Friday, July 29, 2022

Different principles and modules of Safe and chemicalless Farming जहर मुक्त खेती के लिए कुछ सिद्धांत एवं सुझाव

जैसा कि पहले मैंने बताया है की आईपीएम जैविक खेती तथा प्राकृतिक खेती तीनों में प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों एवं विधियों से जहर मुक्त खेती की जा सकती हैl तीनों प्रकार की खेती के मॉड्यूल Bioecological  पारिस्थितिक तरीकों पर आधारित है जिसमें फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले भूमि के ऊपर तथा भूमि के नीचे के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी जैविक एवं अजैविक कार को का संतुलन ध्यान में रखते हुए खेती की जाती है तथा ऐसी विधियां प्रयोग की जाती है जिनसे पारिस्थितिक तंत्र संतुलित  एवं सक्रिय रहे  और इसके लिए प्रकृति, पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता हितैषी विधियां प्रयोग की जाती है l रसायन मुक्त खेती करने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार से हैl I..Fiew Major tips and principles of chemical less farming. 
1. भूमि को बलवान बनाया जाए l खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना l खेत की मिट्टी में पाय जाने वाले माइक्रो ऑर्गेनिक जमस, माइक्रो न्यूट्रिएंट्स, ऑर्गेनिक कार्बन तथा ह्यूमस की मात्रा को ऑर्गेनिक तरीके से बढ़ाना जिसकी वजह से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है l खेत में फसल अवशेषों के आच्छादन और सड़ने से पानी एवं माइक्रो organisms  के संरक्षण से खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है l धान गन्ना जैसी फसलों में नमी रखना आवश्यक है l
2. एक फसली फसल उत्पादन प्रणाली को बंद करना l  कृषकों एवं फसल पारिस्थितिक तंत्र की मांग पर आधारित फसल चक्कर अपनाना l अर्थात एक ही फसल को एक खेत में बार-बार नहीं लेना चाहिए एक फसल को लगभग 3 साल बाद उस खेत में लेना चाहिए l जमीन को खाली ना रखें l खेत में कोई ना कोई फसल आवश्यक होनी चाहिए जिससे बायोडायवर्सिटी या जैव विविधता कायम रहे l
3. अंतर फसली अथवा सहफसली खेती की प्रणाली को बढ़ावा देना चाहिए  l जैसे गाजर के साथ प्याज तथा ज्वार के साथ लोबिया गेहूं के साथ चना एवं अरहर आदि l
4. Bio-diversity को बढ़ाना और उसका संरक्षण करना l अर्थात मुख्य फसल के साथ-स अन्य पौधे जैसे करौंदे की बेल, सूरजमुखी ,गेंदा धनिया आदि लगाएं जिससे मित्र कीट वापस आ जाएंगे l यह कार्य पारिस्थितिक अभियंत्रिकी  इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग के द्वारा किया जा सकता है l मुख्य फसल के  साथ बॉर्डर और इंटर क्रॉप के रूप में कीड़ों को आकर्षित करने वाले फसल जैसे गेंदा, सरसों, सूरजमुखी, धनिया एवं कुछ पेड़ों अथवा वृक्ष व लताओं आदि को  अवश्य लगाएं l  अपनी बनाई हुई खाद का प्रयोग किया जाए जैसे गोबर की खाद, हरी खाद ,पशुओं के मल मूत्र एवं मी गनियो से बनी हुई खाद का प्रयोग किया जाए l
5. कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच उचित अंतर रखना अति आवश्यक है सूरज की रोशनी पौधों को मिलती रहे तथा उनके बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह भी मिलती रहे जिससे पौधे स्वस्थ रहेंगे l
6. खेती के साथ-साथ पशुपालन को भी बढ़ावा दिया जाए जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी तथा उनसे प्राप्त गोबर से खाद बनेगी l
7. लाभदायक जीव जैसे Earthworms, मधुमक्खी विभिन्न प्रकार की मकड़ियां एवं लाभदायक ततैया की संख्या को बढ़ाया जाए l केचुआ खेतों में संरक्षण से प्राकृतिक जल संरक्षण या प्राकृतिक वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम कायम हो सके और वर्षा जल का संरक्षण हो सके l
8. प्रकृति की व्यवस्था, स्थानीय संसाधनों एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पारिस्थितिक तंत्र तथा जैव विविधता को संरक्षित करते हुए, देसी बीज, देसी प्रजातियां ,देसी गाय तथा देसी methods घरों पर बनाए गए देसी गाय के गोबर तथा मूत्र से बनाए गए देसी इनपुट के द्वारा सुरक्षित खेती की जा सकती है l
9. अति आवश्यकता एवं अंतिम उपाय के रूप  मैं 1500 ppm से ऊपर वाला नीम ऑयल 5-7 एम एल प्रति लीटर पानी में शाम के समय per Acr Spray  करने से विभिन्न प्रकार के हानिकारक कारक जीवो की  रोकथाम की जा सकती है l जानवरों के गोबर से बने हुए uplon को जलाकर बनी हुई राख को dusting करने  से विभिन्न प्रकार केsucking pests  की रोकथाम की जा सकती हैl कुछ किसान भाई मट्ठा ,छाछ ,बटर्मिल्क को सड़ा कर अथवा ताजे 10 लीटर बटर्मिल्क में ढाई सौ ग्राम नीम की निमोली का रस या तेल मिलाकर छिड़कने से कई प्रकार के कीड़े खेतों से दूर भागते हैं l
10. डॉक्टर सुभाष पालेकर के प्राकृतिक खेती मॉडल में सुझाए गए जीवामृत ,घन जीवामृत, खरपतवार कीटनाशक तथा माइक्रो न्यू ट्रेंस केsolution का प्रयोग किया जा सकता है l इसके साथ साथ फसल अवशेषों का खेतों मैं ही आच्छादन करने से कि जमीन में माइक्रो ऑर्गेनिक जमस की मात्रा बढ़ती है जो ह्यूमस के निर्माण में सहायक होती है  l
11. प्राकृतिक खेती देसी गाय, देसी बीज तथा देसी पद्धतियों के ऊपर आधारित है l
12. बोने से पहले बीजों का जैविक फंगीसाइड जैसे ट्राइकोडर्मा Trichderma viridae औरTrichderma harzianim आदि के द्वारा बीज संशोधन किया जा सकता है तथा बोने के बाद विभिन्न प्रकार के मौजूद आई पीएम इनपुट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है l ध्यान रहे फेरोमोन ट्रैप्स का इस्तेमाल सिर्फ हानिकारक जीवो की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है ना कि उनकी रोकथाम के लिए l

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