Thursday, September 29, 2022

Conservation of biodiversity in agroecosystem.

What is biodiversity?
फसल पारिस्थितिक तंत्र में जमीन के नीचे एवं जमीन के ऊपर पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं तथा वनस्पतियों को सम्मिलित रूप से बायोडायवर्सिटीअथवा जैव विविधता कहते हैं l
* एक ऐसा जीवन जिसमें विविधता हो अर्थात विभिन्न प्रकार के जीव जंतु एवं पेड़ पौधे पाए जाते हैं बायोडायवर्सिटी कहलाता है  l
We must give equal opportunity for the survival of each and every organism found in a particular locality.
 conservation of biodiversity:-
1.Removal of those cultural practices from farming system which are harmful to the benefecial organisms found in agroecosystem and promotin of those cultural practices in the farming system which can promote the build of population of the beneficial organisms found in agroecosystem is called as conservation of biodiversity .
2.To make Environment and  habitate better suited for survival and buildup of the population of beneficial organisms found in agroecosystem is called as conservation of biodiversity. 
    Conservation of biodiversity is one of the major a activities of implementation of Natural farming as well as IPM .
The following a activities will help to conserve biodiversity in agroecosystem while doing farming. 
*Total  removal of  use of chemicals in the farming system.say no to chemicals .
*Avoiding monocropping and adopt multi cropping. 
*Adopting suitable crop rotation .
* Growing intercropping and border cropping .
* Avoid trash burning and promoting mulching of crop residues in the crop field.
* Using Cow dung and cow urine based natural farming inputs. 
*Planting trees around borders as border crops .
*Very less human intervention is needed for the survival of each an every organisms found in a particular area  or crop field .

*Lets plant different types of trees ,and plants in a field .We must plant fruit plants ,vegetable crops  ,pulses ,oilseed crops , flower plants etc in a same field to conserve biodiversity.
  **   Different types of biocontrol agents found in an agroecosystem:-
1.Spiders 
2.Insect predators 
3.Insect parasitiods 
4.Insect pathogens 
5.Antagonestic fungi
6.Insect nematodes  DD136 Nematode 
7.Insect viruses .
8.Insect pathogenic fungi  Beuveria bassiana,Metarhyzium anisoplae ,Fusarium etc .
**.Pollinators  such as bautteries etc.
** Earthworms and other soil dwelling organims .

Wednesday, September 28, 2022

प्राकृतिक खेती के सिद्धांत

1. जमीन की मिट्टी पौधों के उत्पादन हेतु आवश्यक तत्वों का महासागर है l
2. जमीन की मिट्टी जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाले जमीन में पाए जाने वालेHumus नामक जैव पदार्थ का महासागर है l
3. Humus  का निर्माण अनंत करोड़ बैक्टीरिया के द्वारा पौधों के अवशेषों के विघटन से होता है l
4. हवा पानी एवं नाइट्रोजन का महासागर है l
5. कार्बन डाइऑक्साइड एवं पानी सहायता से पौधे क्लोरोफिल तथा सौर ऊर्जा से प्राप्त प्रकाश की सहायता से भोजन का निर्माण करते हैं यह भोजन कच्ची शर्कर के रूप में पौधों को प्रत्येक भाग मैं जाता है l
6. फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले जैव विविधता फसलों के लिए परागण क्रिया में मदद करते हैं तथा हानिकारक जीवो की संख्या को नियंत्रित करने में अथवा प्रबंधन करने में मदद करती है l
7. खरपतवार हमेशा हानिकारक नहीं होते कभी हुए लाभदायक भी होते हैं खरपतवार ओं को फसल पर्यावरण में आच्छादन करने से जमीन में नमी का संरक्षण रहता है तथा अनंत संख्या में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों के द्वारा ह्यूमस का निर्माण होता है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में मदद करता हैl अतः खरपतवार ओं का नियंत्रण करते समय चीज को सुनिश्चित कर लेना चाहिए की खरपतवार ओं से कितनी हानि हो सकती है और क्या यह खरपतवार फसल पर्यावरण में पौधों के लिए भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में तो व्यवहार तो नहीं करेंगे l
8.

