Wednesday, July 28, 2021

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंटअथवा आईपीएमके प्रचार एवं प्रसारहेतु कुछ समीक्षात्मक विचार

भारत एक कृषि प्रधान देश है l कृषि से संबंधित सभी गतिविधियां राज्य सरकारों के कार्य क्षेत्र में आती हैं जिनका संचालन राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों एवं उनके विभागों के द्वारा किया जाता है l परंतु वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में आता है जिसमें भारत सरकार एक सलाह कारी एवं समन्वय कारी भूमिका अदा करता है l इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र में टिड्डी नियंत्रण, वनस्पति संगरोध गतिविधियों का संचालन तथा केंद्रीय कीटनाशक अधिनियम 1968 के क्रियान्वयन हेतु सीधे तौर पर जिम्मेदार है l वनस्पति संरक्षण से संबंधित सभी गतिविधियों का संचालन वनस्पति संरक्षण ,संगरोध एवं संग्रह निदेशालय फरीदाबाद के द्वारा किया जाता है इसके अतिरिक्त यह निदेशालय वनस्पति संरक्षण से संबंधित नवीन और उन्नत प्रौद्योगिकी की को लागू करने के लिए भी जिम्मेदार है l एकीकृत नाशि जीव प्रबंधन प्रौद्योगिकी का प्रचार एवं प्रसार तथा क्रियान्वयन इस निदेशालय के अधीनस्थ विभिन्न प्रदेशों व केंद्र शासित प्रदेशों में स्थापित किए गए केंद्रीय एकीकृत नाशिजीव प्रबंधन केंद्रों के द्वारा किया जाता है l इसके प्रमोशन हेतु देश के कृषकों, राज्य सरकारों के कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को इस प्रौद्योगिकी की पद्धति का प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन द्वारा मानव संसाधन विकास का कार्य इस निदेशालय के अधिनस्थ केंद्रीय एकीकृत नासि जीव केंद्रों के द्वारा किया जाता है l केंद्र सरकार द्वारा देश मैं वर्तमान में 35 केंद्रीय एकीकृत नासिजीव प्रबंधन केंद्र स्थापित किए गए हैं जो आईपीएम पद्धति का कृषकों एवं राज्य सरकार के प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के मध्य प्रमोशन कर ते हैं जिसके लिए यह केंद्र एक सलाहकार की भूमिका अदा करते हैं तथा इस पद्धति का कृषकों के बीच में प्रदर्शन करते हैं l मानव संसाधन विकास की गतिविधियों में आई पीएम कृषक खेत पाठशाला ओं का आयोजन ,लघु एवं दीर्घ अवधि के आईपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना इन एकीकृत नासिजीव प्रबंधन केंद्रों की प्रमुख गतिविधियां है l
        फसल उत्पादन को इष्टतम स्तर पर सीमित रखते हुए कम से कम खर्चे पर, पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान से बचा कर रखते हुए कीटनाशकों के अवशेषों से रहित पशुओं और मनुष्यों के खाने के  योग्य तथा बाजार की आवश्यकता के अनुसार गुणवत्ता युक्त सुरक्षित फसल पैदा करना आई पी एम का मुख्य उद्देश्य हैl 
केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन केंद्र इस लिए गठित किए गए थे कि वह आईपीएम से संबंधित एक तरह से नाभिकीय गतिविधियां (nucleus activities related with IPM ) प्रदेशों में करें l केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन केंद्र के पास सीमित संसाधन है इसलिए यह केंद्र आईपीएम गतिविधियों का प्रमोशन सीमित संख्या में एवं क्षेत्र में कर सकें l इन केंद्रीय एकीकृत नाशि जीव पबंधन केंद्रों के द्वारा की जाने वाली नाभिकीय गतिविधियों के चारों ओर  प्रदेश के कृषि विभाग और आईसीएआर के संस्थानों, राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों के विभागों एवं केवीके तथा कृष को द्वारा अपनी ओर से भी यह एक्टिविटीज भी की जाए जिससे आईपीएम  गतिविधियों का गुणात्मक प्रभाव मालूम पड़े l इसके लिए केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन केंद्रों