Friday, December 31, 2021

आई पी एम क्रियान्वयनके कुछ सिद्धांत

1.जब तक काम चलता हो  गी जा से
    बच कर रहे दवा से
1.2.आईपीएम अपनाने अथवा किसी महामारी से निपटने हेतु कृपया जागरूक रहें ,सतर्क रहें एवं एक अच्छे नागरिक होने का फर्ज निभाएं
2.No first use of chemicals .
3 .Use chemical pesticides only as an emergency tool. 
4.Lets not make Development catestrophic  in nature. विकास को कभी विनाशकारी ना बने ने दिया जाए l
5.GDP पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय असामाजिक प्राकृतिक विकास किया जाए l
6. सुरक्षित भोजन के साथ साथ खाद्य सुरक्षा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी आवश्यक है l
7.Crop Management through systematic approach  is modern concept of IPM. सुव्यवस्थित ढंग से फसलों का संपूर्ण प्रबंधन आईपीएल की आधुनिक विचारधारा है l
8.Get rid  of from pests problems with minimum expenditure and least disturbance to community health,Environment, ecosystem, biodiversity, nature and society are the main objectives of IPM.
9.Avoid pesticides till we can avoid.
10 . IPM is based on nature's  principles .There is no place of chemical farming in the nature. Natural System is self operating system which is helpful to each others both living and nonliving. 
11.Making agroecosystem bettersuited to beneficial organisms found in agroecosystem and unfit for harmful organisms or pests found in Agroecosystem. 
12.Live and let live is the basic principle of IPM.
13.


Wednesday, December 29, 2021

Ecological Engineering Demonstrations in Cole Crops an Experience.गोभी वर्गीयसब्जियों मेंइकोलॉजिकल इंजीनियरिंगप्रदर्शनका एक अनुभव

  Growing of another crop or crops along with the main crop or crops is called as companion Farming .This is done for particular purpose  to manipulate the habits of different pests and defenders found in a crop field is also referred as Ecological Engineering.  A demonstration of Ecological Engineering in cole crops conducted by the Directorate of plant protection,quarantine and Storage during Krishi Vasant 2014 held from 09-13 Feb,2014 at Central Institute for Cotton Research ,Nagpur.In this demonstration the Cole crops were bordered by Su flower,Mustard,Merigold,and Coriender crops .Sunflowers was the tallest crop able to attract eggs of Helicoverpa pest .It was followed by two rows of Mustard crop to attract Chrysoperla and Lady bird beetle types of benefecial insects . Again it was followed by one row of Merigold crop . The whole sequence is further followed by two rows of Coriender crop which is  being an excellent crop for attracting different natural enemies of different crop pests of these Cole crops .These crops  were sown right from border of the field to towards  inside of the field and  main cole crops respectively.
  Merigold crop was preferable crop for egg laying of Helicoverpa.  It was observed that Cabbage and Cauliflower crops were found affected with Aphid and the Aphid population on Cole crops was found parasitized by Aphidius, a potential parasitoid of Aphid .This parasitoid could be able to manage the Aphid population on  these cole   crops . This demonstration was visited by thousands of the farmers Visited  Krishi Vasant 2014 at Nagpur along with Hon the then President of India  Shri Pranabh Mukherjee  ji. They were impressed by seeing the role of Parasitoid Aphidius on Aphid for managing the population of Aphid on these cole crops ie Cabbage and Cauliflower without use of chemical pesticides.