Saturday, September 24, 2022

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023

भारत में आदिकाल से मोटे अनाज की खेती होती चली आ रही है और वह हमारे भोजन का अहम हिस्सा रहे हैं l भारत सरकार के द्वारा वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया था l अब भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अगले वर्ष अर्थात 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है जिसे 70 देशों ने समर्थन दिया l
   मोटे अनाज में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का , ज्वार  रागी, सामा, कोदो, कंगनी ,कुटकी और जो शामिल है जो हर दृष्टि से सेहत के लिए लाभदायक है l पिछली सदी के सातवें दशक में हरित क्रांति के नाम पर गेहूं व धान को प्राथमिकता देने से मोटे अनाज उपेक्षित  हो गए इसके बावजूद पशुओं के चारे तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढ़ने के कारण इनका महत्व बना रहा l करोना के बाद मोटे अनाज इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए जिन्हें सुपरफूड्स के नाम से जाना जाने लगा है l मोटे अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं l
  न केवल सेहत बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं l इन की पैदावार के लिए पानी की जरूरत कम पड़ती है खाद्य और पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ यह पशु चारा भी मुहैया कराते हैं l इनकी खेती अधिकतम वर्षा भी इलाकों मै उर्वरक एवं कीटनाशक ओके होती है  l मोटे अनाजों की खेती से विविधता पूर्ण खेती को बढ़ावा मिलेगा जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी साथ ही साथ रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल में कमी आएगी l
      स्वस्थ एवं पर्यावरण के अनुकूल मोटे अनाज खेती की स्थिति और किसानों के दिन फेरने में  पूरी तरह सक्षम है l

Friday, September 23, 2022

Few questions related with IPM and ZBBNF.

1.Wheather farming can be done without use of chemical pesticides and fertilizers  ?
And :  Yes 
2.Wheather  Farming can be done with minimum expenditure or without expenditure ?
And : Yes.
3.Wheather the farmers can adopt IPM or Z B B N F  or will believe on these Systems of Farming ? 
And :Now the farmers are doing farming using above technologies.  .The answer is yes .
4.Wheather the farmers  know about beneficial organisms found in agroecosystem and wheather they can conserve these beneficial organisms in agroecosystem. 
And : yes. 
5.Wheather IPM system of farming and pest management are now   being adopted by the farmers  ?
Ans :yes.
6.Earlier the IPM inputs like biocontrol agents ,biopesticides ,etc could not be made available to the farmers at their doorsteps but now the inputs required for the implementation of Z B B N F  can be produced by the farmers at their door steps easily  which will facilitate the process of crop production  and protection already going on in the nature
.Wheather inputs required for the implementation of ZBBNF  can be produced by the farmers at the door steps    ?
And Yes .
7.Wheather  multicropping will facilitate the conservation of beneficial organisms found in agroecosystem?
And  :-- Yes .
8.Wheather multicropping will help to promote and  conserve biodiversity  ?
Ans :- Yes.
9.Wheather IPM and ZBBNF Both help in restoration of damaged agroecosystem. 
And Yes.
10 .wheather IPM and ZBBNF both are bioecological approaches for pest management and drop production  ?
Ans : Yes but ZBBNF system is more nearer to  the nature  and ecosystem.It is a way of farming through modification of Ecosystem.

