Monday, June 22, 2020

कृषि प्रचार एवं प्रसारकार्यकर्ताओं से कृषकों की अपेक्षाएंतथा आमदनी बढ़ाने हेतुकैसी हो खेती करने की व्यवस्था

 दोस्तों  ,अक्सर देखा गया है कि जब हमारे कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता कृषकों के बीच किसी नवीनतम तकनीक को बताने के लिए जाते हैं तो वह कृषि के किसी एक विषय में एक्सपर्ट या निपुण होते हैं तथा पारंगत भी होते हैं, परंतु कृषकों की अपेक्षाएं कुछ और होती है l कृषक जिनको खेती के विभिन्न पहलुओं का भली-भांति ज्ञान होता है ,वह कृषि के विभिन्न विषयों का ज्ञान रखते हैं l वह कीट विज्ञानी  ,पौधा रोग विज्ञानी ,एग्रोनॉमिस्ट, हॉर्टिकल्चरिस्ट ,पशुपालन विज्ञान आदि सभी प्रकार का ज्ञान रखते हैं l जबकि हमारे एक्सटेंशन वर्कर सिर्फ किसी एक विषय का ज्ञान रखते हैं l ऐसे में कृषकों की अपेक्षाएं होती है कि वह प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता उनकी समस्त खेती से संबंधित तथा सामाजिक, आर्थिक व्यापारिक, बाजार की आदि सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान कर दें l और एक एक्सटेंशन कार्यकर्ता में यह सभी प्रकार के गुण होना चाहिए जिससे कि वह कृषकों को संतुष्ट कर सके l परंतु व्यक्तिगत, व्यवहारिक रूप से यह संभव नहीं होता है lऐसे में प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ता उचित तकनीकी तथा अन्य विभागों से लगातार समन्वय एवं सहयोग रखने से इस प्रकार का ज्ञान कृषि प्रचार एवं प्रसार कार्यकर्ताओं मैं पैदा किया जा सकता है l जिससे वह कृषकों के बीच जाकर के उनकी अधिकांश समस्याओं का निवारण कर सकें l
          आज की कृषि व्यवस्था तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के समय की कृषि व्यवस्था में जमीन आसमान का अंतर  है l इसी प्रकार से आज की खाद्य व्यवस्था , खाद्य सुरक्षा पहले की खाद्य व्यवस्था एवं खाद्य सुरक्षा से  भिन्न है l उचित खाद्य  व्यवस्था को स्थापित करना ,खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा इन दोनों  की निगरानी करना एवं इनमें समय अनुसार वांछित परिवर्तन करना  सतत विकास की आवश्यकता है l आज की खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य व्यवस्था को स्थापित करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हम हम भूखे थे जबकि आज आज हम खाद्य व्यवस्था के बारे में  पूर्ण रूप से  स्वयं पर आश्रित है  तथा आज हम हम पूरे विश्व को चावल एवं सब्जियां खिला रहे हैं यानी निर्यात कर रहे हैं l इसी प्रकार से आवश्यकता अनुसार हमें कृषि उत्पादन की तकनीक तथा कृषि रक्षा या फसल सुरक्षा की तकनीक मैं परिवर्तन करना चाहिए l
कैसी हो आमदनी बढ़ाने तथा सुरक्षित खेती करने की व्यवस्था:---------
          आज  के सामाजिक ,आर्थिक, प्राकृतिक ,पर्यावरण के परिपेक्ष में एवं परिदृश्य में कृषि उत्पादन एवं फसल सुरक्षा या आईपीएम की विचारधारा पर्यावरण ,प्रकृति एवं समाज हितेषी ,लाभकारी ,मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित ,स्थाई ,रोजगार प्रदान करने वाली ,व्यापार को बढ़ावा देने वाली तथा आय को बढ़ाने वाली ,समाज ,प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली तथा जीवन की राह को आसान बनाने वाली होनी चाहिए तथा जीडीपी पर आधारित विकास के साथ-साथ सामाजिक ,प्राकृतिक, पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,के विकास को करने वाली तथा कृषि कृषि श्रमिकों के जीवन के स्तर को सुधारने वाली होनी चाहिए l आज की फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा तथा आईपीmकी विचारधारा उपरोक्त विचारधाराओं एवं आवश्यकताओं को  साथ में  ध्यान में रखकर उचित परिवर्तन करना चाहिए जिससे हम फसल सुरक्षा साथ साथ समाज ,प्रकृति एवं पर्यावरण  को भी सुरक्षा प्रदान कर सकें l उपरोक्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी खेती उत्पादन व्यवस्था और फसल सुरक्षा को निम्न प्रकार से परिवर्तित करने की आवश्यकता  है l
