Saturday, June 27, 2020

टिड्डी दल के द्वारा टिड्डी चेतावनी संगठन के राष्ट्रीयमुख्यालय वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय फरीदाबाद को सलामी

यद्यपि 1993 मैं देश में सबसे बड़ा locust invasion  अर्थात दलों का हमला देखा गया था  l  जिसमें टिड्डी dalon locust swarms का आक्रमण  लगभग देश के अधिकांश प्रदेशों में हुआ था l परंतु उस समय भी दिल्ली और फरीदाबाद  तक locusts swarms  नहीं प्रवेश कर पाए थे l परंतु इस वर्ष  2020 मैं locust swarms का incursion  1993 के इन करसन से भी बड़ा देखा गया l टिड्डी दल ओ के कुछ भाग या छोटे छोटे दल जोकि बड़े टिड्डी दल के कई हिस्सों में बट जाने से बने दिनांक 26 जून 2020 को रेवाड़ी तक प्रवेश कर लिया था यह टिड्डी दल हवा के favourable  रुख अर्थात अनुकूल दिशा की ओर की वजह से दिनांक 27 जून 2020 को NCR  के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश कर गया और वह फरीदाबाद मैं स्थित  वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय  जोकि टिड्डी चेतावनी संगठन का राष्ट्रीय मुख्यालय है को सलामी देता हुआ फरीदाबाद के सेक्टर 28 तथा नहर पार करके नोएडा की तरफ प्रवेश कर गया l टिड्डी दलों का नियंत्रण वैसे तो अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र मैं ही  टिड्डी चेतावनी संगठन के द्वारा कर लेना चाहिए परंतु कई बार लगातार टिड्डियों के swarms  के देश में प्रवेश करने की वजह से अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र में छुट्टियों का संपूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाता है और वह दूसरे फसली इलाकों में चली जाती हैं या प्रवेश कर जाते हैं इस बार भी ऐसा ही हुआ l इस बार एनसीआर में प्रवेश करने वाला टिड्डी दल लगभग 10 किलोमीटर लंबा और करीब 6 किलोमीटर चौड़ा था ऐसी जानकारी मुझे समाचार पत्रों के द्वारा प्राप्त हुई l दोस्तों जो आपदा आती है उसका नियंत्रण भी होता है और वह चली भी जाती है परंतु वह हमारे लिए बहुत सारी सीख छोड़  जाती  है l टिड्डी दलों का भारत के विभिन्न राज्यों में आक्रमण तथा दिल्ली व एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवेश होना हमें यह सीख देता है कि हमें किसी भी हानिकारक जीव या pest  को कभी कम नहीं आंकना चाहिए जबकि टिड्डी तो एक अंतर राष्ट्रीय अथवा अंतर महाद्वीपीय हानिकारक जीव है जिसका प्रकोप कई बार भीषण दुर्भिक्ष या अकाल पैदा कर सकता है l  इस वर्ष का और 27 जून 2020 का locusts swarms राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में प्रवेश हमें यह सीख देता है कि  हमें लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन को हमेशा सभी रिसोर्सेज के  सहित   टिड्डियों के अचानक होने वाले आक्रमणों से निपटने के लिए 24 घंटे तैयार रहना या रखना चाहिए इसके लिए लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन मैं सभी पोस्टों को हमेशा भरा रहना चाहिए तथा लोकस्ट की गतिविधि के शिथिल रहने के दौरान लोकस्ट का सघन सर्वेक्षण तथा लोकस्ट नियंत्रण के मॉकअप एक्सरसाइज करते रहना चाहिए l इसके साथ साथ लोकस्ट नियंत्रण में प्रयोग किए जाने वाले सभी यंत्रों एवं उपकरणों एवं गाड़ियों की मरम्मत तथा सर्विस होती रहनी चाहिए l 27 जून 2020 के दिन लोकस्ट का एनसीआर में प्रवेश करके लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय हेडक्वार्टर या मुख्यालय वनस्पति संरक्षण संगरोध एवं संग्रह निदेशालय के नजदीक से टिड्डियों का निकल जाना उन सभी अधिकारियों कर्मचारियों को यह सीख देता है कि  locust warning organisation  का का समय-समय पर सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण टिड्डी नियंत्रण मशीनों गाड़ियों ,communication equipments की मरम्मत एवं रिक्त हुए पदों भरना एवं लोकस्ट इमरजेंसी से निपटने के लिए प्रतिवर्ष विस्तृत आकस्मिक योजना जिसमें आपातकालीन फंड या  मद का भी प्रावधान हो ठीक उसी प्रकार से करते रहना चाहिए जिस प्रकार से हम अपनी भारतीय सेना को हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए करते हैं लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन एक प्रकार की पैरा डिफेंस ऑर्गेनाइजेशन की तरह कार्य करती है और लोकस्ट इमरजेंसी के दौरान युद्ध की तरह लोकस्ट इमरजेंसी को नियंत्रित करती है इसके लिए वह सभी सुविधाएं होनी चाहिए जोकि डिफेंस सिस्टम में होती हैl  लोकस्ट की आपत्ती इमरजेंसी को कभी कम नहीं आंकना चाहिए l यद्यपि लोकस्ट एक रेगुलर pest नहीं है l परंतु वह अचानक कभी भी इमरजेंसी के रूप में उभर कर आ सकता है जिसके लिए हमें हमेशा 24 घंटा तैयार रहना पड़ेगा l जिस प्रकार से हमारी तीनों सेनाएं युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहती हैं चाहे युद्ध ना भि हो युद्ध हमेशा नहीं होते हैं परंतु हमारी सेनाएं हमेशा किसी भी आपत्ति काल के लिए युद्ध झेलने के लिए तैयार रहती है l  locust warning organisation  को  कम   समझना हमारी सबसे बड़ी भूल होगी l देश को भुखमरी से बचाने के लिए locust warning organisation का सुदृढ़ीकरण एवं आधुनिकीकरण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए l

Friday, June 26, 2020

IPM के क्रियान्वयन हेतु आईपीएम के कार्यक्षेत्र में बदलाव करें

आईपीएम के क्रियान्वयन तथा बढ़ावा देने के लिए हमारे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर हमें आईपीएम के कार्य क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन करना चाहिए यह परिवर्तन निम्न प्रकार से है l
1. कृषकों की रसायनिक कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों को वरीयता पूर्वक प्रयोग करने वाली मानसिकता मैं बदलाव लाना तथा  रसायनिक कीटनाशकों के  वरीयता  पूर्वक इस्तेमाल के स्थान पर जैविक कीटनाशकों के इस्तेमाल को वरीयता पूर्ण बनाना l
2. फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा मैं प्रयोग किए जाने वाले जैविक तथा ऑर्गेनिक इनपुट की उपलब्धता कृषकों के द्वार पर सुनिश्चित करना l
3 . फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी लाभदायक जीवो का फसल पारिस्थितिक तंत्र में संरक्षण करना l
4  प्रकृति मैं पाए जाने वाले तथा चल रहे फसल उत्पादन या प्लांट प्रोडक्शन एंड प्रोटक्शन सिस्टम का अध्ययन करना तथा    उक्त अध्ययन के आधार पर उपयुक्त लाभकारी फसल चक्र अपनाकर पर  प्रति इकाई एरिया में  अधिक से अधिक फसल उत्पादन करना l
5. रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से नष्ट हुए फसल पारिस्थितिक तंत्र का पुणे स्थापन करना l
6.  कृषकों के द्वारा बनाई जाने वाली पुरानी पारंपरिक कृषि उत्पादन एवं कृषि रक्षा की विधियों का  validation  करना तथा उनको आईपीएम पैकेज में भविष्य में प्रयोग हेतु शामिल करना l
7. कृष को मे रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग की लगी हुई लत को दूर करना l
8.  Biological and organic IPM  inputs  के उत्पादन हेतु उत्पादन इकाइयों तथा उद्योगों का सरकार के द्वारा स्थापन करना l
9  मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करके उसके गुणवत्ता के आधार पर  सूक्ष्म जीवों एवं सूक्ष्म तत्व की आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करके उनका संरक्षण करना l
10. किसानों के द्वारा प्रयोग की जाने वाली फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की समाज  व  प्रकृति हितेषी  methods का संकलन करना , उनका वैलिडेशन करना तथा उनको लोकल आईपीएम पैकेज आफ प्रैक्टिसेज में शामिल करना



Wednesday, June 24, 2020

इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंटकृषकों की मानसिकता परिवर्तन की एकविचारधारा है