Sunday, September 18, 2022

प्राकृतिक खेती by Dr Bharat Bhushan Tyagi

1. धरती, पेड़ पौधे और पशु पक्षियों के साथ पूरकता पूर्वक रहना या जीना अथवा खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है l
2. प्राकृतिक खेती प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित होती है l प्रकृति में अपने आप में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा तथा जैव विविधता एवं फसल फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने वाली व्यवस्था चल रही हैl ऐसी व्यवस्था का अध्ययन करना और उसको लागू करके खेती करना ही प्राकृतिक खेती कहलाता है l
दोस्तों यह अनुभव किया गया की खेती करते समय हम फसल पारिस्थितिक तंत्र , प्रकृति उसके संसाधनों तथा जैव विविधता एवं समाज पर खेती करने के तरीके का पड़ने वाले प्रभाव का विशेष गहराई से अध्ययन नहीं किया गया या इनको उपेक्षित किया गया और रासायनिक खेती को वरीयता पूर्वक क्रियान्वयन किया गया जिससे समाज और प्रकृति उसके संसाधन, फसल पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता बुरी तरह से प्रभावित हुए तथा क्षतिग्रस्त हुए l जिनके पुनर स्थापन हेतु हमारे विभिन्न बुद्धिजीवियों द्वारा प्राकृतिक खेती विचारधारा लाई गई जो रसायन रहित, दुष्प्रभाव रहित तथा जैव विविधता को बढ़ावा देने  वाली तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखने के लिए अपना योगदान दे रही है l
3. मनुष्य अपने लाभ के लिए जब प्राकृतिक सिस्टम के समानांतर सिस्टम अपनाते हैं तब प्रकृति और उसकी पद्धति को नुकसान होता है या क्षतिग्रस्त होता है l क्योंकि मनुष्य कर्म स्वतंत्रता को मनमानी में परिवर्तित कर लेता है l
4. प्रकृति में अपनी व्यवस्था है और प्रकृति अपनी ही व्यवस्था को स्वीकार करती है l
5. मनुष्य हमेशा व्यापार लाभ हlनी पर तुलनात्मक तरीके से लाभ देख कर काम करता है l
5. जंगलों में पेड़ बगैर पानी के भरपूर फसल देते हैं परंतु खेतों में पानी लगाना पड़ता है इसका कारण है मनुष्य का प्रकृति की पद्धति मैं हस्तक्षेप l
6. पुराने जमाने में खेती परिवार के लिए की जाती थी एक ही खेत में कई प्रकार की फसलें जरूरत के हिसाब से लगाई जाती थी l बाद में लोगों ने मोनोक्रॉपिंग पर जोर दिया इसे अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई l
7. मनुष्य में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया इससे विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई l
8. खेती एक मैनेजमेंट प्लान है जिसमें कई प्रकार की चीजों का मैनेजमेंट किया जाता है जिनमें इकोलॉजी का मैनेजमेंट भी बहुत जरूरी है l
9. प्राकृतिक खेती जैव विविधता का खेल है l
10. हमने व्यवस्था को नहीं समझा और पैसों को व्यवस्था मान लिया l
11. प्रकृति की एक एक इकाई का आचरण एवं कर निश्चित है l
12. जंगल की व्यवस्था को क्योंकि आदमी नहीं देखता है इसलिए वह व्यवस्था व्यवस्थित रहती है परंतु खेतों की व्यवस्था को आदमी देखता है और उसमें लालच से भरा पड़ा हुआ इसी से व्यवस्था अव्यवस्थित होती है l
13. प्रकृति की व्यवस्था को व्यवस्थित रखना ही प्राकृतिक खेती है l इसी से प्रकृति में प्रकृति में संतुलन कायम रहता है l मनुष्य के हस्तक्षेप से हमने पानी को असंतुलित कर दिया जमीन को असंतुलित कर दिया किसी से सारी समस्याएं पैदा हुई l
14. मनुष्य ने अपने लालच में मोनोक्रॉपिंग की तरफ ध्यान दिया जिससे अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई अतः अब मोनोक्रॉपिंग से मल्टी क्रॉपिंग की ओर जाना पड़ेगा l
15. विभिन्न फसलों के साथ एक फसल हल्दी की भी लगाना चाहिए जिससे अनेक प्रकार के जानवरों की समस्या से छुटकारा मिल सकता है क्योंकि बहुत सारे जानवर हल्दी की गंध से दूर रहना चाहते हैं l इसी प्रकार से बहुत सारे पौधों विभिन्न प्रकार के कीड़ों को आकर्षित एवं दूर रखने में सक्षम होते हैंl मल्टी क्रॉपिंग जय व्यवस्था को प्रबल करती है l