Tuesday, December 28, 2021

आई पी एम में Companion Farming सहचर फार्मिंग या सह फार्मिंग का योगदान

जब मुख्य फसल के साथ अन्य फसलों को सहचर फसलों के रूप में उगाते हैं तो फसल उत्पादन के इस पद्धति को सह फार्मिंग अथवा सहचर फार्मिंग या Companion कहते हैं l इस प्रकार की खेती के कई उद्देश्य होते हैं उनमें से कुछ निम्नलिखित है l
1. हानिकारक और लाभदायक कीटो को आकर्षित अथवा दूर भगाने के लिए l
2. हानिकारक कीटों के प्रबंधन हेतु l
3 .खेत के सूक्ष्म पारिस्थितिक तंत्र को लाभदायक जीव हितेषी बनाने में सहायक होता है जोकि लाभदायक जीवों के संरक्षण में सहायक होता है  l
4. लाभदायक एवं हानिकारक जीवो के आवासीय क्षेत्र को अथवा हैबिटेट को उनके लिए अनुकूल बनाने में सहायक हो ना l
5. खेत की भूमि मैं पाए जाने वाले पोषक तत्वों के संतुलन बनाने में सहायक हो ना l
6. खरपतवार  नियंत्रण में सहायक होना l
7. किसानों की अतिरिक्त आमदनी करने में मदद करना  l
8. कुछ फसलों में चिड़ियों के लिए लंबी फसलें मचान का काम करते हैं इससे मुख्य फसल बच जाती है क्योंकि इन चिड़ियों का नुकसान लंबी फसलों पर ही होता है और छोटी फसलें बच जाती हैं l.
9. गैर सीजन बगैर क्षेत्र के पौधे आपस में नहीं लगाना चाहिए
सह फसलों को किस हिसाब से लगाना चाहिए:-
1. एक ही फैमिली की सह फसलों  को साथ-साथ नहीं लगाना चाहिए  l
2. पानी की जरूरत के हिसाब से सह फसलों को लगाना चाहिए अर्थात ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसलों के साथ कम पानी वाली फसलों को नहीं लगाना चाहिए l
3. सिंचाई की सुविधा के हिसाब से लगाना चाहिए अर्थात कई बार ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के साथ कम ज्यादा पानी की चाहने वाली फसलों को लगा सकते हैं l
4. परिपक्वता के समय के अनुसार या कटाई के समय के अनुसार फसलों को लगाना चाहिए l
5. न्यूट्रिएंट्स balancing  के हिसाब से फसलों l
 को लगाना चाहिए
सहफसलों की खेती के कुछ उदाहरण:----
1. पत्तेदार सब्जियों के साथ मक्का लगा सकते हैं
2. सुगंध वाली फसलों जैसे पुदीना लहसुन प्याज आदि को मुख्य फसलों के बीच में लगाना चाहिए
3. टमाटर के बीच में धनिया लगा सकते हैं
4. टमाटर के बीच में गेंदा लगाने से जमीन से नीचे पाए जाने वाले निमेटोड का नियंत्रण होता है
5. लंबी फसलों के नीचे छाया पसंद करने वाली फसलों को लगाया जा सकता है l
6. घीया तोरी के नीचे पालक धनिया लगा सकते हैं
7. टमाटर व धनिया को एक साथ लगाया जा सकता है l
8. रोटी वाली अर्थात सीरियल फसलों के साथ दाल वाली फसलें से फसलों के रूप में नहीं लेनी चाहिए l
9.

Friday, December 24, 2021

Let's go away from Chemical Farming रासायनिक खेती से दूर चले

साठ के दशक से अब तक खेती में रसायनों जैसे कि रसायनिक उर्वरकों तथा रासायनिक कीटनाशकों का प्रभुत्व रहा है जिसके बहुत सारे दुष्परिणाम हमें प्राप्त हुए हैं जो कि हमारे पर्यावरण, सामुदायिक स्वास्थ्य ,जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों तथा समाज पर अनेक प्रकार से विपरीत प्रभाव डालते हैं l  इन विपरीत प्रभावों से बचने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अब रसायन वाली खेती अथवा केमिकल फार्मिंग से दूर चला जाए और बिना केमिकल वाली फार्मिंग या खेती को बढ़ावा दिया जाए l इस ओर  पहला कदम बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने स्ट्रैंथनिंग एंड मॉडर्नाइजेशन आफ इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया नाम की एक स्कीम लांच किया जिसके अब संपूर्ण भारत में लगभग 36 सेंट्रल इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट सेंटर विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए हैं जो खेती में रसायनों के उपयोग को कम करने वाली विधियों का राज्य सरकार एवं कृषकों के बीच में खेतों में प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण करके बढ़ावा देते हैं तथा कृषकों तथा राज्य सरकारों के बीच में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं जिससे किसान भाई अपने खेतों में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करें तथा खाने हेतु रसायन रहित  कृषि उत्पादों तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन कर सकें l एकीकृत नासि जीव प्रबंधन नाम की विधि या खेती की विचारधारा में रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु ही संस्तुति प्रदान की गई है l रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों को खेती में बिल्कुल प्रयोग ना करने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग अथवा जैविक खेती तथा जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती नाम की दो विचारधाराएं विकसित की गई है जो आज कल आधुनिक विचारधाराओं के रूप में उभर कर सामने आ रही हैं इन दोनों प्रकार की विचारधाराओं में रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग वर्जित किया गया है l  ऑर्गेनिक खेती में  ऑर्गेनिक मैन्योर जैसे केंचुआ खाद ,हरी खाद आदि को बढ़ावा दिया जाता है l केंचुआ खाद की कीमत के हिसाब से बहुत ही महंगी खाद होती है जिससे कृषि उत्पादों का उत्पादन मूल कई गुना बढ़ जाता है तथा यह खाद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती है जिससे ओजोन लेयर डिप्लीशन होता है तथा ग्रीनहाउस गैसेस का उत्सर्जन होने से पर्यावरण का तापक्रम मैं  बढ़ोतरी होती है l अतः इन दोनों चीजों से बचने के लिए श्री सुभाष पालेकर के द्वारा विकसित जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकाश में आई हैl यह खेती प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की पद्धति पर आधारित खेती की विचारधारा है जिसमें रासायनिक उर्वरकों ,रसायनिक कीटनाशकों तथा केंचुआ खाद का प्रयोग वर्जित है या नहीं किया जाता है तथा बाजार से कोई भी इनपुट खरीद कर प्रयोग नहीं किए जाते हैं इस प्रकार से यह खेती शून्य लागत पर आधारित खेती है जो प्रकृति तथा समाज हितेषी खेती करने  की विचारधारा है l यह विचारधारा खुशी हुई पारंपरिक विधियों पर आधारित है l यह विचारधारा देसी गाय के गोबर तथा मूत्र के प्रयोग को बढ़ावा देती हैं और इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ सात जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है l इस प्रकार की खेती में फसलों के अवशेष खेतों में डीकंपोज होकर ऑर्गेनिक कार्बन मनाते हैं जो खेतों में फसलों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते  हैं l. जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण तथा फसल प्रबंधन की पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मूल ता यह प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित खेती की एक विचारधारा है जिसमें यह दर्शाया गया है कि जब जंगल में पाए जाने वाले पेड़ पौधे बिना मनुष्य के हस्तक्षेप के भरपूर फसल उत्पादन या पेड़ों में फल देते हैं तो हमें फसल उत्पादन के लिए भी प्रकृति के इस नियम को अपनाना चाहिए और भरपूर फसल का उत्पादन लेना चाहिए प्रकृति के सभी संसाधनों का और सभी जीवाणु एवं जीवो का लक्षण हो सके l तथा फसल उत्पादन लागत भी नगण्य हो सके l राया यह अनुभव किया गया है कि इस प्रकार जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में 2 से 3 सालों तक फसलों की उत्पादकता या उत्पादन कम होती है और इसके बाद खेतों में विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो तथा जीवाणुओं की वृद्धि गुणात्मक तरीके से हो जाती है जो फसल उत्पादन में सहायक होते हैं l इस प्रकार से यह देखा गया है कि जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में फूड सिक्योरिटी अर्थात फूड खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चित दो-तीन साल तक नहीं की जा सकती l ऐसी परिस्थिति में अथवा किसी आपातकाल की परिस्थिति में आईपी एम एक ऐसा विकल्प है जो रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की संस्तुति की इजाजत देता है अतः फूड सिक्योरिटी या खाद्य सुरक्षा तथा सुरक्षित भोजन के उत्पादन हेतु अभी भी एकीकृत नासिजीव प्रबंधन अथवा आईपीएम ही एक मात्र विकल्प है जिसमें जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले बहुत सारी गतिविधियों को समावेशित किया जा सकता है और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए भरपूर एवं सुरक्षित फसल उत्पादन किया जा सकता है l