1. लाभदायक फसल चक्र अपनाना
2  खेत में प्रति यूनिट एरिया से अधिक से अधिक आर्थिक लाभ लेना
3. क्षतिग्रस्त फसल पर्यावरण तंत्र या फसल पारिस्थितिक तंत्र को  पुनर्स्थापित करनl l
4. जीरो बजट पर आधारित खेती करना अर्थात खेती में काम आने वाले inputs  की उपलब्धता को कृषकों के घरों एवं खेतों के पर्यावरण से ही सुनिश्चित करना l
5. फसल उत्पादन मैं की जाने वाली सभी गतिविधियों एवं खर्चा का लेखा जोखा रखनl l
6. रसायनिक  inputs के स्थान पर  जैविक inputs  को बढ़ावा देना तथा इनका उत्पादन एवं उपलब्धता स्थानीय स्तर पर कृषकों के मध्य उनके घरों से अथवा फसल के पर्यावरण से ही प्रदान करना l
7. सफल कृषकों के अनुभव को फसल उत्पादन पैकेज में शामिल करके कृषकों की आमदनी बढ़ाना l
8. हरित क्रांति को हरित रखना  l  अर्थात प्रकृति समाज  ,जैव विविधता , सामुदायिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हुए सुरक्षित फसल उत्पादन करना
9. उपरोक्त विचारधारा के अनुसार फसल उत्पादन करने की कृषकों के मन में मानसिकता उत्पन्न करना   या  समझ विकसित करना एक प्रमुख गतिविधि होनी चाहिए  l
10 . प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था का अध्ययन करके किसी विशेष स्थान के लिए उचित एवं लाभकारी फसल चक्र ढूंढना या छांटना और उस फसल चक्र के अनुसार फसलों को बोना तथा उनसे वांछित मुनाफा प्राप्त करना l
10. प्रकृति में एक ही स्थान पर एक समय में कई प्रकार की फसलें या पौधों का उत्पादन करने की व्यवस्था है इस सिद्धांत को हमें भी क्लाइमेटिक जोन या मौसमी जो उनके आधार पर अध्ययन करना चाहिए तथा उसी प्रकार से फसलों उत्पादित करके लाभ उठाना चाहिएl
11. प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था को अनुसंधान यार रिसर्च अथवा शोध शिक्षा नीति सभी स्तर पर समझने एवं देखने की जरूरत है और  उसके अनुसार उचित फसल चक्र से फसलें उत्पादन करना चाहिए l
12. फसलों का उत्पादन करना ही एकमात्र  आमदनी बढ़ाने का साधन नहीं होता है बल्कि  कृषि उत्पादों का विपणन करना उनकी गुणवत्ता को बढ़ाना संग्रह करना उनको प्रोसेस करके उनके और दूसरे उत्पाद बनाना तथा उनको अधिक दामों पर बेचना भी आमदनी बढ़ाने का जरिया या साधन होता है इन उत्पादों का सर्टिफिकेशन करके निर्यात करना आमदनी बढ़ाने का एक जरिया होता है l
13. खेती बजट से नहीं समझ से होती है l जैविक खेती - खेती करते समय खेती में प्रयोग की गई सभी गतिविधियों एवं खर्चों का लेखा जोखा रखकर खेती करने का तरीका  हैl इसके लिए खेती करने से पूर्व खेती करने का कंप्लीट वर्क प्लान तैयार कर लेना चाहिए और उसके साथ साथ detailed DPR भी करना l जैविक खेती अकाउंटेबिलिटी तथा अकाउंट रखने के आधार पर खेती करने का तरीका है l जैविक खेती वह तरीका है जिसमें समाज का हिस्सा ज्यादा मेहनत का हिस्सा उससे कम और बजट का हिस्सा जीरो के बराबर होता है इसके लिए सही समय सही बीच सही बीज शोधन सही फसल चक्र खत बाद खरपतवार ओं का नियंत्रण तथा फसल के अवशेषों से ही हाथ बनाना पड़ता हैl इससे फसल लागत शून्य के बराबर तथा गुणवत्ता युक्त फसल उत्पाद पैदा होते हैंl
14 .




 स्थापित करना

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