Thursday, September 15, 2022

आई पी एम क्रियान्वयन से संबंधित कुछ अनुभव

राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना वर्ष1991-92 मैं भारत सरकार के डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के अंतर्गत पहले से चल रही तीन अलग-अलग स्कीम्स के मर्जर करने के बाद हुआ यह तीनों स्कीम्स थी Biological control of crop pests and weeds ,Pest Surveillance, and plant protection. मर्जर के बाद नई स्कीम बनी जिसका नाम स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशन आफ pest मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया रखा गया और उसके अंतर्गत नेशनल आईपीएम प्रोग्राम बनाया गया और और विभिन्न राज्यों में लगभग 35 केंद्रीय एकीकृत  ना सी  जीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना की गई l जिनके लिए जो common mandate बनाया गया उसमें इन्हीं तीनों schemes की गतिविधियों को सम्मिलित किया गया और आई पीएम का प्रचार एवं प्रसार आईपीएम प्रदर्शन, आईपीएम खेत पाठशाला का आयोजन तथा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्रोग्राम का आयोजन के साथ-सथ फसलों में हानिकारक एवं लाभदायक जीवो की संख्या का निगरानी कार्यक्रम के द्वारा आकलन आदि प्रमुख कार्यक्रम शामिल किए गए तथा आई पीएम प्रदर्शन हेतु विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार को तथा बायोपेस्टिसाइड्स आदि का प्रयोगशाला में उत्पादन करना शामिल था l इसके अलावा फसलों में adopt की जाने वाली गतिविधियों के बारे में निर्णय लेने हेतु Agroecosystem Analysis (AESA ) को एक प्रमुख गतिविधि के रूप में आईपीएम प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन तथा आईपी एम खेत पाठशाला के आयोजन में शामिल किया गया l इसके अतिरिक्त खेतों में लाभदायक जीवो की संख्या का संरक्षण एवं बढ़ोतरी हेतु इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग जैसे डेमोंसट्रेशन प्रोग्राम भी रखे गए जिनमें मुख्य फसल के साथ-साथ फसल के चारों तरफ बॉर्डर crops  के रूप में तथा फसल के अंदर इंटर क्रॉप के रूप में विभिन्न प्रकार के कीटो को आकर्षित करने वाली फसलें लगाई जाती है l
   IPM  के अभी  तक प्राप्त अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है की आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जैव नियंत्रण विधि ,यांत्रिक विधियों तथा विभिन्न प्रकार की कल्चरल प्रैक्टिसेज को बढ़ावा दिया गया l इसके साथ साथ अंतिम विकल्प के रूप में किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का भी सहारा लिया गया l बस इसी की वजह से कीटनाशकों का उपयोग खेती में उतना कम नहीं हो सका जितना हमें अपेक्षित था l 
आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु प्रयोग किए गएinputs मैं जैव नियंत्रण कारक जैविक पेस्टिसाइड्स प्रयोगशाला में उत्पादित करके प्रदर्शन प्लॉटों के लिए तो पर्याप्त मात्रा में उक्त उपलब्ध कराया गया परंतु अन्य किसानों को इनपुट उपलब्ध नहीं हो सके क्योंकि इनके लिए कोई भी प्राइवेट entepreuners  बनाने के लिए सामने नहीं आएl इसी वजह से यह आईपीएम इनपुट किसानों को उनके द्वार पर उपलब्ध नहीं हो सके और किसानों ने रसायनिक पेस्टिसाइड का सहारा नहीं छोड़ा l
        इसके साथ-साथ आईपीएम के क्रियान्वयन करते समय जमीन की उर्वरता के ऊपर गहराई से अध्ययन नहीं किया गया और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती चली गई और जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा जिससे विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव फसल पर्यावरण से गायब होते चले गए l जरूरत है जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो को वापस लाने की l आईपीएम पद्धति में से रसायनों के उपयोग को ना करते हुए तथा प्राकृतिक खेती मैं बताए गई विधियों को अपनाते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति को पुनः वापस लाया जा सकता है तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो अथवा जैव विविधता को फिर से बढ़ावा मिल सकता है और फसल पारिस्थितिक तंत्र में प्राकृतिक संतुलन अथवा नेचुरल बैलेंस स्थापित किया जा सकता है l
     जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए हमें खेती की ऐसी विधियों को बढ़ावा देना चाहिए जो फसलों मेंHumus  के निर्माण तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता के संरक्षण एवं बढ़ावा में सुविधा प्रदान कर सकें l जीवामृत एवं घन जीवामृत का उपयोग, फसलों में पौधों के अवशेषों का आच्छादन ,एक ही खेत में जंगल की पद्धति के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को लेना, खेत में नमी एवं पानी का संरक्षण करना, देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद, देसी और वनस्पति आधारित कीटनाशक, देसी पद्धतियां आदि को बढ़ावा देने से फसल पर्यावरण में जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है साथ ही साथ जमीन में Humus की निर्मिती करते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है  l मोनोक्रॉपिंग सिस्टम को बदल कर हमेशा अलग-अलग फसलों को एक खेत में लेने से जैव विविधता का संरक्षण हो सकता है l अलग-अलग फसल चक्र बनाकर जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है l फसलों के अवशेषों के आच्छादन से जमीन के अंदर ऑर्गेनिक कार्बन की वृद्धि होती है l उपरोक्त सिद्धांत एवं इनपुट के प्रयोग हो आई पी   एम में शामिल करने से आप इनको प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है l पर्यावरण , पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता  की रक्षा हेतु आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती अपनाएं l एग्रोइकोसिस्टम का इस प्रकार से विश्लेषण करें की हमे पारिस्थितिक तंत्र मैं या प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षl और फसल प्रबंधन की पद्धति का ज्ञान हो सके और उसके लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्णय  ले सके l