Zero budget based natural farming

जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं मूत्र पर आधारित होती है इस खेती में देसी गाय के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत तथा जामन वीजा मृत बनाया जाता है इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है  l जीवामृत का एक महीने में दो बार खेतों में छिड़काव किया जाता है l इस प्रकार की खेती में फसल के अवशेष डीकंपोज होकर ऑर्गेनिक कार्बन बनाते हैं जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन व फसल सुरक्षा तथा फसल प्रबंधन के सिद्धांत पर आधारित है l

ऑर्गेनिक फार्मिंग Organic Farming

Organic Farming is an Agricultural farming System that uses fertilizers of organic in nature or origin such as compost manure including Vermicompost ,Green manure,and bone meal with other techniques such as crop Rotation and companion planting .
  In this farming no chemical fertilizers and chemical pesticides are allowed to be included .Besides this no G M seeds,  growth hormones and antibiotics are used in Organic Farming .
 It is a way of cultivation of crops without application of chemical fertilizers and synthetic pesticides, GM crops growth hormones and antibiotics.
 Inputs like Vermicompost used in Organic farming are very costly which increases the cost of production exorbitantly.
 Organic Farming is having a system of right from sowing to Certification in  which many agencies are involved. 
 Composting is the basic need of Organic Farming  in which large amount of Corbondioxide is evolved which deplete Ozone layer badly and increases greenhouse effect causes raise od temperature. 

