Locust control operation is like a war with same requirements.An integrated approach including administrative,technical,extension,mechanical and unskilled labourers are deployed for locust co trol Operationby LW Oin Indian scheduled Desert Area.of Raj,Guj,Part of Haryana and Punjab states.Advance planning,,preparation and proper and expert deployment of the resources regular supply if essential inputs at affected area a strong and encouraged leadership,good communication skills,properjudgement and analysis of the situation,wick decision making,working in team sprit in adverse inhospitable desert conditions and always be motivated in adverse conditions,Onspot and quick repaire of breakdown vehicles,ensuring supply of e.required equipments ,helping attitudes with colleagues, co ordination with national and international agencies,monitoring of locust situation both at national and international level are the main mantras of management of locust control Operations.
Saturday, May 30, 2020
Management of Locust Control Operation in Indian Scheduled Desert Area.
This year 2020 ,is called as the year of tripled natural Disasters.Corona pandemic,,Locust invasion and Sea storm in Way of Begal affected the Indial economy and lives .Locust and Corona problems invaded in India from various countries and created emergency situation in form of total lockdown of the country and damage to the Agricultural crops right from Rajasthan to Maharastra.Sea storm has also done serious or huge loss of properties and crops.
Let's Strengthen ,Equipped and Update the locust Warning Organisation (LWO) to combat the locust emergency.
1.Locust warning Organisation must always be kept ready with all control potential to combate the locust menace.
2.All the vacant posts must always be kept filled up .
3.Mouck up operations and trainings must be given not only to the locust staff regularly but also to the staff members of other schemes of the Dte.of Plant protection ,quarantine and Storage so that they can be deployed for locust control operation work at the time of locust emergency.
4.If possible the postings of local staff may be made in LW O who are well aware about the local routes of border areas because the deployment of control potential including pesticides ,and other locust control equipments is required to be done only during night hour and the air sorter ground spray is done only during very early morning hours before the sun rises as just after sun rises the locusts starts flying .After flying the locust it isnot possible to control locust. Locust is chased during evening hours to findout the location of settling thr locust swarms .5. Regular monitoring of locust population both at national and international level may be done to findout the possibility of locust invasions or local breeding.
6.Liaisioning with all the national and international agencies.
7.
Preparation of Contingency plan and obtaining all relevant approvals and sactions in advance every year before obsetsof locust season.
8.procurement of pesticides and equipment in advance.
9.
Thursday, May 28, 2020
भारत में टिड्डी आपातकाल जारी है------भाग 2
भारत में टिड्डी आक्रमण संबंधी जानकारी एवं अनुभव: - मैंने फरवरी 1978 में भारत सरकार के वनस्पति संरक्षण, संगrodh एवं संग्रह निदेशालय मैं पदभार ग्रहण किया था l इसी साल भारत में टिड्डी के आक्रमण हुआ था l इससे पूर्व हुए टिड्डी के आक्रमणों की जानकारी रिपोर्टों के आधार पर ली जा सकती है l सन 1986 मैं भी टिडियो का आक्रमण हुआ था परंतु टिड्डी का सबसे बड़ा आक्रमण सन 1993 में हुआ था उस वक्त यह आक्रमण मध्य प्रदेश राज्य तक पहुंच गया था l 2005 में locusts का आक्रमण भारतीय अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र के भारत पाक सीमा से लगे हुए जैसलमेर व बाड़मेर तथा बीकानेर जिलों में हुआ था l जिनको माइक्रो नायर मशीनों की मदद से इसी क्षेत्र में नियंत्रित कर लिया गया था l और फसली एरिया में नहीं जाने दिया गया था l सन 2006 में माइग्रेटरी लोकस्ट का इनवेजन भारत चीन सीमा से लगे Jammu Kashmir ke a Ladakh क्षेत्र के cold desert के जंस्कार (Distt Kargil एवChalthang (Distt Leh) घाटियों में हुआ था जिनको माइक्रो एल्बl नामक spray machines से नियंत्रित कर लिया गया था l टीटी नियंत्रण अभियान का संचालन एवं प्रबंधन हमारी देखरेख में हुआ था l cold desert यानी ठंडे मरुस्थल में locust control Abhiyan का यह पहला अनुभव था lइससे पहले ठंडे मरुस्थल में कभी भी लोकस्ट या टेडी नियंत्रण अभियान नहीं चलाया गया था l
सोशल मीडिया से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर यह जानकारी प्राप्त हुई कि वर्ष 1919 में locusts का आक्रमण भी indo-pak बॉर्डर के पास हुआ था l उस समय भी यह पता चला था कि locusts का प्रवेश indo-pak बॉर्डर से हुआ है परंतु इसके साथ-साथ यह भी अनुमान लगाया जा सकता है हो सकता है यह आक्रमण locust की local breeding के द्वारा भी हुआ इसकी पुष्टि सिर्फ लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन के अधिकारियों से ही की जा सकती है lयह देखा गया है कि 20019 मैं हुआ यह locusts का आक्रमण दिसंबर 2019 तक सक्रिय रहा l
लोकस्ट के आक्रमण की जानकारी के लिए यह बहुत जरूरी है की लोकस्ट की मॉनिटरिंग राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रेगुलरली की जाए l हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकस्ट की मॉनिटरिंग Food and Agricultural Organisation (FAO)के द्वारा की जाती है और उनसे मॉनिटर की गई लोकस्ट सिचुएशन को locist situation बुलेटिन के रूप में सभी सदस्य देशों को भेज दी जाती हैl Directorate of plant protection, Quarantine and storage को इस प्रकार की जानकारी लोकस सिचुएशन बुलिटिन के के रूप में एफ ए ओ द्वारा दी जाती है l
भारत व पाकिस्तान में locusts के ग्रीष्मकालीन प्रजनन क्षेत्र पाए जाते हैं परंतु अफ्रीकन कंट्रीज में रेड सी के चारों तरफ locusts के शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन दोनों प्रजनन क्षेत्र पाए जाते हैं l जिससे इन क्षेत्रों में लोकस्ट पूरे साल मौजूद रहती है और अगर अनुकूल मौसम मिलता है तो इनकी प्रजनन बहुत तेजी से होता है तथा यह swarm या झुंड बनाकर दूसरे क्षेत्रों में तथा दूसरे देशों में प्रवेश करने लगते हैं lभारत में locusts के प्रवेश करने के मुख्य रूप से दो रास्ते हैं एक तो locusts सऊदीअरबिया ,ईरान ,अफगानिस्तान ,एवं पाकिस्तान के रास्ते Indoपाकिस्तान के पश्चिमी इलाके जैसे कि जैसलमेर व बाड़मेर जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों से प्रवेश करती हैं l दूसरा यह रेड समुद्र को सीधे उड़कर गुजरात के कच्छ भुज एरिया में आ सकते हैं l इतनी लंबी उड़ान के दौरान यह लोकस्ट समुद्र में भी सेटल करती है और कुछ लोकस्ट समुद्र में डूबी जाती है l तथा बाकी बची हुई लोकस्ट उड़कर करके समुद्र पार करके गुजरात के कच्छ भुज एरिया से प्रवेश करती है l परंतु प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इस वर्ष 2020 में जो लोकस्ट के दल आए हैं वह इंडो पाक सीमा के जैसलमेर तथा बाड़मेर सीमावर्ती इलाकों से प्रवेश करके आए हैंl इन locusts के प्रवेश मैं हवा के दिशा का बहुत बड़ा योगदान होता है इसी तकनीकी कारण के वजह से पाकिस्तान locustsके आक्रमण के रोकथाम के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करता है l क्योंकि गर्मियों के समय हवा का रुख भारत की तरफ होता है और locusts इसकी वजह से भारत की तरफ बढ़ती हैं इसलिए पाकिस्तान अपनी तरफ से बहुत कम प्रयास करता है इनके नियंत्रण के लिए l सर्दी मैं दिसंबर के आसपास हवा का रुख बदलता है और यह locusts वापसी इसी रास्ते से घूमती हुई अफ्रीकन कंट्रीज में पहुंच जाती हैं lरास्ते यह locustsअपना पड़ाव डालती हुई वापस चली जाती हैl यह locusts के भारत में प्रवेश के दो रास्ते हैंl.