Tuesday, September 13, 2022

किसानों की आत्महत्याओं के कारण

1. लगातार कर्जे में डूब ना
2. प्राकृतिक आपदा
3. बैंकों के खर्चे की रिकवरी से किसानों के सम्मान को ठेस
4. ग्लोबल वार्मिंग एवं क्लाइमेट चेंज के प्रभाव
     मानसून के टाइम टेबल में परिवर्तन
5. मार्केट नियंत्रण से संबंधी समस्याएं
      फसल की कटाई के समय फसलों के दाम कम किया जाना और बाद में बढ़ाया जाना एक बहुत बड़ी समस्या है l
6. सरकार की नीतियां
      फसल कटने पर आयात को बढ़ाते हैं और निर्यात को कम करते हैं l
7. युवाओं का गांव से पलायन

Monday, September 12, 2022

आई पी एम फिलासफी एवं प्राकृतिक खेती

दोस्तों, आई पी एम फिलोसोफी का विस्तृत वर्णन करते समय मैंने यह उल्लेख किया था की  आईपीएम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी हुई खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है l आईपीएम सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण या खेती करने की एक विचारधारा है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधन ,जीवन की उत्पत्ति तथा उसके संचालन हेतु आवश्यक पंचतत्व पृथ्वी ,जल ,आकाश ,अग्नि और वायु का संरक्षण एवं सुरक्षाकरना है l प्राचीन कृषि व्यवस्था में अथवा खेती करने की व्यवस्था में प्रकृति हितैषी विधियों पर जोर दिया जाता था जो बाद में रसायनिक खेती के दौरान खत्म हो गया और खेती में विभिन्न प्रकार की प्रकृति विरोधी विधियों का समावेश हो गया जिससे समाज एवं प्रकृति से संबंधित विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए.l
      हमारे पूर्वज किसान भाई प्रकृति हितेषी विधियों को अपनाकर खेती किया करते थे तथा उनके खेती करने की सोच एवं रहन सहन प्रकृति हितैषी था जो बाद में रसयनिक खेती के दौरान प्रकृति विरोधी हो गया l हमारे पूर्वज किसान भाई पौधों में परमात्मा देखते थे, कंकर में शंकर देखते थे, नदी में मां का रूप देखते थे, नर में नारायण का रूप देखते थे, पृथ्वी में मां का रूप देखते थे और खेती किया करते थे l प्रकृति परमात्मा का साकार रूप है l प्रकृति का संविधान ईश्वर चलाता हैl प्रकृति का कोई भी प्राणी मनुष्य के अलावा प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करता है l ईश्वर ने पहले प्रकृति को बनाया है बाद में मनुष्य को l प्रकृति की विरासत ओं का ध्यान रखते हुए खेती करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए एवं पारिस्थितिक तंत्र ओं की सक्रियता को बरकरार रखते हुए खेती करना आज की प्राकृतिक खेती का मुख्य मांग एवं उद्देश्य है l अतः हमें हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों पर लौटना पड़ेगा तभी हम प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैंl
श्री सुभाष पालेकर द्वारा बताई गई एवं अपनाई गई प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु अपनाई जा सकती है और कम से कम तथा शून्य बजट मैं और  समुदाय क स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता   पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों को बाधित ना करते हुए सुरक्षित एवं भरपूर तथा गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है l