Thursday, December 23, 2021

आई पी एम एक अन्य परिभाषा एवं कुछ अन्य अनुभव

आई पी एम प्रकृति ,समाज व जीवन से जुड़ी हुई एक विचारधारा है इसमें सभी प्रकार के फसल उत्पादन ,फसल रक्षा एवं फसल प्रबंधन के तरीकों या मॉडल्स में से उपयुक्त एवं आवश्यक विधियों का आवश्यकतानसार चयन करके उनको समेकित एवं सुरक्षित तरीके से इस प्रकार से प्रयोग करना जिससे प्रकृति, समाज ,पारिस्थितिक तंत्र को महफूज या सुरक्षित रखते हुए कम से कम खर्चे में फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी हानिकारक जीवो की संख्या को आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए खाने के योग्य सुरक्षित तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन हो सके आईपीएम कहलाता है  l जिसमें रसायन रहित विधियों को बढ़ावा दिया जाता है एवं रसायनों का प्रयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु ही किया जाता है l
   आईपीएम क्रियान्वयन के 38 वर्ष के सरकारी सेवा काल तथा 6 वर्ष के सोशल मीडिया के अपने  कुल 44 साल के अनुभव के आधार पर मैंने यह निष्कर्ष निकाला एक किसान स्वयं कोई आईपीएम इनपुट बनाने में कोई इंटरेस्ट रुचि नहीं लेता है बल्कि वह रेडी टू यूज आईपीएम इनपुट को वह ठीक उसी प्रकार से प्रयोग कर सकता है जिस प्रकार से वह रसायनिक खादों तथा रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करता है अर्थात अगर सरकार आईपीएम इनपुट का औद्योगिकीकरण करके बनाकर के किसानों के द्वार पर उपलब्ध करा सके तो किसान भाई आसानी से उनका उपयोग कर सकते हैं l उसी प्रकार से जीरो बजट फार्मिंग तथा अन्य फार्मिंग सिस्टम में प्रयोग किए जाने वाले इनपुट का उत्पादन करना एक प्रश्नवाचक चिन्ह साबित हो सकता है l यद्यपि किसी काम को करने की अगर ठान लिया जाए तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है और सभी प्रकार के इनपुट का उत्पादन संभव है तथा घर पर किया जा सकता है कुछ उन  inputs को छोड़ कर के जो बहुत ही साइंटिफिक या वैज्ञानिक तरीके से उत्पादित किए  जाते हैं l
    किसानों के बीच में मैं स्वयं जागरूकता होनी चाहिए कि उनको समाज के लिए स्वास्थ्य के हिसाब से सुरक्षित खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना चाहिए तथा जहरीले कृषि पद्धति को बदलना चाहिए l उन्हें यह स्वयं समझना चाहिए की समाज को खाने हेतु सुरक्षित कृषि उत्पादों का उत्पादन करना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है तथा खेती मैं जहरीले रसायनों का उपयोग बंद कर देना चाहिए तभी भावी पीढ़ियों को बीमारियों से सुरक्षा प्रदान की जा सकती है और एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है l
    स्वयं की जागरूकता सतर्कता तथा एक अच्छे नागरिक होने का फर्ज निभाने की मंशा से किसी भी महामारी या महामारी जैसी समस्याओं से छुटकारा आसानी से पाया जा सकता है l
 किसी भी महामारी से छुटकारा प्राप्त करने के लिए सरकार का समर्थन एवं योगदान अति आवश्यक है जिसके बिना किसी भी विचारधारा या कंसेप्ट का सही प्रकार से क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता l
जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती तथा आईपीएम पद्धति से की गई खेती से कृषि में रसायनों के उपयोग को संपूर्ण रूप से खत्म किया जा सकता है और एक स्वस्थ एवं समृद्धि साली समाज तथा मानव हितेषी पर्यावरण का निर्माण किया जा सकता है l
 अभी तक यह अनुभव किया गया की फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की जितनी भी  भी विचार धाराएं या कंसेप्ट वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित किए गए उनको किसानों ने भली प्रकार से क्रियान्वित किया और सही नतीजे प्राप्त किए जिसके फलस्वरूप देश खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हुआ l अगर कुछ दुष्परिणाम सामने आए हैं तो वह दुष्परिणाम तकनीको को सही प्रकार से प्रयोग ना करने से प्राप्त हुए हैं जैसे रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग करने से स्वास्थ्य पर्यावरण प्रकृति व समाज संबंधी विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम सामने आए हैं l अतः किसी भी विचारधारा या प्रौद्योगिकी को सही तरीके से प्रयोग करने से ही सही नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं l 