इसके अलावा यह भी अनुमान लगाया जा सकता है की इंडो पाक सीमा से लोकस्ट इंवर्जन होने के अलावा कुछ जगहों पर शेड्यूल रिजल्ट एरिया में locusts की लोकल ब्रीडिंग भी हुई हो क्योंकि इस वर्ष भी राजस्थान के कुछ सीमावर्ती भागों में तथा अन्य स्थानों में हल्की-फुल्की बरसात हुई थी जिससे scheduled Desert Area पर्याप्त नमी रहने की संभावना थी इसके अतिरिक्त आजकल जो इंदिरा गांधी कैनाल निकली है उसके आसपास भी soil moisture लोकस्ट के प्रजनन के लिए अनुकूल रहता है l
अभी प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इस साल 2020 में locust के झुंड राजस्थान से उत्तर प्रदेश ,पंजाब ,हरियाणा ,के कुछ भाग ,मध्य प्रदेश महाराष्ट्र ,तथा आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ कर पहुंच गए हैं जिससे मौजूदा सीजन में लगी हुई सब्जियां व अन्य फसलों तथा महाराष्ट्र में पाए जाने वाले फ्रूट जैसे अंगूर ,केला, संतरा आदि को भारी नुकसान हो सकता है lअनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र Scheduled Desert Area मैं locust कंट्रोल की जिम्मेदारी लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन की होती है परंतु फसली एरिया में यह जिम्मेदारी राज्य सरकार के विभागों की होती है l अतः सभी राज्य सरकारों को अपने स्तर पर अपने संबंधित विभागों को सतर्क करते हुए लोकस्ट कंट्रोल के लिए उचित कदम उठाने के लिए सख्त निर्देश दे देनी चाहिए और जितनी शीघ्र से शीघ्र हो लोकस्ट को आगे से कंट्रोल करना चाहिए l
मानसून सीजन के प्रारंभ में तथा इसके दौरान उपयुक्त नमी होने की वजह से लोकस्ट के प्रजनन हेतु उपयुक्त परिस्थितियों पनपने की वजह से इस दौरान locust आक्रमण के बढ़ने की पूरी की पूरी पूरी संभावना है अतः सरकार को लोकस्ट कंट्रोल ऑपरेशन के मैनेजमेंट के लिए वांछित सभी कंट्रोल पोटेंशियल को हमेशा तैयार रखना चाहिए के साथ-साथ लोकस्ट वार्निंग ऑर्गेनाइजेशन मैं खाली पड़े हुए पदों पर तुरंत ही नियुक्तियां कर देनी चाहिए l निदेशालय की विभिन्न स्कीम्स में कार्य कर रहे स्टाफ को समय-समय पर locust control हेतु प्रशिक्षण देने की योजना भी बनानी चाहिए और उनको उसको क्रियान्वयन करना चाहिए l हमारे देश पर locust का खतरा हमेशा बना रहता है इसके लिए हमारे लोकस्ट स्टाफ को कंट्रोल पोटेंशियल सहित 24 घंटे तैयारी की हालत में रहना चाहिए जिस प्रकार से हमारे देश के सेना के जवान तैयार रहते हैं l locust warning organisation एक प्रकार का पैरामिलिट्री ऑर्गनाइजेशन या संगठन है जिसको खतरे से निपटने के लिए 24 घंटे तैयार रहना पड़ता हैl
Wednesday, May 27, 2020
लोकस्ट इमरजेंसी is ऑन इन इंडिया भारत में लोकस्ट आपत्ति कालचल रहा है ---- प्रथम भाग
मानवी गतिविधियों एवं प्राकृतिक परिस्थितियों के द्वारा अचानक बहुत बड़े या विस्तृत क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली घटना या परिस्थिति जिससे जीवन ,आर्थिक ,प्राकृतिक ,सामाजिक ,पारिस्थितिक तंत्रों , सामुदायिक स्वास्थ्य ,प्राकृतिक संसाधनों ,पर्यावरण ,जैव विविधता ,आदि को अधिक से अधिक नुकसान होता है आपत्ति काल कहलाता है यह आपत्ति काल अचानक उत्पन्न होता है और कभी भी प्रायर इंटीमेशन या पूर्व सूचना को देकर नहीं आता है l अतः किसी आपत्ति काल से निपटने के लिए हमें पहले से ही तैयारी रखनी पड़ती है या जो संसाधन हमारे पास उपलब्ध होते हैं उन्हीं संसाधनों से उस आपत्ति काल का निपटान किया जाता है
दोस्तों लोकस्ट या टिड्डी यह एक प्रकार का माइग्रेटरी ग्रास हॉपर है जो एक प्रकार का अंतरराष्ट्रीय नासि जीव है l वैसे तो टिड्डी की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती है परंतु रेगिस्तानी टिड्डी या डेजर्ट लोकस्ट एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हानिकारक कीट है lयह विश्व के बहुत सारे महाद्वीपों में इतना नुकसान करता है l जहां इसका आक्रमण होता है वहां पर दुर्भिक्ष अथवा अकाल तक उत्पन्न हो जाता है l
इसका कारण इसकी झुंड में या समूहों में चलने की प्रवृत्ति जिसमें प्रत्येक झुंड में लाखों की तादात में locusts का होना हैं तथा दूसरा कारण बहुत मात्रा में खाने की प्र बत्ती अथवा आदत l किसी देश में बाहर से टिड्डी यो के समूह को किसी देश के अंदर आने को लोकस्ट इनवेजन कहते हैंl तथा टिड्डी यो के समूह को swarms कहते हैं l तथा जितनी अवधि तक इन टिड्डी यो का प्रकोप किसी भूभाग या किसी देश में जब तक रहता है तब तक इस अवधि को लोकस्ट आपत्ति काल या लोकस्ट इमरजेंसी पीरियड भी कहा जाता है l टिड्डी एक प्रकार की प्राकृतिक आपदा है जो वैश्विक स्तर का नासिजीव है l यह एक प्रकार का अनप्रिडिक्टेबल नासिजीव है जो एक तरह से सोते हुए राक्षस की तरह होता है lऔर कभी भी किसी वक्त यह उभर कर आ सकता है तथा फसलों को अपेक्षा से अधिक हानि पहुंचा सकता है l यह एक प्रकार का बहु भक्ति जीव है जो कि हर प्रकार की वनस्पतियों को भुक्कड़ की तरह खाता है अर्थात इसके खाने की गति बहुत ही तीव्र होती है l
इस वर्ष 2020 मैं देश ने तीन प्रकार के प्राकृतिक आपत्ति काल झेले हैं l यह आपत्ति काल है कोरोना जैसी बीमारी या महामारी का प्रकोप ,अफ्रीकी देशों तथा अन्य देशों जैसे सोमालिया ,इथोपिया, ईरान, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश किए गए locusts के समूह के द्वारा होने वाली महामारी या आपत्ति काल तथा बंगाल की खाड़ी में आया हुआ Amphan नाम का समुद्री तूफान l locusts तथा Corona जैसी महामारी ओं का प्रकोप बाहरी देशों से आने से हुआ l इस समय देश में लोकस्ट इमरजेंसी या आपत्ति काल चल रहा है l जिस से निपटने के लिए देश के सामने सबसे पहली प्राथमिकता है जिससे देश की खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित रखा जा सके l
टिड्डी नियंत्रण अभियान एक प्रकार का युद्ध की तरह अभियान होता है जिसमें युद्ध की तरह ही सभी संसाधन सामग्री ,साधन सामग्री, ट्रांसपोर्ट सिस्टम ,कम्युनिकेशन सिस्टम ,control equipment ,नियंत्रण करने वालेेेेे कीटनाशक Malathion98 ^ULV ,Chlorepyriphos 20 EC ,GPS system RAMSES,Miconair Sprayers,Ulvamast and micro Ulva ,Ulvamast , a fleet of vehicles,Camping equipment, Firstaid equipment,protectivpersonal Equipment etc.
