हमारे पूर्वज किसान भाई प्रकृति हितेषी विधियों को अपनाकर खेती किया करते थे तथा उनके खेती करने की सोच एवं रहन सहन प्रकृति हितैषी था जो बाद में रसयनिक खेती के दौरान प्रकृति विरोधी हो गया l हमारे पूर्वज किसान भाई पौधों में परमात्मा देखते थे, कंकर में शंकर देखते थे, नदी में मां का रूप देखते थे, नर में नारायण का रूप देखते थे, पृथ्वी में मां का रूप देखते थे और खेती किया करते थे l प्रकृति परमात्मा का साकार रूप है l प्रकृति का संविधान ईश्वर चलाता हैl प्रकृति का कोई भी प्राणी मनुष्य के अलावा प्रकृति के संसाधनों का दुरुपयोग नहीं करता है l ईश्वर ने पहले प्रकृति को बनाया है बाद में मनुष्य को l प्रकृति की विरासत ओं का ध्यान रखते हुए खेती करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और जैव विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए एवं पारिस्थितिक तंत्र ओं की सक्रियता को बरकरार रखते हुए खेती करना आज की प्राकृतिक खेती का मुख्य मांग एवं उद्देश्य है l अतः हमें हमारे पूर्वज किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली पद्धतियों पर लौटना पड़ेगा तभी हम प्रकृति व उसके संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैंl
श्री सुभाष पालेकर द्वारा बताई गई एवं अपनाई गई प्राकृतिक खेती मैं प्रयोग की जाने वाली सभी विधियां आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु अपनाई जा सकती है और कम से कम तथा शून्य बजट मैं और समुदाय क स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों को बाधित ना करते हुए सुरक्षित एवं भरपूर तथा गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन किया जा सकता है l
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