IPM integrated pest management is a concept of change of pro chemical pesticidal Mind set of the farmers and people to non pesticidal or biopesticidal  mindsets. अर्थात कृषकों की  वरीयता पूर्वक रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग की जाने वाली मानसिकता में बदलाव लाकर तथा रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर  जैव कीटनाशकों को वरीयता पूर्वक  प्रयोग करना आई पीएम का प्रथम कार्यक्षेत्र होना चाहिए l इसके साथ साथ कृष को में सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, जैव विविधता , प्रकृति व उसके संसाधन तथा समाज के प्रति सहानुभूति रखने वाली मानसिकता को भी विकसित करना भी आई पीएम का प्रमुख कार्य क्षेत्र होना चाहिए l  आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु मानसिकता परिवर्तन का प्रथम स्थान होता है l इन चीजों का ध्यान में रखते हुए जब हम खेती करते हैं तभी हम उसको आईपीएम खेती कहते हैं lअक्सर  यह देखा गया है 30 30 35 35 साल से आईपीएम तकनीकी का कृषकों के बीच में प्रदर्शन या demonstration के बावजूद भी तथा उनको जागरूक तथा प्रेरित करने के बावजूद भी किसान भाई आईपीएम अपनाने में विशेष रूचि नहीं रखते हैं  l क्योंकि उनका ध्यान सिर्फ पैदावार बढ़ाने तथा खर्चे को कम करने की तरफ होता है और वह पर्यावरण  , प्रकृति तथा समाज की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं lजैव कीटनाशकों या जैविक इनपुट की उपलब्धता का ना होना भी एक कारण है  आईपीएम को प्रचलित  yah popularise  ना होने का l
       यह भी देखा गया है कि कुछ समझदार कृष को मैं मानसिकता परिवर्तन आ गया है और वह रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने के पक्ष  मैं अपनी विचारधारा को परिवर्तित करके रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने में अपनी रुचि लगाने लगे हैं तथा इनके स्थान पर वह जैविक खाद yeah जैविक उर्वरक तथा जैविक कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देने लगे  हैं l कृषकों की मानसिकता में परिवर्तन लाना आई पीएम का आज के समय में अति आवश्यक है जब तक कृषकों एवं उपभोक्ताओं के मन में यह विचार नहीं आएगा कि हमें जहरीले कृषि उत्पाद नहीं पैदा करने चाहिए और ना ही उन्हें खाना चाहिए तब तक किसान भाई रसायनिक कीटनाशकों तथा उर्वरकों का खेती में प्रयोग करना कम नहीं करेंगे आता है इसके लिए यह परम आवश्यक है कि कृषकों की मानसिकता में परिवर्तन किया जाए l एक बार यदि मानसिकता में परिवर्तन आ गया तो methods या विधियां किसान भाई अपने अनुभव के आधार पर स्वयं भी विकसित कर लेंगे l यह भी अनुभव किया गया है कि किसान अपने दूसरे किसान के द्वारा अपनाई जाने वाली विधियां का अनुकरण जल्दी करता है बजाय कि वह विधियां जो कि सरकारी कार्यकर्ताओं के द्वारा प्रदान की जाती है l कृषकों की मानसिकता में परिवर्तन लाने के लिए हमें उनके दिमाग में यह यह डालना पड़ेगा या स्पष्ट करना पड़ेगा की रासायनिक कीटनाशक हमारे खेतों में पैदा होने वाले फसलों के उत्पाद को जहरीला बनाते हैं तथा वह हमारे शरीर ,पर्यावरण प्रकृति और वातावरण के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं l अतः हमें इनका उपयोग खेतों में कम से कम करना चाहिए जिससे हमारा , हमारे बच्चों का  तथा समाज के अन्य लोगों का स्वास्थ्य ठीक रह सके तथा समाज को रहने लायक उपयुक्त पर्यावरण मिल सके l हमें कृषकों को यह भी स्पष्ट करना पड़ेगा की फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी जीव हानिकारक नहीं होते हैं तथा उनमें से अधिकांश लाभदायक होते हैं जिन की सुरक्षा करना तथा उनकी संख्या को बढ़ावा देना और संरक्षण करना भी हमारा परम कर्तव्य है l यह लाभदायक जीव फसल पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में सहायक होते हैं तथा भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में मददगार होते हैं l इसके अलावा फसलों में परागण की क्रिया होने में भी सहायक होते हैं जिससे फसलों में फल बनते हैं और हमें अनाज तथा फल प्राप्त होते हैं l मानसिकता परिवर्तन हेतु हमें कृषकों में प्रकृति समाज प्राकृतिक संसाधनों तथा पारिस्थितिक तंत्र के प्रति सहानुभूति रखने की मानसिकता को विकसित करना पड़ेगा तभी हम एक स्वस्थ  एवं समृद् समाज की स्थापना कर सकते हैंl हमें किसानों के मन में यह चेतना जागृत करनी होगी कि उन्हें रसायन युक्त जहरीले खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं करना चाहिए और ऐसा करना मानवता के लिए अपराध है एवं धार्मिक दृष्टि से पाप है ऐसी भावना के साथ जब खेती करेंगे तो उनके मन में रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने की भावना जागृत  होगी  l इसी समय हमें कृषकों को आईपीएम इन पोस्ट या ऑर्गेनिक इन पोट्स के उपलब्धता को भी सुनिश्चित करना पड़ेगा इसके लिए आईपीएम इनपुट के बनाने वाली विधियों को सरल करके किसानों के गांव में ही आई पीएम  inputs  का उत्पादन करना पड़ेगा l जिससे इनका उपयोग कृषि उत्पादन एवं  फसल सुरक्षा हेतु आसानी से कर सकें l

Monday, June 22, 2020

कृषि प्रचार एवं प्रसारकार्यकर्ताओं से कृषकों की अपेक्षाएंतथा आमदनी बढ़ाने हेतुकैसी हो खेती करने की व्यवस्था

 दोस्तों  ,अक्सर देखा गया है कि जब हमारे कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता कृषकों के बीच किसी नवीनतम तकनीक को बताने के लिए जाते हैं तो वह कृषि के किसी एक विषय में एक्सपर्ट या निपुण होते हैं तथा पारंगत भी होते हैं, परंतु कृषकों की अपेक्षाएं कुछ और होती है l कृषक जिनको खेती के विभिन्न पहलुओं का भली-भांति ज्ञान होता है ,वह कृषि के विभिन्न विषयों का ज्ञान रखते हैं l वह कीट विज्ञानी  ,पौधा रोग विज्ञानी ,एग्रोनॉमिस्ट, हॉर्टिकल्चरिस्ट ,पशुपालन विज्ञान आदि सभी प्रकार का ज्ञान रखते हैं l जबकि हमारे एक्सटेंशन वर्कर सिर्फ किसी एक विषय का ज्ञान रखते हैं l ऐसे में कृषकों की अपेक्षाएं होती है कि वह प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता उनकी समस्त खेती से संबंधित तथा सामाजिक, आर्थिक व्यापारिक, बाजार की आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर दें l और एक एक्सटेंशन कार्यकर्ता में यह सभी प्रकार के गुण होना चाहिए जिससे कि वह कृषकों को संतुष्ट कर सके l परंतु व्यक्तिगत, व्यवहारिक रूप से यह संभव नहीं होता है lऐसे में प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता उचित तकनीकी तथा अन्य विभागों से लगातार समन्वय एवं सहयोग रखने से इस प्रकार का ज्ञान कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं मैं पैदा किया जा सकता है l जिससे वह कृषकों के बीच जाकर के उनकी अधिकांश समस्याओं का निवारण कर सकें l
          आज की कृषि व्यवस्था तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की कृषि व्यवस्था में जमीन आसमान का अंतर  है l इसी प्रकार से आज की खाद्य व्यवस्था , खाद्य सुरक्षा पहले की खाद्य व्यवस्था एवं खाद्य सुरक्षा से  भिन्न है l उचित खाद्य  व्यवस्था को स्थापित करना ,खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा इन दोनों  की निगरानी करना एवं इनमें समय अनुसार वांछित परिवर्तन करना  सतत विकास की आवश्यकता है l आज की खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य व्यवस्था को स्थापित करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हम हम भूखे थे जबकि आज आज हम खाद्य व्यवस्था के बारे में  पूर्ण रूप से  स्वयं पर आश्रित है  तथा आज हम हम पूरे विश्व को चावल एवं सब्जियां खिला रहे हैं यानी निर्यात कर रहे हैं l इसी प्रकार से आवश्यकता अनुसार हमें कृषि उत्पादन की तकनीक तथा कृषि रक्षा या फसल सुरक्षा की तकनीक मैं परिवर्तन करना चाहिए l
कैसी हो आमदनी बढ़ाने तथा सुरक्षित खेती करने की व्यवस्था:---------
          आज  के सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक ,पर्यावरण के परिपेक्ष में एवं परिदृश्य में कृषि उत्पादन एवं फसल सुरक्षा या आईपीएम की विचारधारा पर्यावरण ,प्रकृति एवं समाज हितेषी ,लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार को बढ़ावा देने वाली तथा आय को बढ़ाने वाली ,समाज ,प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली होनी चाहिए तथा जीडीपी पर आधारित विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,के विकास को करने वाली तथा कृषि कृषि श्रमिकों के जीवन के स्तर को सुधारने वाली होनी चाहिए l आज की फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा तथा आईपीmकी विचारधारा उपरोक्त विचारधाराओं एवं आवश्यकताओं को  साथ में  ध्यान में रखकर उचित परिवर्तन करना चाहिए जिससे हम फसल सुरक्षा साथ साथ समाज ,प्रकृति एवं पर्यावरण  को भी सुरक्षा प्रदान कर सकें l उपरोक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी खेती उत्पादन व्यवस्था और फसल सुरक्षा को निम्न प्रकार से परिवर्तित करने की आवश्यकता  है l
1. लाभदायक फसल चक्र अपनाना
2  खेत में प्रति यूनिट एरिया से अधिक से अधिक आर्थिक लाभ लेना
3. क्षतिग्रस्त फसल पर्यावरण तंत्र या फसल पारिस्थितिक तंत्र को  पुनर्स्थापित करनl l
4. जीरो बजट पर आधारित खेती करना अर्थात खेती में काम आने वाले inputs  की उपलब्धता को कृषकों के घरों एवं खेतों के पर्यावरण से ही सुनिश्चित करना l
5. फसल उत्पादन मैं की जाने वाली सभी गतिविधियों एवं खर्चा का लेखा जोखा रखनl l
6. रसायनिक  inputs के स्थान पर  जैविक inputs  को बढ़ावा देना तथा इनका उत्पादन एवं उपलब्धता स्थानीय स्तर पर कृषकों के मध्य उनके घरों से अथवा फसल के पर्यावरण से ही प्रदान करना l
7. सफल कृषकों के अनुभव को फसल उत्पादन पैकेज में शामिल करके कृषकों की आमदनी बढ़ाना l
8. हरित क्रांति को हरित रखना  l  अर्थात प्रकृति समाज  ,जैव विविधता , सामुदायिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हुए सुरक्षित फसल उत्पादन करना
9. उपरोक्त विचारधारा के अनुसार फसल उत्पादन करने की कृषकों के मन में मानसिकता उत्पन्न करना   या  समझ विकसित करना एक प्रमुख गतिविधि होनी चाहिए  l
10 . प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था का अध्ययन करके किसी विशेष स्थान के लिए उचित एवं लाभकारी फसल चक्र ढूंढना या छांटना और उस फसल चक्र के अनुसार फसलों को बोना तथा उनसे वांछित मुनाफा प्राप्त करना l
10. प्रकृति में एक ही स्थान पर एक समय में कई प्रकार की फसलें या पौधों का उत्पादन करने की व्यवस्था है इस सिद्धांत को हमें भी क्लाइमेटिक जोन या मौसमी जो उनके आधार पर अध्ययन करना चाहिए तथा उसी प्रकार से फसलों उत्पादित करके लाभ उठाना चाहिएl
11. प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था को अनुसंधान यार रिसर्च अथवा शोध शिक्षा नीति सभी स्तर पर समझने एवं देखने की जरूरत है और  उसके अनुसार उचित फसल चक्र से फसलें उत्पादन करना चाहिए l
12. फसलों का उत्पादन करना ही एकमात्र  आमदनी बढ़ाने का साधन नहीं होता है बल्कि  कृषि उत्पादों का विपणन करना उनकी गुणवत्ता को बढ़ाना संग्रह करना उनको प्रोसेस करके उनके और दूसरे उत्पाद बनाना तथा उनको अधिक दामों पर बेचना भी आमदनी बढ़ाने का जरिया या साधन होता है इन उत्पादों का सर्टिफिकेशन करके निर्यात करना आमदनी बढ़ाने का एक जरिया होता है l
13. खेती बजट से नहीं समझ से होती है l जैविक खेती - खेती करते समय खेती में प्रयोग की गई सभी गतिविधियों एवं खर्चों का लेखा जोखा रखकर खेती करने का तरीका  हैl इसके लिए खेती करने से पूर्व खेती करने का कंप्लीट वर्क प्लान तैयार कर लेना चाहिए और उसके साथ साथ detailed DPR भी करना l जैविक खेती अकाउंटेबिलिटी तथा अकाउंट रखने के आधार पर खेती करने का तरीका है l जैविक खेती वह तरीका है जिसमें समाज का हिस्सा ज्यादा मेहनत का हिस्सा उससे कम और बजट का हिस्सा जीरो के बराबर होता है इसके लिए सही समय सही बीच सही बीज शोधन सही फसल चक्र खत बाद खरपतवार ओं का नियंत्रण तथा फसल के अवशेषों से ही हाथ बनाना पड़ता हैl इससे फसल लागत शून्य के बराबर तथा गुणवत्ता युक्त फसल उत्पाद पैदा होते हैंl
14 .