आवश्यक होते हैं l टिड्डी नियंत्रण अभियान के प्रबंधन हेतु अग्रिम योजना बनाना ,संसाधनों को नियत स्थान पर अभियान के शुरू करने से पहले पहुंचाना अति आवश्यक होता है lभारत के अनुसूचित रेगिस्तानी क्षेत्र जो लगभग 200000 स्क्वायर किलोमीटर मैं राजस्थान ,गुजरात तथा हरियाणा आदि राज्यों में फैला हुआ है l राजस्थानी क्षेत्र में टिड्डी नियंत्रण एवं टिड्डी चेतावनी की जिम्मेदारी टिड्डी चेतावनी संगठन जो कि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के वनस्पति संरक्षण संगरोवं और संग्रह निदेशालय फरीदाबाद के अंतर्गत है की है l परंतु फसली एरिया में टिड्डी नियंत्रण की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों के विभागों की होती है lलोकस्ट या टिड्डी एक प्रकार का वैश्विक ना सजीव होने की वजह से वैश्विक स्तर से लोकस्ट कंट्रोल या टीडी नियंत्रण के सभी गतिविधियां फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा संचालित की जाती हैl
लोकस्ट के विभिन्न life स्टेज के नियंत्रण हेतु विभिन्न प्रकार की रणनीतियां अपनाई जाती हैl जैसे कि locust के हार्पर के नियंत्रण हेतु कीटनाशकों का ग्राउंड स्प्रे अथवा डस्टिंग करके किया जाता है तथा एडल्ट जिसकी भी कई स्टेज होती है जैसे की पीली टी डी व गुलाबी टीडी पर छिड़काव बड़ी-बड़ी स्पीयर्स द्वारा locusts को उड़ने से पहले सुबह प्रातकाल किया जाता है किया जाता है l सुबह सूर्य निकलने से पहले टिड्डी के ऊपर किसी भी तरह के छिड़काव व डस्टिंग ऑपरेशन को क्रियान्वयन कर लेना चाहिए l सूरज निकलने के बाद locusts की उड़ान शुरू हो जाती है l फिर उनके ऊपर छिड़काव या बुर्का नहीं किया जा सकता है l शाम के टाइम या शाम के वक्त हमें locusts का पीछा करके उनके द्वारा डाले गए पड़ाव वाले स्थान की सही जानकारी ले लेनी चाहिए और रात को ही वहां पर सभी सामग्री, संसाधन जो कि locust control नियंत्रण के लिए आवश्यक हैं उस स्थान तक पहुंचा देना चाहिए तथा सुबह सूर्य निकलने से पहले टिड्डी नियंत्रण के लिए छिड़काव अथवा बोरगांव कर देना चाहिए l
Monday, May 25, 2020
Use appropriate precautions in adoption of IPM practices for implementation of IPM.
Lets understand the importance and role of nature and its resources ,ecosystem, to sustain life on earth.Use nature and society friendly methods of pest management to implement IPM.
Implementation of IPM depends upon that how best way ,and proper way we can use the IPM practices and natural resources to implement IPM as all the biotic and abiotic natural resources contributing a lot to sustain life on the earth while using them in the Implementation of IPM..Govt is advising us to wash hands frequently,wear mask and observe social distancing while going out from house only on emergency needs to prevent us from Corona If we will follow these advices properly then only we can save us from Corona disease otherwise no.Smilerlly to implement IPM we have to follow the IPM package of practices properly.Thus the implementation of IPM depend on us only.The success of IPM depend upon how much importance we are giving to the nature ,Environment ecosystem, biodiversity, and society .
and how much we are protecting them while doing plant proection by way of using IPM practices in proper ways and also with full precautions.Hence IPM depends on the precautions we are using g while doing plant protection .Friends excess of every thing is bad .hence using of excess amount of chemical of chemical is also bad.IPM is not against the use of the chemical pesticides but it is against the misuse of the chemical pesticides. Lets reduce the use of the chemical pesticides in agriculture.
Sunday, May 24, 2020
आत्मनिर्भर खेती से ही आत्मनिर्भर भारत बनने का सपना पूरा किया जा सकता है
माननीय प्रधानमंत्री जी के कहने के अनुसार 21वी सदी भारत की सदी होगी l इसके लिए हमें संकल्प ही नहीं बल्कि कर्तव्यों का निर्वाहन भी करना पड़ेगा l करो ना जैसी महामारी के झेलने के बाद हमें व हमारे भारत को आत्मनिर्भर होना पड़ेगा l भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए या होने के लिए आत्मनिर्भर खेती का होना अति आवश्यक है l आत्मनिर्भर खेती के लिए आत्मनिर्भर कृषक होना भी अति आवश्यक है l इसके लिए कृषकों का इतना सक्षम होना आवश्यक है कि वह खेती करने के लिए बैंकों पर तथा कृषि पदार्थों को खरीदने वाले दुकानदारों पर पर , साहूकारों पर तथा बैंकों पर कृषि लोन लेने के लिए आधारित ना रहे और उनके अंदर इतनी क्षमता विकसित हो कि वह इन लोन के स्थान पर कृषि इनपुट खरीदने के लिए लिए स्वयं खर्चा कर सकें l इस प्रकार की खेती को कई बार जीरो बजट फार्मिंग या शून्य बजट पर आधारित खेती कहते हैं l इस प्रकार की खेती में होने वाला खर्चा बहुत हद तक कम करके लोन पर आधारित खेती को स्वयं कृषकों पर आधारित खेती बनाया जाता l इस प्रकार की खेती में इनपुट जैसे बीज एवं फर्टिलाइजर्स तथा पेस्टिसाइड आदि की खरीद को कम से कम कर दिया जाता है तथा खेती को प्रकृति से सामंजस्य बैठाकर परंपरागत विधियों को बढ़ावा देकर किया जाता है l प्रकार की खेती में पाए जाने वाले बीजों , फर्टिलाइजर्स के लिए हरी खाद वाले फसलों जैसे ढांचा ,नील , सनई आदि का प्रयोग करके तथा गोबर की खाद ,हड्डियों की खाद पशुओं के मल मूत्र, तथा केंचुआ खाद आदि पर आधारित खाद को प्रयोग करके खेती की जाती है l इसके अतिरिक्त खेती करते समय मुख्य फसल के साथ-साथ खेतों की बॉर्डर पर बॉर्डर फसलों को तथा मुख्य फसलों के साथ-साथ अंतर फसलों व सह फसलों को बढ़ावा देकर इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग जैसी पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाता है l जिससे फसल में पाए जाने वाले हानिकारक कीट है इन फसलों पर आकर्षित हो और मुख्य फसल को बचा सकें l इसके अतिरिक्त बहुत फूलों वाली फसलें भी खेतों के चारों ओर बॉर्डर क्रॉप की तरह लगाते हैं जिससे यह फसलें खेतों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवो को भोजन प्रदान करके उनके संरक्षण में मदद करती call इसके अतिरिक्त खेती मैं प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का व्यर्थ में दो ना करते हुए उनका न्यायोचित ढंग से प्रयोग किया जाता है इस प्रकार से खेती को तथा कृषकों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है l
Saturday, May 23, 2020
अपने अनुभवों के आधार पर इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अर्थात आईपीएम को स्वयंपरिभाषित करें
एकीकृत नाशिजीव प्रबंधन या इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अर्थात आईपीएम को अपने स्वयं के व्यवसायिक, सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक , राजनीतिक ,प्रायोगिक तथा खेतों में किए गए आईपीएम के कार्यों के अनुभव के आधार पर स्वयं को परिभाषित करना चाहिए l किसी भी विचारधारा को उसके विभिन्न उद्देश्यों को सर्वप्रथम सही तरीके से समझ कर उनको पूरा करने के हेतु विभिन्न गतिविधियों का चयन करना चाहिए तथा विचारधारा को क्रियान्वयन करने के लिए अपनाना चाहिए l अक्सर यह देखा गया है कि आईपीएम की परिभाषा एवं उनके क्रियान्वयन तथा उसका कार्यक्षेत्र आईपीएम के स्टेकहोल्डर्स, अपने वरिष्ठ साथियों , अधिकारियों ,फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा बताई गई परिभाषा तथा गूगल एवं इंटरनेट के द्वारा डाउनलोड की गई जानकारी के आधार पर और उसी तक सीमित रखते हुए आईपीएम को समझते हैं ,परंतु हमारे विचार से IPM जीवन के हर पहलु से जुड़ी हुई वनस्पति संरक्षण अथवा कृषि उत्पादन की विधि है या तरीका है , जिसमें हम प्रकृति, समाज ,सामुदायिक स्वास्थ्य ,इको सिस्टम, तथा हमारे चारों ओर पाए जाने वाले पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए कृषि उत्पादन अथवा वनस्पति संरक्षण या nashiजीव प्रबंधन करते हैं lआईपीएम को परिभाषित करने के लिए हमें IPM ki विचारधारा को अपने व्यवसायिक, आर्थिक, पर्यावरण ,प्राकृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझना चाहिए एवं उस पर विचार तथा मनन करना चाहिए तथा इन दृष्टि कोणों के आधार पर आईपीएम को स्वयं से परिभाषित करना चाहिए l क्योंकि IPM सिर्फ खेतों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो अर्थात pests की संख्या का ही नहीं प्रबंधन करता है बल्कि वह समाज की विभिन्न गतिविधियों, प्रकृति के संसाधनों एवं पारिस्थितिक तंत्रों का भी सही तरीके से संचालन करने में एवं उनका प्रबंधन करने में अपना विशेष योगदान देता है l pest management को तो सभी कृषक भाई अपने अनुभव के आधार पर या किसी के बताए जाने के आधार पर अपनाते हैं परंतु ऐसा पेस्ट मैनेजमेंट जो समाज और प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करते हुए , प्रकृति के संसाधनों व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए किया जाता है वह इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट कहलाता हैl
