Friday, May 15, 2020

क्या भारतीय कृषि संपूर्ण रूप से रसायनिक कीटनाशक रहित हो सकती हैऔर अगर हां तो कब तक

 भारत में रसायनिक कीटनाशकों की खोज और  उनका कृषि में प्रयोग भारतीय कृषि को नुकसान करने वाले  नासिजीवो के नियंत्रण हेतु तथा अचानक आने वाली नासि जीवो Nashijeevaun (pests) द्वारा  आपदाओं के रोकथाम के लिए तथा अधिक भोजन  के उत्पादन हेतु की गई थी जिससे खाद्य सुरक्षा प्राप्त की जा सके  l कीटनाशकों के उपयोग से विभिन्न कीटों एवं बीमारियों का समय-समय पर नियंत्रण करके हम भोजन उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सके तथा हरित क्रांति प्राप्त कर सके l  परंतु इन कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से हमें कीटनाशकों के अनेक प्रकार के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ रहे हैं l  यह दुष्परिणाम जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए हैं l       कृषि  मैं आपदाओं की आशंका को संपूर्ण रूप से नकारा नहीं जा सकता और कोई भी कृषि आपदा या कोई भी अन्य आपदा कभी भी बताकर नहीं आती है l अतः हमें इन आपदाओं से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन एवं इनपुट को रखना आवश्यक हो जाता है  l हमारे जीवन में हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियां होती रहती हैं l इन बीमारियों से निपटने के लिए हमें विभिन्न प्रकार की दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है l उसी प्रकार से फसलों में भी कोई भी ì and disease   की आपदा कभी भी आ सकती है l और उस आपदा से निपटने के लिए हमें कीटनाशकों का सहारा लेना पड़ सकता है l आत: है इसके लिए  कीटनाशकों का इमरजेंसी प्रोडक्शन  या आपातकालीन उत्पादन  होना भी आवश्यक है  जिससे  फसलों पर  pests and  diseases की  आने वाली आपदाओं  का निपटान किया जा सके  तथा साथ ही साथ प्रकृति व प्राकृतिक  संसाधनों ,समाज तथा पर्यावरण को भी बचाकर सुरक्षित रखा जा सके l हरित क्रांति के बाद हम खेती के लिए रसायनिक कीटनाशकों के ऊपर इतना निर्भर हो गए हैं कि अब यह कीटनाशक जो कि वास्तव में जहर है कृषि उत्पादन पद्धति तथा हमारे जीवन वा दिनचर्या ओं का हिस्सा बन चुके हैं l यद्यपि हम इन कीटनाशकों के विभिन्न विभिन्न प्रकार के दुष्प्रभाव से ग्रसित होते हैं इसके बावजूद भी हम इनको उपेक्षित यानी neglect करते चले जा रहे हैं इनके दुष्प्रभाव हमारे प्रकृति ,स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,पारिस्थितिक तंत्र आदि पर पढ़ रहा है जिससे हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है l ऐसी परिस्थिति में जबकि कीटनाशकों का प्रयोग zero स्तर तक लाना मुश्किल है l  इनका प्रयोग सिर्फ अंतिम उपाय के रूप में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए ही कृषि उत्पादन कार्यों में करना चाहिए ,जिससे कृषि उत्पादन के दौरान होने वाला कीटनाशकों का उपयोग कम से कम हो सके और हम स्वस्थ एवं कीटनाशक से मुक्त अथवा कीटनाशकों के अवशेषों से मुक्त अथवा इनके अवशेषों की मात्रा कृषि उत्पादों में एम आर एल सीमा के भीतर ही सीमित रखते हुए कृषि उत्पादन  कर सकें या किया जा सके  l
          आजकल की परिस्थितियों को देखते हुए  जबकि अभी रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग  भारत में zero स्तर तक लाना नामुमकिन है हमें कृषकों को कीटनाशकों के दुष्प्रभावों की जानकारी प्रैक्टिकल करके दिखानी चाहिए जिससे उनके अंदर जागृति पैदा हो सके और वह स्वयं से कीटनाशकों के उपयोग को फसल उत्पादन के दौरान कम कर सकें l इसके साथ साथ रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों के उत्पादन तथा कृषकों को उनकी उपलब्धता को  सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिससे     जैव कीटनाशकों  के प्रयोग को कृषि उत्पादन में बढ़ावा मिल सके l
      अक्सर यह देखा गया है  कि हम कि हम एक साधारण  की गोली पेरासिटामोल बगैर डॉक्टर के सलाह के नहीं लेते परंतु भारी मात्रा में अंधाधुंध तरीके से खेतों में कीटनाशकों का उपयोग बगैर किसी निपुण व्यक्ति या सलाहकार के इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारा शरीर पर्यावरण, प्रकृति और समाज सभी को भारी नुकसान पहुंचता है  l इस भारी नुकसान के प्रति हम उदासीन रहते हैं ऐसी propesticidal मानसिकता को बदलने की परम आवश्यकता है l और इसके लिए कृषकों में  जन जागरण अभियान चलाकर के जागरूकता    जागृत चाहिए l यह कार सरकारी विभागों द्वारा तथा स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा अवश्य करना चाहिए l लगभग 30 साल पहले से भारत सरकार ने राष्ट्रीय IPM प्रोग्राम की स्थापना की थी परंतु अभी तक कृषकों के बीच में हानिकारक कीटनाशकों के दुष्परिणाम तथा इनके उपयोग को कम करने की जागरूकता जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच सकी  जिसके विभिन्न कारण हो सकते हैं  lइनमें से एक कारण यह भी हो सकता है कि वैज्ञानिकों की मानसिकता में परिवर्तन भी ना होना एक प्रमुख कारण हो सकता है l इसके  लिए आईपीएम  के प्रमुख भागीदारों एवं सरकारी नुमाइंदों एवं राजनेताओं में  प्रबल इच्छा शक्ति  होना परम आवश्यक है जिसकी कमी इन सभी आई पी एम के भागीदारों में देखी गई है जिनके बहुत सारे राजनीतिक एवं सामाजिक कारण हो सकते हैं l उपरोक्त बताए गए सभी कारणों की वजह से वर्तमान में भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों  के संपूर्ण रूप से उपयोग को अभी हाल में समाप्त करना नामुमकिन सा प्रतीत होता है परंतु यह कहना गलत होगा कि हम बगैर की रसायनिक कीटनाशकों के भारत  मैं खेती नहीं कर सकते l
        हमारी  आवश्यकताओं एवं  इच्छाओं में लगातार परिवर्तन एवं वृद्धि होने के कारण भारतीय कृषि एक बहू-उद्देशीय धंधा बन गया है l आज के परिवेश एवं परिदृश्य में भारतीय कृषि एवं फसल सुरक्षा तथा आई पीएम की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति और समाज हितेषी, लाभकारी आय एवं व्यापार को बढ़ावा देने वाली  तथा समाज एवं प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए l  इसके लिए भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों एवं एवं उर्वरकों को न्यूनतम स्तर तक पहुंचाने की परम आवश्यकता है जिसके लिए समाज के एवं सरकार के सभी संस्थानों एवं भागीदारों को मिलकर कदम उठाना चाहिए जिससे स्वस्थ समाज, और सुरक्षित पर्यावरण स्थापित किया जा सके l   यद्यपि समाज और  कृष को मैं खेती में रसायनिक कीटनाशकों एवं पूर्वक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाने के लिए तथा बगैर रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती करने के लिए जागरूकता बढ़ी है परंतु अभी काफी दूर का सफर करना बाकी है l

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