 स्थापित करना

Sunday, June 21, 2020

टेक्नोलॉजी या रिसर्च या शोध कार्यधरातल पर प्रयोग की जा सकने वाली होनी चाहिएTechnology must be usable and and adaptable on the field level .

 दोस्तों कई बार यह देखा गया है कि कई टेक्नोलॉजी  जो किसानों के स्तर पर फील्ड में 30 30 35 35 साल से demonstrate ki ja rahe hain उनको भी किसान भाई अपनी तरफ से स्वतंत्र रूप से उपयोग में नहीं ला सकते हैं या नहीं ला रहे हैं इनके कई कारण हो सकते हैं  l
          यद्यपि हर क्षेत्र में चाहे वह कृषि से संबंधित हो या अन्य क्षेत्र हो पर्याप्त अनुसंधान कार्य हो चुका है तथा इनसे संबंधित अनेक प्रकार की टेक्नोलॉजी विकसित हो चुकी है यही चीज एग्रीकल्चर मैं भी हो चुकी है परंतु यह देखा गया है कि यह टेक्नोलॉजी धरातल पर यानी फील्ड लेवल पर अथवा कृषकों के लेवल पर प्रयोग नहीं हो पा रही हैं l
            हमारे अनुभव के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हमें सिर्फ उन टेक्नोलॉजी का विकास करना चाहिए जो सिंपल यानी साधारण किफायती ,इकोनॉमिकल  अवेलेबल यानी उपलब्ध  होने वाली तथा समाज , पर्यावरण तथा प्रकृति दोनों तीनों के द्वारा स्वीकार होने वाली होनी चाहिए l तभी कोई भी टेक्नोलॉजी सही प्रकार से फील्ड लेवल पर या धरातल पर प्रयोग की जा सकती है l यह टेक्नोलॉजी समाज, प्रकृति तथा पर्यावरण के बीच तालमेल स्थापित करके विकसित की जानी चाहिए अर्थात Technology must be harmonious to the nature,environment and society. 
        इसके साथ साथ टेक्नोलॉजी लाभकारी , सुरक्षित तथा व्यापार एवं आय को बढ़ाने वाली  भी होनी चाहिए l यद्यपि हमें किसी भी विषय पर की गई रिसर्च अथवा शोध कार्य के प्रति कोई आशंका नहीं है की शोध कार के जो भी परिणाम सामने आए होंगे वह प्रयोगात्मक अध्ययन के बाद ही आए होंगे परंतु अगर कोई रिसर्च धरातल पर प्रयोग नहीं की जा सकती और उसका उपयोग धरातल पर नहीं किया जा सकता तो ऐसी रिसर्च का कोई विशेष फायदा नहीं हो सकता कोई भी रिसर्च  धरातल पर प्रयोग क्यों नहीं की जा सकती या क्यों नहीं हो रही है इसका कोई ना कोई कारण अवश्य होना चाहिए और हमें उस कारण का पता भी अवश्य लगाना चाहिए तथा उसके विकल्प को तलाश करके उस टेक्नोलॉजी रिसर्च में सुधार लाना चाहिए जिससे वह रिसर्च किसानों के लिए या उपभोक्ता के लिए लाभकारी सिद्ध हो सके l  उदाहरण के तौर पर जब हम आईपीएम के टेक्नोलॉजी को किसानों के खेतों के बीच उनके समक्ष डेमोंस्ट्रेट करते हैं और उनके रिजल्ट को उनको प्रदर्शित करते हैं या दिखाते हैं तो वह उस टेक्नोलॉजी को सही मानते हैं तथा अप्रिशिएट करते हैं परंतु जब हम उनको उन स्वतंत्र रूप से उनके ऊपर उस टेक्नोलॉजी को छोड़ देते हैं कि अब वे अपने आप इस टेक्नोलॉजी को अपनाएं तो वह उन आई पीएम टेक्नोलॉजी को अपने आप नहीं अपनाते हैं इनमें से एक कारण यह है कि आई पीएम टेक्नोलॉजी में प्रयोग होने वाले आईपीएल इनपुट या जैविक इनपुट्स उनको उनके द्वार पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं जिसके लिए सरकार को प्रयास करना आवश्यक है l अगर सरकार यह चाहती है कि हमारे भोजन में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष ना हो और वह खाने की दृष्टि से सुरक्षित रहें तथा विपणन एवं  निर्यात  करने लायक हो तो हमें अपनी खेती की पद्धति में रसायनिक कीटनाशकों था उर्वरक रसायनिक उर्वरकों प्रयोग को सीमित  अथवा न्यायोचित ढंग से करना पड़ेगा l इसके लिए हमें आईपीmमें प्रयोग किए जाने वाले  जैविक इनपुट के उत्पादन की विधियों को इतना सरल बनाना पड़ेगा कि किसान अपने द्वार पर उनका उत्पादन कर सके तथा उनका प्रयोग कर सकें अथवा अगर यह संभव नहीं है तो इनके स्थान पर अन्य विकल्पों को सोचना पड़ेगाl
         कृषि एक ऐसा विषय है जिसको खेतों में ही पढ़ा जा सकता है खेतों में ही सीखा जा सकता है और खेतों में ही क्रियान्वयन किया जा सकता l कई बार यह देखा गया है सीमित जगह पर की गई रिसर्च या किया गया शोध कार कई बार वैज्ञानिकों के मन में आत्मविश्वास पैदा करने में सक्षम नहीं होता है अत: रिसर्च हमेशा धरातल पर जहां टेक्नोलॉजी का क्रियान्वयन किया जाना हो वहीं पर करना चाहिए जिससे प्राप्त हुए नतीजों से वैज्ञानिकों तथा कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के मन में एक आत्मविश्वास पैदा हो सके l क्योंकि लर्निंग बाय डूइंग यानी करके सीखने वाली प्रक्रिया में आत्मविश्वास पैदा होता है l अगर कोई निपुण व्यक्ति या एक्सपर्ट धरातल पर कोई कार्य करने में असमर्थ है इसका अर्थ यह होता है कि जो कार उसने सीखा है उससे प्राप्त नतीजों से वह संपूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं है तथा कार्य को करने के लिए स्वतंत्र रूप से करने के लिए योग्य नहीं है l कई बार यह देखा गया है की टेक्नोलॉजी में निपुण एवं एवं पारंगत उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक भी  धरातल पर  कृषकों के समक्ष  किसी टेक्नालॉजी  का प्रदर्शन करने मैं hezitate करते हैं  क्योंकि उनके मन में उस टेक्नोलॉजी के रिजल्ट के ऊपर आत्मविश्वास नहीं रहता है और उनको यह भय रहता है की उस डेमोंस्ट्रेट की गई टेक्नोलॉजी का रिजल्ट इच्छा के विपरीत ना हो जाएl   इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता को उस टेक्नोलॉजी को कृषकों के समक्ष खेतों में प्रदर्शित स्वयं प्रदर्शित करके उनके नतीजों को स्वयं देख लिया जाए इसके बाद उसको कृषकों   handover  कर दिया जाए l