को उक्त संस्थाओं से मजबूत linkage स्थापित करने की आवश्यकता है l यह कार्य नहीं हो पाया और केंद्रीय एकीकृत Nashijeev प्रबंधन केंद्रों की गतिविधियां एक सीमित दायरे में होकर रह गई एवं आई पीएम का विकास अवरुद्ध हो गया l आज हम अलग अलग कोने  में अलग अलग कार्य कर रहे हैं l अतः केंद्रीय एकीकृत नासि जीव प्रबंधन केंद्रों को इन संस्थानों से एक मजबूत linkage  बनाने की आवश्यकता है l केंद्रीय एकीकृत nashijeevजीव प्रबंधन केंद्रों का यह कतई मैंडेट नहीं है कि वह ज्यादा से ज्यादा एरिया कवर करें l
  पेस्टिसाइड रेसिड्यू एक दूसरा एस्पेक्ट है l हमें यह सिद्ध करना होगा आईपीएम द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादन एवं किसानों के द्वारा अपनाई जाने वाली पारंपरिक कृषि क्रियाओं के द्वारा उत्पादित होने वाले कृषि उत्पादों में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेषों की मात्रा में क्या कोई अंतर स्थापित हो पाया है l हमारा उद्देश्य कीटनाशकों के अवशेषों को कृषि उत्पादों में कम से कम करना है l
    हम यह भी जानते हैं कि हम अभी इस स्तर पर नहीं पहुंच पाए हैं कि कीटनाशकों का उपयोग बिल्कुल कम कर दें एवं इस युग में ऐसा संभव नहीं है जिसके कई कारण हैं जैविक कीटनाशकों एवं जैविक नियंत्रण कार्यक्रम की self life बहुत कम है इनको बनाकर हम काफी समय तक इसको भंडारण नहीं कर सकते है l
   अतः हमें इस समय रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देना चाहिए l जैविक कीटनाशकों एवं जैविक नियंत्रण एजेंटों कीself life कम  होने की वजह से ही प्राइवेट एंटरप्रेन्योरशिप या प्राइवेट उद्यमी अभी जैविक कीटनाशकों के उत्पादन हेतु आगे नहीं आ पा रहे हैं l
   कीटनाशकों को सुरक्षित तरीके से इस्तेमाल कैसे करें इस प्रकार की जानकारी कृषकों एवं कीटनाशकों के विक्रेताओं को तथा आम जनता को दी जाती है इसके लिए जगह-जगह पर hoardings लगाने की आवश्यकता है और वह लगवाए भी जा रहे हैं l
   कीटनाशकों के प्रयोग के लिए खाली डिब्बों को सुरक्षित तरीके से नष्ट करना भी एक बहुत बड़ी समस्या है इसके लिए कीटनाशकों के खाली डिब्बों को सुरक्षा पूर्वक नष्ट करने  हेतु उचित कदम उठाने की आवश्यकता है l
      नाशि जीवो के आउटब्रेक एवं उनके प्रकोप की सूचना जल्द से जल्द फील्ड से प्राप्त करके किसानों को शीघ्र से शीघ्र निदान बनाने बताने की आवश्यकता है इसके लिए हमें कंप्यूटर बेस्ड टेक्नॉलॉज को डेवलप करना होगा जिससे सही समय पर सलाह कारी दी जा सके l
   हमें pest outbreak आउटब्रेक होने के लिए पूर्वानुमान एवं पूर्व चेतावनी देने वाली तकनीक भी विकसित करने की आवश्यकता है इसके लिए हमें विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकरforecast  मॉडल डिवेलप करना पड़ेगl
जो एक बहुत ही बड़ा task  है  lइसके लिए हमें विभिन्न पैरामीटर्स को आधार बनाना पड़ेगा एवं उन तथ्यों को मौसमी तथ्यों से संबंध निकाल कर एक तकनीक विकसित करनी पड़ेगी  l
      एकीकृत नासिजीव प्रबंधन अथवा इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट या आई पीएम किसान खेत पाठशाला एक अनौपचारिक शिक्षा पद्धति है जिसके माध्यम से किसानों को उनके अनुभवों को समाहित करते हुए खेतों में ही वैज्ञानिक कृषि पद्धति से स्वयं करके सीखने की प्रक्रिया द्वारा एकीकृत  nashijeev प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वह अपने खेतों की प्रतिक्रियाओं के बारे में स्वयं निर्णय ले सकें l
