पंचतत्व मिल बना शरीरा
अर्थात जीवन की उत्पत्ति एवं उसका स्थायित्व उपरोक्त पांच तत्वों के ऊपर निर्भर करता है l यह तत्व है मिट्टी ,अथवा पृथ्वी, पानी ,अग्नि, आकाश एवं वायु l परंतु विडंबना यह है कि उपरोक्त सभी पांचों तत्व मनुष्य की दिनचर्या तथा कृषि से संबंधित विभिन्न क्रियाओं तथा मशीनी करण से संबंधित विभिन्न क्रियाएं के दुष्परिणामों से या तो प्रदूषित हो चुके हैं या फिर डैमेज अथवा बर्बाद अथवा क्षतिग्रस्त हो चुके हैं l अतः जीवन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अब यह अति आवश्यक हो गया है कि उपरोक्त सभी तत्वों का संरक्षण एवं पुनर स्थापन किया जाए l इसके लिए कृषि कार्य में की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं मैं सुधार किया जाए और वह सारी क्रियाएं ना की जाए जिनसे इन सभी पदार्थों के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है l खेती में काम आने वाली विभिन्न क्रियाएं जैसे खेती में रसायनों जैसे रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग, फसल अवशेषों का अंधाधुन जलाना ,फसल पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचता है तथा प्रकृति में पाई जाने वाली फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की पद्धति बाधित होती है l मिट्टी एक ऐसा प्राकृतिक माध्यम है जिसमें फसल का उत्पादन किया जाता है l मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जिओ जो कि पृथ्वी के ऊपर एवं पृथ्वी के नीचे अथवा मिट्टी के ऊपर और मिट्टी के नीचे पाए जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र ओं का निर्माण करते हैं इनके अंदर विभिन्न प्रकार के पदार्थ तथा सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं फसल उत्पादन में सहायक होते हैं रसायनों के उपयोग से यह सूक्ष्म जीवी नष्ट हो जाते हैं और फसल उत्पादन की पद्धति को बर्बाद करते हैं या बाधित करते हैं l खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अवशेषों को खेतों में जलाने से खेतों में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के लाभदायक जीव नष्ट हो जाते हैं तथा जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है हमें खेतों में फसलों के अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए जिससे जैव विविधता तथा फसल पारिस्थितिक तंत्र एवं प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण हो सके और वह फसल उत्पादन में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकें l हमारे बीच में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र क्रियाशील रहते हैं जो फसल उत्पादन में विभिन्न प्रकार से मदद करते हैं l प्रकृति में फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण कि अपनी प्राकृतिक व्यवस्था चल रही है जिसको अध्ययन करके हमें फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण करना चाहिए जिससे विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र ओं को नुकसान पहुंचाए बिना खेती की जा सके l जीरो बजट पर आधारित प्राकृतिक खेती इसी सिद्धांतों पर आधारित है l विभिन्न प्रकार की दैनिक क्रिया एवं एवं मशीनरी करण से क्षतिग्रस्त हुए विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र एवं जीव का प्रकृति में पुणे स्थापन करना प्राकृतिक खेती की प्रथम आवश्यकता है l हमारे जीवन में प्रतिदिन चुनौतियां आती रहती हैं जिनका निवारण एवं सामना करके हम आगे बढ़ते हैं इसी को विकास या डेवलपमेंट कहते हैं विकास को इस प्रकार से किया जाए कि वह विनाशकारी ना बने यह प्राकृतिक खेती का दूसरा सिद्धांत है l कोई भी टेक्नॉलॉजी इस प्रकार से विकसित की जाए कि वह प्रकृति व समाज को विपरीत प्रभाव न पहुंचा सके कभी हमारे साथ समाज के साथ साथ प्रकृति व पर्यावरण का भी विकास हो सकेगा l आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक पर्यावरण एवं प्राकृतिक विकास करना आईपीएम एवं प्राकृतिक खेती का तीसरा प्रमुख सिद्धांत है l
मिट्टी की उर्वरता को कायम रखना पानी की कमी हेतु पानी का संरक्षण करना तथा कम पानी चाहने वाली फसलों का उत्पादन करना कृषि का विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण करके किसानों की आय बढ़ाना खाने की दृष्टिकोण से सुरक्षित भोजन तथा व्यापार के दृष्टिकोण से गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करना खेती को लाभ प्रद बनाना कृषि उत्पादन की लागत कम करना तथा किसानों की आमदनी बढ़ाना पर्यावरण जैव विविधता प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना आज की खेती अथवा प्राकृतिक खेती की परम आवश्यकता है l 1960 के दशक से पहले हम खेती में रसायनों का उपयोग नहीं करते थे जिससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता था और फसल उत्पादन भी सुरक्षित तरीके से किया जा सकता था इसके बाद खेती में रसायनिक युग आया जिसने हमें खाद्य सुरक्षा प्रदान की परंतु इसके साथ साथ रसायनों के उपयोग से विभिन्न प्रकार के दुष्परिणाम भी प्राप्त हुए l अतः इन दुष्परिणामों को खेती करते समय दूर करना प्राकृतिक खेती का मूल सिद्धांत है और फिर दोबारा से पारंपरिक खेती को बढ़ावा देना ख्वाब बैक टू बेसिक अथवा मूल या खेती के बुनियादी तरीकों पर पर वापस आना प्राकृतिक खेती का तीसरा बड़ा सिद्धांत है l
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