यद्यपि हर क्षेत्र में चाहे वह कृषि से संबंधित हो या अन्य क्षेत्र हो पर्याप्त अनुसंधान कार्य हो चुका है तथा इनसे संबंधित अनेक प्रकार की टेक्नोलॉजी विकसित हो चुकी है यही चीज एग्रीकल्चर मैं भी हो चुकी है परंतु यह देखा गया है कि यह टेक्नोलॉजी धरातल पर यानी फील्ड लेवल पर अथवा कृषकों के लेवल पर प्रयोग नहीं हो पा रही हैं l
हमारे अनुभव के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि हमें सिर्फ उन टेक्नोलॉजी का विकास करना चाहिए जो सिंपल यानी साधारण किफायती ,इकोनॉमिकल अवेलेबल यानी उपलब्ध होने वाली तथा समाज , पर्यावरण तथा प्रकृति दोनों तीनों के द्वारा स्वीकार होने वाली होनी चाहिए l तभी कोई भी टेक्नोलॉजी सही प्रकार से फील्ड लेवल पर या धरातल पर प्रयोग की जा सकती है l यह टेक्नोलॉजी समाज, प्रकृति तथा पर्यावरण के बीच तालमेल स्थापित करके विकसित की जानी चाहिए अर्थात Technology must be harmonious to the nature,environment and society.
इसके साथ साथ टेक्नोलॉजी लाभकारी , सुरक्षित तथा व्यापार एवं आय को बढ़ाने वाली भी होनी चाहिए l यद्यपि हमें किसी भी विषय पर की गई रिसर्च अथवा शोध कार्य के प्रति कोई आशंका नहीं है की शोध कार के जो भी परिणाम सामने आए होंगे वह प्रयोगात्मक अध्ययन के बाद ही आए होंगे परंतु अगर कोई रिसर्च धरातल पर प्रयोग नहीं की जा सकती और उसका उपयोग धरातल पर नहीं किया जा सकता तो ऐसी रिसर्च का कोई विशेष फायदा नहीं हो सकता कोई भी रिसर्च धरातल पर प्रयोग क्यों नहीं की जा सकती या क्यों नहीं हो रही है इसका कोई ना कोई कारण अवश्य होना चाहिए और हमें उस कारण का पता भी अवश्य लगाना चाहिए तथा उसके विकल्प को तलाश करके उस टेक्नोलॉजी रिसर्च में सुधार लाना चाहिए जिससे वह रिसर्च किसानों के लिए या उपभोक्ता के लिए लाभकारी सिद्ध हो सके l उदाहरण के तौर पर जब हम आईपीएम के टेक्नोलॉजी को किसानों के खेतों के बीच उनके समक्ष डेमोंस्ट्रेट करते हैं और उनके रिजल्ट को उनको प्रदर्शित करते हैं या दिखाते हैं तो वह उस टेक्नोलॉजी को सही मानते हैं तथा अप्रिशिएट करते हैं परंतु जब हम उनको उन स्वतंत्र रूप से उनके ऊपर उस टेक्नोलॉजी को छोड़ देते हैं कि अब वे अपने आप इस टेक्नोलॉजी को अपनाएं तो वह उन आई पीएम टेक्नोलॉजी को अपने आप नहीं अपनाते हैं इनमें से एक कारण यह है कि आई पीएम टेक्नोलॉजी में प्रयोग होने वाले आईपीएल इनपुट या जैविक इनपुट्स उनको उनके द्वार पर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं जिसके लिए सरकार को प्रयास करना आवश्यक है l अगर सरकार यह चाहती है कि हमारे भोजन में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेष ना हो और वह खाने की दृष्टि से सुरक्षित रहें तथा विपणन एवं निर्यात करने लायक हो तो हमें अपनी खेती की पद्धति में रसायनिक कीटनाशकों था उर्वरक रसायनिक उर्वरकों प्रयोग को सीमित अथवा न्यायोचित ढंग से करना पड़ेगा l इसके लिए हमें आईपीmमें प्रयोग किए जाने वाले जैविक इनपुट के उत्पादन की विधियों को इतना सरल बनाना पड़ेगा कि किसान अपने द्वार पर उनका उत्पादन कर सके तथा उनका प्रयोग कर सकें अथवा अगर यह संभव नहीं है तो इनके स्थान पर अन्य विकल्पों को सोचना पड़ेगाl
कृषि एक ऐसा विषय है जिसको खेतों में ही पढ़ा जा सकता है खेतों में ही सीखा जा सकता है और खेतों में ही क्रियान्वयन किया जा सकता l कई बार यह देखा गया है सीमित जगह पर की गई रिसर्च या किया गया शोध कार कई बार वैज्ञानिकों के मन में आत्मविश्वास पैदा करने में सक्षम नहीं होता है अत: रिसर्च हमेशा धरातल पर जहां टेक्नोलॉजी का क्रियान्वयन किया जाना हो वहीं पर करना चाहिए जिससे प्राप्त हुए नतीजों से वैज्ञानिकों तथा कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के मन में एक आत्मविश्वास पैदा हो सके l क्योंकि लर्निंग बाय डूइंग यानी करके सीखने वाली प्रक्रिया में आत्मविश्वास पैदा होता है l अगर कोई निपुण व्यक्ति या एक्सपर्ट धरातल पर कोई कार्य करने में असमर्थ है इसका अर्थ यह होता है कि जो कार उसने सीखा है उससे प्राप्त नतीजों से वह संपूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं है तथा कार्य को करने के लिए स्वतंत्र रूप से करने के लिए योग्य नहीं है l कई बार यह देखा गया है की टेक्नोलॉजी में निपुण एवं एवं पारंगत उच्च श्रेणी के वैज्ञानिक भी धरातल पर कृषकों के समक्ष किसी टेक्नालॉजी का प्रदर्शन करने मैं hezitate करते हैं क्योंकि उनके मन में उस टेक्नोलॉजी के रिजल्ट के ऊपर आत्मविश्वास नहीं रहता है और उनको यह भय रहता है की उस डेमोंस्ट्रेट की गई टेक्नोलॉजी का रिजल्ट इच्छा के विपरीत ना हो जाएl इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता को उस टेक्नोलॉजी को कृषकों के समक्ष खेतों में प्रदर्शित स्वयं प्रदर्शित करके उनके नतीजों को स्वयं देख लिया जाए इसके बाद उसको कृषकों handover कर दिया जाए l
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