Saturday, June 20, 2020

प्रौद्योगिकी का हस्तांतरणके बारे में कुछ विचारविचार few thoughts about the transfer of Technology

 पृथ्वी पर जीवन  को स्थाई तो रखने के लिए प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन सुचारू रूप से चल सके एवं जीवन को आरामदायक भी बनाया जा सके l जीवन को पृथ्वी पर स्थाई रखने के लिए प्रकृति व समाज से संबंधित सभी संसाधनों की सुरक्षा करना तथा उनका संरक्षण करना अति आवश्यक है l जीवन अक्सर डिसएग्रीमेंट्स से ही चलता है l अक्सर यह देखा गया है  कि किसी भी विचारधारा के या कंसेप्ट  के पक्ष में सिर्फ लगभग 10% जनमत होता है या लोग होते हैं तथा  तथा विपक्ष में लगभग 90% लोग  होते हैं l और फिर भी जीवन सुचारु रुप से चल रहा है l
        भारत में प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण प्रायः एक प्रकार के  हीरआर्की या अनुक्रम पद्धति से होकर गुजरता है जिसमें निम्न स्तर उपभोक्ता से तथा उत्पादक से ऊपर की ओर उच्च स्तरीय स्तर माननीय प्रधानमंत्री तक भागीदार के रूप में या स्टेकहोल्डर्स के रूप में व्यवहार करते हैं l इन सभी स्तरों पर नियत किए गए अधिकारी या प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता ,वैज्ञानिक तथा राजनेता आदि अपने-अपने अलग-अलग विचारधाराओं से जुड़े हुए होते हैं जोकि  हस्तांतरित किए जाने वाले  प्रौद्योगिकी के कांसेप्ट या विचारधारा के बारे में अलग-अलग विचार रखते हैं तथा उस विचारधारा को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते वह समझते हैं l जबकि वह प्रौद्योगिकी या टेक्नोलॉजी किसी विशेष विचारधारा या विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बनाई जाती  है जिसके मूल लक्ष्य या विचारधारा को सही प्रकार से समझना टेक्नोलॉजी ट्रांसफर or प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण हेतु  बहुत ही महत्वपूर्ण होता है l टेक्नोलॉजी का विकास  मूल रूप से जिस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है उसको प्राप्त करने के लिए  उसमें बताई गई  प्रैक्टिसेज को उसी प्रकार से सही तरीके से जिस तरीके से बताया गया है  प्रयोग करना चाहिए  जिससे वांछित नतीजे प्राप्त हो सके प्रायः देखा गया है कि जब टेक्नोलॉजी विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है तो विभिन्न विचारधाराओं के भागीदार अपने अपने विचार से उस कांसेप्ट को समझते हैं और लागू करने के लिए अपने माता हित स्टाफ को कहते हैं और करवाते हैं जिससे उसका मूल उद्देश्य प्राप्त नहीं होता है l टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण करने से पहले टेक्नोलॉजी के कंसेप्ट या विचारधारा को सही प्रकार से अध्ययन करना अति आवश्यक होता है l उदाहरण के तौर पर IPM सिर्फ वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन नहीं होता है बल्कि यह सामुदायिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, जैव विविधता, पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज के   हि तो को ध्यान में रखते हुए फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो  का प्रबंधन करते हुए वनस्पति संरक्षण को करना होता है lपरंतु  अक्सर यह देखा गया है की आईपीएम के भागीदार सिर्फ प्लांट प्रोटक्शन या वनस्पति संरक्षण का ही ध्यान रखते हैं इसके अलावा वे प्रकृति, समाज ,Samudayik Swasthya, yah public health ,पर्यावरण ,परिस्थितिक तंत्र ,प्राकृतिक संसाधनों  आदि का बिल्कुल ही ध्यान नहीं रखते हैं जोकि आईपीएम के विचार धारा के विपरीत है Mul Roop se rashtriy IPM पर्यावरण का निर्माण उत्तम पर्यावरण हेतु आईपीएम अपनाएं के स्लोगन या ना रे से प्रारंभ किया गया था l  जिसका मुख्य उद्देश्य  वनस्पति संरक्षण  के साथ-साथ प्रकृति ,  पर्यावरण व समाज के हितों को भी ध्यान में रखना  था l  परंतु अक्सर यह देखा गया है कि आईपी m के स्टेकहोल्डर्स सिर्फ वनस्पति संरक्षण का ही ध्यान रखते हैं तथा समाज पर्यावरण प्रकृति सामुदायिक स्वास्थ्य जैव विविधता आदि का ध्यान नहीं रखा जाता अतः वह  plant protection yah Vanaspati Sanrakshan hi Karte Hain tatha आईपीएम नहीं करते l क्योंकि  आई पीएम के विचार धारा के विपरीत है  कोई भी विचारधारा समाज व समय की मांग के अनुसार बनाई जाती है जिसका एक लक्ष्य होता है उस लक्ष्य पर सही प्रैक्टिसेस को लागू करके पहुंचा जाता है परंतु यह देखा गया है कि आईपीm के कई स्टेकहोल्डर्स   आई पीएम के लक्ष्य को ध्यान में नहीं रखते हैं  और अपनी समझ के अनुसार आईपीएम की विचारधारा को दूसरी दिशा में  मोड़ देते हैं जिससे कांसेप्ट मैं चाहे गए नतीजे प्राप्त नहीं हो सकते आत किसी कंसेप्ट या विचारधारा को  Lagu करने से पहले विचारधारा तथा उसके उद्देश्यों को समझ लेना अति आवश्यक होता है वैसे सभी टेक्नोलॉजी जीवन से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई होती है किसी भी विचारधारा में अपनाई जाने वाली प्रैक्टिसेज का दुरुपयोग करने से बहुत सारे दुष्परिणाम जो जीवन को सुचारू रूप से चलाने को बाधक होते हैं अतः किसी भी विचारधारा को लागू करने के लिए उन में उपयोग की जाने वाली प्रैक्टिसेस को सही तरीके से अपनाना अति आवश्यक है उदाहरण के तौर पर हमने ग्रीन रिवॉल्यूशन या हरित क्रांति अधिक पैदावार करने वाली फसलों की प्रजातियों  ,sinchai के साधनों के विकास, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों उत्पादन एवं उपयोग प्राप्त किया परंतु इन्हीं इनपुट के दुरुपयोग से यही ग्रीन रिवॉल्यूशन या हरित क्रांति हरित अथवा सुरक्षित नहीं रही है l अतः हरित क्रांति को सुरक्षित रखना या हरित रखना अति आवश्यक होता है l इसके लिए रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का न्याय उचित ढंग से उपयोग करना ही आवश्यक all  इनका अंधाधुंध प्रयोग सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,जैव विविधता ,प्रकृति व समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं l इनके नुकसान से बचने के लिए हमें रसायनिक कीटनाशकों एवं रसायनिक उर्वरकों का उपयोग सीमित एवं न्याय उचित ढंग से करना चाहिए जिससे प्राकृतिक संसाधन संरक्षित हो सके तथा भूमि की उर्वरा शक्ति कायम रह सकेl अतः किसी टेक्नोलॉजी से लाभ प्राप्त करने के लिए उस टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग न किया जाए तथा उसके उद्देश्यों को दूसरी दिशा में ना घुमाया जाए इसी सिद्धांत से हम उस टेक्नोलॉजी से वांछित नतीजे प्राप्त कर सकते हैं l

Monday, June 15, 2020

Some thing about our retired Director Locust Control and Plant Protection Advisers to the Govt of India in the Directorate of Plant Protection , Quaratine and Storage.

