आजकल की परिस्थितियों को देखते हुए जबकि अभी रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग भारत में zero स्तर तक लाना नामुमकिन है हमें कृषकों को कीटनाशकों के दुष्प्रभावों की जानकारी प्रैक्टिकल करके दिखानी चाहिए जिससे उनके अंदर जागृति पैदा हो सके और वह स्वयं से कीटनाशकों के उपयोग को फसल उत्पादन के दौरान कम कर सकें l इसके साथ साथ रसायनिक कीटनाशकों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों के उत्पादन तथा कृषकों को उनकी उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए जिससे जैव कीटनाशकों के प्रयोग को कृषि उत्पादन में बढ़ावा मिल सके l
अक्सर यह देखा गया है कि हम कि हम एक साधारण की गोली पेरासिटामोल बगैर डॉक्टर के सलाह के नहीं लेते परंतु भारी मात्रा में अंधाधुंध तरीके से खेतों में कीटनाशकों का उपयोग बगैर किसी निपुण व्यक्ति या सलाहकार के इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारा शरीर पर्यावरण, प्रकृति और समाज सभी को भारी नुकसान पहुंचता है l इस भारी नुकसान के प्रति हम उदासीन रहते हैं ऐसी propesticidal मानसिकता को बदलने की परम आवश्यकता है l और इसके लिए कृषकों में जन जागरण अभियान चलाकर के जागरूकता जागृत चाहिए l यह कार सरकारी विभागों द्वारा तथा स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा अवश्य करना चाहिए l लगभग 30 साल पहले से भारत सरकार ने राष्ट्रीय IPM प्रोग्राम की स्थापना की थी परंतु अभी तक कृषकों के बीच में हानिकारक कीटनाशकों के दुष्परिणाम तथा इनके उपयोग को कम करने की जागरूकता जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच सकी जिसके विभिन्न कारण हो सकते हैं lइनमें से एक कारण यह भी हो सकता है कि वैज्ञानिकों की मानसिकता में परिवर्तन भी ना होना एक प्रमुख कारण हो सकता है l इसके लिए आईपीएम के प्रमुख भागीदारों एवं सरकारी नुमाइंदों एवं राजनेताओं में प्रबल इच्छा शक्ति होना परम आवश्यक है जिसकी कमी इन सभी आई पी एम के भागीदारों में देखी गई है जिनके बहुत सारे राजनीतिक एवं सामाजिक कारण हो सकते हैं l उपरोक्त बताए गए सभी कारणों की वजह से वर्तमान में भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों के संपूर्ण रूप से उपयोग को अभी हाल में समाप्त करना नामुमकिन सा प्रतीत होता है परंतु यह कहना गलत होगा कि हम बगैर की रसायनिक कीटनाशकों के भारत मैं खेती नहीं कर सकते l
हमारी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं में लगातार परिवर्तन एवं वृद्धि होने के कारण भारतीय कृषि एक बहू-उद्देशीय धंधा बन गया है l आज के परिवेश एवं परिदृश्य में भारतीय कृषि एवं फसल सुरक्षा तथा आई पीएम की विचारधारा पर्यावरण, प्रकृति और समाज हितेषी, लाभकारी आय एवं व्यापार को बढ़ावा देने वाली तथा समाज एवं प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने वाली होनी चाहिए l इसके लिए भारतीय कृषि में रसायनिक कीटनाशकों एवं एवं उर्वरकों को न्यूनतम स्तर तक पहुंचाने की परम आवश्यकता है जिसके लिए समाज के एवं सरकार के सभी संस्थानों एवं भागीदारों को मिलकर कदम उठाना चाहिए जिससे स्वस्थ समाज, और सुरक्षित पर्यावरण स्थापित किया जा सके l यद्यपि समाज और कृष को मैं खेती में रसायनिक कीटनाशकों एवं पूर्वक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाने के लिए तथा बगैर रसायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के खेती करने के लिए जागरूकता बढ़ी है परंतु अभी काफी दूर का सफर करना बाकी है l
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