Sunday, December 19, 2021

प्राकृतिक खेती भाग 3

आज के सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक, जलवायु, एवं पर्यावरण के परिदृश्य एवं परिपेक्ष में आजकल की फसल उत्पादन ,फसल सुरक्षा, अथवा आईपीएम तथा फसल प्रबंधन की विचारधारा लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार व आय को बढ़ाने वाली ,समाज, प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली, कृषकों के जीवन स्तर में सुधार लाने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली व जीडीपी पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण ,प्रकृति ,समाज, पारिस्थितिक तंत्र के विकास को भी करने वाली व सुनिश्चित करने वाली होनी चाहिए तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ सुरक्षित भोजन प्रदान करने वाली होनी चाहिए l इसके अलावा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा ,उत्पादन लागत को कम करने वाली ,जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से समाज पर्यावरण व प्रकृति पारिस्थितिक तंत्र जैव विविधता पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को निष्क्रिय करने वाली एवं सहन करने वाली होनी चाहिए l
 जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती का मतलब होता है वह खेती जिसमें भरपूर फसल हो और जेब से एक कौड़ी भी ना खर्च हो साथ ही जमीन की सेहत भी अच्छी बनी रहे पानी कम लगे वगैरा-वगैरा l
प्राकृतिक खेती में जमीन की उर्वरता बढ़ाने के लिए लगभग 3 साल तक एक ही जमीन में प्रयास एवं प्रयत्न करना पड़ता है तब वह अपने भरपूर ताकत दिखाती हैं l इन 3 सालों तक खाद्य सुरक्षा डामाडोल रहती है और सुनिश्चित नहीं हो पाती l खाद्य सुरक्षा की कोई गारंटी सुनिश्चित रूप से नहीं दी जा सकती l
यह खेती देसी गाय व उसके गोवर तथा मल मूत्र से बने हुए जीवामृत घन जीवामृत तथा वनस्पतियों पर बने हुए कीटनाशक एवं फफूंदी नाशक आदि इनपुट्स तथा फसलों के अवशेषों को आच्छादन के रूप में प्रयोग करना तथा प्रकृति और फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो तथा संसाधनों से बने हुए इनपुट के प्रयोग करने पर आधारित है l एक देसी गाय से लगभग 30 एकड़ खेती को कवर किया जा सकता है l इस प्रकार से खेती बिल्कुल नहीं जैविक इनपुट्स पर आधारित है जो फसल पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षण करने में मददगार होते हैं l खेती के क्रियान्वयन हेतु किस देश से जुड़े हुए प्राचीन ज्ञान को न केवल सीखने की आवश्यकता है परंतु उसको आधुनिक वैज्ञानिक की पद्धति के अनुसार तराशने की भी आवश्यकता है जिससे वर्तमान की खेती की चुनौतियों को दूर किया जा सके और वर्तमान वर्तमान खेती को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार डाला जा सके l इसके अलावा जमीन में पाया जाने वाला देसी केंचुआ वे जमीन को वर्मी कंपोस्ट उपलब्ध कराता है तथा इसके साथ साथ वह पानी का संरक्षण भी करता है l
जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मैं मुख्य फसल के साथ बॉर्डर क्राफ्ट एवं इंटर क्रॉप्स जैसी फसलें भी उगाए जाते हैं l इस तरीके की खेती में मुख्य फसल का लागत मूल्य अंतर फसलों के उत्पादन से निकाल लेते हैं और मुख्य फसल तो शुद्ध मुनाफे के लिए पैदा की जाती है l
प्राकृतिक खेती आई पी एम के सिद्धांतों पर आधारित खेती करने का तरीका है जिसमें कम से कम लागत में अधिक उत्पादन किया जाता है तथा रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता परंतु यह आई पीएम से एक प्रकार से भिन्न है की आई पी एम में सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है और किस प्रकार से आई पी एम में खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकता है  l



