरकार के वरीयता एजेंडा के रूप शामिल करना परम आवश्यक है l किसी भी प्रोग्राम अथवा विचारधारा को जब तक सरकार नहीं चाहेगी तब तक उसको सुचारू रूप से क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता l
   सरकार के लगभग सभी विभागों में सभी कैटिगरी के पदों की रिक्तियों तथा उनको ना भरने की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की जन जागरण, जन जागरूकता, जनभागीदारी, जन प्रशिक्षण एकजुटता एवं जन आंदोलन के द्वारा ही किसी भी कार्यक्रम अथवा विचारधारा का सुचारु रुप से क्रियान्वयन किया जा सकता है l जन आंदोलन के द्वारा ही खेती को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है l
   जहरीली खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने के लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी l
   क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिए हमें स्वयं चेंज होना पड़ेगा l
     खेती को लाभकारी बनाना अर्थात उत्पादन लागत कम करना, किसानों की आय को बढ़ाना  , जहर मुक्त खाना पैदा करना अर्थात खेती में रसायनों के उपयोग को न्यूनतम करना या बिल्कुल भी नहीं करना, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को निष्क्रिय करना, पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र ,प्रकृति व उसके संसाधनों को सुरक्षित रखना, कृषकों को समृद्धि साली तथा बैंकों के एवं साहूकारों से कर्जा मुक्ति प्रदान करना और कृषकों की आत्महत्याओं में कमी लाना, खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा स्वस्थ समाज एवं स्वच्छ पर्यावरण का निर्माण करना, नवयुवकों कl खेती के प्रति रुझान को बढ़ाना, फसल पारिस्थितिक तंत्र को क्रियाशील रखना, क्षतिग्रस्त हुए पारिस्थितिक तंत्र का पुणे स्थापन करना ही आज की खेती की प्रमुख आवश्यकताएं एवं समस्याएं  है जिन का निदान करते हुए खेती करना ही आई पीएम की प्रमुख आवश्यकता है l इसके लिए फसल उत्पादन, फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन के अतीत के अनुभव को समाहित करते हुए तथा उपरोक्त समस्याओं के निदान हेतु नवीन  विधियों को सम्मिलित करते हुए एकीकृत रूप से प्रयोग करके फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए वनस्पति संरक्षण करना एवं उपरोक्त समस्याओं का निदान करना ही आईपीएम कहलाता है l 
  Go away from chemicals and come closer to the nature is the basic principle of IPM. 
पहले यह महसूस किया जाता था कि बगैर रसायनों के खेती नहीं की जा सकती परंतु अब यह कृषकों के द्वारा ही प्राकृतिक खेती के विकास के दौरान यह सिद्ध हो चुका है कि बगैर रसायनों के खेती की जा सकती है l
   किसी भी तकनीक एवं विचारधारा को क्रियान्वयन करने से पहले या उसके बाद हमें यह समझना होगा की विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल से मिल रही सुविधाएं पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं आत: हमें इन सुविधाओं का इस्तेमाल सतर्कता पूर्वक करना चाहिएl विज्ञान के नवीन उपहारों को मानव की कसौटी पर परखा जाए और विकास को कभी विनाशकारी ना बनने दिया जाए l

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