Thursday, September 15, 2022

आई पी एम क्रियान्वयन से संबंधित कुछ अनुभव

राष्ट्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन कार्यक्रम की स्थापना वर्ष1991-92 मैं भारत सरकार के डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के अंतर्गत पहले से चल रही तीन अलग-अलग स्कीम्स के मर्जर करने के बाद हुआ यह तीनों स्कीम्स थी Biological control of crop pests and weeds ,Pest Surveillance, and plant protection. मर्जर के बाद नई स्कीम बनी जिसका नाम स्ट्रैंथनिंग एंड मॉर्डनाइजेशन आफ pest मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया रखा गया और उसके अंतर्गत नेशनल आईपीएम प्रोग्राम बनाया गया और और विभिन्न राज्यों में लगभग 35 केंद्रीय एकीकृत  ना सी  जीव प्रबंधन केंद्रों की स्थापना की गई l जिनके लिए जो common mandate बनाया गया उसमें इन्हीं तीनों schemes की गतिविधियों को सम्मिलित किया गया और आई पीएम का प्रचार एवं प्रसार आईपीएम प्रदर्शन, आईपीएम खेत पाठशाला का आयोजन तथा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्रोग्राम का आयोजन के साथ-सथ फसलों में हानिकारक एवं लाभदायक जीवो की संख्या का निगरानी कार्यक्रम के द्वारा आकलन आदि प्रमुख कार्यक्रम शामिल किए गए तथा आई पीएम प्रदर्शन हेतु विभिन्न प्रकार के जैविक नियंत्रण कार को तथा बायोपेस्टिसाइड्स आदि का प्रयोगशाला में उत्पादन करना शामिल था l इसके अलावा फसलों में adopt की जाने वाली गतिविधियों के बारे में निर्णय लेने हेतु Agroecosystem Analysis (AESA ) को एक प्रमुख गतिविधि के रूप में आईपीएम प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन तथा आईपी एम खेत पाठशाला के आयोजन में शामिल किया गया l इसके अतिरिक्त खेतों में लाभदायक जीवो की संख्या का संरक्षण एवं बढ़ोतरी हेतु इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग जैसे डेमोंसट्रेशन प्रोग्राम भी रखे गए जिनमें मुख्य फसल के साथ-साथ फसल के चारों तरफ बॉर्डर crops  के रूप में तथा फसल के अंदर इंटर क्रॉप के रूप में विभिन्न प्रकार के कीटो को आकर्षित करने वाली फसलें लगाई जाती है l
   IPM  के अभी  तक प्राप्त अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है की आई पी एम के क्रियान्वयन हेतु जैव नियंत्रण विधि ,यांत्रिक विधियों तथा विभिन्न प्रकार की कल्चरल प्रैक्टिसेज को बढ़ावा दिया गया l इसके साथ साथ अंतिम विकल्प के रूप में किसी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का भी सहारा लिया गया l बस इसी की वजह से कीटनाशकों का उपयोग खेती में उतना कम नहीं हो सका जितना हमें अपेक्षित था l 
आईपी एम के क्रियान्वयन हेतु प्रयोग किए गएinputs मैं जैव नियंत्रण कारक जैविक पेस्टिसाइड्स प्रयोगशाला में उत्पादित करके प्रदर्शन प्लॉटों के लिए तो पर्याप्त मात्रा में उक्त उपलब्ध कराया गया परंतु अन्य किसानों को इनपुट उपलब्ध नहीं हो सके क्योंकि इनके लिए कोई भी प्राइवेट entepreuners  बनाने के लिए सामने नहीं आएl इसी वजह से यह आईपीएम इनपुट किसानों को उनके द्वार पर उपलब्ध नहीं हो सके और किसानों ने रसायनिक पेस्टिसाइड का सहारा नहीं छोड़ा l
        इसके साथ-साथ आईपीएम के क्रियान्वयन करते समय जमीन की उर्वरता के ऊपर गहराई से अध्ययन नहीं किया गया और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती चली गई और जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा जिससे विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव फसल पर्यावरण से गायब होते चले गए l जरूरत है जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो को वापस लाने की l आईपीएम पद्धति में से रसायनों के उपयोग को ना करते हुए तथा प्राकृतिक खेती मैं बताए गई विधियों को अपनाते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति को पुनः वापस लाया जा सकता है तथा फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो अथवा जैव विविधता को फिर से बढ़ावा मिल सकता है और फसल पारिस्थितिक तंत्र में प्राकृतिक संतुलन अथवा नेचुरल बैलेंस स्थापित किया जा सकता है l
     जमीन की उर्वरा शक्ति तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए हमें खेती की ऐसी विधियों को बढ़ावा देना चाहिए जो फसलों मेंHumus  के निर्माण तथा फसल पर्यावरण में जैव विविधता के संरक्षण एवं बढ़ावा में सुविधा प्रदान कर सकें l जीवामृत एवं घन जीवामृत का उपयोग, फसलों में पौधों के अवशेषों का आच्छादन ,एक ही खेत में जंगल की पद्धति के अनुसार विभिन्न प्रकार की फसलों को लेना, खेत में नमी एवं पानी का संरक्षण करना, देसी गाय, देसी बीज, देसी खाद, देसी और वनस्पति आधारित कीटनाशक, देसी पद्धतियां आदि को बढ़ावा देने से फसल पर्यावरण में जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है साथ ही साथ जमीन में Humus की निर्मिती करते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है  l मोनोक्रॉपिंग सिस्टम को बदल कर हमेशा अलग-अलग फसलों को एक खेत में लेने से जैव विविधता का संरक्षण हो सकता है l अलग-अलग फसल चक्र बनाकर जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है l फसलों के अवशेषों के आच्छादन से जमीन के अंदर ऑर्गेनिक कार्बन की वृद्धि होती है l उपरोक्त सिद्धांत एवं इनपुट के प्रयोग हो आई पी   एम में शामिल करने से आप इनको प्राकृतिक खेती में परिवर्तित किया जा सकता है l पर्यावरण , पारिस्थितिक तंत्र एवं जैव विविधता  की रक्षा हेतु आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती अपनाएं l एग्रोइकोसिस्टम का इस प्रकार से विश्लेषण करें की हमे पारिस्थितिक तंत्र मैं या प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन फसल रक्षl और फसल प्रबंधन की पद्धति का ज्ञान हो सके और उसके लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए निर्णय  ले सके l

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