आई पी एम फिलासफी एवं प्राकृतिक खेती

दोस्तों, आई पी एम फिलोसोफी का विस्तृत वर्णन करते समय मैंने यह उल्लेख किया था की  आईपीएम जीवन के क्षेत्र से जुड़ी हुई खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है आईपीएम सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण या खेती करने की एक विचारधारा है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधन ,जीवन की उत्पत्ति तथा उसके सं0चालन

Tuesday, September 6, 2022

प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा व्यवस्था का संचालन

जंगलों में पाए जाने वाले प्रत्येक पौधा मानव के हस्तक्षेप के बगैर भरपूर फसल देता है और उसको फसल उत्पादन तथा फसल रक्षा के काम में आने वाले सभी तत्व भरपूर मात्रा में प्रकृति के माध्यम से प्राप्त होते हैं आता यह सिद्ध होता है कि प्रकृति में एक स्वयं संचालित, स्वयं पोशी फसल व्यवस्था चल रही है जो जंगल में पाए जाने वाले पौधों के उत्पादन में सहायक होती हैं l आता: जरूरी है कि जंगल में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा व्यवस्था किस प्रकार से चलती है इसकी जानकारी का अध्ययन कर लिया जाए l नीचे के विवरण में इसी प्रकार का अध्ययन किया जा रहा है l
1. प्रकृति की व्यवस्था स्वयं से संचालित स्वयं    विकास सी एवं स्वयं पोशी होती है  l
2. प्राकृतिक खेती  शोषण नहीं परंतु सहजीवन के सिद्धांत पर कार्य करती है l
3. मनुष्य की तरह पौधों में भी जीवन है और मनुष्य की तरह पौधों में भी आत्मा पाई जाती है जो बीज के रूप में होती है l बीज अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित होकर पौधे को जन्म देता है l आत: बीज आत्मा की तरह अजर और अमर होता है l
4. देसी बीज एवं देसी गाय की सुरक्षा करना या बचाना सिर्फ हमारा दायित्व नहीं है बल्कि सरकार का भी दायित्व है l
5. प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पौधे की हरि पत्तियां क्लोरोफिल ,कार्बन डाइऑक्साइड ,पानी तथा सौर ऊर्जा की सहायता से भोजन निर्माण करती है l यह भोजन शर्करा के रूप में बनता है जो पौधों के विकास एवं स्वसन के काम आता है lयही भोजन पौधों के जड़ों तक पहुंच जाता है जो जड़ों के विकास के काम में आता है l 