वह वनस्पति संरक्षण या प्लांट प्रोटक्शन जो किसानों की आर्थिक स्थिति तथा जीवन चर्या , पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व समाज को ध्यान में रखते हुए नहीं किया जाता है वह आईपीएम नहीं बल्कि साधारण रूप से प्लांट प्रोटक्शन कहलाता है l आईपीएम को स्वयं परिभाषित करने के लिए हमें आईपीएम की सभी गतिविधियों को समाज ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र एवं प्रकृति से जोड़कर अवश्य देखना चाहिए तथा इनके लिए हितेषी विधियों का प्रयोग करके ही आईपीएम को क्रियान्वयन करना चाहिए तथा आईपीएम को परिभाषित भी करना चाहिए l
दोस्तों ,किसी भी विचारधारा को समझ बूझ कर उसका सही मतलब समझ कर विवेकपूर्ण प्रतिक्रिया करने पर ही वांछित रिजल्ट या नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं l अतः IPM में विवेकपूर्ण निर्णय लेना अति आवश्यकता है lशीघ्र से शीघ्र बगैर सोचे समझे ,बगैर पारिस्थितिक तंत्र का विश्लेषण किए हुए निर्णय लेने से सही नतीजे प्राप्त नहीं होते हैं lआत: विवेकपूर्ण लेना IPM की मुख्य विचारधारा है l
आत :अपने अनुभव के आधार पर, अपने विवेक एवं अनुभव के आधार पर ही आईपीएम को परिभाषित किया जा सकता है
आज के सामाजिक ,आर्थिक ,प्राकृतिक ,पर्यावरणीय परिदृश्य एवं परिपेक्ष में स्वस्थ फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा के तरीके सुरक्षित ,स्थाई ,लाभकारी, आय व व्यापार को बढ़ावा देने वाले तथा समाज व प्रकृति के बीच तालमेल रखने वाले व किसानों की जीवन शैली या जीवन स्तर में सुधार करने वाले और उसको सरलतम तथा सुगम बनाने वाले होने चाहिए l इन्हीं आवश्यकताओं के आधार पर आईपी m की विधियां का चयन किया जा सकता है एवं आईपीएम को परिभाषित भी करना चाहिए l इसके लिए हमें ट्रेडिशनल फॉर्मिंग से हटकर वैज्ञानिक एवं लाभकारी इंटीग्रेटेड फार्मिंग की तरफ रुख करना चाहिए और उसमें उपरोक्त सिद्धांतों के आधार पर IPM को क्रियान्वयन करके रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करना चाहिए एवं कृषकों की आमदनी को बढ़ाना चाहिए साथ ही साथ पर्यावरण व प्रकृति के संसाधनों को सुरक्षित रखते हुए कृषकों के जीवन को सरल तरल एवं सुगम बनाना चाहिए l
एकीकृत नासि जीव प्रबंधन प्रकृति व समाज को नुकसान पहुंचाए बिना खेती करने का एक तरीका है या वनस्पति संरक्षण का एक तरीका है l यह एक प्रकार का कौशल विकास कार्यक्रम है जिसमें कृषकों व आईपीएम के अन्य भागीदारों मैं कम से कम लागत से कम से कम कीटनाशकों का प्रयोग करते हुए तथा सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र ,जैवविविधता , प्रकृति व समाज को कम से कम हानि पहुंचाते हुए , वनस्पति संरक्षण की सभी मौजूदा, संभावित ,समाज के द्वारा acceptable विधियों
को एक साथ सम्मिलित रूप से प्रयोग करके फसलों के हानिकारक जीवो की संख्या को फसल पारिस्थितिक तंत्र में आर्थिक हानि स्तर के नीचे सीमित रखते हुए भरपूर भोजन तथा खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ खाने योग पर्याप्त सुरक्षित भोजन तथा व्यापार हेतु गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करने की योग्यता प्रकृति और समाज में तालमेल के साथ इस प्रकार से विकसित की जाती है कि हमारे आसपास का पर्यावरण स्वक्ष , हरा भरा ,और जीवन को स्थाई रखने वाला बना रहे l तथा प्राकृतिक संतुलन कायम रहे l
अपने अनुभवों के आधार पर इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अर्थात आईपीएम को स्वयंपरिभाषित करें
एकीकृत नाशिजीव प्रबंधन या इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट अर्थात आईपीएम को अपने स्वयं के व्यवसाय सामाजिक आर्थिक प्राकृतिक राजनीतिक प्रायोगिक तथा खेतों में किए गए आईपीएम के कार्यों के अनुभव के आधार पर स्वयं को परिभाषित करना चाहिए l किसी भी विचारधारा उसके उद्देश्य को सर्वप्रथम सही तरीके से
Thursday, May 21, 2020
आईपीएम के क्रियान्वयन हेतु IPM के भागीदारों में IPM निपुणता का विकास I PM skill Development among IPM stakeholders
किसी भी व्यक्ति मैं किसी विशेष कार्य करने की क्षमता एवं योग्यता को निपुणता कहते हैं l आई पीएम के क्रियान्वयन हेतु IPM के विभिन्न भागीदारों में निम्न प्रकार की निपुण ताऊ को विकसित करने की परम आवश्यकता है l
1. आईपीएम के भागीदारों एवं कृषको की रसायनिक कीटनाशकों को समर्थन करने वाली मानसिकता में परिवर्तन लाना l
2. कृषकों एवं आईपीएम के अन्य भागीदारों में कम खर्चे में, कम से कम कीटनाशकों के प्रयोग के द्वारा, पर्यावरण, सामुदायिक स्वास्थ्य , पारिस्थितिक तंत्र, प्रकृति व उसके संसाधनों तथा समाज को न्यूनतम या बिल्कुल हानि ना पहुंचाते हुए भरपूर ,सुरक्षित भोजन एवं गुणवत्ता युक्त कृषि उत्पादों का उत्पादन करने की निपुणता को विकसित करना l
3. कृषकों एवं IPM के अन्य भागीदारों में रसायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता लाना l
4. फसल पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले सभी हानिकारक एवं लाभदायक जीवो की पहचान करने की क्षमता एवं योग्यता विकसित करना l
5. कृषकों में फसल पर्यावरण में पाए जाने वाले सभी लाभ दायक जीवो को संरक्षण करने की क्षमता एवं योग्यता को विकसित करना l
6. सप्ताहिक तौर पर कृष को मैं फसल पारिस्थितिक तंत्र के विश्लेषण करने की क्षमता को विकसित करके फसलों के बारे में अपनाए जाने वाली क्रियाओं के क्रियान्वयन के बारे में निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना l
7. रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने हेतु उनका न्यायोचित ढंग से प्रयोग करने तथा फसल में इनके उपयोग को कम से कम करने की निर्णायक क्षमता को विकसित करना
8 अनुभव के आधार पर उन सभी आईपीएम प्रैक्टिसेज को जिसका जिनका पर्यावरण ,प्रकृति ,समाज और जैव विविधता आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो के प्रयोग को या उपयोग को फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा कार्यक्रम से निष्कासित करना या कम से कम करने की क्षमता को विकसित l
9. कृष को मैं फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा की आधुनिक वैज्ञानिक एवं परंपरागत या ट्रेडिशनल टेक्निक्स को समेकित रूप से प्रयोग करने की क्षमता को विकसित करना l
10 . उपरोक्त सभी प्रकार की skills को
Learning by doing and believing by seeing methods के तरीके से विकसित करना चाहिए l
11. pest surveillance and monitoring and e pest Surveillance की स्किल्स का कृष को में विकास करना l
12. जैव उर्वरक जैसे हरी खाद पशुओं पर आधारित फसलों के अवशेषों के द्वारा बनाई जाने वाली खाद bacteria AVN Anya microorganisms ke dwara Banai Jane Wale Khad केंचुआ खाद एवं जैविक आईपीएम इनपुट्स का गांव स्तर पर उत्पादन करने की क्षमता को गांव के बेरोजगार पढ़े लिखे ग्रेजुएट नौजवानों में विकसित करना l
13.Entrepreunership Development to ensure supply of IPM inputs to the farmers.
14.IPM Farmers Field Schools संचालन हेतु स्किल डेवलपमेंट करना या निपुणता का विकास करना l
15. कृष को मैं बीज शोधन संबंधी निपुणता का विकास करना l
16. कृषि उत्पादन एवं कृषि रक्षा हेतु प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने की क्षमता का विकास करना l
17.