1.Dr Hem Singh Pruthi: -----
        Dr Hem Singh Pruthi was the first Indian Entomologist who served as Imperial Entomologist being the first native Indian in that position.He was born at Begowala Sialkot where his father Dr Bhagat Singh Pruthi worked in police and jail hospital Gujaranwala Now in Pakistan.Dr H S Pruthi born on 23rd February 1897 Begowala now in Pakistan.and died on 23rd December 1969. He did his education from Peter house Cambrdge University of kiCambridge.He served as Imperial Entomologist at Indian Agricultureal Institute Pusa (Bihar)in 1934 and from 1936 to 1943 New Delhi .He also served as Director IARI IN 1944-45 and Director Locust control and  Plant Protection  Adviser to the Govt of India in the  Cenral plant protection and Quarantine  Organization and  then Dte of Plant Protection ,Quarantine and Storage fom 1946 to     1953   .
2.Dr.Krishan Bihari Lal :--
Dr Krishan Bihari Lal was  born in 1904 in Azamgarh Distt of Uttar Pradesh  in India .His specialization was in Agricultural  zoology, Plant Protection.He obtained his Ph.d .in 1933 from Universiry of Edinburgh,UK in Agricultural  zoology and plant protection .He also served as Plant protection  specialist for near East FAO Cario.from 1962 to 1969.He passed away on 04 .o5 .1996.
    Dr Lal, research  was related to the Taxonomy description of parasitic Vasp ,Braconideae,He also worked on biological control of pests of Cotton,Sugarcane ,fruit trees etc.He obtained his Ph d in 1933 from Edinburgh specializing Agricultural  zoology and Plant Protection.He also served as the Plant Protection  Adviser  to the Govt of India New Delhi from 1953 to 1962.and also served as a plant protection Specialist for North East,FAOCario from 1962to 1969.He also established an organozation for Plant Protection in Uttar Pradesh in 1947.
3. Dr Sardara Singh :_
           Dr. Sardara Sigh was renowned  Entomoligist . He served in various Organisations for 30 years .He also served as Third  Plant Protection  Adviser to the Govt of India as well  as Director of Locust control from ...1962 to 1970
      His work was mainly related with Hiney bees and beekeeping ,different aspects of plant protection in India and aerial spraying on the crops and locust.He has made  a review paper on plant protection,
which describes the  then progress of different methods of pest control and outlines their the then present status along with their achievements and their failures. 
He obtained MSC From Punjab Agricultural  University Ludhiyana .PA U is giving a medal on his name called Sardar Singh Medal to those students who secured the highest OCPA( not less than 8.00).He settled at A/31  Nirala nagar Lucknow India.
4.Dr S.N. Banerjee:----
 Dr.S N Banerjee was the fourth plant protection Adviser to the GOI.and Director of Locust Control from1971 to 1980 .He was born on                  in Chinchura village of Distt. .........in West Bengal.He served as PPA to the Govt Of India and Director  Locust Control from  1971 to1980                         .Basically he was  academician a and Entomologist.  He also served as state Entomologist in West Bengal state.
   Crop pest Surveillance and Biological control of crop pests and weeds Schemes were initiated and came in existence in his tenure and were also popularised on ground level  in his tenure.of PPA.
      The outbreak of sugarcane Pyrilla during 1973 and 1974 in bihar and eastern Utter pradesh  were combated during his tenure of PPA ship.through the Clonisation and establishment of an ecto parasitoid Epipyrops melanoleuca  now called as Epiricania melanoleuca.in sugarcane growing areas of these states. By avoiding aerial spraying on sugarcane crops in these states saving of  a net exchaqure  of rupees four crores..was made.
Locust invasion during 1978 in Scheduled Desert Area of Rajasthan and Gujarat states was averted successfully in his tenure in which he also suffered and undergone heart problem .
      Dr Benrjee has also developed a new type of light trap called Chinchura light trap which was given on the name of his village. He passed away ..........
5.Dr.K D Paharia :------
Dr. K D Paharia was the first Secretary of CIB and RC .He was very much associated with formation of the drafts of Central Insecticides Act 1968 and their  rules made under that .The Insectcides Act 1968 was passed from Parliament during his tenure.He was the first PPA who was from plant pathology discipline.He worked as PPA from      1980 to 1984.
His research work was on the Late and early blight of potato.Prior joining to this Dte he has also worked in CPRI Shimla.  He has created two disciplines  in the Dte ie.plant pathology and Entomologu by merging the senioritis of all the officers if the Dte. Four New Central Biological Control Stations were also opened  in his tenure.
6.Dr RL Rajak:-  He remained PPA of dynamic personality having very good managerial quality.He is very good orator. He worked as PPA twice ie firstly from 1.11 1984 to  17.07.1993.and secondly from 15.07 1996 to 12.19 2000.
      Dr.R L Rajak born on 04.08.1941.did his DIC.and Ph.d.from from Imperial college of Science and Technology University of London (U K). He joined the

Dte .Of Plant Protection,quarantine and Storage as Deputy Director Plant Diseases during February 1974 and remain occupied this post up to December 1982. Then he became Director Central Insectcides laboratory and holds this position from December 1982 to March 1986 with additional charge  of PPA from November 1984  to March 1986.He became regular PPA from March 1986 to July 1993.Then he became Executive Director on deputation on in NOVOD BOARD GURGAON DURING JULY 1993 TO JULY 1996. On return from NOVOD BOARD GURGAON  again he occupied the post of PPA and remained PPA from July 1996 to December 2000. Then became OSD New Delhi.Ministry of Agriculture  Govt of India.and kept this post between Novemer 2000 to August 2001 when he retired.
   His research work was related with Insect Toxicology,Storage Entomology.,Pesticides residue,Vector control,Newer techniques for Exterminationof exotic pests,diseases and weeds.
         Preparation of IPM modules for various Agroecosystem  in the country.,restructuring of plant protection system in India by merging CBCS,CSS.and CPPSs in to CIPMCs..were few Achivements credited to him.
.7.Dr V Ragunathan:-----.Dr V Ragunathan also  held the post of PPA and Director locust control twice i .e .firstly from 15.7.1993 to 14 .7 .1996.and then from 13.10.2000 to 31.5. 2002  Prior to hold the post of PPA.he had also served as Director CIL and prior to that he was occupying the post of Director NPPTI.Hyderabad under this Dte. He is a renowned  plant pathologist  and having vast experience of teaching on plant Protection in CPPTI Hyderabad.
       The worsed locust invasion during 1993 was controlled and averted successfully in different states of the country including Rajasthan Gujarat,Haryana Punjab etc.during his tenure.
IPM was popularised in the states,though the implementation of Human Resource Development programmes in the country in form of crash training programmes for making masters trainers ,IPM farmers Field  Schools,and Season long or long and short duration training programmes to the state functionaries and  farmers .State level conference on IPM to chalk out planning of further implementation in future ,IPM check points were also made  to monitor the Progress of IPM Programmes in India.
8.Dr P S Chandurkar :-------
Dr.PS Chandurkar joined / worked on the post of PPA from 03.06 .2002.to 31.05.2010 .Prior to joining the post of PPA he also worked on the post of Director NPPTI Hyderabad and Entomologist (Insecticides )in CIB AND RC IN the Dte of PPQand S Hqtrs  Faridabad.
   Restructuring of Locust Warning Organization,Implementation of transfer policy in the Dte.,Drafting of Pesticides Management Bill,Commissoning of LOC trade from Pakistan started at Chakan Da Bagh and Salamabad in  J$k State.,combating locust incursion during 2005 in Scheduled Desert  Area and in Cold Desert of Ladakh region of J$k state are few achievements credited to him during his tenure.
9.Sh.SKG.Rahate.IAS
Worked as PPA from 07.07.2010to06.06.2011

10.,Dr.V.K.Yadava :--------
Dr VK Yadava joined the Dte of PPQ$S as Deputy Locust Emtomologist in Locust Warnig OrganizationJodhpur during 1979.
    He averted the locust Invasion or locust incursions during1983, 1986,1988,  in Scheduled Desert Area of Rajasthan and ,Gujarat states.
He also served as Deputy Director (Entomology) at Regional Plant QuarantineStation at Kolkata and Amritsar and Additional plant Prtection Adviser (IPM) from........... to  ....... .HE 


also joined the post of PPA in the Dte of PPQ$S.Faridabad on 06.06.2011 and worked as PPA up to31.07.2012..

11.Dr.A.K  Sinha.worked  as PPA from 
               To.......            .
12.DR. B .S..Phogat  :------

13. DR.DDK Sharma.:-----
14.Shri Rajesh Malik:------











Sunday, June 14, 2020

Organic Farming continued .......जैविक खेती कांसेप्ट ......जारी...


Types of organic Organic inputs:-_
A.Animal based Organic inputs--- like cow urine and cow dung based,Farmyard manure,
Poultry,sheep or goats wastes based  inputs,compost.
B.Vermicompost
C.Human sewage based inputs,
D .Green manuring,
E.Fungi,,virus ,bacteria based inputs.
F.JeevaAmrit,and panch Gavya.
G.plant based inputs like Neembased inputs.
H. Preparation  of wastes Decomposer.
I.Neem based inputs.
Preparation of diffinition and concept of Organic farming :------
To produce healthy,safe,chemical residue free crop harvest to eat and to produce quality Agricultural commodities to trade with minimum expenditure and without use of chemicals like chemical pesticides and chemical fertilizers, without damaging nature and its resources like soil ,water and different ecosystems like,agroecosystem, nature ecosystem,social ecosystems,biodiversity,and  community health though adoption or use of animal based,plant based,nature based,humanbased,micro organisms based organic inputs , to ensure safe food to the society and also to protect Environment, nature and society.
 जैविक खेती के महत्व   Importance of Organic Farming:-----
 जैविक खेती के महत्व पर्यावरण के लाभ मिट्टी की संरचना एवं मिट्टी के पारिस्थितिक तंत्र  किसानों के की आर्थिक स्थिति के सुधार से जुड़े हुए हैं l