         आईपीएम कृषक खेत पाठशाला कार्यक्रम विभिन्न फसलों में फसल फसल अवधि के दौरान 14 सप्ताह के लिए आयोजित किया जाता है जिसमें 30 किसानों को तथा पांच कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को सप्ताह मैं एक बार एक ही खेत में जाकर केंद्रीय एकीकृत Nashijeev प्रबंधन केंद्र की ओर से गठित Core  ट्रेनिंग टीम के द्वारा खेत में ही प्रशिक्षित किया जाता है l इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह है कि प्रशिक्षित किसान एवं कृषि कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्तl
आगे जाकर अपने आने वाली फसल के दौरान इसी प्रकार की खेत पाठशाला ओं का स्वतंत्र रूप से आयोजन कर सकें अर्थात प्रशिक्षित किसान अपने सहयोगी किसानों को प्रशिक्षित कर सकें तथा प्रशिक्षित कृषि प्रचार एवं प्रसार करता भी स्वतंत्र रूप से आईपीएम के पाठ शालाओं का आयोजन कर सकें l अक्सर यह देखा गया है कि सीआईपीएमसी की कोर ट्रेनिंग टीम दोबारा आईपीएम किसान खेत पाठशाला आयोजित किए गांव का पुनः निरीक्षण नहीं करते जिससे यह पता नहीं लग पाता कि प्रशिक्षित किसान अपने सहयोगी किसानों के लिए पाठ शालाओं का आयोजन कर रहे हैं या नहीं या अपने ही खेतों में आईपीएम पद्धति का उपयोग कर रहे हैं या नहीं l इसी प्रकार से 30 दिवसीय श्दीर्घकालीन आईपीएम ट्रेनिंग के द्वारा प्रशिक्षित किए गए कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता अपने क्षेत्र में अपने सहयोगी यों के लिए इसी प्रकार के दीर्घकालीन आईपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं या नहीं l प्राय यह देखा गया है कि यह प्रशिक्षित किए गए प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता अपने सहयोगियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन नहीं करते हैं क्योंकि अधिकांश  इन कार्यक्रमों  के द्वारा प्रशिक्षित  किए गए मास्टर ट्रेनर्स का स्थानांतरण किसी अन्य स्कीम में कर दिया जाता है l इस वजह से इन कार्यक्रमों की माता गिर जाती है तथा इनका गुणात्मक प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता l
       एकीकृत नासि  जीव प्रबंधन स्कीम के बनने के बाद आईपीएम पद्धति को बढ़ावा देने के लिए मानव संसाधन कार्यक्रमों को प्राथमिकता के तौर पर लिया गया परंतु अभी भी कोई भी प्रदेश अपने आप दीर्घकालीन आईपीएम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन नहीं कर पा रहे हैं l
        इस प्रकार की स्थिति अब भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के पास भी होने लगी है क्योंकि दीर्घकालीन प्रशिक्षण के द्वारा प्रशिक्षित किए गए अधिकारी या कर्मचारी या तो सेवानिवृत्त हो गए हैं या दूसरे स्कीमों में स्थानांतरित हो गए हैं अतः इस निदेशालय के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए दीर्घकालीन आइटम प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना भी अति आवश्यक है l
      आज पीएम को बढ़ावा देने के लिए कृषकों को आईपीएम इनपुट की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए इसके लिए कुछ गांव को क्लस्टर मानकर कृषकों के द्वारा गठित स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को प्रशिक्षित करना चाहिए जिससे हुए विभिन्न आईपीएम इनपुट को अपने आप बना सके तथा अपने खेतों में प्रयोग कर सकें इसके लिए आईपीएम सेवा केंद्रों की स्थापना सीआईपीएमसी के सौजन्य से की जानी चाहिए जिससे आईपीएल उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकेगा l भारत सरकार को भी प्राइवेट उद्यमियों को आईपीएम इनपुट को बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा रसायनिक इनपुट के बनाने वाली इकाइयों के समांतर जैविक इनपुट या आईपीएम इनपुट को बनाने वाली इकाइयों को स्थापित करना चाहिए जिससे आईपीएम inputs उपलब्धता कृष को क्यों सुनिश्चित की जा सके l
    Pest Monitoring and Surveillance  Programme.......