Saturday, December 18, 2021

प्राकृतिक खेती के सिद्धांत भाग 2

1. क्षित जल पावक गगन समीरा
     पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीवन की उत्पत्ति एवं उसका स्थायित्व उपरोक्त पांच तत्वों के ऊपर निर्भर करता है l  यह तत्व है मिट्टी ,अथवा पृथ्वी, पानी ,अग्नि, आकाश एवं वायु l परंतु विडंबना यह है कि उपरोक्त सभी पांचों तत्व मनुष्य की  दिनचर्या तथा कृषि से संबंधित विभिन्न क्रियाओं तथा मशीनी करण से संबंधित विभिन्न क्रियाएं के दुष्परिणामों से या तो प्रदूषित हो चुके हैं या फिर डैमेज अथवा बर्बाद अथवा क्षतिग्रस्त हो चुके हैं l अतः जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अब यह अति आवश्यक हो गया है कि उपरोक्त सभी तत्वों का संरक्षण एवं पुनर स्थापन किया जाए l इसके लिए कृषि कार्य में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं मैं सुधार किया जाए और वह सारी क्रियाएं ना की जाए जिनसे इन सभी पदार्थों के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है l खेती में काम आने वाली विभिन्न क्रियाएं जैसे खेती में रसायनों जैसे रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग, फसल अवशेषों का अंधाधुन जलाना ,फसल पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचता है तथा प्रकृति में पाई जाने वाली फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की पद्धति बाधित होती है l मिट्टी एक ऐसा प्राकृतिक माध्यम है जिसमें फसल का उत्पादन किया जाता है  l मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जिओ जो कि पृथ्वी के ऊपर एवं पृथ्वी के नीचे अथवा मिट्टी के ऊपर और मिट्टी के नीचे पाए जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र ओं का निर्माण करते हैं इनके अंदर विभिन्न प्रकार के पदार्थ तथा सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं फसल उत्पादन में सहायक होते हैं रसायनों के उपयोग से यह सूक्ष्म जीवी नष्ट हो जाते हैं और फसल उत्पादन की पद्धति को बर्बाद करते हैं या बाधित करते हैं l  खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अवशेषों को खेतों में जलाने से खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव नष्ट हो जाते हैं तथा जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है हमें खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए जिससे जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र एवं प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण हो सके और वह फसल उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें l हमारे बीच में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र क्रियाशील रहते हैं जो फसल उत्पादन में विभिन्न प्रकार से मदद करते हैं l प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण कि अपनी प्राकृतिक व्यवस्था चल रही है जिसको अध्ययन करके हमें फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण करना चाहिए जिससे विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र ओं को नुकसान पहुंचाए बिना खेती की जा सके l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती इसी सिद्धांतों पर आधारित है l विभिन्न प्रकार की दैनिक क्रिया एवं एवं मशीनरी करण से क्षतिग्रस्त हुए विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र एवं जीव का प्रकृति में पुणे स्थापन करना प्राकृतिक खेती की प्रथम आवश्यकता है l हमारे जीवन में प्रतिदिन चुनौतियां आती रहती हैं जिनका निवारण एवं सामना करके हम आगे बढ़ते हैं इसी को विकास या डेवलपमेंट कहते हैं विकास को इस प्रकार से किया जाए कि वह विनाशकारी ना बने यह प्राकृतिक खेती का दूसरा सिद्धांत है l कोई भी टेक्नॉलॉजी इस प्रकार से विकसित की जाए कि वह प्रकृति व समाज को विपरीत प्रभाव न पहुंचा सके कभी हमारे साथ समाज के साथ साथ प्रकृति व पर्यावरण का भी विकास हो सकेगा l आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक पर्यावरण एवं प्राकृतिक विकास करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का तीसरा प्रमुख सिद्धांत है l
      मिट्टी की उर्वरता को कायम रखना पानी की कमी हेतु पानी का संरक्षण करना तथा कम पानी चाहने वाली फसलों का उत्पादन करना कृषि का विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण करके किसानों की आय बढ़ाना खाने की दृष्टिकोण से सुरक्षित भोजन तथा व्यापार के दृष्टिकोण से गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना खेती को लाभ प्रद बनाना कृषि उत्पादन की लागत कम करना तथा किसानों की आमदनी बढ़ाना पर्यावरण जैव विविधता प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना आज की खेती अथवा प्राकृतिक खेती की परम आवश्यकता है l 1960 के दशक से पहले हम खेती में रसायनों का उपयोग नहीं करते थे जिससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता था और फसल उत्पादन भी सुरक्षित तरीके से किया जा सकता था इसके बाद खेती में रसायनिक युग आया जिसने हमें खाद्य सुरक्षा प्रदान की परंतु इसके साथ साथ रसायनों के उपयोग से विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम भी प्राप्त हुए l अतः इन दुष्परिणामों को खेती करते समय दूर करना प्राकृतिक खेती का मूल सिद्धांत है और फिर दोबारा से पारंपरिक खेती को बढ़ावा देना ख्वाब बैक टू बेसिक अथवा मूल या खेती के बुनियादी तरीकों पर पर वापस आना प्राकृतिक खेती का तीसरा बड़ा सिद्धांत है l

Wednesday, December 15, 2021

प्राकृतिक खेती से लाभ

1. जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकृति के सिद्धांतों पर तथा खेती हेतु बाजार से कोई भी इनपुट प्रयोग न करने के सिद्धांत पर आधारित है l प्राकृतिक खेती में रसायनों का उपयोग पूर्ण रूप से वर्जित होता हैl
    प्राकृतिक  संसाधनों का खेती में प्रयोग करके और बढ़ावा देकर प्राकृतिक खेती की जाती है l
      पारंपरिक खेती को पुनर्जीवित करना ही           प्राकृतिक खेती है l
2. कम लागत से ज्यादा मुनाफा l
3 . पर्यावरण संतुलन में मददगार l
4. रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा l
5. मिट्टी के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता में वृद्धि  l
6. फसल पर की एवं रोगों की कमी l
7. कम पानी में अच्छी पैदावार l
8. पर्यावरण अनुकूल खेती l
9. सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति करने वाली l
10. पोषण सुरक्षा, पर्यावरण संबंधी स्थिरता और भूमि की उत्पादकता के उद्देश्यों के बीच संतुलन स्थापित करने वाली l