Saturday, June 13, 2020

ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती

 आजकल के सामाजिक ,आर्थिक ,प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा के विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति ,समाज हितेषी, लाभकारी  ,तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित , स्थाई रोजगार प्रदान करने वाली ,आय बढ़ाने वाली एवं समाज , प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, प्राकृतिक ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र, विकास करने वाली होनी चाहिए l उपरोक्त  कंसेप्ट  या विचारधारा के अनुसार  खेती  करने के लिए Integrated Pest Management (IPM)तथा  ऑर्गेनिक फार्मिंग  अथवा जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाना परम आवश्यक है IPM विधि से  खेती करना  तथा  ऑर्गेनिक विधि से  खेती करना  लगभग  एक ही प्रकार के सिद्धांतों पर आधारित है जो कि  अधिकांशतः  प्रकृति  तथा समाज  दोनों पर आधारित होते हैं  l ऑर्गेनिक खेती करते समय  हमें  रसायनिक इनपुट्स का  उपयोग  बिल्कुल नहीं करना होता है  l जबकि आईपीएम विधि से खेती करते समय  आपातकालीन स्थिति से  निपटने के लिए  रसायनिक कीटनाशकों तथा उर्वरकों का प्रयोग  कर सकते हैं  इस प्रकार से यह कह सकते हैं कि  आईपीएम विधि, ऑर्गेनिक विधि तक पहुंचने के लिए एक पहली सीढ़ी है l आई पीएम तथा  जैविक खेती की विचारधारा में  यही मूलभूत  अंतर है lऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती ,खेती करने का एक ऐसा तरीका है जिसमें खेती के लिए  प्रयोग किए जाने वाले सिंथेटिक इनपुट जैसे कि रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों तथा हारमोंस के स्थान पर जैविक कीटनाशकों एवं उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है तथा रसायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग को बिल्कुल नहीं किया जाता l इस विधि में फसल चक्र ,ऑर्गेनिक वेस्ट ,फार्म manure, क्रॉप रेसिड्यू तथा जमीन में पाए जाने वाले न्यू ट्रेंस को प्रयोग करके  स्वस्थ  मृदा, स्वस्थ भोजन तथा स्वस्थ समाज  बनाने का उद्देश्य को लेकर के खेती की जाती है l  Integrated Pest Management  अथवा आईपीएम ,जैविक खेती करने या जैविक खेती की ओर बढ़ने की तरफ प्रथम कदम है जिसमें जैविक खेती में प्रयोग किए जाने वाले इनपुट जैसे कि जैविक खाद या जैविक उर्वरक , जैविक कीटनाशक ,जैविक न्यू ट्रेंस आदि को बढ़ावा दिया जाता  है l
  जैविक खेती या ऑर्गेनिक फार्मिंग की विचारधारा:--
        1.Soil is the living entity. मिट्टी या  मृदा एक जीवित इकाई है जिसमें सूक्ष्मजीव  तथा  सूक्ष्म पोषक तत्त्वो का एक  इकोसिस्टम या पारिस्थितिक तंत्र काम करता है जिससे फसल उत्पादन में सहूलियत मिलती है या फसल उत्पादन होता है l
       2. खेती करने के लिए प्रकृति एक अच्छे शिक्षक के रूप में कार्य करती है l
   3. मिट्टी में पाए जाने वाले सभी पोषक तत्व तथा सूक्ष्म जीवों का संरक्षण  करना l जैविक खेती करते समय मिट्टी में से ही शुरुआत की जाती है तथा मिट्टी में पाए जाने वाले सभी सूक्ष्म तत्वों तथा सूक्ष्म जीवों को बचाया जाता है l
    जैविक खेती पूर्णरूपेण प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित और निर्भर करती है l प्रकृति में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र के आपस में निर्भर होने की वजह से तथा तथा निर्भरता के साथ-साथ गतिशील होने की वजह से खेती के सिद्धांत भी इन्हीं प्राकृतिक सिद्धांतों पर निर्भर करते हैं l
जैविक खेती में प्रयोग की जाने वाली प्रैक्टिसेज एवं गतिविधियां :-------
    1.Soil Management   मृदा प्रबंधन
     2.Weed Management  खरपतवार                  प्रबंधन
     3.Mulching 
     4.Crop Diversity  फसल विविधता
Principles of Organic Farming  :------
 जैविक खेती के सिद्धांत:-
 1.principles related with  health of society, soil,plants  or crops, animals ,humans or earth. समाज मरदा पौधे फसलों जानवरों मनुष्य व पृथ्वी  स्वास्थ्य जुड़े हुए सिद्धांत
2.principles related with ecology.or ecological balance  पारिस्थितिक तंत्र संतुलन से संबंधित सिद्धांत सिद्धांत
3 principles of fairness स्वच्छता एवं सुरक्षा से जुड़े हुए सिद्धांत
4.principles related with Environment  पर्यावरण से संबंधित सिद्धांत
जैविक खेती में प्रयोग किए जाने वाले जैविक इनपुट के बारे में अगले वीडियो में चर्चा करना चाहेंगे l धन्यवाद l

आईपीएम की विचारधारा अथवा आईपीएम के कंसेप्टसे संबंधित कुछ अन्य विचार

आईपीएम  प्रकृति एवं   समाज से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण की एक विचारधारा है l जिसके अनुसार प्रकृति के अनुरूप या प्रकृति के अनुसार या प्रकृति को ध्यान में रखते हुए खेती करने के तरीके को ही आईपीएम कहते हैं  l प्रकृति में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक  तंत्रों का समावेश होता है जो एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं  l किसी भी जीव को जीवित रहने के लिए उपयुक्त पानी ,हवा ,मिट्टी ,जलवायु, होना   अति आवश्यक है  पृथ्वी का हर प्राणी  जल एवं मिट्टी तथा हवा जमीन आदि पर निर्भर रहता है  l और इनके प्रदूषित होने पर  उस जीव का  के जीवन का स्थायित्व भी खतरे में पड़ सकता है lप्रकृति के o चल कर संसार का कोई भी प्राणी अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकता हैl
       उदाहरण के तौर पर अधिक पानी की कमी वाले क्षेत्रों में धान की खेती ना करना या कम करना हरियाणा जैसे राज्यों में कानूनी तौर से मना किया जा रहा है पानी की पर्याप्त उपलब्धता एनी जलभराव वाले क्षेत्रों में धान की खेती की इजाजत हरियाणा में दी जा चुकी है दूसरा रोपाई विधि के स्थान पर सीधे छिड़काव वाले तकनीकी को अपनाने को विशेष महत्व दिया जा रहा है यह सभी चीजें प्रकृति के आवश्यकता के अनुसार ही की जा रहे हैं l कम पानी वाले क्षेत्रों में दूसरी अन्य फसलों जैसे मक्का दलहन एवं तिलहन तथा सब्जियों आदि फसलों पर  जोर दिया जा रहा है  ग्वार की अगेती खेती करके फली बेची जा सकती है इसी प्रकार से ग्वार की फली सब्जी बनाने के लिए भी महंगी बिकती है तथा पकी हुई ग्वार   का एक्सपोर्ट भी किया जाता है जून के महीने के दूसरे पखवाड़े में ग्वार कीट किस में एच एच 366 , तथा 563 की बुवाई कर सकते हैं इसी प्रकार से अरहर की किस मानक व पारस की बुवाई जून के मध्य से जुलाई तक कर सकते हैं तिल की किस्म हरियाणा में नंबर वन एक मोबाइल जुलाई महीने के पहले सप्ताह में करें यह फसल 77 दिनों में पक्का तैयार हो जाती है और पानी भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती इसी तरह से 75 से 80 दिनों में पकने वाले बाजरे की फसल एच एच बी 67 और एच एच बी 94 तथा एच एच बी 197 की जुलाई के प्रथम सप्ताह में करें मूंग की कसम mh41 की बुवाई जुलाई के अंत में करें  l प्रकार से कम पानी वाले क्षेत्रों में फसल परिवर्तन या क्रॉप रोटेशन किया जा सकता है और किसानों की आमदनी पर भी इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा l
   दोस्तों  बुद्धिमान आदमी  कोई अलग चीज ना करके अलग से या अलग तरीके से चीजों को करते हैं l इसी प्रकार से खेती को भी ट्रेडिशनल या  परंपरागत खेती को नए तरीकों से भी किया जा सकता है l
         आजकल कि आई पीएम के विचारधारा के अनुसार खेती को प्रकृति के अनुरूप करने के साथ-साथ खेती को लाभकारी आए पद व्यापार योग तथा प्रकृति व समाज के बीच में सामंजस्य बैठाकर की जाने वाली होनी चाहिए जहरीली खेती की जगह पर सुरक्षित खेती को बढ़ावा देना है कि आई पीएम के विचारधारा मैं एक विचारधारा है l