अब क्या करें IPMऔर जैविक खेती या ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ने के लिए
दोस्तों --इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट और जैविक खेती या ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए बहुत सारी रिसर्च या शोध कार्य तथा तकनीकों का विकास हो चुका है जिसमें काफी सारी तकनीकों को फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की गतिविधियों एवं प्रैक्टिसेज के रूप में धरातल पर भी उतार लिया गया है l इन तकनीकों को कृषकों के बीच में और अधिक प्रचार एवं प्रसार हेतु अब आवश्यक है कि इन तकनीकों को क्रियान्वयन करने के लिए जरूरी inputs बनाने की विधियों का सरलीकरण किया जाए एवं उनका उत्पादन कृषकों के द्वार पर उनके गांवों में या ब्लॉक स्तर पर शुरू किया जाए जिससे उनकी उपलब्धता कृषकों को सुनिश्चित हो सके l इसके लिए कृष को के परिवारों के अनइंप्लॉयड graduates या बच्चों को IPM and organic farming के inputs के उत्पादन की ट्रेनिंग अथवा प्रशिक्षण दिया जाए और सरकार द्वारा ब्लॉक स्तर पर आईपीएम सेवा केंद्र या छोटी-छोटी दुकान स्थापित किए जाएं l जहां से कृषक भाई इनकी खरीद एक सस्ते दामों पर कर सकें और उनका उपयोग अपनी खेती में फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा के लिए कर सकेंl इसके लिए IPM inputs के उत्पादन हेतु एस ओ पी मैंने स्वयं अपने रिटायरमेंट से पहले बनाकर डायरेक्टरेट ऑफ प्लांट प्रोटक्शन ,क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज को प्रस्तुत कर दिया था l इसी प्रकार का SOPऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित विभागों के द्वारा बनाए जाएं तथा तथा गांव के बेरोजगार ग्रेजुएट graduates डायरेक्टरेट ऑफ प्लांट प्रोटक्शन , क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के द्वारा आईपीएम इनपुट के उत्पादन पर तथा ऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित विभागों के द्वारा ऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित इनपुट के उत्पादन हेतु प्रशिक्षित किया जाए और दोनों तरीकों के inputs को ब्लॉक स्तर पर या ग्राम स्तर पर स्थापित किए गए आईपीएम सेवा केंद्रों के द्वारा कृषकों को सस्ते से सस्ते मूल पर उपलब्ध करवाए जाएं जिससे कृषक भाई उनका
Tuesday, May 19, 2020
कैसी हो आजकल के फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की विचारधारा
आजकल के सामाजिक ,आर्थिक ,प्राकृतिक एवं पर्यावरण परिपेक्ष में फसल उत्पादन एवं फसल सुरक्षा की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति ,समाज हितेषी लाभकारी तथा मांग पर आधारित होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्थाई, रोजगार प्रदान करने वाली, आय को बढ़ाने वाली एवं समाज व प्रकृति व जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए जिससे आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, प्राकृतिक, पर्यावरण ,पारिस्थितिकी तंत्र विकास भी हो, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति मैं सुधार एवं बढ़ोतरी हो तथा इसके साथ साथ हमारे मजदूर भाइयों को रोजगार के अवसर प्रदान करने वाली भी हो l आज के परिवेश एवं परिदृश्य को देखते हुए आई पीएम को इंटीग्रेटेड फार्मिंग मैं बदलने की परम आवश्यकता है इसके लिए खेती के साथ-साथ खेती पर आधारित व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की परम आवश्यकता है जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके l रसायनिक व असुरक्षित खेती को सुरक्षित खेती में परिवर्तित करने के लिए रसायनिक खेती को रसायन रहित जैविक खेती अथवा ऑर्गेनिक फार्मिंग में परिवर्तित करने की परम आवश्यकता है l इसके लिए वर्तमान वैज्ञानिक खेती के साथ-साथ पारंपरिक रसायन रहित खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे सुरक्षित खेती के साथ-साथ पर्यावरण , प्रकृति ,स्वास्थ्य, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी किया जा सके l
Monday, May 18, 2020
आईपीएम विचारधारा के बारे मेंआईपीएम भागीदारों मैं पाई जाने वाली कुछ भ्रांतियों का स्पष्टीकरण
इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट या IPM के क्रियान्वयन हेतु यह आवश्यक है कि क्रियान्वयन करने से पहले आईपीएम की विचारधारा को स्पष्ट रूप से समझ लिया जाए एवं समझ कर उस पर विचार करके उसको गुण करके उसका प्रायोगिक अध्ययन करके ही किसी अन्य से या शास्त्रार्थ किया जाए l आईपीएम एक ऐसा विषय है जो फसल उत्पादन की प्रणाली को प्रायोगिक तौर पर क्रियान्वयन करके ही सीखा जा सकता है ,समझा जा सकता है और उसका आगे भविष्य में क्रियान्वयन किया जा सकता हैl इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट की परिभाषा आईपीएम के हर भागीदार को अपने खेतों में किए गए अनुभवों के आधार पर स्वयं बनानी चाहिए l तभी उसका सही स्वरूप समझ में आ सकेगा एवं उसका सही तरीके से खेतों में फसल उत्पादन हेतु क्रियान्वयन किया जा सकेगा l आईपीएम के कुछ भागीदारों के मत के अनुसार सिर्फ और सिर्फ जैविक विधियों को बढ़ावा देना ही आईपीएम कहलाता है तथा इसके साथ साथ रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को ना करना या कम करना ही आईपीएम कहलाता है परंतु अनुभव के आधार पर यह नहीं है l IPM एक ऐसी विचारधारा है जिसके अनुसार हम भोजन सुरक्षा यानी फूड सिक्योरिटी के साथ साथ फूड सेफ्टी का भी ध्यान रखते हैं एवं इसके साथ साथ जो विधियां हम फसल उत्पादन के लिए प्रयोग करते हैं या फसलों में पाए जाने वाले हानिकारक जीवो के प्रबंधन हेतु प्रयोग की जाती हैं उनको इस प्रकार से प्रयोग किया जाता है कि उनका हमारे सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,प्रकृति एवं हमारे समाज पर विपरीत प्रभाव ना पड़े तथा इसके लिए हम इनके लिए हितेषी विधियों का ही प्रयोग करते हैं तथा इन विधियों से उत्पादन किया हुआ या किए गए कृषि उत्पाद खाने की दृष्टि से सुरक्षित तथा व्यापार की दृष्टि से व्यापार की शर्तों के अनुसार गुणवत्तापूर्ण भी होनी चाहिए l यहां हम यह चीज स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि IPM सिर्फ और सिर्फ जैव नियंत्रण विधियों को बढ़ावा देकर ही नहीं किया जाता बल्कि इसके साथ साथ मौजूदा हालत में जो भी pest management ki विधियां उपलब्ध होती है उनका ही प्रयोग समेकित रूप से इस प्रकार से किया जाता है की इनका समाज और प्रकृति तथा पर्यावरण पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े इसके साथ साथ खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता भी सुनिश्चित बनी रहे l
2. आईपीएम के कुछ भागीदारों तथा हमारे वैज्ञानिकों के बीच में एक भ्रांति यह भी है की देयर आर मैनी थिंग्स टू से बट नथिंग वर्क्स except chemical pesticides l इस संबंध में मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि जिन लोगों के दिमाग में यह भ्रांतियां है वह आईपीएम के वास्तविक उद्देश्यों को नहीं समझ पाते हैं या वह पूर्ण रूप से पेस्टिसाइड माइंडेड व्यक्ति हो चुके हैं l उनसे मैं यह कहना चाहता हूं कि आईपीएम की अन्य विधियां जो भी विकसित की गई है वह हमारे और आप जैसे वैज्ञानिकों के द्वारा ही विकसित की गई है तथा उनका प्रयोग फील्ड में भी किया गया है l अगर किसी भागीदार को इन विधियों पर विश्वास नहीं होता है तो या तो उन भागीदारों ने उन विधियों का प्रयाग प्रैक्टिकल रूप में नहीं किया है या जो काम हुआ है वह pseudo work हुआ है l यहां यह आरोप लगाना उचित नहीं होगा कि जो हमारे वैज्ञानिकों ने काम किया है वह pseudo work है l हो सकता है कि किसी ने किसी पार्टी कूलर क्रॉप में जो काम किया हो उसके या तो सही रिजल्ट ना आए हो या काम ही सही तरीका अपनाकर ना किया गया हो और अपने विचारधारा के अनुसार यह कह दिया गया हो कि यह विधियां प्रभावहीन है lअगर किसी व्यक्ति ने कोई काम नहीं किया है तो वह उन विधियों के प्रभाव के बारे में बताने में संकोच अवश्य करता रहेगा l स्वयं की अपनाने के बाद ही भागीदारी से आत्मविश्वास पैदा होता है और इसी आत्मविश्वास में विश्वास के बल पर कोई भी व्यक्ति यह कह सकता है कि अमुक विधि से यह रिजल्ट आते हैं l किसी विधि को सही तरीके से अपनाने के बाद ही सही नतीजों की अपेक्षा की जा सकती है l