 11.   प्राकृतिक संभावित व्यावहारिक तरीके के             रूप    में उभरी हुई खेती की प्रणाली l
12. प्राकृतिक खेती सभी बाहरी तत्वों के उपयोग को नकार ती है और पूरी तरह से मिट्टी की सूक्ष्मजवों पर आधारित जैव विविधता
के संवर्धन एवं प्रणाली से संबंधित प्रबंधन पर निर्भर करती है l
13. यह जैव विविधता को संरक्षण करने में सहायक होती है l
14. पर्यावरण को रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के दुष्परिणामों से बचाती है l
15. मृदा जेब कार्बन से संबंधित अवयवों में सुधार करने की दिशा में उठाए जाने वाला एक कदम है l
16. पानी के उपयोग को 30 से 60% तक कम कर देती है l
17. उत्पादक सामग्रियों में काफी कम लागत के साथ-साथ जीरो रसायनिक इनपुट l
18. प्राकृतिक खेती में अभी धान मूंगफली काला चना मक्का और मिर्च फसलें शामिल की गई है l
19. पैदावार मैं 8 से 32% की वृद्धि l
20 प्राकृतिक खेती किसानों की आजीविका, लोगों के स्वास्थ्य ,पृथ्वी और मिट्टी की दशा और सरकारी खजाने के लिए उपयोगी है l
21. प्राकृतिक खेती में भूगर्भ जल संचित रहता है
22. प्राकृतिक खेती में जमीन के अंदर पाए जाने वाले लाभदायक बैक्टीरिया या जीवाणु जो उपज बढ़ाने वाले रसायन Humus की वृद्धि के लिए सहायक होते हैं l

23. प्राकृतिक खेती से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में वृद्धि होती है l
24. प्राकृतिक खेती में जमीन में पाए जाने वाला भारतीय केचुआ विशेष महत्व रखता है यह केचुआ जमीन को पूरा करता है जिससे पानी तथा ऑक्सीजन , नाइट्रोजन जैसे पदार्थ जमीन के अंदर तक जाती हैं और जमीन की उर्वरता को बढ़ाते हैं l
25 . प्राकृतिक खेती पूर्व अतीत के अनुभवों से सीख ले कर वर्तमान की खेती की नई चुनौतियां के अनुसार अपनी खेती को डालने का प्रयास है l
26. प्राकृतिक खेती में वर्तमान खेती पद्धति में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की चुनौतियां के लिए उचित विकल्प तलाशने की आवश्यकता है l अर्थात जब धरती माता के भूगर्भ में पानी की कमी होगी तथा मौसम साथ नहीं देगा और मिट्टी की उर्वरता भी कम हो जाएगी तो ऐसे हालत में कम है नवीन विकल्प खोजने होंगे और प्रकृति पर आधारित खेती के विधियों  को ढूंढना होगा तथा उन्हें विकल्प के तौर पर प्रयोग करना पड़ेगा
27. प्राकृतिक खेती से धरती माता का स्वास्थ्य ठीक रहेगा ,पैसा भी बचेगा  ,प्राकृतिक संतुलन कायम रहेगा तथा प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण भी होगा l
28. प्राकृतिक खेती से किसान आत्मनिर्भर स्वस्थ और संपन्न होगा l
29. प्राकृतिक खेती 21वीं सदी में भारतीय कृषि का कायाकल्प करने में मदद करेगी तथा कृषि को दूसरे सेक्टर्स में विविधीकरण करने में भी सहायक होगी l खेती को इथेनॉल बनाने में तथा सौर ऊर्जा बनाने वाले कसी पदार्थों के प्रसंस्करण या प्रोसेसिंग अन्य सेक्टर्स में विविधीकरण किया जा सकता है l
30. यद्यपि केमिकल फार्मिंग की वजह से हरित क्रांति आई और इसकी वजह से ही खाद्य सुरक्षा मिली परंतु इस मॉडल में रसायनों जैसे रसायनिक उर्वरक एवं रसायनिक कीटनाशकों आदि का अंधाधुंध प्रयोग होने से विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी, पर्यावरण संबंधी, प्रकृति संबंधी, समाज संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हुई तथा गरीबों की रसोई भी महंगी हो गई lअतः अब इन रसायनों का विकल्प खोजना आज की खेती की प्रमुख प्राथमिकता है l प्राकृतिक खेती  रसायनों के विकल्प देने में सहायक होती हैं l
31. खेती को केमिस्ट्री लैब से निकलकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना होगा l
32.Lab to land programmes बढ़ावा देना पड़ेगा l
33. प्राकृतिक खेती बीज से लेकर  बाजार तक वादा प्रदान करती है l करीब 80% छोटे किसानों को यह खेती फायदा प्रदान करेगी l
34. गांधी जी ने कहा है कि जहां शोषण होगा वहां पोषण नहीं होगाl
35. प्राकृतिक खेती को जन आंदोलन बनाने की जरूरत है l
36. Chemical Farming   हेतु हमें रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों को इंपोर्ट करना पड़ता है जिस पर बहुत अधिक खर्चा होता है l प्राकृतिक खेती इस खर्चे से मुक्त होगी l
37.


