Monday, September 6, 2021

पराली प्रबंधन मैं आईपीएम का योगदान

खेतों में फसलों के अवशेष यानी पराली को जलाने से विभिन्न प्रकार के प्रदूषण प्रतिवर्ष हरियाणा पंजाब राजस्थान उत्तर प्रदेश तथा एनसीआर के अन्य क्षेत्रों में देखने को मिलता है जिसकी वजह से वायु प्रदूषण होता है जिससे समाज में सास संबंधी  विभिन्न प्रकार की बीमारियां तथा समस्याएं उत्पन्न होती हैl धान की फसल के कटाई के बाद लगभग सितंबर के अंत तक इस प्रकार की समस्याएं उपरोक्त राज्यों में देखने को मिलती है जिससे मानव समाज में इम्यूनिटी कम हो जाती है और करो ना जैसी बीमारियों तथा महा मारियो जैसी समस्याएं उत्पन्न होती है l पराली या फसल के अवशेषों के समस्या के निपटान हेतु किसान भाई  खेतों में ही इन अवशेषों को जला देते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है क्योंकि इन से निकला हुआ धुआ वायु प्रदूषण करता हैl इस प्रकार से हुए वायु प्रदूषण को हटाने के लिए इन राज्यों की राज्य सरकारहै अपने-अपने राज्यों में पराली को जलाने से किसानों को मना करते हैं l उपरोक्त समस्याओं के अतिरिक्त पराली के जलाने से खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक  जीवो जो पराली  के साथ संलग्न होते हैं भी नष्ट हो जाते हैं और इनसे अगली फसल में भिन्न प्रकार के हानिकारक  नाशी जीवो की समस्याएं उत्पन्न होते हैं l पराली की समस्या के निपटान हेतु बिना प्रदूषण वाली विधियों जैसे बायो डी कंपोजर का इस्तेमाल करके खेतों में ही पराली को डीकंपोज करके खाद में बदल देते हैं इसके लिए बायो डी कंपोजर का प्रयोग करते हैंl इसके अतिरिक्त ISRO ने 1 स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल बनाया है जिससे पराली के जलाने से होने वाले प्रदूषण आदि की जानकारी प्राप्त हो सकती हैl जिसके लिए सरकारों के द्वारा 20 सितंबर के बाद निगरानी शुरू करने पर सरकार ने बल दिया है l  पराली नियंत्रण हेतु 20 सितंबर के बाद नवंबर के अंत तक सतत निगरानी एवं उचित कदम उठाने के आवश्यकता होती है l जिसके लिए प्रतिवर्ष उचित एक्शन प्लान बनाना चाहिए और उसको सही तरीके से अमल में लाना चाहिए l पराली नियंत्रण अथवा प्रणाली प्रबंधन भी आईपीएम का एक उचित घटक या कंपोनेंट है जिससे पर्यावरण को प्रदूषित ना करते हुए पराली प्रबंधन किया जाता हैl

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