Sunday, May 17, 2020
IPM के द्वारा किया गया क्षेत्र का कवरेज एवं प्रभाव आकलन के संबंध में कुछ विचार भाग 2
कृषि उत्पादन एवं फसल रक्षण कार्यक्रम दोनों ही इंटीग्रेटेड या एकीकृत तकनीक पर आधारित होते हैं जिसमें एक से अधिक गतिविधियों , विधियों एवं प्रैक्टिसेस को सुविधा पूर्वक , आवश्यकतानुसार किसी विशेष उद्देश्य को पूर्ति हेतु जिसके लिए खेती की जाती है , एकीकृत अथवा समेकित रूप से प्रयोग की जाती हैl देश का प्रत्येक किसान आईपीएम का क्रियान्वयन अपने फसल उत्पादन के दौरान अपने तरीके से अपने विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु करता है l जिसमें वह फसल उत्पादन एवं फसल रक्षा तथा तथा आईपीएम की सभी विधियों को बीज के चयन से लेकर के कटाई एवं विपणन तक प्रयोग करता है जोकि IPM package of practices मैं बताई जाते है l इन विधियों एवं पद्धतियों का प्रयोग जब कृषक सामुदायिक स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,इको सिस्टम ,जैव विविधता , प्रकृति एवं सोसाइटी को ध्यान में रखते हुए करते हैं तथा उनसे तालमेल बैठाकर के करते हैं तो हम इन सभी प्रेक्टिस को सम्मिलित रूप से आईपीएम प्रैक्टिस या आईपीएम का क्रियान्वयन कहते हैं ,नहीं तो इन सभी को सामान्य प्लांट प्रोटक्शन की श्रेणी में डाला जाता है l फसल उत्पादन हेतु प्रयोग जाने वाली सभी विधियां आईपीएम के क्रियान्वयन की विधियों के रूप में मानी जाती है अतः फसल उत्पादन हेतु कवर किया गया संपूर्ण क्षेत्र आईपीएम के द्वारा कवर किए गए क्षेत्र मैं ही गिना जाता है IPM के प्रभाव का आकलन करने के लिए निम्नलिखित पैरामीटर्स के आधार पर उनका प्रभाव का आकलन IPM And NonIPM खेतों के लिए तुलनात्मक रूप से किया जाना चाहिए l
1 . पर यूनिट एरिया में उत्पादन की गई पैदावार
2. रसायनिक कीटनाशकों के छिड़काव की संख्या
3. लाभदायक जीवो के संख्या का आकलन
4. प्रत्येक इकाई क्षेत्रफल में प्रयोग की गई प्रयोग की गई रसायनिक कीटनाशकों की मात्रl
5. पैदा किए गए फसल उत्पादों में रसायनिक कीटनाशकों के अवशेषों की मात्रा का विश्लेषण एवं आकलन आकलन
6. लागत और लाभ के अनुपात का आकलन yani cost benefit ratio
7. टोटल इनकम और टोटल लाभ
8 फसल पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन जय श्री मिट्टी की गुणवत्ता तथा अन्य पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव
9. फसल उत्पादन के विपणन पर पड़ने वाले प्रभाव
10 विपणन हेतु गुणवत्ता स्टैंडर्ड पर पड़ने वाले प्रभाव
11. IPM inputs की प्रयोग की गई मात्रा
12. सामाजिक प्रभाव जैसे सामुदायिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव तथा किसान की आर्थिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावl
13. फसल उत्पादों के खरीदारों की उपलब्धता
14. ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का आकलन
14. खेत में पाए जाने वाले मित्र जीवो की पहचान करने का कृषकों का ज्ञान का आकलन
15 . एग्रोइकोसिस्टम एनालिसिस के द्वारा निर्णय लेने की कृषकों की क्षमता एवं ज्ञान का आकलन
16. IPM इनपुट के प्रयोग AVN unke quality control की जानकारी l
17.
IPM के प्रभाव की उपरोक्त जानकारी के लिए IPM क्रियान्वयन करने के पूर्व एवं बाद में कृष को के साथ संवाद करके एवं साक्षात्कार करके बेंच मार्क सर्वे प्रोफार्मा में एंट्री करके तुलनात्मक अध्ययन के रूप में ली जा सकती है l
........
Friday, May 15, 2020
क्या भारतीय कृषि संपूर्ण रूप से रसायनिक कीटनाशक रहित हो सकती हैऔर अगर हां तो कब तक
भारत में रसायनिक कीटनाशकों की खोज और उनका कृषि में प्रयोग भारतीय कृषि को नुकसान करने वाले नासिजीवो के नियंत्रण हेतु तथा अचानक आने वाली नासि जीवो Nashijeevaun (pests) द्वारा आपदाओं के रोकथाम के लिए तथा अधिक भोजन के उत्पादन हेतु की गई थी जिससे खाद्य सुरक्षा प्राप्त की जा सके l कीटनाशकों के उपयोग से विभिन्न कीटों एवं बीमारियों का समय-समय पर नियंत्रण करके हम भोजन उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सके तथा हरित क्रांति प्राप्त कर सके l परंतु इन कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से हमें कीटनाशकों के अनेक प्रकार के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ रहे हैं l यह दुष्परिणाम जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए हैं l कृषि मैं आपदाओं की आशंका को संपूर्ण रूप से नकारा नहीं जा सकता और कोई भी कृषि आपदा या कोई भी अन्य आपदा कभी भी बताकर नहीं आती है l अतः हमें इन आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन एवं इनपुट को रखना आवश्यक हो जाता है l हमारे जीवन में हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियां होती रहती हैं l इन बीमारियों से निपटने के लिए हमें विभिन्न प्रकार की दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है l उसी प्रकार से फसलों में भी कोई भी ì and disease की आपदा कभी भी आ सकती है l और उस आपदा से निपटने के लिए हमें कीटनाशकों का सहारा लेना पड़ सकता है l आत: है इसके लिए कीटनाशकों का इमरजेंसी प्रोडक्शन या आपातकालीन उत्पादन होना भी आवश्यक है जिससे फसलों पर pests and diseases की आने वाली आपदाओं का निपटान किया जा सके तथा साथ ही साथ प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों ,समाज तथा पर्यावरण को भी बचाकर सुरक्षित रखा जा सके l हरित क्रांति के बाद हम खेती के लिए रसायनिक कीटनाशकों के ऊपर इतना निर्भर हो गए हैं कि अब यह कीटनाशक जो कि वास्तव में जहर है कृषि उत्पादन पद्धति तथा हमारे जीवन वा दिनचर्या ओं का हिस्सा बन चुके हैं l यद्यपि हम इन कीटनाशकों के विभिन्न विभिन्न प्रकार के दुष्प्रभाव से ग्रसित होते हैं इसके बावजूद भी हम इनको उपेक्षित यानी neglect करते चले जा रहे हैं इनके दुष्प्रभाव हमारे प्रकृति ,स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र आदि पर पढ़ रहा है जिससे हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है l ऐसी परिस्थिति में जबकि कीटनाशकों का प्रयोग zero स्तर तक लाना मुश्किल है l इनका प्रयोग सिर्फ अंतिम उपाय के रूप में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए ही कृषि उत्पादन कार्यों में करना चाहिए ,जिससे कृषि उत्पादन के दौरान होने वाला कीटनाशकों का उपयोग कम से कम हो सके और हम स्वस्थ एवं कीटनाशक से मुक्त अथवा कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्त अथवा इनके अवशेषों की मात्रा कृषि उत्पादों में एम आर एल सीमा के भीतर ही सीमित रखते हुए कृषि उत्पादन कर सकें या किया जा सके l
आजकल की परिस्थितियों को देखते हुए जबकि अभी रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग भारत में zero स्तर तक लाना नामुमकिन है हमें कृषकों को कीटनाशकों के दुष्प्रभावों की जानकारी प्रैक्टिकल करके दिखानी चाहिए जिससे उनके अंदर जागृति पैदा हो सके और वह स्वयं से कीटनाशकों के उपयोग को फसल उत्पादन के दौरान कम कर सकें l इसके साथ साथ रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों के उत्पादन तथा कृषकों को उनकी उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिससे जैव कीटनाशकों के प्रयोग को कृषि उत्पादन में बढ़ावा मिल सके l