Tuesday, June 9, 2020

IPM के बारे में कुछ विचार

एकीकृत  नासिजीव प्रबंधन फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा  के काम में  आने वाली  सभी  प्रैक्टिसेज  एवं तकनीकी ओं को समेकित रूप में या एकीकृत  रूप में प्रयोग करने  का तरीका है l फसल उत्पादन  एवं फसल रक्षा के  काम में आने वाली   सारी  तकनीकी आ किसी  एक विभाग के  कार्य क्षेत्र के अंतर्गत  नहीं आ सकती हैं  आती है  l इन तकनीकों का लाभ उठाने के लिए  हमें  उन सभी विभागों  के संबंधित  IPM ke स्टेकहोल्डर्स  या भागीदारों के बीच में  समन्वय एवं सहयोग स्थापित करना आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु  एक प्रमुख आवश्यकता है l फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा के काम में आने वाली सभी गतिविधियां   तथा प्रैक्टिसेस चाहे  चाहे वह Directorate of plant protection ,Quarantine and storage के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आती हो या  ना आती हो परंतु वे आईपीएम के   कार्यक्षेत्र  के अंतर्गत अवश्य आते हैं क्योंकि यह तकनीकी या एवं गतिविधियां  आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु  समेकित रूप में प्रयोग की जाती है l इसके कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार से है l
     यद्यपि पोषक तत्वों का प्रबंधन Nutrition management ,जल प्रबंधन,water management ,सॉइल कंजर्वेश organic जैविक खेती के लिए  प्रयोग किए जाने वाले  जैविक इनपुट Jaivik inputs inputs like vermicompost,organic nutrients , डी कंपोजर ,मुर्गियों  तथा गायों के मल मूत्र पर आधारित जैविक इनपुट आदि को बनाने का कार्य , marketing,loans and credits  आदि गतिविधियां डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन , क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के कार्यक्षेत्र के अंतर नहीं आती है परंतु यह सभी गतिविधियां उत्तम फसल उत्पादन एवं फसल संरक्षण  एवं IPM हेतु आवश्यक गतिविधियां है l यह गतिविधियां भी IPM के क्रियान्वयन हेतु IPM practices  ही मानी जाती हैं l इन गतिविधियों को IPM में महत्त्व एवं बढ़ावा देने के लिए हमें इन गतिविधियों से संबंधित सभी विभागों एवं उनसे संबंधित IPM के भागीदारों से समन्वय एवं सहयोग स्थापित करना पड़ेगा तभी हम भरपूर एवं सुरक्षित फसल उत्पादन कर सकेंगे ,जो कि आई पीएम का मुख्य उद्देश्य है  l किसी भी  स्कीम ,कंसेप्ट  तथा विचारधारा से सही लाभ लेने के लिए  इस विचारधारा से संबंधित  सभी  गतिविधियों एवं  प्रैक्टिसेस को  सही तरीके से  अपनाना आवश्यक है l जब तक सही तरीके से सभी प्रकार की गतिविधियों एवं प्रैक्टिसेस को नहीं अपनाया जाएगा उस कंसेप्ट या विचारधारा से वांछित लाभ नहीं मिल सकेगा  l इसलिए आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु वे सारी गतिविधियां सही तरीके से अपनाना आवश्यक है  जिनसे सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण, जैव विविधता, प्रकृति एवं समाज को नुकसान से बचाते हुए सुरक्षित एवं भरपूर फसल का उत्पादन किया जा सके जो कि आई पीएम का प्रमुख उद्देश्य है चाहे वे गतिविधियां हमारे विभाग के कार्य क्षेत्र में आती हो या ना आती हो l  IPM का प्रमुख उद्देश्य सिर्फ फसल सुरक्षा ही नहीं बल्कि फसल सुरक्षा के साथ-साथ प्रकृति ,पर्यावरण ,समाज ,सामुदायिक स्वास्थ्य ,बायोडायवर्सिटी आदि की  सुरक्षा भी है l इसके अलावा IPM ki vichardhara लाभकारी, स्थाई, रोजगार एवं आय को बढ़ाने वाली तथा समाज और  प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने वाली होती है जिसके लिए फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा काम में आने वाली सभी गतिविधियां  जिनसे  सामुदायिक स्वास्थ्य , पर्यावरण,  प्रकृति व समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो  आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु उपयोग नहीं करना चाहिए l
         दोस्तों आईपीएम विचारधारा के कार्य क्षेत्र में आने वाली विभिन्न गतिविधियों जोकि हमारे अपने विभागीय कार्य क्षेत्र मैं नहीं आती है के आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु अपनाने के लिए और उससे संबंधित सभी सभी विभागों के बीच समय-समय पर चर्चा होनी चाहिए तथा इन गतिविधियों को आईपीएम के पैकेज आफ प्रैक्टिस में एक दूसरे से विचार विमर्श करने के बाद अवश्य शामिल किया जाना चाहिए  l उदाहरण के तौर पर सिंचाई विभाग, मिट्टी परीक्षण तथा मृदा संरक्षण से संबंधित विभाग  ,खाद्य सुरक्षा एवं सुरक्षित भोजन से संबंधित विभाग, जैविक कृषि या ऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित विभाग, प्रादेशिक कृषि विश्वविद्यालयों तथा अनुसंधान आदि जोकि विभिन्न प्रकार के आईपीएम से संबंधित शोध कार एवं गतिविधियां करते हैं तथा अपनी संस्तुति भी प्रदान करते हैं के बीच में समय-समय पर विचार विमर्श एवं बैठकों का आयोजन किया जाना चाहिए और इन बैठकों के आधार पर निकले गए रिसर्च को या नतीजों को आईपीएम पैकेज आफ प्रैक्टिस में भी शामिल किया जाना चाहिए l  प्रायः देखा गया है कृषि प्रसार एवं प्रचार कार्यकर्ता जब कृषकों के बीच खेतों में या गांव में जाता है तो किसान की यह अपेक्षा रहती है की वह कार्यकर्ता उसकी हर प्रकार की समस्याओं का समाधान कर दे चाहे वह समस्याएं उसके कार्यक्षेत्र में आते हो या ना आते हो l Epert  extension worker मैं इस स्थिति को संभालने की कुशलता एवं योग्यता होनी चाहिए परंतु प्रत्येक व्यक्ति में हर प्रकार के योग्यता एवं ज्ञान नहीं हो सकता इसके लिए संबंधित विभागों के बीच में समय समय पर विचार-विमर्श गोष्ठियों एवं संवाद होते रहने चाहिए जिससे प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के ज्ञान का updation  होता रहे और उसको आईपीएल के क्रियान्वयन हेतु इस्तेमाल किया जा सके l
2. कुछ लोगों के विचार से सिर्फ जैविक इनपुट का खेती में या फसल रक्षा हेतु प्रयोग करना ही आईपीएम कहलाता है l परंतु हमारे हिसाब से यह आईपीएम के सिद्धांत के अनुसार नहीं है l आईपीएम के सिद्धांत के अनुसार सभी मौजूदा ,कम खर्चीली, संभावित ,सहन करने लायक या खर्चा उठाने लायक तथा समाज के द्वारा  स्वीकार  की जाने वाली विधियों को ही इस प्रकार से प्रयोग करना चाहिए जिससे भरपूर फसल तथा सुरक्षित फसल का उत्पादन हो सके एवं समाज, प्रकृति ,पर्यावरण ,सामुदायिक स्वास्थ्य ,के ऊपर कोई विपरीत प्रभाव ना पढ़ सकेl IPM  क्रियान्वयन  हेतु जैविक इनपुट्स की उपलब्धता किसानों के द्वार तक सुनिश्चित करना आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु एक प्रश्नचिन्ह बने बना हुआ है यह समस्या बनी हुई है परंतु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि आईपीएम इनपुट के अनुपस्थिति में या उपलब्ध ना होने की दशा में आईपीएम का क्रियान्वयन अथवा आप फसल का उत्पादन या फसल सुरक्षा नहीं की जा सकती ऐसी दशा में हमें आईपीएम  की अन्य उपलब्ध  सभी विधियों को इस प्रकार से प्रयोग करना चाहिए जिससे आईपीएम का क्रियान्वयन अपने उद्देश्य के अनुसार हो सके l आईपीएम के जैविक इनपुट आईपीएम को क्रियान्वयन करने हेतु सिर्फ सुविधा प्रदान कर सकते हैं परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि बिना जैविक इनपुट के आईपीएम का क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता l
3. यद्यपि जैविक आईपीएम इनपुट की उपलब्धता कि किसानों के द्वार तक  सुनिश्चित करना IPM का एक  वरीयता  पूर्ण एवं प्रमुख कार्य क्षेत्र होना चाहिए जिससे आईपीएल के क्रियान्वयन हेतु सुविधा हो सके परंतु इनकी अनुपस्थिति में भी आईपीएम का क्रियान्वयन किया जा सकता है ऐसी विचारधारा भी कृषकों के बीच में जागृत करने चाहिए l

Saturday, June 6, 2020

वनस्पति संरक्षण संगरोधा एवं संग्रह निदेशालयकी विभिन्न विभिन्न स्कीमों एवं वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शनकी विभिन्न विधियों की विचारधाराओं मैं अंतर

 दोस्तों मैंने वनस्पति संरक्षण , संग रो  धा एवं संग्रह निदेशालय की विभिन्न योजनाओं अथवा स्कीमों जैसे जैविक नियंत्रण स्कीम, नासिजीव निगरानी एवं आकलन स्कीम
एकीकृत  नासिजीव प्रबंधन स्कीम ,टिड्डी नियंत्रण स्कीम ,वनस्पति संग रो धा अथवा प्लांट क्वॉरेंटाइन स्कीम वनस्पति संरक्षण से जुड़ी हुई अन्य गतिविधियां जैसे रोडेंट कंट्रोल का काम तथा घरेलू नासी जीव प्रबंधन या नियंत्रण का काम आदि मैं अपना पार्टिसिपेशन या अपनी भागीदारी की है संपूर्ण सेवाकाल के दौरान हमने इन विभिन्न योजनाओं या स्कीमों में कार्य करके इन स्कीमों से जुड़ी हुई इनकी विचारधाराओं या कंसेप्ट तथा इनके उद्देश्य को भलीभांति अध्ययन किया है एवं मनन किया है हमारे विचार  से डायरेक्टरेट आफ प्लांट प्रोटक्शन ,क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज की यह विभिन्न स्कीम्स वनस्पति संरक्षण की विभिन्न प्रकार की विधियां हैं जो अलग-अलग विचारधाराओं या कंसेप्ट पर आधारित है तथा अलग-अलग उद्देश्य को पूरा करने के लिए बनाई गई है इन सभी विधियों एवं स्कीमों की विचारधाराओं में क्या फर्क है इसका खुलासा हमने इस या नीचे आगे के विवरण में किया all
1. टिड्डी नियंत्रण स्कीम  या लोकस्ट कंट्रोल स्कीम----Locusts  के polyphagous and voracious feeding, moving in swarms,highly migratory in nature, एवं एवं अत्यधिक नुकसान करने वाली प्रवृत्ति को देखते हुए locusts  की संख्या का प्रबंधन नहीं किया जाता है यानी इनकी संख्या को दवा करके एक निश्चित स्तर तक सीमित नहीं रखा जा सकता अतः इसका नियंत्रण या लोकस्ट को कंट्रोल किया जाता है इसका प्रबंधन नहीं किया जाता क्योंकि लोकस्ट का प्रकोप या महामारी या इनवेजन को एक इमरजेंसी के रूप में आपातकालीन स्थिति के निपटान के रूप में नियंत्रण किया जाता है  क्योंकि यह पेस्ट एक आपातकालीन या महामारी के रूप में उभर कर आता है जो कभी-कभी इतना नुकसान कर देता है की जहां इसका प्रकोप होता है वहां पर कभी-कभी  अकाल पैदा होने वाली स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है l इसी वजह से लोकस्ट का कोई भी ईटीएल अर्थात इकनोमिक थ्रेसोल्ड लेवल या आर्थिक हानि स्तर नहीं होता है l isko hit and kill इस सिद्धांत को मानते हुए सिर्फ रसायनिक कीटनाशकों की सहायता से नियंत्रित करते हैं l यद्यपि विभिन्न प्रकार के बायोपेस्टिसाइड सीआई b एंड आरसी ने पंजीकृत किए हैं परंतु इनका उपयोग सिर्फ लिमिटेड ट्रायल सीमित ट्रायल तक ही किया जा सकता है l लोकस्ट की बड़ी महामारी के नियंत्रण हेतु सिर्फ और सिर्फ केमिकल पेस्टिसाइड्स ही उपयोगी सिद्ध होता है l यद्यपि कुछ  स्थानीय तरीके भी जैसे कि locusts  के nymphs  के नियंत्रण हेतु  आगे खाई खुदकर उनको मिट्टी से दबाकर के भी उनका नियंत्रण किया जाता है l ऐसे तरीके भी प्रयोग किए जाते हैं l   इन सभी मेथड्स का उद्देश्य लोकस्ट को मारने का ही होता है या किल करने का ही होता है उनकी संख्या को प्रबंधन नहीं किया जाता  locust is never managed but it is controlled
2.. There is no tolerance in case of locust and plant Quarantine.In both these cases ETL s  are not applicable or working .
3. इसी प्रकार से रोडेंट कंट्रोल में भी ईटीएल काम नहीं करता है क्योंकि इसकी संख्या एक स्थान पर स्थित नहीं होती है कई बार वह नुकसान करने के बाद उस खेत से दूसरे खेत में चले जाते हैं आता है रोडेंट कंट्रोल के लिए ईटीएल  जीवित चूहों के बिलों को गिन कर आकलन करते हैं परंतु यह हर जगह लागू नहीं होते हैंl
4. Integrated pest management is a way of suppression of pest population by any means to a level at which the harm is inflicted to insignificant or minor .This is the concept of IPM.
5.