  नासि जीव निगरानी कार्यक्रम एकीकृत Nashijeev  प्रबंधन कार्यक्रम नामक छाते का एक केंद्रीय स्तंभ (Central rod or Central pole )के रूप में काम करता है  l बिना ना सीजी निगरानी कार्यक्रम के एकीकृत nashijeev   प्रबंधन कार्यक्रम की विभिन्न गतिविधियों को एकीकृत रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है l नासिजीव निगरानी कार्यक्रम से नासि जीवो के प्रकोप के लक्षणों के प्रारंभिक चिन्हों कि एवं ना सीजी वो तथा अन्य लाभदायक जीवो की आरंभिक उपस्थिति ,उनकी संख्या का आकलन करने में सहायक होता है l इसके साथ-साथ वह खेत के लिए अन्य जरूरतों का भी आकलन एवं विश्लेषण करता है  l निगरानी कार्यक्रम कई प्रकार के सर्वेक्षणों के द्वारा किया जाता है इससे उचित समय पर सही सलाह कारी जारी करते हैं एवं पूर्व अनुमान लगाने में सहायता मिलती है  l नासि जीव निगरानी कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रदेशों को कृषि एवं कृषि से संबंधित विभागों के साथ-सथ
कोऑर्डिनेशन की बहुत आवश्यकता होती है l जब तक स्टेट गवर्नमेंट डिपार्टमेंट, स्टेट एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी अपने स्टेट में बोई जाने वाली सभी प्रमुख फसलों वाले क्षेत्रों में नासिजीव निगरानी कार्यक्रम लागू करके nashi जीवो से संबंधित सूचना सीआईपीएमसी व केंद्र सरकार को नहीं देंगे तब तक राष्ट्रीय स्तर पर  nashijeevon  जीवो के प्रकोप व उनकी संख्या की स्थिति का की समीक्षा नहीं की जा सकती है l
इसके लिए आईटी बेस्ट बेस्ट सर्विलेंस टेक्नोलॉजी IT  based pest Surveillance technology की अत्यंत आवश्यकता है जिससे नेशनल डाटाबेस बनाया जा सके l कुछ प्रदेश जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा आदि ने इस और पहल की है परंतु अन्य प्रदेशों के द्वारा ना सजीव निगरानी कार्यक्रम को सुचारु रुप से लागू करने की जरूरत है l सीआईपीएमसी के पास सीमित staff  होने की वजह से एक स्टेट में बोई जाने वाली सभी फसलों के सभी क्षेत्रों में व जिलों की  की स्थिति की जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती है l इसके लिए सभी प्रदेशों के राज्य सरकारों के कृषि ,बागवानी ,गन्ना तथा कृषि से संबंधित विभागों को अपने-अपने क्षेत्रों से सूचना प्राप्त करके राष्ट्रीय स्तर पर भेजना चाहिए l

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