अक्सर यह देखा गया है कि हम कि हम एक साधारण की गोली पेरासिटामोल बगैर डॉक्टर के सलाह के नहीं लेते परंतु भारी मात्रा में अंधाधुंध तरीके से खेतों में कीटनाशकों का उपयोग बगैर किसी निपुण व्यक्ति या सलाहकार के इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारा शरीर पर्यावरण, प्रकृति और समाज सभी को भारी नुकसान पहुंचता है l इस भारी नुकसान के प्रति हम उदासीन रहते हैं ऐसी propesticidal मानसिकता को बदलने की परम आवश्यकता है l और इसके लिए कृषकों में जन जागरण अभियान चलाकर के जागरूकता जागृत चाहिए l यह कार सरकारी विभागों द्वारा तथा स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा अवश्य करना चाहिए l लगभग 30 साल पहले से भारत सरकार ने राष्ट्रीय IPM प्रोग्राम की स्थापना की थी परंतु अभी तक कृषकों के बीच में हानिकारक कीटनाशकों के दुष्परिणाम तथा इनके उपयोग को कम करने की जागरूकता जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच सकी जिसके विभिन्न कारण हो सकते हैं lइनमें से एक कारण यह भी हो सकता है कि वैज्ञानिकों की मानसिकता में परिवर्तन भी ना होना एक प्रमुख कारण हो सकता है l इसके लिए आईपीएम के प्रमुख भागीदारों एवं सरकारी नुमाइंदों एवं राजनेताओं में प्रबल इच्छा शक्ति होना परम आवश्यक है जिसकी कमी इन सभी आई पी एम के भागीदारों में देखी गई है जिनके बहुत सारे राजनीतिक एवं सामाजिक कारण हो सकते हैं l उपरोक्त बताए गए सभी कारणों की वजह से वर्तमान में भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों के संपूर्ण रूप से उपयोग को अभी हाल में समाप्त करना नामुमकिन सा प्रतीत होता है परंतु यह कहना गलत होगा कि हम बगैर की रसायनिक कीटनाशकों के भारत मैं खेती नहीं कर सकते l
हमारी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं में लगातार परिवर्तन एवं वृद्धि होने के कारण भारतीय कृषि एक बहू-उद्देशीय धंधा बन गया है l आज के परिवेश एवं परिदृश्य में भारतीय कृषि एवं फसल सुरक्षा तथा आई पीएम की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति और समाज हितेषी, लाभकारी आय एवं व्यापार को बढ़ावा देने वाली तथा समाज एवं प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए l इसके लिए भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों एवं एवं उर्वरकों को न्यूनतम स्तर तक पहुंचाने की परम आवश्यकता है जिसके लिए समाज के एवं सरकार के सभी संस्थानों एवं भागीदारों को मिलकर कदम उठाना चाहिए जिससे स्वस्थ समाज, और सुरक्षित पर्यावरण स्थापित किया जा सके l यद्यपि समाज और कृष को मैं खेती में रसायनिक कीटनाशकों एवं पूर्वक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाने के लिए तथा बगैर रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती करने के लिए जागरूकता बढ़ी है परंतु अभी काफी दूर का सफर करना बाकी है l
Thursday, May 14, 2020
कृषि में रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए कृषक कम से कम दिलचस्पी क्यों दिखाते हैं
कृषि में रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम से कम करने के लिए कृषक भाई कम से कम दिलचस्पी दिखाते हैं इनके प्रमुख कारण इस प्रकार से all
1. रसायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणामों का दृष्टिगोचर ना होना l
2. प्रकृति ,पर्यावरण, पारिस्थितिक तंत्र ,प्राकृतिक रिसोर्सेस या संसाधनों के ऊपर रसायनिक कीटनाशकों के पडने वाले प्रभावों को अनदेखा करना l
3. कृष को के द्वारा रासायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणामों के साथ ही जीने की क्रिया को अपने लाइफ स्टाइल रोजमर्रा की चीजों में शामिल करना l
4. हरित क्रांति के बाद से हम खेती में रसायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं तथा इन्हीं रासायनिक कीटनाशकों के साथ अपने जीवन को जी रहे हैं यद्यपि इनके दुष्परिणामों से भी हम प्रभावित हो रहे हैं परंतु फिर भी इन को अनदेखा कर रहे हैं l
5 कृषकों में रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग हेतु मानसिकता पनप चुकी है l
6. कृषक भाइयों में रसायनिक कीटनाशकों के उपयोग की लत लग चुकी है l
7.रसायनिक कीटनाशकों के विपरीत अल्टरनेट जैव कीटनाशकों की कमी होना l
8. रसायनिक कीटनाशकों की उपलब्धता का कृषकों के दरवाजे पर सुनिश्चित ना होना l
9 कृषकों के दिमाग में जैविक कीटनाशकों के प्रति विश्वास का ना होना l
10. कीटनाशकों के डीलरों तथा उद्योगों के कर्मचारियों के द्वारा कृषकों को रसायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के लिए बाध्य करना एवं प्रेरित करना l
क्या बगैर पेस्टिसाइड्स के भारत में खेती की जा सकती हैwhether we can do farming without using chemical pesticides in India
1 जी हां l भारत में बगैर रासायनिक पेस्टिसाइड्स के प्रयोग से भी खेती की जा सकती है परंतु इसके लिए जरूरत है प्रबल इच्छा शक्ति, सही vision ,काम करने का जज्बा, समय रहते सही कदम उठाना, किसी भी कीमत पर सफलता प्राप्त करना जैसे प्रमुख सिद्धांतों की ,जिनको प्रयोग करके, जनता को जागरूक करके तथा प्रेरित करके एवं कानून के द्वारा बलपूर्वक लागू करके अपनाया जा सकता है lइस प्रकार की रणनीति अभी हाल में आई हुई कोरोना महामारी के रोकथाम के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने भारत में अपनाई थी l जब बगैर दवाई के करो ना जैसी बीमारी की रोकथाम की जा सकती है तो बगैर रसायनिक कीटनाशकों के फसल उत्पादन भी किया जा सकता है l इसके लिए जरूरत है प्रबल इच्छा शक्ति की, सही नेतृत्व की तथा सही समय पर उचित कदम उठाने की एवं सही विधियों को सही तरीके से अपनाने की l इसके अतिरिक्त कृषकों को उनके द्वार पर आईपीएम inputs की उपलब्धता सुनिश्चित करने की परम आवश्यकता है l सरकार को रसायनिक कीटनाशकों के समानांतर जैव कीटनाशकों के उत्पादन हेतु उत्पादन इकाइयों एवं उत्पादन उद्योगों को भी स्थापित करना चाहिए जिससे कृषकों को जैव कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके l यद्यपि कीटनाशकों के ना होने पर भी वर्तमान में मौजूद नासिजीवो के प्रबंधन की सभी विधियों को उचित तरीके से, सही समय पर, सही ढंग से प्रयोग करके फसलों का उत्पादन बगैर रसायनिक कीटनाशकों के भी किया जा सकता हैl ऐसा अनुभव किया गया है कि कोई भी नासि जीव प्रबंधन की विधि आईपीएम प्रैक्टिस हो भी सकती है और वह नहीं भी हो सकती l उदाहरण के तौर पर कीटनाशकों का न्यायोचित तरीके से इस्तेमाल करना ,उनका सिर्फ इमरजेंसी के दौरान ही प्रयोग करना आईपीएम प्रैक्टिस के रूप में कहा जाता जबकि इनका अंधाधुंध तरीके से प्रयोग करना आईपीएम प्रैक्टिस नहीं होता है l इसी प्रकार से फसलों की कटाई के बाद फसल के अवशेषों को अंधाधुंध तरीके से जलाना आईपीएम प्रैक्टिस नहीं होता है जबकि उनको देख करके उनके अंदर मौजूद लाभदायक जीवो की संख्या का आकलन करके उनका कंजर्वेशन करना आईपीएम प्रैक्टिस कहलाता है l
Wednesday, May 13, 2020
History of organized crop pest Surveillance in India .
In late nineteen sixties the high yielding varieties of rice such as Taichung Native 1(TN-1)and IR -8 were introduced to maximize the crop production .Later on these varieties were found widely attacked by Green leafhopper(Nephotetix Sp),Rice Tungru Virus(RTV)and Bacterial leafblight (BLB) during 1969 in Kharif season of UP ,Bihar,West Bengal,Orrissa,and MP states of India.
