Friday, December 24, 2021
Let's go away from Chemical Farming रासायनिक खेती से दूर चले
साठ के दशक से अब तक खेती में रसायनों जैसे कि रसायनिक उर्वरकों तथा रासायनिक कीटनाशकों का प्रभुत्व रहा है जिसके बहुत सारे दुष्परिणाम हमें प्राप्त हुए हैं जो कि हमारे पर्यावरण, सामुदायिक स्वास्थ्य ,जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति तथा उसके संसाधनों तथा समाज पर अनेक प्रकार से विपरीत प्रभाव डालते हैं l इन विपरीत प्रभावों से बचने के लिए यह आवश्यक हो गया है कि अब रसायन वाली खेती अथवा केमिकल फार्मिंग से दूर चला जाए और बिना केमिकल वाली फार्मिंग या खेती को बढ़ावा दिया जाए l इस ओर पहला कदम बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने स्ट्रैंथनिंग एंड मॉडर्नाइजेशन आफ इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अप्रोच इन इंडिया नाम की एक स्कीम लांच किया जिसके अब संपूर्ण भारत में लगभग 36 सेंट्रल इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट सेंटर विभिन्न राज्यों में स्थापित किए गए हैं जो खेती में रसायनों के उपयोग को कम करने वाली विधियों का राज्य सरकार एवं कृषकों के बीच में खेतों में प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण करके बढ़ावा देते हैं तथा कृषकों तथा राज्य सरकारों के बीच में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं जिससे किसान भाई अपने खेतों में रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करें तथा खाने हेतु रसायन रहित कृषि उत्पादों तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन कर सकें l एकीकृत नासि जीव प्रबंधन नाम की विधि या खेती की विचारधारा में रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग सिर्फ आपातकालीन स्थिति के निपटान हेतु ही संस्तुति प्रदान की गई है l रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों को खेती में बिल्कुल प्रयोग ना करने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग अथवा जैविक खेती तथा जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती नाम की दो विचारधाराएं विकसित की गई है जो आज कल आधुनिक विचारधाराओं के रूप में उभर कर सामने आ रही हैं इन दोनों प्रकार की विचारधाराओं में रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग वर्जित किया गया है l ऑर्गेनिक खेती में ऑर्गेनिक मैन्योर जैसे केंचुआ खाद ,हरी खाद आदि को बढ़ावा दिया जाता है l केंचुआ खाद की कीमत के हिसाब से बहुत ही महंगी खाद होती है जिससे कृषि उत्पादों का उत्पादन मूल कई गुना बढ़ जाता है तथा यह खाद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती है जिससे ओजोन लेयर डिप्लीशन होता है तथा ग्रीनहाउस गैसेस का उत्सर्जन होने से पर्यावरण का तापक्रम मैं बढ़ोतरी होती है l अतः इन दोनों चीजों से बचने के लिए श्री सुभाष पालेकर के द्वारा विकसित जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकाश में आई हैl यह खेती प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की पद्धति पर आधारित खेती की विचारधारा है जिसमें रासायनिक उर्वरकों ,रसायनिक कीटनाशकों तथा केंचुआ खाद का प्रयोग वर्जित है या नहीं किया जाता है तथा बाजार से कोई भी इनपुट खरीद कर प्रयोग नहीं किए जाते हैं इस प्रकार से यह खेती शून्य लागत पर आधारित खेती है जो प्रकृति तथा समाज हितेषी खेती करने की विचारधारा है l यह विचारधारा खुशी हुई पारंपरिक विधियों पर आधारित है l यह विचारधारा देसी गाय के गोबर तथा मूत्र के प्रयोग को बढ़ावा देती हैं और इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ सात जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है l इस प्रकार की खेती में फसलों के अवशेष खेतों में डीकंपोज होकर ऑर्गेनिक कार्बन मनाते हैं जो खेतों में फसलों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं l. जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती प्रकृति में चल रही फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण तथा फसल प्रबंधन की पद्धति के सिद्धांतों पर आधारित है l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती मूल ता यह प्रकृति के सिद्धांतों पर आधारित खेती की एक विचारधारा है जिसमें यह दर्शाया गया है कि जब जंगल में पाए जाने वाले पेड़ पौधे बिना मनुष्य के हस्तक्षेप के भरपूर फसल उत्पादन या पेड़ों में फल देते हैं तो हमें फसल उत्पादन के लिए भी प्रकृति के इस नियम को अपनाना चाहिए और भरपूर फसल का उत्पादन लेना चाहिए प्रकृति के सभी संसाधनों का और सभी जीवाणु एवं जीवो का लक्षण हो सके l तथा फसल उत्पादन लागत भी नगण्य हो सके l राया यह अनुभव किया गया है कि इस प्रकार जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में 2 से 3 सालों तक फसलों की उत्पादकता या उत्पादन कम होती है और इसके बाद खेतों में विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीवो तथा जीवाणुओं की वृद्धि गुणात्मक तरीके से हो जाती है जो फसल उत्पादन में सहायक होते हैं l इस प्रकार से यह देखा गया है कि जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में फूड सिक्योरिटी अर्थात फूड खाद्य सुरक्षा की सुनिश्चित दो-तीन साल तक नहीं की जा सकती l ऐसी परिस्थिति में अथवा किसी आपातकाल की परिस्थिति में आईपी एम एक ऐसा विकल्प है जो रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की संस्तुति की इजाजत देता है अतः फूड सिक्योरिटी या खाद्य सुरक्षा तथा सुरक्षित भोजन के उत्पादन हेतु अभी भी एकीकृत नासिजीव प्रबंधन अथवा आईपीएम ही एक मात्र विकल्प है जिसमें जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती में प्रयोग किए जाने वाले बहुत सारी गतिविधियों को समावेशित किया जा सकता है और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए भरपूर एवं सुरक्षित फसल उत्पादन किया जा सकता है l
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