    प्रकृति में पानी मानसून के जरिए बरसात के रूप में पौधों को प्राप्त होता है l हवा से नाइट्रोजन प्राप्त होती है l विभिन्न पौधों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया पाए जाते हैं l नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं l एक सहजीवी और दूसरे  आ सहजीवी l  Rhyzobium bacteria,Mycorhyza fungus, Blue green Algae जड़ों को नाइट्रोजन देते हैं जिसके बदले में जड़ जीवाणुओं को ऊर्जा हेतु शर्करा खिलाती है l इसी तरह कच्ची शर्करा से प्रोटीन बनती है l दाल वर्गीय फसलों अर्थात Leguminacyfamily  के पौधों की जड़ों पर इस प्रकार के बैक्टीरिया पाए जाते हैं l जो नाइट्रोजन फिक्सेशन के काम करते हैं l यह बैक्टीरिया अधिकांशत दो दली  पौधों की जड़ों में पाए जाते हैं l अतः एक दलीय पौधे जैसे राइस गेहूं आदि जिनमें इस प्रकार के बैक्टीरिया नहीं पाए जाते हैं इन फसलों को दलहनी फसलों के साथ लगाना चाहिए l सहजीवी बैक्टीरिया प्रयोगशाला में नहीं produce  किए जा सकते Humanbeing  is not a creator of of such symbiotic bacteria.Only the intestine of Deshi cow can produce such type of bacteria which can also be promoted in the fields by using Jeevamrit from the cow dung and urine of deshi cow. 
  सहजीवी सहजीवी बैक्टीरिया graminy family  के पौधों की जड़ों के पास पाए जाते हैं l धान, गेहूं, गन्ना ,बाजरा, ज्वार ,रागी ,कोदो, कुटकी आदि graminy family की फसलें है l
6. अन्य जीवो की तरह भी पौधों का शरीर भी पंचमहाभूता अर्थात मिट्टी अथवा पृथ्वी जल अग्नि अर्थात कार्बन ,आकाश अर्थात सौर ऊर्जा वायु अर्थात एयर तथा ब्रम्हांड ऊर्जा से मिलकर बना है जो बाद में विघटन के द्वारा नष्ट हो जाता है इस विघटन में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों अपना योगदान देते हैं l परंतु पौधों मैं पाए जाने वाली आत्मा बीज के रूप में हमेशा जिंदा रहती हैं l जो एक नए पौधे को जन्म देती है l
7. पौधों में pests and diseases का प्रकोप पौधों में पाई जाने वाली प्रति रक्षात्मक Immunity power के ऊपर आधारित होती है l जिन पौधों में इम्यूनिटी पावर अर्थात प्रति रक्षात्मक शक्ति कम होती है उनमेंpests and Diseases जल्दी असर करती है तथा जब कोई भी बाहरी जीव या बीमारी उत्पन्न करने वाला अर्जेंट पौधे के अंदर प्रवेश करता है तो पौधे के अंदर पाई जाने वाली immunity power उसका विरोध करती है और आधार पौधे के अंदर प्रति रक्षात्मक पावर कम होती है तो वहpests and diseases पौधे कोinfect or infest करती है का प्रकोप  करने के बाद पौधों से एक प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता हैl
8. जब कोई अनवांटेड या चाहे जाने वाली मात्रा से अधिक पदार्थ पौधे के अंदर पहुंचता है तो पौधा एक प्रकार का द्रव्य बाहर निकालता है जो फसल में हानिकारक कीटों को फसल की तरफ आकर्षित करता है और फसल में हानिकार कीटों