Friday, June 5, 2020

Future strategies for Locust control

Considerable thoughts.....
1.Let's not under estimate the importance of locust and its  menace and the expected loss to be caused by them .
2.Lets  not ignore Locust Warning Organisation(LWO) and  it should also  be kept Eveready to fight w kmith locust eventuality or locust emergency without any prior notice.
3.Lets consider LWO as a paradefence or para military or like fire fighting Organisation to be kept ever ready to organize locust control  operation or Locust control Campaign immediately after receiving the locust invasions with all locust control potential like man ,material,machines ,methods, and money.
4.Lets strengthen, update,and modernize the locust warning organization in terms of trained man power,,a fleet of operative vehicles,Control equipment like micro Ulva,Miccronair sprayers,Ulvamast,communication equipment,sufficient insecticide such as Malathion96 %,Fenitrothion 98%,etc,sufficient POL,Aircrafts,airstrips,Vehicle repair  equipment,Camping equipments ,first aid equipments,facilities for operating the locust control rooms ,computers with internet facilities ,surveillance equipments like e locust system,RAMSES ( Reconnaissance And MonitoringSystemof theEnvironment of Schistocerca ) SYSTEM and locust emergency fund in advance of about one crore Ruppees.
5 Regular monitoring of locust population both national and international level and preparation for locust control Operations as per the locust population and forewarning made by FAO .
6.Lets organize a campaign for repair of all kinds of equipment and vehicles during calm season of locust.
7.Regular trainings of conducting locust control operation and the management of locust control campaign for the officials of LWO  and other all the schemes of the Dte of PPQ&S ,and state govt staff members of locust prone states and also adjoining states may be organized to enrich the control potential in terms of manpower .
8.Mockup operations for conducting locust contol operation may be organized in calm season of locust
9 Procurement of all the necessary equipment ,pesticides,spare parts of control equipment and vehicles,may be done well in advance before the commencement of locust season,locust operation based on the locust situation.
10.Drons may also be included in locust control programmes for locust Surveillance ,monitoring and control purpose in remote areas .
11.All the vacant posts of Locust aWarning Organization,and Field Station for investigation on locusts (FSIL),Bikaner may be filled on priority basis considering the quantum of loss caused by Locust.
12.Bordersueveys,and border meeting may be organized throughout the year to exchange the locust situation.
13.Newly recruited,staff of Dte of plant protection ,quarantine and storage be posted initially in locust control and IPM schemes of the Dte.to get sufficient field exposure and experience before posting them in other schemes of the Dte.
14.SOP for the management of locust control campaign may be made with help of the seniors exofficers who are having experience for organizing the  locust control campaign .How ever I have already published several papers on this aspects.
15 Research on different aspects on locust behaviour,habitats,biological control,screening of the impact of biopesticides of microbial and plant origin in nature etc must be initiated  by GSILand ICAR.


Thursday, June 4, 2020

टिड्डी नियंत्रण हेतुकृषकों का योगदान

टिड्डी एक प्रकार का अंतरराष्ट्रीय या अंतर महाद्वीपीय नाशिजीव है जिसको डेजर्ट एरिया अथवा फसल रहित एरिया अथवा no mens area में ही नियंत्रित कर लेना परम आवश्यक है l क्योंकि यदि यह पेस्ट फसली एरिया में प्रवेश कर गया तो फसलों को या कृषकों को भारी नुकसान कर सकता हैl
   1.   टिड्डी नियंत्रण हेतु प्राया रसायनिक कीटनाशकों का छिड़काव  अथवा  dusting किया जाता है l इसके नियंत्रण के लिए हमें विशेष प्रकार के तकनीक का सहारा लेना पड़ता  है l टिड्डी नियंत्रण करने के लिए हमें locusts  के Nymphs  एवं वयस्कों को अलग अलग तरीके से नियंत्रित किया जाता है l  जिसके लिए कृषकों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है  locusts के  Nymphs  के  नियंत्रण हेतु इनके आगे बढ़ने की दिशा में इन से आगे गहरी खाई देनी चाहिए जिससे यह nymphs  कुछ खाई में गिर जाएं जिसको फिर मिट्टी से दवा देना चाहिए  l इस कार्य के लिए कृषकों की भूमिका एक बहुत महत्व रखती है l कभी-कभी  Nymphs  का नियंत्रण रसायनिक कीटनाशकों के छिड़काव अथवा dusting  के द्वारा भी किया जाता है  l जिसके लिए कृष को का योगदान आवश्यक है l
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3.. Locusts  के समूह के मैं पाई जाने वाले इनके एडल्ट्स अथवा वयस्कों के नियंत्रण हेतु अलग से तकनीक अपनानी पड़ती है इनके नियंत्रण हेतु इनके दल का पीछा किया जाता है और शाम को सूर्यास्त के बाद यह टीडी दल या swarm जिस गांव या खेत में पड़ाव डालते हैं उन गांव व जगह की जानकारी प्राप्त की जाती है l इसके लिए भी कृषकों की एक बहुत बड़ी भूमिका होती है l टीडीओ के द्वारा पड़ाव डालें जाने वाले गांव की जानकारी गांव के लोगों अथवा कृषकों के द्वारा राज्य एवं केंद्रीय कर्मचारियों के द्वारा स्थापित किए गए कंट्रोल रूम को देनी पड़ती है l इस कार्य में भी कृषकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है l
4. जिन गांव में locusts के द्वारा  पड़ाव डाला जाता है उन गांव में लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन अथवा राज्य के कृषि विभाग के कार्यालयों सेlocust  नियंत्रण हेतु प्रयोग किए जाने वाले रसायनिक कीटनाशकों ,गाड़ियों , मशीनों तथा अन्य सभी संसाधनों को रात को ही उस स्थान पर पहुंचा दिया जाता है जहां locusts  ने पड़ाव डाला हुआ है जिससे सुबह अर्ली मॉर्निंग locusts के ऊपर छिड़काव अथवा डस्टिंग करके उन को नियंत्रित किया जा सकेl इन संसाधनों को पहुंचाने के लिए किसानों के ट्रैक्टरों तथा अन्य गाड़ियों की भी मदद ली जा सकती है l जिसके  लिए  भी कृष को का बहुत    योगदान  हो सकता 
5. Locusts के समूह को  खेतों में लैंड करने से पहले ड्रम पीटकर अन्य साधनों से  शोर मचा कर  उनको भगाने मैं भी  किसानों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है l
6. लोकस कंट्रोल काम के दौरान रिमोट फील्ड एरिया अजमेर होने वाली ब्रेकडाउन गाड़ियों को⁹ खींच कर रिपेयर के हेतु निश्चित जगह पर पहुंचाने में  किसानों की भूमिका का  बहुत विशेष महत्व होता है
7. tractor mounted मशीनों के द्वारा किड नियंत्रण हेतु छिड़काव करने में कृषकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है l
8. किडनी नियंत्रण दल की टोलियां को गांव में रुकने के लिए सुविधा प्रदान करने में तथा टिड्डी नियंत्रण करने हेतु विभिन्न प्रकार के स्थानीय सुविधाएं प्रदान करने में कृषकों की बहुत बड़ी भूमिका होती है l
9.

Wednesday, June 3, 2020

Concepts of different methods of plant protection and also different schemes of the Dte of plant protection ,Quarantine and storage.

I have worked in different schemes of Dte of plant protection, Quarantine and Storage like Biological control of crop pests and weeds,Pest Surveillance, Integrated pest Managent, locust control,plant Quarantine ,and also participated in different activities run by the Dte.like Rodent control,and Control of household pests.All these schemes are the methods of plant protection which are having different concepts for managing and controling the pests for different purposes.There is a clear cut difference among the concepts of above mentioned methods  of plant protection or schemes of  the Dte of PPQ& S.
       Locust is not managed but controlled .There is no ETL for locust control purpose.It is an emergency pest should be controlled not to be managed.But mean time we should not underestimate the importance and attack of locust in terms of loss to be caused by this pests.It can create famine like situation not controlled properly.
.Only the chemical control is the effective way of locust control though different biopesticides have also been identified but they are used only for experimental purposes not to combat  the locust emergency.
        There is no tolerance and ETL in case of locust control,plantQuarantine,The E TL concept is not working and applicable in all occassions and in all concept of plant protection.
   Incase of Rodent control ETL is also not properly working because in this case ETL is not calculated on population basis but on the basis of live burrow counts.
Integrated pest Managent is the suppression of pest populations  by any means to a level at which the harm is inflicted to insignificant or minor.This the concept of Pest management.
        To reduce the use of the chemical pesticides in Agriculture based on the pest monitoring and surveillance and also Agroec osystem Analysis is the concept of pest Surveillance.