Monday, September 12, 2022

आई पी एम फिलासफी एवं प्राकृतिक खेती

दोस्तों, आई पी एम फिलोसोफी का विस्तृत वर्णन करते समय मैंने यह उल्लेख किया था की  आईपीएम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी हुई खेती करने की अथवा वनस्पति संरक्षण करने की एक विचारधारा है l आईपीएम सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण ,जैव विविधता ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण या खेती करने की एक विचारधारा है जिसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता, प्रकृति व उसके संसाधन ,जीवन की उत्पत्ति तथा उसके संचालन हेतु आवश्यक पंचतत्व पृथ्वी ,जल ,आकाश ,अग्नि और वायु का संरक्षण एवं सुरक्षाकरना है l प्राचीन कृषि व्यवस्था में अथवा खेती करने की व्यवस्था में प्रकृति हितैषी विधियों पर जोर दिया जाता था जो बाद में रसायनिक खेती के दौरान खत्म हो गया और खेती में विभिन्न प्रकार की प्रकृति विरोधी विधियों का समावेश हो गया जिससे समाज एवं प्रकृति से संबंधित विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए.l
      हमारे पूर्वज किसान भाई प्रकृति हितेषी विधियों को अपनाकर खेती किया करते थे तथा उनके खेती करने की सोच एवं रहन सहन प्रकृति हितैषी था जो बाद में रसयनिक खेती के दौरान प्रकृति विरोधी हो गया l हमारे पूर्वज किसान भाई पौधों में परमात्मा देखते थे, कंकर में शंकर देखते थे, नदी में मां का रूप देखते थे, नर में नारायण का रूप देखते थे, पृथ्वी में मां का रूप देखते थे और खेती किया करते थे l प्रकृति परमात्मा का साकार रूप है l प्रकृति का संविधान ईश्वर चलाता हैl प्रकृति का कोई भी प्राणी मनुष्य के अलावा प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करता है l ईश्वर ने पहले प्रकृति को बनाया है बाद में मनुष्य को l प्रकृति की विरासत ओं का ध्यान रखते हुए खेती करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए एवं पारिस्थितिक तंत्र ओं की सक्रियता को बरकरार रखते हुए खेती करना आज की प्राकृतिक खेती का मुख्य मांग एवं उद्देश्य है l अतः हमें हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों पर लौटना पड़ेगा तभी हम प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैंl
श्री सुभाष पालेकर द्वारा बताई गई एवं अपनाई गई प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु अपनाई जा सकती है और कम से कम तथा शून्य बजट मैं और  समुदाय क स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता   पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों को बाधित ना करते हुए सुरक्षित एवं भरपूर तथा गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है l

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