8.Humus को हम जीवन द्रव भी कहते हैं यह एक जैव रासायनिक पदार्थ होता है जो फसलो की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है humus 24 घंटे कार्यरत रहता है  l  Humus की निर्मिती के समय एक साथ अनेक घटनाक्रम चलते रहते हैं l एक साथ कुछ पुराने घटक विघटित होते रहते हैं और नए घटकों की निर्मिती होती है l  Humus की निर्मिती के समय पेड़ पौधों के विकास के लिए आवश्यक सभी खाद्य तत्वों का उपलब्ध होना आवश्यक है l यह खाद्य तत्व चार प्रकार के होते हैं जो निम्नलिखित है:-
*Carbon,Hydrogen and Oxygen
*Nitrozen,Phosphorous,Potashium (NPK)
*Calcium ,Magnishium Sulpher
*Micro nutrients.
Humus उपरोक्त खाद्य तत्वों को पौधों की जड़ों को जिस स्थिति में चाहिए उस स्थिति में उपलब्ध कराने में सहायक होता है l पेड़ पौधों की वृद्धि विकास के लिए आवश्यक जैविक अम्ल ह्यूमिक एसिड अन्य हार्मोन Humus  ही निर्माण होते हैं और जड़ों को उपलब्ध कराए जाते हैं l पेड़ पौधों की जड़ों के लिए आवश्यक सभी खाद्य पदार्थ Humus  से ही लेते हैं l Humus खाद्य पदार्थों का भंडार है Humus  स्पंज की तरह कार्य करता है जो पानी को सोख लेता है l एक किलोग्रामHumus एक रात में 6 लीटर पानी खींच लेता है और जड़ों को उपलब्ध कराता है lHumus  का निर्माण अनंत करोड़ अज्ञात सूक्ष्म जीवाणुओं के माध्यम से कास्ट पदार्थों के विघटन से होता है अर्थात Himus  की निर्मिती के लिए तीन बातों की जरूरत होती है l
* फसल अवशेषों का आच्छादन
* सूक्ष्मजीवाणुओं युक्त जीवामृत
*Carbon :Nitrogen ratio.
10:1
आच्छादन मैं  सिर्फ फसल अवशेषों का ही इस्तेमाल करना चाहिए ना कि की प्लास्टिक इत्यादि का l
9.4 steps of Carbon Cycle:-
   *Carbon enter in to Atmosphere as CO2
*.CO2 a absorbed by Autotrophs or plants 
* Animal consumers plants therefore incorporating carbon in   to their system.
* Animals and plants die,their body is decomposed and Carbon reabsorbed in to atmosphere.

Saturday, September 3, 2022

प्राकृतिक खेती की विचारधाराConcepts related with Natural Farming.

प्रकृति में चल रही वनस्पति उत्पादन एवं वनस्पति रक्षा की व्यवस्था के अनुरूप व्यवस्था अपनाकर खेती करना प्राकृतिक खेती कहलाता है  l
प्रकृति के साथ तालमेल बनाते हुए प्रकृति हितैषी विधियों का प्रयोग करते हुए खेती करना प्राकृतिक खेती कहलाता है  l
प्राकृतिक खेती की विचारधारा से संबंधित कुछ सिद्धांत इस प्रकार से है:-
1 . प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार खेती करना l
2. जैव विविधता, मिट्टी, जल ,ऑर्गेनिक कार्बन, सूक्ष्मजीव, सूक्ष्म तत्व, हवा,Humus, सौर एवं ब्रह्मांड ऊर्जा का संरक्षण करते हुए खेती करना l
3. देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद एवं देसी पद्धतियों अथवा विधियों को अपनाकर खेती करना l
4. बहु फसली अथवा मिश्रित खेती ,जंगल की व्यवस्था के अनुसार विभिन्न फसलों को एक साथ करते हुए खेती करना l
5. स्थानीय संसाधनों एवं परिस्थितियों के हिसाब से खेती करना l
6. हरी खाद ,गोबर की खाद, फसलों एवं पशुओं के अवशेषों का खेत में ही आच्छादन एवं प्रयोग करके खेती करना l
7. रसायनों का प्रयोग हर हालत में वर्जित है l
8. खेत में पाए जाने वाला सभी लाभदायक जीवो जैसे मधुमक्खी, भोरे, ततैया, केचुआ, मकड़िया कीटपरभक्षी, कीट परजीवी, कीटों को संक्रमित करने वाले विभिन्न प्रकार की फफूंद दिया, बैक्टीरिया , निमेटोड आदि का फसल पर्यावरण में संरक्षण करते हुए खेती करना l
9. उचित फसल चक्र अपनाते हुए खेती करना l
10. फसल पारिस्थितिक तंत्र को सक्रिय रखते हुए खेती करना l
11. हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पारंपरिक विधियों का पुनर्जागरण एवं पुनर अथवा फिर बढ़ावा देकर बैक टू बेसिक के सिद्धांत को अपनाते हुए खेती करना भी प्राकृतिक खेती का सिद्धांत एवं विचारधारा है l