Central Govt along with Ford foundation and in collaboration with the states had started an Adhock Rice surveys with periodicity of 10 days duration during Kharif 1970 onwards
Thia was the real beginning of Organised crop pest Surveillance in India.
During fourth five year plan 12 Central surveillance stations were established in various states of India which were lateron increase to 19 during fifth five year plan.
Each Surveillance Station was having few zonal surveillance stations in which one field reporter was posted to conduct fixed plot and one roving survey after 10 kilometre in a week.Each Zonal surveillance station was having four fixed fields in which weekly surveys were conducted.In each field five spots were observed randomly or zigzag manner to note the population if pests and their natural enemies .Thus 20 spots were surveyed on Monday, Teusday,Wednesday Thurstday .On next day ie on Friday,one cycle roving survey was conducted covering nearly 10 KM distance and area. Manual observations were taken on prescribed survey proforma.On Saturdaya meeting at zonal surveillance station was organized to compile these survey data.
Lateron these surveys were changed in to long rapid roving surveys by a Vehicle covering 19 to 20 spot in a day by taking hault or stop after every every10 KM distance .The observations were taken both side of the road entering in to 10- 15 steps in side fields. The observation on the population of pests and their natural enemies were taken at five spots in a field .In evening the day work and day report was compiled to summarise the pest situation found on survey route in a day .Each rapid roving survey was done or completed in 4 to 5 days. .On arrival of survey team at Central surveillance station , the total pest and disease situation was determined and the report was submitted to the PPA ,Dte of PPQAnd S Faridabad with copies to the state Govts..Lateron the visual collection and transmission of data even from field has been replaced with electronic transmission in form of e pest surveillance.
Sunday, May 3, 2020
History of Biological Control Scheme of the Dte. of plant protection ,quarantine and Storage Govt of India.
Directorate of plant protection ,Quarantine and storage has implemented a pilot project for the establishment of parasite and predators for bio control of insect pests and weeds during fourth five
year plan which continued to seventh
five year plan . Five Central biological control stations (CBCSs)set up at Bangalore, Faridabad, Gorakhpur ,Hyderabad and Srinagar up to the end of fifth five year plan .The project was further continued during sixth five year plan that is 1978 -83 with an outlay of rupees 75 lakh.
CBCS Hyderabad,Gorakhpurand Faridabad with some exemptin some posts shifted to non plan side during fifth five year plan.During sixth five year plan CBCS Solan,Sriganganagar,Burdwan ,Surat Raipur ,Bhuveneswar and a Parasite multiplication unit at Bagalore were also setup.CBCSBangalore and CBCS Srinagar were also transferd to nonplan side. The detail of the year of opening of different CBCSs is given below.
1.Hyderabad 1971.
2.Faridabad 1972.
3.Gorakhpur 1974.
4.Bangalore 1976
5.Srinagar 1976
6.Solan 1980-81.
7 .Sriganganagar 1980-81.
8.Surat 1981
9 Burdwan 1980-81
10 .Raipur 1983.
11.Bhuveneshwar 1983.
12.PMU Bangalore 1982-83.
These stations were merged in to a Scheme Strenthening and Modernisation of pest management approach in India during 1991-92 and became Central Integrated Pest Management Centres after restructuring of plant protection system in India.
IPM strategy --points to be included.
1.A strong political and beaurecratic willpower,correct vision,working attitude,proactiveness to get the success at any cost or in any way with correct objectives,working or achieving success with available resources which can be achieved through awareness,motivation and enforcement of law.
2.Promote or implement IPM strategy considering nature and culture together with better future.
3.Always be ready to combate any pest or any other emergencies.
4.IPM strategy includes society and nature friendly pest management practices to be used in friendly and proper manner .
5.
IPM strategy --points to be included.
1.A strong political and beaurecratic willpower,correct vision,working attitude,proactiveness to get the success at any cost or in any way with correct objectives,working or achieving success with available resources which can be achieved through awareness,motivation and enforcement of law.
2.
principles of Integrated Pest Management
Integrated Pest Management (IPM)is related with nature and society which is based on the following principles.
1 Non violence to avoid indiscriminate use of the chemical pesticides and fertilizers. Let's not kill the pests without assessing their economical, ecological ,sociological,and loss to the natural resources.
2.Sensitiveness.Lets realize the feeling and requirements of the nature and its resources,crops and their Agroecosystems also and the environment surrounds us.
3.Sympathathy to all kinds of harmful and useful organisms found in agroecosystems as none of the organisms found in this universe are pests if any organism behaves like a pest it behaves only in provocative conditions created by man.Do not consider any organism as a pest without assessing its loss. If the loss done or to be done by the pest is not above Economic Threshold level then we should not consider them as a pest.
4.Tolorence - Tolerate the loss caused due to pest below the pest population up to the pest population causing economic loss.
5.Hormony - Let's do IPM practices as per the requirement of of agroecosystem,Environment, biodiversity, nature and society.
6.Live and let live to maintain natural balance in agroecosystems
7 Adopt nature and society friendly life style to conserve natural resources and environment t o facilitate the implementation of IPM.Avoid those lifestyles which have got adverse effect on our health ,ecosystem biodiversity nature and society.Lets make ecofriendly life style to conserve natural resources.
8.Lets not make Development catestrophic in nature.
9.Lets not neglect nature while doing IPM.
10.Nature and culture together with better future.
11.IPM for better Environment and better future.
12.Use natural resources judiciously while doing IPM .
13.Use chemical pesticides and fertilizers only to combat emergent situation..
.14.welfare of all (both biotic and abiotic)in the universe and agroecosystem is the main moto of IPM.
15.IPM must be protective,beneficial,safe and full of happiness for all organisms found in Agroecosystem or universe.
16 Do not disturb nature beyond a limit.
17Since I P M is relted to community health,Environment, ecosystems, biodiversity,nature and its resources and society and it's different sections hence the IPM practices must be better suited and friendly with these things and aspects.Same way the IPM practices must also be included in our life styles.
18.Lets allow nature to behave like nature.Do not try to change nature according to our wish or choice .Let's change ourselves according to the requirement of nature.Nature can fulfill our needs but it can not fulfill our greeds.
19.People participation ,cooperation and coordination, political and beaurecratic willpower and support ,strong and skilled leadership,ensuring the availability of quality IPM inputs at proper time,protectiveness for implementation of IPM through advance planning, preparation and technological advancement are the major principles for the implementation of IPM.
20 .IPM must be a service to the humanity,nature ,society.It must have an intention of service ,equality,kindness to all the biotic and abiotic components required to sustain life on earth.IPM has a principle of Sarv Manglam. IPM सबका कल्याण ,सबका मंगल ,के सिद्धांत पर आधारित है Let's do welfare of all.
21.In view of todays social,natural,ecological, Environmental,climatic,economicalscinarios and context the concept and the principles of IPM must be safe,profitable, income,trade and business oriented and harmonious with the nature and society liable to improve the livelyhood of the farmers
22.Change of propesticidal mindsets of all stakeholders of IPM,becoming sympathetic to all living organisms (both beneficial and harmful,),giving due importance human ,animal and soil health,Creation of awareness about ill effects of chemical pesticides, Educcation and Motivation of the farmers and other IPM Stakeholers for adoption of IPM with reducing the use of chemical pesticides,proactiveness for advanced planning and preparation, for timely execution of IPM ,ensuring availability of IPM inputs to the farmers at their doorsteps to facilitate the implementation of IPM,keeping strict and regular pest Surveillance and monitoring through Agroecosystem Analysis for decision making for the adoption of IPM practices ,promoting biopesticides inplace of the chemical pesticides ,Making the farmers and other IPM Stakeholers competent to grow bumper and safe crops with minimum expenditure and minimum use of the chemical pesticides are the essential needs for implementation of IPM.
23. All the organisms found in agrosystem are not harmful or pest s most of them are beneficial. lets conserve the beneficial organisms found in Agro ecosystem to maintain natural
24. All the pests must not always be controlled. We should control only those pests which do not provide us time to control for which we must have an advance planning and preparation.
25. We have to tolerate the loss due to pest up to the pest population called economic threshold leve .
26.Lot of beneficial organisms are foud in Agroecosystem regulating the pest population..Let's conserve these beneficial organisms found in agroecosystem.
27.A plant have its every parts in the quantity of more than its requirements. If few parts are damaged.even then ther e will be no loss in the cumulative yield .
28.Each and every plant have an ability to sustain against stressed conditions up to the certain extent.
29.Each and every plant have got an ability to compensate crop loss up to certain extent against the loss caused by the biotic and abiotic stressed.
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