Monday, December 13, 2021

आई पी एम क्रियान्वयनके कुछ सिद्धांत

1.जब तक काम चलता हो  गी जा से
    बच कर रहे दवा से
2.No first use of chemicals .
3 .Use chemical pesticides only as an emergency tool. 
4.Lets not make Development catestrophic  in nature. विकास को कभी विनाशकारी ना बने ने दिया जाए l
5.GDP पर आधारित आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय असामाजिक प्राकृतिक विकास किया जाए l
6. सुरक्षित भोजन के साथ साथ खाद्य सुरक्षा पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी आवश्यक है l
7.Crop Management through systematic approach  is modern concept of IPM. सुव्यवस्थित ढंग से फसलों का संपूर्ण प्रबंधन आईपीएल की आधुनिक विचारधारा है l
8.Get rid  of from pests problems with minimum expenditure and least disturbance to community health,Environment, ecosystem, biodiversity, nature and society are the main objectives of IPM.
9.Avoid pesticides till we can avoid.
10 . IPM is based on nature's  principles .There is no place of chemical farming in the nature. Natural System is self operating system which is helpful to each others both living and nonliving. 
11.Making agroecosystem better suited to beneficial organisms found in agroecosystem and unfit for harmful organisms or pests found in Agroecosystem. 
12.Live and let live is the basic principle of IPM.
13.Lets acertain the need of the chemical pesticides before using them.
13.Not all the organisms found in agroecosystem of crop fields are harmful or pests but majority of them are useful.Lets conserve them in the fields.
14.Pests are not only factors responsible to reduce the crop yield but there are many abiotic factors also responsible to reduce the crop yield.
15 .Use any technology in proper way to get desired results .Misuse of technology will be harmful to nature and society.Lets not misuse the technology .Chemical pesticides when are misused then give us harmful results.
16.Profitability and safety are the theme of IPM.
17.IPM is the way growing of safe crop keeping nature and society safe.
  18.Welfare and Empowerment is the theme of IPM.
19.IPM is an economical and ecofriendly way of pest management. 
20. स्वयं में सैद्धांतिक दृढ़ता और दूसरों के प्रति उदारता आईपीएम की सैद्धांतिक थीम है



Wednesday, December 1, 2021

एकीकृत नासिजीव प्रबंधनमंत्र

1.रासायनिक कीटनाशक नासि जीवो (Pests  )से अधिक हानिकारक होते हैं l
2. फसल पारिस्थितिक तंत्र मैं पाए जाने वाले सभी जीव हानिकारक अथवा फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले नहीं होते हैं l
3 सभी हानिकारक जीवो अथवा  (Pests) को नियंत्रित नहीं करना चाहिए l
4. कैलेंडर पर आधारित फसलों पर रसायनिक कीटनाशकों का छिड़काव फसल उत्पादन हेतु न तो आवश्यक होता है और ना ही लाभदायक होता हैl
5. जैविक कारकों की तुलना में अजैविक कारक फसल उत्पादन को अधिक हानि पहुंचाते हैंl
6. फसल पारिस्थितिक तंत्र में ऐसे जीव बहुतायत संख्या में पाए जाते हैं जो हानिकारक जीवो अथवा पेस्ट की संख्या की वृद्धि पर नियंत्रण करके उसे  आर्थिक हानि स्तर के नीचे रखने में सहायक होते हैंl
7. पौधों के प्रत्येक भाग उनकी आवश्यकता से अधिक मात्रा में मौजूद होते हैं l
8. पौधों में जैविक व अजैविक आक्रमण को कुछ हद तक सहन करने की क्षमता होती है l
9. हानिकारक जीवो की सतत निगरानी मात्र से ही कीटनाशकों के प्रयोग को काफी हद तक कम किया जा सकता है l
10. आई पीएम का लक्ष्य रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को सीमित करना है और जैविक कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देना है l
11. प्रकृति की अपनी व्यवस्था है जिसमें बिना विशेष कारण के व्यवधान डालना उचित नहीं है l
12. आईपीएम अपनाने हेतु कृपया लोगों को प्रेरित करें ,शिक्षित करें एवं इसकी सुविधा प्रदान करें l
13. कृष को और अपने स्वयं के अनुभव से शिक्षा लें l
14. आईपीएम तकनीक और उसके लक्ष्य को जन-जन तक पहुंचाएंl
15 आईपी एम में सूचना प्रौद्योगिकी आधारित तकनीकों को शामिल करें l
16. सप्ताह में एक बार खेतों की निगरानी अवश्य करें ताकि  वास्तविक स्थिति  पर आधारित रणनीति बनाई जा सके l
17. फसलों में मित्र जीवो का खेतों में संरक्षण किया जाए l
18. कृषकों को उनके खेतों के विषय में पर्याप्त जानकारी दी जाए l
19 .IPM कृष को, सरकार, कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं ,और कृषि वैज्ञानिकों का संयुक्त और सम्मिलित प्रयास है l
20.
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